जागरूकता का माध्यम बन
गया है 'रेलवे समाचार'
प्रिय श्री त्रिपाठी जी,
आपके लोकप्रिय 'परिपूर्ण रेलवे समाचार' के 1 से 15 सितंबर 2009 के अंक में पेज नं. 3 पर 'चौराहे पर खड़े मजदूरों जैसी हो जाएगी रेलकर्मियों की हालत' शीर्षक से छपे लेख को पढ़कर खुशी और गम दोनों का अहसास एक साथ हुआ. खुशी इस बात के लिए हुई है कि जिस यथार्थ को रेल संगठन और बाकी लोग छिपाते फिर रहे हैं, उसे आपने बड़ी बेबाकी और पूरे तथ्यों के साथ प्रस्तुत कर दिया है. ऐसा करके आपने रेलकर्मियों को न सिर्फ समझाने की कोशिश की है बल्कि उन्हें अपने भविष्य के प्रति जागरूक किया है. दु:ख इस बात का हुआ कि आने वाले समय में जो भयावह स्थिति उत्पन्न होने वाली है, उससे रेल कर्मचारियों का भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा है.
इसी अंक के पेज नं. 6 पर 'रेलवे के 5500 करोड़ के आउटसोर्सिंग कांट्रैक्ट हासिल करने के लिए आईटी क्षेत्र की कंपनियों में होड़' तथा 'लेखा प्रक्रिया में सुधार के लिए आईसीएआई करेगा रेलवे की मदद' शीर्षकों से छपी खबरें पढ़कर भी मन काफी उदास हो गया क्योंकि इससे आने वाले समय में रेलवे के एकाउंट्स कर्मचारियों की भी हालत खराब होने वाली है। छठवें वेतन आयोग की रिपोर्ट के पैरा 3.1.7 (पेज नं. 159) में कहा गया है कि पांचवे वेतन आयोग के वेतनमान 5000-8000, 5500-9000 एवन 6500-10500 को मर्ज कर दिया जाए. इससे सरकारी कार्यालयों के सभी वेतनमान सहायक श्रेणी के हो जाएंगे, जबकि अनुभाग अधिकारी (सेक्शन ऑफीसर-एसओ) का एंट्री लेवल स्केल 6500-10500 का है, लेकिन इनके मामले में डिस्टिंक्शन यह है कि 4 साल की सर्विस के बाद यह स्वमेव पांचवे वेतन आयोग 8000-13500 के वेतनमान में पहुंच जाते हैं. लेकिन तब यह वेतनमान ग्रुप 'ए' का नहीं रह जाएगा और यह वेतनमान फाइनेंशियल अपग्रेडेशन (वित्तीय उन्नति) देने वाली एसीपी स्कीम के समय ही पकड़ में आएगा. इसका मतलब यह होगा कि जो एंट्री लेवल एसओ होगा, सिर्फ उसे ही इसका लाभ मिल पाएगा.अब मॉडिफाई एसीपी स्कीम के तहत रेलवे बोर्ड ने पांचवे वेतन आयोग के वेतनमान 6500-10500 एवं 7450-11500 को आपस में मर्ज करने का आदेश दिया है. इसे इस तरह भी कहा जा सकता है कि 7450-11500 के ग्रेड को 6500-10500 के ग्रेड में मिलाया गया है. वेतनमान 7450-11500 की ग्रेड पे 4600 रु. है. उधर, डीओपीटी ने एसीपी स्कीम के अंतर्गत यह आदेश जारी किया है कि पांचवे वेतन आयोग के 5000-8000, 5500-9000 एवं 6500-10500 के वेतनमानों को मर्ज कर दिया जाए. लेकिन रेलवे में तो रेलवे बोर्ड ने इससे पहले ही वेतनमान 6500-10500 एवं 7450-11500 को मर्ज करने का निर्देश जारी किया हुआ है.
इससे कर्मचारियों में असमंजस की स्थिति यह पैदा हो रही है कि क्या रेलवे में 5000-8000 से लेकर 7450-11500 तक के तीनों वेतनमानों को एक कर दिया गया है और क्या इन तीनों के कर्मचारियों को एक ही ग्रेड पे (4600) मिलेगी? अथवा जो कर्मचारी पांचवे वेतन आयोग के वेतनमान 6500-11500 में कार्यरत थे और जिन्हें उसके 7450-11500 के वेतनमान में मर्ज मानकर 4600 रु. की ग्रेड पे दी गई है, उन्हें वहां से वापस करके पांचवे वेतन आयोग के वेतनमान 5000-8000 तथा 5500-9000 के साथ जोड़कर 4200 रु. की ग्रेड पे दी जाएगी? या फिर पांचवे वेतन आयोग के वेतनमान 5000-8000 से आगे यानी 6500-10500 एवं 7450-11500 के लोगों, जिन्होंने वेतन आयोग के वेतनमान 5000-8000 में प्रमोशन मिलने के 10 साल बाद उन्हें दो प्रमोशन मिले हैं, ऐसा मानकर पांचवे वेतन आयोग के वेतनमान 7450-11500 में अपग्रेड किया जाएगा और उन्होंने 4600 की ग्रेड पे दी जाएगी? क्योंकि यहां ध्यान में रखने वाली बात यह है कि वेतनमान 5000-8000 और 6500-10500 तक के ग्रेड मर्ज हो चुके हैं.
अब रेलवे के लाखों सबॉर्डिनेट इंजीनियरों के आवाज की गूंज हाल ही में संसद तक भी जा पहुंची है, जहां उनकी वेतन विसंगतियों के खिलाफ कई सांसदों ने सरकार से सवाल उठाकर उन्हें शीघ्र ठीक करने के लिए कहा गया है और 'रेलवे समाचार' ने भी इस खबर को 16-31 अगस्त 2009 के अंक में पेज नं. 3 पर प्रकाशित किया है. यहां ध्यान देने की बात यह है कि 'रेलवे समाचार' ने हमेशा प्रत्येक कैडर और उनकी एसोसिएशनों की बात उठाई है, परंतु ऐसा लगता है कि ये कैडर एवं उनके संगठन अपना हितसाधन हो जाने के बाद 'रेलवे समाचार' को ही भूल जाते हैं. यह बात मेरे जेहन में इसलिए आई है क्योंकि वेतन आयोगों के आगे-पीछे ही इन कैडर संगठनों की खबरें 'रेलवे समाचार' में दिखाई देती हैं. बाकी समय ये संगठन ऐसा लगता है कि सुशुप्ता अवस्था में चले जाते हैं. ऐसा ही कुछ सबॉर्डिनेट इंजीनियर्स एसोसिएशनों एवं फेडरेशन के साथ भी है. संसद में इनके वेतनमानों में सुधार करने की मांग प्रमुख रूप से उठी है.
इस सबसे यह जाहिर हो रहा है कि रेलवे बोर्ड सहित रेलवे के दोनों मान्यताप्राप्त लेबर फेडरेशन भी त्रिशंकु बन गए हैं और असमंजस की स्थिति में हैं. यही वजह है कि जोनल एवं स्थानीय रेल प्रशासन सहित जोनल संगठनों के पदाधिकारी एवं सर्वसामान्य कर्मचारी सब अपना-अपना निष्कर्ष निकाल रहे हंै, जबकि आशंकाओं से कोई भी मुक्त नहीं हो पा रहा है. परंतु सच्चाई यह भी है कि 6वें वेतन आयोग के लागू होने से सरकारी कर्मचारियों का कम सरकार का ज्यादा फायदा हुआ है. इसकी सिफारिशों के मुताबिक मल्टीस्किलिंग एवं विलयनों से कंट्रोलिंग अथॉरिटी यानी जूनियर स्केल अधिकारी (यथा एसीएम, एओएम, एईएन, एएमई, एएसटीई, एएमएम, एएफएम, एईई) को ही मरना है और इनके साथ काम करते-करते विलय (मर्ज) हुए कैडरों के कर्मचारियों को भी शहीद होना है.
महोदय, उपरोक्त तमाम हालात के मद्देनजर रेलकर्मियों ने जो पेंशन सहित 40-45 लाख की एकमुश्त मुक्ति की मांग की है. वह उचित ही जान पड़ती है क्योंकि एक तो वे सब एकदम बिना हीलाहवाली के वहां (घर) चले जाएंगे, जहां धीरे-धीरे सरकार इन्हें भेज रही है. दूसरे वे रिटायरमेंट बाद फ्री पास भी छोडऩे को तैयार हैं. इस तरह दोनों एक-दूसरे से एक साथ हमेशा के लिए और जल्दी छुटकारा पा जाएंगे. अपनी यह बात कहने के लिए रेलकर्मियों ने 'रेलवे समाचार' का जो माध्यम चुना है, वह भी सही है क्योंकि उन्हें नुकसान पहुंचाने वाली 6वें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने-करवाने में जब सरकार सहित लेबर फेडरेशनों ने भी कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है तब एक 'रेलवे समाचार' ही है जो रेल कर्मचारियों की मनोदशा और उनकी कार्य एवं वेतन विसंगतियों को उजागर करके सरकार के समक्ष रख रहा है. इस बात को अब सभी रेल कर्मचारी और अधिकारी बखूबी समझने लगे हैं.
महोदय, इस संदर्भ में हमारा एक सुझाव यह है कि अखिल भारतीय स्तर पर 'रेलवे समाचार' द्वारा 'रेलवे का सामान्य कैडर और उसका भविष्य' विषय पर एक संगोष्ठी (सेमिनार) का आयोजन करवाया जाए ताकि 6वें वेतन आयोग की नुकसानदेह सिफारिशों को रोककर वर्ष 1983 (25 साल) से इन कैडरों की भर्ती पर लगी रोक को हटवाया जा सके. इस तरह इनके कामों की आउटसोर्सिंग करने से रेलवे एवं रेल यात्रियों के जान माल की सुरक्षा-संरक्षा को पैदा हो रहे भारी खतरे से सरकार को आगाह किया जा सकेगा. यदि यह सब नहीं रोका जा सकता है तो यही बेहतर होगा कि 40-45 लाख का एकमुश्त पैकेज देकर इन कैडरों को स्थाई रूप से घर भेज दिया जाए.
प्रिय अनाम बंधु,
आपका पत्र मिला पढ़कर अच्छा भी लगा कि आपने रेलकर्मियों की मन:स्थिति को काफी अच्छी तरह से समझा और प्रस्तुत किया है. इससे अन्य रेल कर्मचारियों में भी अवश्य जागरूकता आएगी. जहां तक इन कैडरों की समस्याओं, भविष्य एवं वेतन विसंगतियों को लेकर संगोष्ठी या सेमिनार करवाने का आपका सुझाव है तो 'रेलवे समाचार' ने विगत में विभिन्न समस्याओं पर ऐसी संगोष्ठियों का आयोजन करके रेल प्रशासन, रेल कर्मियों और रेल यात्रियों में जागरूकता के साथ-साथ एक समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया है. इन संगोष्ठियों में इंजीनियरिंग, सेफ्टी, सेफ्टी-सिक्योरिटी, विजिलेंस की भूमिका, आपदा प्रबंधक (डिजास्टर मैनेजमेंट), रेलवे में 'रेलवे समाचार' की भूमिका, सार्वजनिक यातायात प्रबंधन आदि महत्वपूर्ण एवं व्यापक विषय शामिल रहे हैं. 'रेलवे समाचार' कैडर आधारित संगोष्ठियों का भी आयोजन करने के लिए तैयार है, यहां तक कि हम यह संगोष्ठियां सभी जोनल अथवा डिवीजनल मुख्यालयों में भी जाकर करेंगे और वहां उभर कर आने वाली विसंगतियों अथवा कमियों को पूर्व की भांति रेल प्रशासन, लेबर फेडरेशनों, एनसी-जेसीएम, एनॉमली कमेटी और सरकार-संसद तक भी हम पहुंचाने की व्यवस्था करेंगे. परंतु इस तरह की संगोष्ठियां किए जाने की ख्वाहिश वास्तव में संबंधित जोनों के कर्मचारियों की तरफ से जब जाहिर की जाएंगी तभी कुछ बात बन पाएगी.
गया है 'रेलवे समाचार'
प्रिय श्री त्रिपाठी जी,
आपके लोकप्रिय 'परिपूर्ण रेलवे समाचार' के 1 से 15 सितंबर 2009 के अंक में पेज नं. 3 पर 'चौराहे पर खड़े मजदूरों जैसी हो जाएगी रेलकर्मियों की हालत' शीर्षक से छपे लेख को पढ़कर खुशी और गम दोनों का अहसास एक साथ हुआ. खुशी इस बात के लिए हुई है कि जिस यथार्थ को रेल संगठन और बाकी लोग छिपाते फिर रहे हैं, उसे आपने बड़ी बेबाकी और पूरे तथ्यों के साथ प्रस्तुत कर दिया है. ऐसा करके आपने रेलकर्मियों को न सिर्फ समझाने की कोशिश की है बल्कि उन्हें अपने भविष्य के प्रति जागरूक किया है. दु:ख इस बात का हुआ कि आने वाले समय में जो भयावह स्थिति उत्पन्न होने वाली है, उससे रेल कर्मचारियों का भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा है.
इसी अंक के पेज नं. 6 पर 'रेलवे के 5500 करोड़ के आउटसोर्सिंग कांट्रैक्ट हासिल करने के लिए आईटी क्षेत्र की कंपनियों में होड़' तथा 'लेखा प्रक्रिया में सुधार के लिए आईसीएआई करेगा रेलवे की मदद' शीर्षकों से छपी खबरें पढ़कर भी मन काफी उदास हो गया क्योंकि इससे आने वाले समय में रेलवे के एकाउंट्स कर्मचारियों की भी हालत खराब होने वाली है। छठवें वेतन आयोग की रिपोर्ट के पैरा 3.1.7 (पेज नं. 159) में कहा गया है कि पांचवे वेतन आयोग के वेतनमान 5000-8000, 5500-9000 एवन 6500-10500 को मर्ज कर दिया जाए. इससे सरकारी कार्यालयों के सभी वेतनमान सहायक श्रेणी के हो जाएंगे, जबकि अनुभाग अधिकारी (सेक्शन ऑफीसर-एसओ) का एंट्री लेवल स्केल 6500-10500 का है, लेकिन इनके मामले में डिस्टिंक्शन यह है कि 4 साल की सर्विस के बाद यह स्वमेव पांचवे वेतन आयोग 8000-13500 के वेतनमान में पहुंच जाते हैं. लेकिन तब यह वेतनमान ग्रुप 'ए' का नहीं रह जाएगा और यह वेतनमान फाइनेंशियल अपग्रेडेशन (वित्तीय उन्नति) देने वाली एसीपी स्कीम के समय ही पकड़ में आएगा. इसका मतलब यह होगा कि जो एंट्री लेवल एसओ होगा, सिर्फ उसे ही इसका लाभ मिल पाएगा.अब मॉडिफाई एसीपी स्कीम के तहत रेलवे बोर्ड ने पांचवे वेतन आयोग के वेतनमान 6500-10500 एवं 7450-11500 को आपस में मर्ज करने का आदेश दिया है. इसे इस तरह भी कहा जा सकता है कि 7450-11500 के ग्रेड को 6500-10500 के ग्रेड में मिलाया गया है. वेतनमान 7450-11500 की ग्रेड पे 4600 रु. है. उधर, डीओपीटी ने एसीपी स्कीम के अंतर्गत यह आदेश जारी किया है कि पांचवे वेतन आयोग के 5000-8000, 5500-9000 एवं 6500-10500 के वेतनमानों को मर्ज कर दिया जाए. लेकिन रेलवे में तो रेलवे बोर्ड ने इससे पहले ही वेतनमान 6500-10500 एवं 7450-11500 को मर्ज करने का निर्देश जारी किया हुआ है.
इससे कर्मचारियों में असमंजस की स्थिति यह पैदा हो रही है कि क्या रेलवे में 5000-8000 से लेकर 7450-11500 तक के तीनों वेतनमानों को एक कर दिया गया है और क्या इन तीनों के कर्मचारियों को एक ही ग्रेड पे (4600) मिलेगी? अथवा जो कर्मचारी पांचवे वेतन आयोग के वेतनमान 6500-11500 में कार्यरत थे और जिन्हें उसके 7450-11500 के वेतनमान में मर्ज मानकर 4600 रु. की ग्रेड पे दी गई है, उन्हें वहां से वापस करके पांचवे वेतन आयोग के वेतनमान 5000-8000 तथा 5500-9000 के साथ जोड़कर 4200 रु. की ग्रेड पे दी जाएगी? या फिर पांचवे वेतन आयोग के वेतनमान 5000-8000 से आगे यानी 6500-10500 एवं 7450-11500 के लोगों, जिन्होंने वेतन आयोग के वेतनमान 5000-8000 में प्रमोशन मिलने के 10 साल बाद उन्हें दो प्रमोशन मिले हैं, ऐसा मानकर पांचवे वेतन आयोग के वेतनमान 7450-11500 में अपग्रेड किया जाएगा और उन्होंने 4600 की ग्रेड पे दी जाएगी? क्योंकि यहां ध्यान में रखने वाली बात यह है कि वेतनमान 5000-8000 और 6500-10500 तक के ग्रेड मर्ज हो चुके हैं.
अब रेलवे के लाखों सबॉर्डिनेट इंजीनियरों के आवाज की गूंज हाल ही में संसद तक भी जा पहुंची है, जहां उनकी वेतन विसंगतियों के खिलाफ कई सांसदों ने सरकार से सवाल उठाकर उन्हें शीघ्र ठीक करने के लिए कहा गया है और 'रेलवे समाचार' ने भी इस खबर को 16-31 अगस्त 2009 के अंक में पेज नं. 3 पर प्रकाशित किया है. यहां ध्यान देने की बात यह है कि 'रेलवे समाचार' ने हमेशा प्रत्येक कैडर और उनकी एसोसिएशनों की बात उठाई है, परंतु ऐसा लगता है कि ये कैडर एवं उनके संगठन अपना हितसाधन हो जाने के बाद 'रेलवे समाचार' को ही भूल जाते हैं. यह बात मेरे जेहन में इसलिए आई है क्योंकि वेतन आयोगों के आगे-पीछे ही इन कैडर संगठनों की खबरें 'रेलवे समाचार' में दिखाई देती हैं. बाकी समय ये संगठन ऐसा लगता है कि सुशुप्ता अवस्था में चले जाते हैं. ऐसा ही कुछ सबॉर्डिनेट इंजीनियर्स एसोसिएशनों एवं फेडरेशन के साथ भी है. संसद में इनके वेतनमानों में सुधार करने की मांग प्रमुख रूप से उठी है.
इस सबसे यह जाहिर हो रहा है कि रेलवे बोर्ड सहित रेलवे के दोनों मान्यताप्राप्त लेबर फेडरेशन भी त्रिशंकु बन गए हैं और असमंजस की स्थिति में हैं. यही वजह है कि जोनल एवं स्थानीय रेल प्रशासन सहित जोनल संगठनों के पदाधिकारी एवं सर्वसामान्य कर्मचारी सब अपना-अपना निष्कर्ष निकाल रहे हंै, जबकि आशंकाओं से कोई भी मुक्त नहीं हो पा रहा है. परंतु सच्चाई यह भी है कि 6वें वेतन आयोग के लागू होने से सरकारी कर्मचारियों का कम सरकार का ज्यादा फायदा हुआ है. इसकी सिफारिशों के मुताबिक मल्टीस्किलिंग एवं विलयनों से कंट्रोलिंग अथॉरिटी यानी जूनियर स्केल अधिकारी (यथा एसीएम, एओएम, एईएन, एएमई, एएसटीई, एएमएम, एएफएम, एईई) को ही मरना है और इनके साथ काम करते-करते विलय (मर्ज) हुए कैडरों के कर्मचारियों को भी शहीद होना है.
महोदय, उपरोक्त तमाम हालात के मद्देनजर रेलकर्मियों ने जो पेंशन सहित 40-45 लाख की एकमुश्त मुक्ति की मांग की है. वह उचित ही जान पड़ती है क्योंकि एक तो वे सब एकदम बिना हीलाहवाली के वहां (घर) चले जाएंगे, जहां धीरे-धीरे सरकार इन्हें भेज रही है. दूसरे वे रिटायरमेंट बाद फ्री पास भी छोडऩे को तैयार हैं. इस तरह दोनों एक-दूसरे से एक साथ हमेशा के लिए और जल्दी छुटकारा पा जाएंगे. अपनी यह बात कहने के लिए रेलकर्मियों ने 'रेलवे समाचार' का जो माध्यम चुना है, वह भी सही है क्योंकि उन्हें नुकसान पहुंचाने वाली 6वें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने-करवाने में जब सरकार सहित लेबर फेडरेशनों ने भी कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है तब एक 'रेलवे समाचार' ही है जो रेल कर्मचारियों की मनोदशा और उनकी कार्य एवं वेतन विसंगतियों को उजागर करके सरकार के समक्ष रख रहा है. इस बात को अब सभी रेल कर्मचारी और अधिकारी बखूबी समझने लगे हैं.
महोदय, इस संदर्भ में हमारा एक सुझाव यह है कि अखिल भारतीय स्तर पर 'रेलवे समाचार' द्वारा 'रेलवे का सामान्य कैडर और उसका भविष्य' विषय पर एक संगोष्ठी (सेमिनार) का आयोजन करवाया जाए ताकि 6वें वेतन आयोग की नुकसानदेह सिफारिशों को रोककर वर्ष 1983 (25 साल) से इन कैडरों की भर्ती पर लगी रोक को हटवाया जा सके. इस तरह इनके कामों की आउटसोर्सिंग करने से रेलवे एवं रेल यात्रियों के जान माल की सुरक्षा-संरक्षा को पैदा हो रहे भारी खतरे से सरकार को आगाह किया जा सकेगा. यदि यह सब नहीं रोका जा सकता है तो यही बेहतर होगा कि 40-45 लाख का एकमुश्त पैकेज देकर इन कैडरों को स्थाई रूप से घर भेज दिया जाए.
-एक रेल कर्मचारी और 'रेलवे
समाचार' का एक नियमित पाठक
मुंबई मंडल, मध्य रेल, मुंबई.
समाचार' का एक नियमित पाठक
मुंबई मंडल, मध्य रेल, मुंबई.
प्रिय अनाम बंधु,
आपका पत्र मिला पढ़कर अच्छा भी लगा कि आपने रेलकर्मियों की मन:स्थिति को काफी अच्छी तरह से समझा और प्रस्तुत किया है. इससे अन्य रेल कर्मचारियों में भी अवश्य जागरूकता आएगी. जहां तक इन कैडरों की समस्याओं, भविष्य एवं वेतन विसंगतियों को लेकर संगोष्ठी या सेमिनार करवाने का आपका सुझाव है तो 'रेलवे समाचार' ने विगत में विभिन्न समस्याओं पर ऐसी संगोष्ठियों का आयोजन करके रेल प्रशासन, रेल कर्मियों और रेल यात्रियों में जागरूकता के साथ-साथ एक समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया है. इन संगोष्ठियों में इंजीनियरिंग, सेफ्टी, सेफ्टी-सिक्योरिटी, विजिलेंस की भूमिका, आपदा प्रबंधक (डिजास्टर मैनेजमेंट), रेलवे में 'रेलवे समाचार' की भूमिका, सार्वजनिक यातायात प्रबंधन आदि महत्वपूर्ण एवं व्यापक विषय शामिल रहे हैं. 'रेलवे समाचार' कैडर आधारित संगोष्ठियों का भी आयोजन करने के लिए तैयार है, यहां तक कि हम यह संगोष्ठियां सभी जोनल अथवा डिवीजनल मुख्यालयों में भी जाकर करेंगे और वहां उभर कर आने वाली विसंगतियों अथवा कमियों को पूर्व की भांति रेल प्रशासन, लेबर फेडरेशनों, एनसी-जेसीएम, एनॉमली कमेटी और सरकार-संसद तक भी हम पहुंचाने की व्यवस्था करेंगे. परंतु इस तरह की संगोष्ठियां किए जाने की ख्वाहिश वास्तव में संबंधित जोनों के कर्मचारियों की तरफ से जब जाहिर की जाएंगी तभी कुछ बात बन पाएगी.
शुभकामनाओं सहित
संपादक
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