Wednesday 2 September, 2009

मेंबर इलेक्ट्रिकल की पदस्थापना को लेकर जारी है

रेल मंत्रालय और पीएमओ के बीच खींचतान

नयी दिल्ली : रेलवे बोर्ड में मेंबर इलेक्ट्रिकल (एमएल) का पद खाली हुए एक महीना बीत गया है परंतु इस पदपर पदस्थापना को लेकर रेल मंत्रालय और पीएमओ के बीच लगातार खींचतान जारी है. रेलमंत्री ममता बनर्जी ने इस पद के लिए भेजे गए तीन वरिष्ठ विद्युत अधिकारियों - श्री यू. सी. डी. श्रेणी, महाप्रबंधक/पूर्वोत्तर रेलवे, श्री सुदेश कुमार, महाप्रबंधक/उ.म.रे., श्री ए. के. बोहरा, डीजी/आरएससी - के नामों में से उम्मीदवार नं. 2 श्री सुदेश कुमार के नाम की सिफारिश की थी. जिसे पीएमओ ने मंजूर नहीं किया, क्योंकि श्री सुदेश कुमार इस पद की नियमानुसार आवश्यक योग्यताओं में से किसी भी योग्यता को पूरा नहीं करते हैं. न वह सीनियर मोस्ट हैं, न ही ओपन लाइन जीएम में उनका एक साल का कार्यकाल पूरा हुआ है और न ही दो साल की सर्विस बाकी है और न ही प्रशासनिक दृष्टिकोण से वह इस पद के काबिल खरे उतरते हैं.
जबकि श्री श्रेणी न सिर्फ सीनियर मोस्ट हैं बल्कि अपने संपूर्ण सर्विस रिकार्ड के बल पर वे इस पद के सबसे प्रबल दावेदार भी हैं, क्योंक वरिष्ठतम होने के साथ उनकी 35 साल की 35 एसीआर आउट स्टैंडिंग हैं. ओपन लाइन जीएम में भी उनके करीब दो साल पूरे हो रहे हैं. प्रशासनिक दृष्टिकोण से वह बोर्ड के वर्तमान सभी मेंबरों से ज्यादा सक्षम हैं, जिसके प्रमाण पूर्वोत्तर रेलवे सहित उन सभी जगहों पर उपलब्ध हैं, जहां-जहां उनकी पदस्थापना रही है.
श्री ए. के. बोहरा इस रेस में कहीं हैं ही नहीं. उनका नाम इस पैनल में उपरोक्त दोनों अधिकारियों के बाद तीसरे वरिष्ठतम क्रम में होने के कारण आया है. बहरहाल श्री बोहरा इस राजनीति से मुक्त हो गए हैं और उनहोंने भुवनेश्वर में बतौर जी एम् / पू. त. रे. ज्वाइन कर लिया है क्योंकि काफी लम्बी प्रतीक्षा के बाद आकिर ओपन लाइन में उनके पोस्टिंग आर्डर पिछले हफ्ते जारी कर दिए गए थे.
अब श्री श्रेणी को एमएल न बनाए जाने के लिए रेलमंत्री ममता बनर्जी को हिचक और सीनियरिटी बायपास न हो, पीएमओ की इस आशंका के कई कारण हैं. मगर श्री सुदेश कुमार को एमएल बनाने और श्री श्रेणी को बायपास किए जाने के लिए रेल मंत्री द्वारा दिया गया कारण या स्पष्टीकरण पर्याप्त नहीं है. हालांकि रेलमंत्री ने स्पष्टत: दोनों अधिकारियों के पक्ष-विपक्ष में कोई विशेष कारण नहीं बताये हैं कि सारी योग्यता होने के बावजूद श्री श्रेणी को एमएल क्यों नहीं बनाया जाना चाहिए और सारी अयोग्यता होने के बावजूद श्री सुदेश कुमार को एमएल क्यों बनाया जाना चाहिए.
हमारी जानकारी के अनुसार श्री श्रेणी के खिलाफ रेलमंत्री के कान भरे गए हैं कि वह पूर्व रेलमंत्री के करीबी हैं और उनके गांव में मंदिर बनवाने के समय अथवा ट्रैक के निरीक्षण के समय मंदिर बनवाने का आभास देने वाली एक वीडियो क्लीपिंग में रेलमंत्री को दिग्भ्रमित करने के लिए उन्हें दिखाई गई है और उन्हें बाया गया है कि श्री श्रेणी एक अति विवादास्पद अधिकारी हैं. इसमें 'रेलवे समाचार' का भी कुछ योगदान रहा है, जो कि हाल ही में सीओएम के साथ हुए विवाद में आईआरपीओऍफ़ के अध्यक्ष श्री जे. पी. सिंह द्वारा उन्हें बर्खास्त किए जाने की मांग को प्रमुखता से प्रकाशित किया था. इसके अलावा उनके कार्यकाल के दौरान उनके द्वारा लिए गए कुछ निर्णयों की जांच-पड़ताल करके पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद ही उन्हें एमएल बनाए जाने की संस्तुति करने का सुझाव रेलमंत्री को दिया था.
इसी तरह एमएल पद के उम्मीदवार नं. 2 श्री सुदेश कुमार के बारे में भी 'रेलवे समाचार' ने रेलमंत्री को अवगत कराया है कि वे उनके द्वारा सभी जोनल सीईई से बतौर एएम/एल इलेक्ट्रिकल सेमिनार कराने के लिए उनके द्वारा इकठ्ठा की गई करीब 40 लाख रु. की राशि का पता लगवाएं कि वह कहां खर्च हुई. क्योंकि जहां एक तरफ उक्त सेमिनार कभी हुआ ही नहीं, वहीं दूसरी तरह यह 'चंदा' जमा करने के चक्कर में दक्षिण रेलवे का एक डिप्टी सीईई - सीबीआई के हाथों रंगे हाथ धरा गया था, जिससे उसके साथ उसका पीएचओडी (सीईई) आज भी मुसीबत का सामना कर रहे हैं, जबकि उक्त राशि (चंदा) जमा कराने वाले श्री सुदेश कुमार की कोई जिम्मेदारी तय नहीं हुई है. हालांकि ट्रैप हुए डिप्टी सीईई/द.रे. ने अपने बयान में सीबीआई को इस सबका खुलासा किया है जो कि वर्तमान में प्रमाणस्वरूप दक्षिण रेलवे विजिलेंस के पास उपलब्ध है.
इसी प्रकार 'रेलवे समाचार' ने रेलमंत्री को यह भी बतया है कि कानपुर-इलाहाबाद के बीच करीब 200 करोड़ की लागत वाला जो एसएंडटी प्रोजेक्ट पिछले लगभग तीन साल से रेट के निर्धारण को लेकर अधर में अटका था, उसे श्री सुदेश कुमार ने संबंधित कंपनी से एक 'समझौते' के तहत अपने मात्र 7-8 महीने से भी कम के कार्यकाल में कंपनी की शर्तों पर ही क्लीयर कर दिया है. कोलकाता स्थित यह कंपनी जर्मनी की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी की भारतीय भागीदार है, जो कि पॉलिटिकली मोटीवेटेड भी है और यही कंपनी अपने राजनीतिक संपर्कों एवं धन बलकी बदौलत श्री सुदेश कुमार की लॉबिंग कर रही है. इस लॉबिंग में पश्चिम बंगाल फैक्टर के चलते ही रेलमंत्री ने सभी नकारात्मक तथ्यों के बावजूद श्री सुदेश कुमार को एमएल बनाए जाने की सिफारिश की है.
रेलमंत्री इस सिफारिश को वाजिब न मानते हुए पीएमओ में कैबिनेट एवं प्रिंसिपल सेक्रेटरी दोनों ने इससे अपनी असहमति व्यक्त करते हुए पीएम को अपनी राय से अवगत करा दिया. इसी बीच पांच अगस्त को कैबिनेट मीटिंग में भाग लेने आई रेल मंत्री से प्रिंसिपल सेक्रेटरी ने मुलाकात करके पीएमओ और डीओपीटी की राय से उन्हें अवगत भी करा दिया था. इसके बाद 'वरिष्ठता को नजरअंदाज नहीं किए जाने और यदि ऐसा होता है तो इसका आधार स्पष्ट करने' संबंधी एक नोट पीएमओ ने रेल मंत्रालय को भेजा था. रेल मंत्रालय अथवा रेल मंत्री हालांकि अब तक इस नोट का स्पष्टीकरण नहीं दे पाए हैं, तथापि हमें मिली जानकारी के अनुसार पीएमओ के उक्त नोट के जवाब में रेलमंत्री ने पुन: उम्मीदवार नं. 2 श्री सुदेश कुमार की ही सिफारिश बिना किसी स्पष्टीकरण के भेज दी थी.
इसके अलावा 'रेलवे समाचार' द्वारा रेल मंत्री को श्री श्रेणी और श्री सुदेश कुमार के 'आचरणों' संबंधी जो पत्र भेजे गएथे, उनमें से श्री श्रेणी के खिलाफ एकतरफा जांच शुरू करा दी गई. जबकि 'रेलवे समाचार' ने यह जांच उक्त दोनों अधिकारियों के संबंध में कराने और पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद ही दोनों में से योग्य अधिकारी को ही एमएल बनाए जाने की बात कही थी. परंतु जो कार्रवाई प्रत्यक्ष में दिखाई दे रही है, उससे यह संदेश मिल रहा है कि रेलमंत्री को पूरी सच्चाई से अवगत नहीं कराया जा रहा है. यहां तक कि रेलमंत्री से किसी अधिकारी को प्रत्यक्षत: मिलने भी नहीं दिया जा रहा है. इससे जाहिर है कि सेक्रेटरी/रे.बो. के पद पर बैठे पूर्व रेलमंत्री के नजदीकी और खास विश्वासपात्र के. बी. एल. मित्तल जैसे लोग किसी अधिकारी को रेलमंत्री तक इसलिए नहीं पहुंचने देना चाहते हैं कि कहीं उनकी पोल न खुल जाए जबकि रेलमंत्री द्वारा अपने सेक्रेट्रिएट के लिए चुना गया और रे.बो. में बैठाया गया स्टाफ इतना सक्षम या रेलवे का जानकार नहीं है कि मित्तल जैसे पूर्व रेलमंत्री के विश्वासपात्रों की चालबाजियों और अंदरूनी राजनीतिक / प्रशासनिक 'टांगखेंचू' दांव-पेंचों को समझ सकें.
खबर यह भी है कि पीएमओ ने तो एमएल के लिए श्री श्रेणी के नाम की संस्तुति करके फाइल रेल मंत्रालय के पास वापस भेज दी है, परंतु रेल मंत्री इसके आर्डर जारी नहीं कर रही हैं. खबर है की वह जारी भी नहीं करेंगी. चूंकि वहश्री श्रेणी को पहले से ही नहीं चाहती हैं और इसीलिए गत सप्ताह उन्हें मिलने से भी मना कर दिया था अथवा उन्हें प. बंगाल की राजनीति से फुर्सत नहीं मिल रही है. कहा यह भी जा रहा है कि श्री श्रेणी को रेलमंत्री इसलिए भी नहीं चाहती है कि उनकी दी गई जानकारी के अनुसार वे श्री श्रेणी को पूर्व रेलमंत्री का नजदीकी मानती हैं. यदि यह बात सही भी है तो रेल मंत्री को श्री श्रेणी से ज्यादा पूर्व रेलमंत्री के विश्वासपात्रों और नजदीकी लोगों में से सेक्रेटरी/रे.बो. के बी. एल. मित्तल, सीएफटीएम/द.पू.रे. बी. डी. राय, सीएफटीएम/पू.त.रे. अनिल जोशी, मीडिया सलाहकार एस. एम. तहसीन मुनव्वर, पीसीई/पू.म.रे. एस. सी. झा आदि कदाचारियों को सर्वप्रथम दरकिनार करना चाहिए जो कि आज भी पूर्व रेलमंत्री के हितों का साधन कर रहे हैं. बताते हैं कि मित्तल ने तो उनकी आखों में सरेआम धूलझोंक कर तमाम अयोग्यता के बावजूद वर्तमान पद पर दिसंबर तक एक्सटेंशन भी ले लिया है, जबकि रेलमंत्री ने स्वयं पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद सीआरबी और सेक्रेटरी/रे.बो. को तुरंत हटाने की अपनी मंशा खुलेआम जाहिर की थी.
इस सबके बावजूद डीओपीटी के उस दिशा-निर्देश को जान-बूझकर शायद नजरअंदाज किया जा रहा है, जिसमें साफ कहा गया है कि 'यदि किसी अधिकारी का प्रमोशन जुलाई - अगस्त में होने वाला है और यदि उसके खिलाफ जनवरी - फरवरी से शिकायतें की जाती हैं तो उक्त अधिकारी के खिलाफ की गई शिकायतों पर तुरंत कोई संज्ञान नहीं लिया जाना चाहिए अथवा उसके खिलाफ ऐसी शिकायतों के मद्देनजर कोई मामला दर्ज नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि ऐसी शिकायतें संबंधित अधिकारी का प्रमोशन रोकने और उसका कैरियर बाधित करने के उद्देश्य से की गई हो सकती हैं.' इस दिशा-निर्देश के आलोक में श्री श्रेणी और श्री सुदेश कुमार दोनों के ही खिलाफ फिलहाल कोई मामला रे.बो. विजिलेंस अथवा सीवीसी या सीबीआई द्वारा दर्ज तो किया जा सकता है मगर उसके आधार पर इनमें से किसी का प्रमोशन बाधित नहीं किया जा सकता.
इस सबके साथ ही अब यह भी आवश्यक हो गया है कि अन्य केंद्रीय विभागों और सेनाओं की तरह रेलवे में भी उच्च पदों पर पहले तो योग्य अधिकारियों की पदस्थापना उन पदों के खाली होने से कम से कम दो महीने पहले ही सुनिश्चित करा ली जानी चाहिए, जिससे किसी प्रकार की भ्रम की स्थिति न रहे. इससे रिटायर होने जा रहा अधिकारी भी अंत-पंत में जाते-जाते कोई बड़ी गड़बड़ी करने की स्थिति में नहीं होगा. दूसरे उन पदों के भावी उम्मीदवारों के खिलाफ विघ्नसंतोषी लोगों को भी बाधाएं खड़ी करने का अवसर न्यूनतम हो जाएगा. इस सबके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि उच्च पदों पर नियुक्ति के मामलों में राजनीतिक दखलंदाजी और मंत्री की पसंद-नापसंद का हस्तक्षेप पूरी तरह से खत्म किया जाना चाहिए और सिर्फ नियमों का पालन होना चाहिए. इसके अलावा यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि यदि कोई अधिकारी भ्रष्ट है, उसकी छवि विवादास्पद है और यह सब जानते हैं, तो उसे उच्च पदों पर पहुंचने से बहुत पहले रोकना होगा, और यह सब बातें उसकी एसीआर में भी आवश्यक रूप से दर्ज की जानी चाहिए क्योंकि पूरे कैरियर के अंत में जब कोई अधिकारी सर्वोच्च पद का दावेदार होता है और उसकी सभी एसीआर आउट स्टैंडिंग होती हैं, तब यह कहकर उसे उससे वंचित करना अनैतिक ही कहा जाएगा कि वह भ्रष्ट है, उसकी छवि अच्छी नहीं है अथवा वह मंत्री की पसंद नहीं है.
अंत में हम यही कहना चाहेंगे कि जिस प्रकार पूर्व रेलमंत्री ने अपनी विवादास्पद एवं कलुषित छवि के अनुसार वैसे ही भ्रष्ट और चापलूस अधिकारियों को बढ़ावा दिया, उसी तरह कम से कम वर्तमान रेल मंत्री को भी अपनी साफ-सुथरी और ईमानदार छवि के अनुसार ईमानदार एवं कर्तव्यनिष्ठ रेल अधिकारियों को बढ़ावा देना चाहिए.
प्रस्तुति : सुरेश त्रिपाठी

No comments: