Thursday 18 February, 2010

आयरन ओर लोडिंग घोटाला -2
प्रतिदिन 3 से 4 करोड़ रुपये का नुकसान

1. पिछले 8 महीनों में लगभग 22 से 28 हजार करोड़ का हो चुका है नुकसान
2. अवैध कमाई में लगी है पूरी एक ट्रैफिक लॉबी.
3. कंपनियों एवं इन ट्रैफिक अफसरों को इस अवैध कमाई में सहयोग कर रहे हैं कई रिटायर्ड उच्च
ट्रैफिक अधिकारी
4. हजारों करोड़ रुपये के नुकसान के लिए वर्तमान और पूर्व एमटी, डी/टीटी/जी, ईडी/टीटी/एम और ईडी/ टीटी/एफएम हैं जिम्मेदार.

सुरेश त्रिपाठी

मुंबई : जहां एक तरफ पूर्व रेलमंत्री के कार्यकाल में लोडिंग कंपनियों से प्रतिदिन डेढ़ से दो करोड़ की अवैध वसूली हो रही थी, वहीं दूसरी तरफ रेलवे बोर्ड में बैठी एक खास ट्रैफिक लॉबी की बादनीतियों और बदनीयतों के चलते रेलवे का प्रतिदिन करीब 3 से 4 करोड़ रूपये का भारी नुकसान हो रहा है. पिछले करीब 8 महीनोंं में यह नुकसान लगभग 22 से 28 हजार करोड़ रु का हो चुका है तथापि बोर्ड की उक्त खास ट्रैफिक लॉबी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा है, क्योंकि एक तो मंत्री को इस बारे में कुछ समझ में नहीं आता है और दूसरे उक्त खास ट्रैफिक लॉबी ने मंत्री को भी अपनी मजबूत गिरफ्त में ले लिया है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार पूर्व रेलमंत्री और उनके ओएसडी के हटते ही कुछ जोनल महाप्रबंधकों का स्वर मुखर हुआ था. सूत्रों का कहना है कि जून 2009 में ही इन महाप्रबंधकों ने रेलवे बोर्ड को पत्र लिखकर मार्केट की तेजी का लाभ लेने के लिए कुछ नीतियों में आवश्यक परिवर्तन करने के महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए थे. यही नहीं सूत्रों का कहना है कि पिछली जीएम कांफ्रेसों में भी इन महाप्रबंधकों ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था. इसके अलवा इन महाप्रबंधकों ने इस मुद्दे पर व्यक्तिगत रूप से ईडी/टीटी/एम दीपक नाथ और ईडी/टीटी/एफएम एच. डी. गुजराती, डी/टीटी/जी रिंकेश राय सहित तत्कालीन मेंबर ट्रैफिक और सीआरबी से भी बात करके उनसे तत्काल कदम उठाने को कहा था.

यही नहीं सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि इस मुद्दे पर रेलवे का हित चाहने वाले एक-दो महाप्रबंधकों ने वर्तमान रेलमंत्री को भी यह बात उनके रेल मंत्रालय का चार्ज संभालने के तत्काल बाद बताई थी. परंतु दुर्भाग्यवश यह बात उनको समझ में नहीं आई, और कुछ समय के पश्चात वह भी उक्त खास ट्रैफिक लॉबी की गिरफ्त में चली गईं, जिससे अब तक इस मामले में कोई भी कदम नहीं उठाया जा सका है. परिणाम स्वरूप रेलवे का नुकसान लगातार जारी है और उक्त खास ट्रैफिक लॉबी को लगातार भारी 'फायदा' मिल रहा है. सूत्रों का कहना है कि इसी 'फायदे' की बदौलत यह लॉबी नया मेंबर ट्रैफिक बनवाने में कामयाब रही है.

सूत्रों का कहना है कि एक महाप्रबंधक ने जब इस संदर्भ में ईडी/टीटी/एम/ दीपक नाथ, जो कि करीब 14-15 साल से लगातार दिल्ली एवं रे.बो. में जमें हुए हैं, से बात की थो तो श्रीनाथ ने उक्त महाप्रबंधक को बहुत ही बदतमीजी से जवाब देते हुए कहा था कि ''यह काम आपका नहीं है, आप तो सिर्फ संरक्षा-सुरक्षा पर अपना ध्यान रखें, बाकी गाडिय़ां चलाना हमारा काम है. कब कहां क्या करना है, यह हमें बहुत अच्छी तरह से पता है, इसलिए बेहतर यही होगा कि आप इस मामले में कोई हस्तक्षेप करें...!"

सूत्रों का कहना है कि इस संदर्भ में दक्षिण पूर्व रेलवे, पूर्व तट रेलवे और दक्षिण पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधकों ने लगातार रेलवे बोर्ड एवं मेंबर ट्रैफिक को लिखा था. इसके अलावा उन्होंने तत्संबंधी एक मुकम्मल ड्राफ्ट भी सौंपा था, जिसमें पूरे विस्तार से और योजनाबद्ध तरीके से यह बताया गया था कि किस तरह प्रतिदिन लगभग 3 से 4 करोड़ रु के नुकसान से रेलवे को बचाया जा सकता है. यही नहीं लगातार पत्र लिखकर बोर्ड को इन महाप्रबंधकों ने यह भी बताया था कि प्रति रेक जो लगभग 50 से 60 लाख की ब्लैक मार्के टिंग चल रही है, उस राशि को भी किस तरह रेलवे की तरफ मोड़ा जा सकता है.

सूत्रों का कहना है कि ईडी/टीटी/एम एवं ईडी/टीटी/एफएम जैसे महत्त्वपूर्ण एवं कमाऊ पदों पर लंबे अर्से से बैठे अधिकारियों ने सिर्फ इन पत्रों पर कोई तवज्जों नहीं दी और उन्हें कचरे के डिब्बे में डालते रहे, बल्कि उक्त दोनों पदों पर बैठे अधिकारी बोर्ड से सीधे डिवीजनों में फोन करके सीनियर डीओएम और सीनियर डीसीएम जैसे निचले स्तर के अधिकारियों से संपर्क करके उन्हें कार्यादेश देते थे. सूत्रों का कहना है कि इस पर जब कुछ महाप्रबंधकों ने एतराज जताया और यह मामला बोर्ड एवं जीएम मीटिंग्स में उठाया गया, तब भी इन ट्रैफिक अधिकारियों पर कोई लगाम नहीं लगाई जा सकी. क्योंकि यह दोनों ही अधिकारी पूर्व रेलमंत्री और उनके ओएसडी के अत्यंत करीबी थे, फलस्वरूप उनका 'कलेक्टर' होने के कारण इनका कोई बाल भी बांका नहीं कर पाया. सूत्रों ने इस ग्रुप का मुख्य 'कलेक्टर' डी/टीटी/जी को बताया है.

सूत्रों का कहना है कि वैगन इंवेस्टमेंट स्कीम (डब्लूआईएस) के तहत नियमानुसार रेक का निर्धारित गंतव्य नहीं बदला जा सकता, परंतु यह सारे नियम सिर्फ ताक पर रख दिए गये थे, बल्कि इन रेकों को जो 10 प्रतिशत मील
भाड़े में छूट दी जा रही थी, उससे रेलवे को भारी घाटा हुआ, जो कि उक्त महाप्रबंधकों के सुझावों को यदि मान लिया जाता, तो इस घाटे को बचाया जा सकता था. यही नहीं, सूत्रों का तो यह भी कहना है कि नियम विरूद्ध एक्सपोर्ट ओरियेंटेड आयरन ओर रेक्स को वरीयता दी गई, और इस प्रकार कुछ खास कंपनियों को भारी लाभ पहुंचाया गया.
सूत्रों का कहना है कि जिन बंदरगाहों की क्षमता एक दिन में दो-चार रेक हैंडल करने तक सीमित थी, वहां के लिए भी प्रतिदिन पचासों रेक भेज दिए गये. इससे जिन कंपनियों ने पहले निर्धारित रूट की बुकिंग की थी, उन्हें रेक डायवर्ट करने से भारी घाटा उठाना पड़ा. ऐसी टोरियम आयरन, सरावगी, मधु फर्टिलायजर्स जैसी कई कंपनियां रेलवे के खिलाफ कोर्ट में गई हैं. इनमें से सभी कंपनियों ने भारी भरपाई का दावा रेलवे पर ठोंका है, जिनमें से कई जीत भी गई हैं. परंतु उक्त पॉलिसी बनाने-बिगाडऩे वाले बोर्ड के संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.

सूत्रों का कहना है कि सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रांसपोर्टेशन (सीबीटी) के तहत जहां पहले टिस्को, सेल, भेल, ओएनजीसी जैसी भारी-भरकम सरकारी एवं निजी क्षेत्र की कुछ ही कंपनियां आती थीं, वहीं इसकी पॉलिसी बदलकर पूर्व एडीशनल मेंबर ट्रैफिक अशोक गुप्ता, जिन्हें जीएम/..रे. से रिटायरमेंट के 10-11 दिन बाद ही सीबीआई ने भ्रष्टाचार के मामले में धर दबोचा था, ने जिंदल, आधुनिक स्टील, जय बालाजी, एमएसटी, ईसीएल और भूषण स्टील जैसी सैंकड़ों निजी छोटी-बड़ी कंपनियों को सीबीटी का रजिस्ट्रेशन देकर भारी घोटाला किया था. सूत्रों का कहना है कि इस पॉलिसी चेंज में ही उन्होंने करीब 200 से 300 करोड़ रु कमाये थे, जो कि उक्त खास ट्रैफिक लॉबी और पूर्व रेलमंत्री एवं उनके ओएसडी तथा तत्कालीन मेंबर ट्रैफिक के बीच बंटे थे?

सूत्रों का कहना है कि सीबीटी की पॉलिसी चेंजे हो जाने से मात्र 1-1 रेक लेने वालों को भी बिना किसी निवेश के रेक आवंटन और भालभाड़े में छूट के सभी संबंधित फायदे मिलने लगे थे, बल्कि मिल रहे हैं, जिससे रेलवे को करोड़ों का नुकसान हो रहा है. सूत्रों का कहना है कि इसके लिए ही इन छुटभैया निजी कंपनियों ने भारी राशि खर्च की थी.

पिछले कुछ समय में कई राज्य सराकारों और खासतौर पर उड़ीसा, झारखंड एवं कर्नाटक की सरकारों को यह ध्यान में आया है कि हजारों करोड़ की कीमत का आयरन और गैरकानूनी तरीके से खनन करे सभी नियमों, लाइसेंस, परमिट और राष्ट्रीय हितों को ताक पर रखकर रेलवे द्वारा ढ़ोया गया और देश के बाहर निर्यात किया गया है. इस मामले की गहराई से छानबीन किए जाने पर इस आयरन ओर लोडिंग घोटाले में रेलवे के सुपरबॉस सहित एक खास ट्रैफिक लॉबी से जुड़े कुछ उच्च अधिकारियों की संलिप्तता का पता चला है. सूत्रों का कहना है कि इस ग्रुप में पूर्व रेलमंत्री के ओएसडी, पीएस और तत्कालीन एमटी भी शामिल रहे हैं, जो कि पारादीप, विजाग, काकीनाड़ा और हल्दिया पोर्ट्स के माध्यम से एक्सपोर्ट ओरियंटेड आयरन ओर की ढुलाई में लगी कंपनियों को पुरस्कृत करके उनसे प्रतिदिन लगभग डेढ़ से दो करोड़ का अवैध लाभ अर्जित कर रहे थे?

सूत्रों का कहना है कि यह तो सर्वज्ञात सत्य है कि भारी मात्रा में आयरन ओर एवं कोयले जैसी भारी वस्तुओं की ढुलाई सिर्फ रेलवे के माध्यम से ही हो सकती है. सड़क द्वारा यह ढुलाई संभव नहीं है. इसके अलावा रोड़ एवं रेल के
बीच प्रति टन ढुलाई दरों में भारी अंतर होने के कारण भी यह फायदेमंद नहीं होता है. सूत्रों का कहना है कि रे.बो. के संबंधित अधिकारियों ने कुछ ऐसे अज्ञात माइन ओनर्स एवं ट्रेडर्स को डब्ल्यूआईएस रेक और प्राइवेट साइडिंग्स का आवंटन कर दिया था, जिनके पास संबंधित राज्य सरकारों की आवश्यक खनन अनुमति, खान आवंटन अथवा लाईसेंस या खनन मात्रा (क्वैंटिटी) जैसी आवश्यक औपचारिकताएं पूरी नहीं थी. यही नहीं सूत्रों का कहना है कि बोर्ड के इन खास ट्रैफिक अधिकारियों ने निजी साइडिंग्स और डब्ल्यूआईएस रेक्स के आवंटन संबंधी नियमों में लगातार बदलाव करते रहकर सिर्फ इन कुछ खास कंपनी एवं खान मालिकों का वर्चस्व बनाये रखने में इनका भरपूर हित साधन किया, जो कि उन्हें दिल्ली में इसके लिए बड़ी मात्रा में मोटी-मोटी राशियों का भुगतान कर रहे थे.

सूत्रों का कहना है कि इस खास ग्रुप के अलावा जिन लोगों को निजी साइडिंग अथवा रेक चाहिए थे, उन्हें इस स्कीम का लाभ उठाने से लगातार और जानबूझकर बोर्ड के खास ट्रैफिक अधिकारियों द्वारा सिर्फ दूर रखा गया, बल्कि उन्होंने मोटा भुगतान करनेवाली सिर्फ कुछ खास कंपनियों का ही हित साधन किया सूत्रों का कहना है कि जैसे ही उड़ीसा सरकार को इस संबंध में पुख्ता जानकारी मिली कि 'रूंगटा ग्रुप ऑफ माइन्स' ने बड़े पैमाने पर उत्खनन नियमों और लाइसेंस एवं आवंटित क्षमता से बहुत ज्यादा मात्रा में खनन करके सभी नियमों का उल्लंघन किया है. राज्य सरकार ने उसके मालिकों सिद्धार्थ रुंगटा के खिलाफ अदालत से गिरफ्तारी वारंट जारी करवाया है, जिससे बचने के लिए वह और इस ग्रुप से संबंधित सभी मालिकान सिंगापुर एवं अन्य देशों में भाग गए हैं.

सूत्रों का कहना है कि रेलवे बोर्ड द्वारा रुंगटा ग्रुप को लगभग 500 करोड़ रु. के अनुमानित निवेश पर तकरीबन 20 रेक और 20 निजी साइडिंग्स की अनुमति प्रदान की गई थी. सूत्रों का कहना है कि इसके अलावा बोर्ड के संबंधित ट्रैफिक अधिकारियों तमाम कंपनियों के डब्ल्यूआईएस रेक्स के पूर्व निर्धारित गंतव्यों को बार-बार बदला गया, जबकि इसके लिए अत्यंत व्यस्त एवं भीडग़्रस्त गंतव्यों के लिए रेलवे की रेक उपलब्ध कराने की क्षमता का भी इन ट्रैफिक अधिकारियों ने कोई ध्यान नहीं रखा. इससे कई कानूनी विवाद एवं विसंगतियां पैदा हुईं और कोलकाता हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में कई मामले हारकर रेलवे को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है, जबकि अभी तमाम मामले अन्य अदालतों में विचाराधीन हैं. उनमें भी रेलवे बोर्ड को हारना और हर्जाना भरना ही पड़ेगा. परंतु बोर्ड के अथवा जोन के जिन ट्रैफिक अधिकारियों ने यह सारा घालमेल किया उनका अब तक बाल भी बांका नहीं हुआ है.

सूत्रों का कहना है कि एक अनुमान के अनुसार एक्सपोर्ट ग्रेड फाइन आयरन ओर के प्रतिदिन लगभग 80 से 100 रेक बंदरगाहों के लिए लोड होकर भेजे जा रहे थे. सूत्रों ने बताया कि इन रेकों से प्रति रेक लगभग 2 से 3 लाख रु. की दर से जाधव एंड कंपनी द्वारा प्रतिदिन करीब डेढ़ से दो करोड़ रु. की अनधिकृत वसूली की जा रही थी, जो कि रेलवे बोर्ड के संबंधित ट्रैफिक अधिकारियों सहित तत्कालीन मंत्री एवं उसके ओएसडी और एमटी को पहुंचाया जाता था. सूत्रों का कहना है कि जब पूर्व एएमटी एवं जीएम/..रे. अशोक गुप्ता के यहां सीबीआई ने छापा मारा था, तब इस रैकेट से जुड़े कुछ लोगों का भी खुलासा हुआ था. सूत्रों का कहना है कि रुंगटा माइन्स एंड कं. लि. एवं इसकी सभी सहयोगी कंपनियों के मालिक सिद्धार्थ रुंगटा देश से बाहर भागे हुए हैं क्योंकि उड़ीसा सरकार ने उनके खिलाफ अदालत से गैरजमानती गिरफ्तारी वारंट जारी करवाए हुए हैं. सूत्रों ने बताया कि इसी प्रकार सीबीआई को झारखंड सरकार ने कई अन्य संदिग्ध एवं देश विरोधी खान मालिकों और कई बड़े राजनीतिज्ञों के खिलाफ मामले दर्ज करने की अनुमति दे दी है, जो इस मामले से कथित रूप से जुड़े रहे हैं.

सूत्रों का कहना है कि झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा का इसी मामले में सीबीआई द्वारा पकड़ा गया है. जबकि रेलवे बोर्ड के कुछ ट्रैफिक अधिकारी (ईडी/टीटी/एम, ईडी/टीटी/एफएम, डी/टीटी/जी, एमटी आदि) देश का और
रेल का अरबों रुपए का नुकसान करवाकर तथा भ्रष्टाचार करके भी अब तक साफ बचे हुऐ हैं.

परंतु रेलवे बोर्ड विजिलेंस को इस भयानक भ्रष्टाचार और भारी राष्ट्रीय क्षति के जुड़े एक भी रेलवे बोर्ड अधिकारी के खिलाफ कोई मामला नहीं मिला है. जबकि इन्हीं आरोपों के चलते दो सर्वाधिक कुख्यात सीएफटीएम/.पू.रे. बी.डी. राय और सीएफटीएम/पू..रे. बी. के. जोशी को सिर्फ उनके पदों से हाल ही में हटाया गया है.

इस संदर्भ में यहां यह उल्लेखनीय है कि श्री जोशी को .पू.रे. कोलकाता में ऐसे ही भ्रष्टाचार एवं अनियमितताओं के आरोप में मेजर पेनाल्टी चार्जशीट दिए जाने के बावजूद उन्हें सीएफटीएम/पू..रे. जैसी संवेदनशील पोस्ट पर बैठाया गया था. अब पुन: उन्हें सीपीटीएम जैसी अत्यंत संवेदनशील पोस्ट पर बैठाया गया है, जहां बैठकर वह आधुनिक ग्रुप ऑफ कंपनीज को बंदरगाह और साइडिंग्स बनाने की क्लीयरेंस दे रहे हैं.

सूत्रों का कहना है कि निकट भविष्य में स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति (वीआरएस) लेकर श्री जोशी इसी ग्रुप को ज्वाइन करने वाले हैं. 'रेलवे समाचार' को भी इस बात की पुख्ता जानकारी है.
(अगले अंकों में पढ़ें डब्ल्यूआईएस और सीबीटी का घोटाला... क्रमश:)