Tuesday 10 January, 2012


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A long awaited cherished dream of readers of 'Railway Samachar' come true...!

You have been always requesting for the English Edition of the most authentic National Newspaper on Indian Railways – "Railway Samachar"; and We at "Railway Samachar" honour your ardent demand from this new year 2012.

Read "Railway Samachar" with the most authentic news on all Zonal Railways and Production Units. Read what men who matters do and what they speak; check whether words confirm to deeds…! Read the most typical and nostalgic ‘Babugiri’ where Bureaucrats, their Kinsmen and Henchmen twist the unique and never meeting parallel lines of rail bend and meet to confirm their petty little motives…!

Honest, un-compromising, genuine to the core as it has been all these year yet one change... 

It is in English…!

Read "Railway Samachar" from 1st January 2012 onwards on internet...
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Sunday 1 January, 2012


सारे आरोप बेबुनियाद हैं -हिंद एनर्जी 

'रेलवे समाचार' की इस वेब साईट पर "हिंद एनर्जी और विमला लाजिस्टिक्स को ट्रैफिक अधिकारियों का संरक्षण" तथा दि. 1 से 15 दिसंबर 2011 के प्रिंट एडीशन में "क्यों पाला जा रहा है हिंद एनर्जी और विमला इन्फ्रास्ट्रक्चर को?" शीर्षक से प्रकाशित खबर पर 'हिंद एनर्जी एंड कोल बेनिफिकेशन (इंडिया) लि.' ने 'रेलवे समाचार' को एक क़ानूनी नोटिस भेजकर उपरोक्त खबर में प्रकाशित तथ्यों अथवा आरोपों को बेबुनियाद बताया है. कंपनी का कहना है कि रेलवे/ट्रैफिक अफसरों द्वारा कंपनी को नियमों के विपरीत करोड़ों का लाभ पहुँचाने, कोयले की लोडिंग/अनलोडिंग और ब्रोकरेज में कंपनी के इन्वाल्व होने, गैर-क़ानूनी तरीके से बिना आवश्यक और उचित अनुमति लिए कंपनी द्वारा रेलवे साइडिंग से कोयले की लोडिंग करने, करीब 700 करोड़ रु. की लागत से कंपनी द्वारा कोल वासरी लगाए जाने, अधिक दर पर कंपनी द्वारा सरकारी पावर हाउसों को धुले हुए कोयले की आपूर्ति करने और कंपनी में झारखण्ड के एक पूर्व मुख्यमंत्री का निवेश होने आदि जैसे तथ्य और आरोप एकदम मनगढ़ंत और बेबुनियाद हैं. 

कंपनी ने अपनी इस नोटिस में यह भी स्पष्ट किया है कि उसकी एक कोल वासरी है, जिसमे कंपनी द्वारा अपने ग्राहकों की जरूरत के मुताबिक उनके लिए सामान्य एवं न्यूनतम दरों पर कोयले की धुलाई की जाती है. पिछले वित्त वर्ष 2010-11 में कंपनी का कुल कारोबार 12 करोड़ रु. रहा है. नोटिस में कंपनी ने स्पष्ट किया है कि वह कोयले की ब्रोकरेज के धंधे में कभी-भी नहीं थी. कंपनी का कहना है कि लोडिंग/अनलोडिंग गतिविधियाँ कंपनी के लाजिस्टिक आपरेशंस का हिस्सा हैं. कंपनी का कहना है कि उसने रेलवे साइडिंग लाइन नंबर - 7, एक्सचेंज यार्ड, एनटीपीसी, गटोरा के इस्तेमाल हेतु दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे की कम्पीटेंट अथोरिटी से प्रायरिटी-डी के तहत कोयले की लोडिंग के लिए आवश्यक अनुमति (Letter No. C/SECR/BSP/SDG/COAL/CO-USER/6352, Dated 30.09.2010) ली हुई है. कंपनी ने यह भी स्पष्ट किया है कि इसके अतिरिक्त उपरोक्त साइडिंग से अन्य कई फर्में/कम्पनियाँ भी इस प्रकार का कार्य कर रही हैं. कंपनी का कहना है कि उसके कोल वासरी प्लांट की कुल स्थापना लागत करीब 7.50 करोड़ रु. है. कंपनी का कहना है कि उसने किसी भी सरकारी पावर हाउस को गैर-क़ानूनी तरीके से धुले हुए कोयले की आपूर्ति (बिक्री) नहीं की है. कंपनी ने झारखण्ड के किसी भी पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा कंपनी में किसी भी प्रकार से एक भी पैसे का निवेश किए जाने से स्पष्ट इंकार किया है. कंपनी का कहना है कि उसके मालिकान एक अच्छी छवि वाले उद्योगपति हैं. इसलिए उपरोक्त शीर्षक से मानहानिकारक खबर से उनकी छवि धूमिल हुई है. कंपनी का कहना है कि उपरोक्त शीर्षक खबर में प्रकाशित तथ्य अत्यंत भ्रामक और दिग्भ्रमित करने वाले हैं, जिन्हें जानबूझकर उसकी छवि धूमिल करने के उद्देश्य से प्रकाशित कराया गया है. कंपनी का कहना है कि वह कभी-भी 'दलाली' के बिजनेस में नहीं थी. अतः उसके लिए 'दलाल' शब्द का प्रयोग किया जाना अत्यंत मानहानिकारक और आपत्तिजनक है. 

'रेलवे समाचार' का स्पष्टीकरण : इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम हमारा कहना यह है कि उपरोक्त शीर्षक से प्रकाशित पूरी खबर कंपनी के खिलाफ नहीं, बल्कि रेलवे अफसरों के खिलाफ है. क्योंकि इस मामले में रेलवे के सम्बंधित अफसरों द्वारा रेलवे के स्थापित नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है. अब यदि रेलवे अफसरों द्वारा किए जा रहे नियमों के उल्लंघन के बारे में कोई खबर प्रकाशित की गई है, तो उनके इस उल्लंघन से लाभ पाने वाली कंपनी पर इसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है. इसलिए यह समझना या कहना उचित नहीं है कि उक्त खबर कंपनी के खिलाफ है. इसके अलावा हमारा कहना यह भी है कि जिस समय द. पू. म. रे. द्वारा कंपनी को एनटीपीसी की सरकारी साइडिंग के इस्तेमाल करने की को-यूजर परमीशन (दि.30.09.2010) दी गई थी, वह पूरी तरह नियमों के खिलाफ थी, क्योंकि उस समय से और पूरे चार महीने पहले से रेलवे की प्राइवेट फ्रेट टर्मिनल (पीएफटी) (Railway Board's Letter No. 2008/TC(FM)/14/2, Dated 31.05.2010, Freight Marketing Circular No. 14 of 2010) पॉलिसी मौजूद थी. इस पॉलिसी के अनुसार किसी सरकारी या गैर-सरकारी साइडिंग को किसी तीसरी पार्टी के इस्तेमाल हेतु को-यूजर परमीशन तब तक नहीं दी जा सकती है, जब तक कि वे अपनी साइडिंग को पीएफटी में कन्वर्ट नहीं कर लेते हैं. इस संदर्भित सर्कुलर के अनुसार कंपनी (हिंद एनर्जी) अथवा एनटीपीसी को दी गई को-यूजर परमीशन अवैध और नियमों के खिलाफ है. अतः क़ानूनी नोटिस देकर और बिलासपुर प्रवास के दौरान संपादक को गुंडों द्वारा घेरकर और पुलिस कार्रवाई की धमकी देकर खबर का स्रोत बताने का दबाव बनाए जाने जैसी निम्न स्तरीय गतिविधियाँ किसी बड़ी और स्थापित कंपनी को शोभा नहीं देती हैं. तथापि उपरोक्त खबर से यदि कंपनी की छवि धूमिल हुई है, अथवा यदि उसकी गरिमा को ठेस पहुंची है और यदि उसकी किसी प्रकार की मानहानि हुई है, तो इसके लिए हमें अत्यंत खेद है. 
-संपादक 
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Here is a good news that Railway Samachar's ENGLISH Website also lanched on 1st January 2012..

Now all my beloved readers from Southern India can also read Railway Samachar in English on...

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सरकारी साइडिंग से निजी कंपनियों को 
अवैध रूप से दी जा रही है लोडिंग अनुमति  
बिलासपुर : कुछ कंपनियों को सरकारी (एनटीपीसी) साइडिंग से लोडिंग और कुछ कंपनियों को सरकारी (रेलवे) जमीन पर साइडिंग बनाने की अनुमति देकर कुछ ट्रैफिक अधिकारियों द्वारा इन निजी क्षेत्र की कंपनियों को संरक्षण प्रदान किया जा रहा है. यही नहीं, इन कंपनियों को करोड़ों रुपये का लाभ पहुंचाकर इनमे या तो इन अधिकारियों द्वारा हिस्सेदारी की जा रही है, या फिर इनसे अपनी 'हिस्सेदारी' वसूल की जा रही है. ज्ञातव्य है कि इन ट्रैफिक अधिकारियों ने सैकड़ों करोड़ के सालाना टर्नओवर वाले कुछ ऐसे कार्पोरेट घराने खड़े कर दिए हैं, जो कल तक रेलवे की साइडिंग या गुड्स शेडों में लोडिंग/अनलोडिंग कांट्रेक्टर हुआ करते थे अथवा दो-चार रेक की लोडिंग किया करते थे. अब यही लोग बड़ी कंपनियों के मालिक बनकर उन ट्रैफिक अधिकारियों को सेवानिवृत्ति के बाद अपनी कंपनियों में नौकरी पर रख रहे हैं, जिन्होंने रेलवे की नौकरी में रहते हुए इन्हें पर्याप्त लाभ पहुँचाया था तथा ये पूर्व ट्रैफिक अधिकारी इन निजी कंपनियों के नौकर होकर अब अपनी पुराणी जगहों पर पदस्थ अपने जूनियर्स की मदद से न सिर्फ निजी कंपनियों को भरी फायदा पहुंचा रहे हैं, बल्कि अपने जूनियर्स को भी दबाव में लेकर भ्रष्ट बना रहे हैं.

प्राप्त जानकारी के अनुसार कुछ कंपनियों की अपनी कोई साइडिंग नहीं है. परन्तु रेलवे बोर्ड और जोन तथा मंडलों के कुछ ट्रैफिक अधिकारियों की मेहरबानी से इस कंपनी को बिलासपुर के पास स्थित एनटीपीसी की सरकारी साइडिंग से कोयला लोडिंग की अनुमति मिली हुई है. जो कि गैर-क़ानूनी है. बताया जाता है कि एनटीपीसी की इस साइडिंग से इन कंपनियों द्वारा प्रतिमाह सैकड़ों रेक कोयले की लोडिंग की जाती है. विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि रेलवे बोर्ड और जोन के ट्रैफिक अधिकारियों द्वारा एनटीपीसी को अपनी साइडिंग से अन्य कंपनियों को लोडिंग करने देने के लिए 'को-यूजर' परमीशन दी जाती है, जो कि पीएफटी पॉलिसी आने के बाद पूरी तरह गैर-क़ानूनी है. क्योंकि एनटीपीसी की निजी साइडिंग को पीएफटी में कन्वर्ट करने के बाद ही इससे अन्य कंपनियों को लोडिंग की छूट दी जा सकती है. सूत्रों का कहना है कि यह गोरखधंधा वास्तव में काफी समय से नीचे से ऊपर तक की मिलीभगत से चल रहा है. सूत्रों के अनुसार निजी कंपनियों द्वारा एनटीपीसी की साइडिंग से लोडिंग करने के लिए प्रति रेक लाखों रु. की राशि जोन और रेलवे बोर्ड के ट्रैफिक अधिकारियों को पहुंचाई जाती है..? 

रेलवे की जमीन पर साइडिंग बनाकर मालामाल हुई कंपनी 
प्राप्त जानकारी के अनुसार एक कंपनी ने कुछ ट्रैफिक अधिकारियों की मिलीभगत से रायपुर के पास सिलियरी में और रायगढ़ के पास भूपदेवपुर में रेलवे की जमीन पर अपनी दो साइडिंग बनाकर इन बीते पांच सालों में ही अपनी ग्रोथ को कई गुना बढ़ाया है. बताते हैं कि सिलियरी साइडिंग से इस कंपनी द्वारा प्रतिमाह 35 से 40 रेक और भूपदेवपुर साइडिंग से प्रतिमाह 55 से 60 रेक की लोडिंग की जाती है. सूत्रों के अनुसार रेलवे की जमीन पर निजी पार्टियों/कंपनियों को अपनी निजी साइडिंग बनाने की अनुमति नहीं है. इस कंपनी द्वारा रेलवे की जमीन पर बनाई गई उक्त दोनों साइडिंग पूरी तरह गैर-क़ानूनी है. यहाँ इस मामले में रेलवे के ट्रैफिक विशेषज्ञों की राय ज्यों की त्यों प्रस्तुत है..

As per Railways Policy, the private sidings were allowed to be developed by end-users. These private sidings were meant to be used by the end user himself who has constructed the siding. But if Railways permission was taken, the siding could be used by third parties also. This arrangement was called as ‘co-user’; in which the siding owner and user had to apply to the railways to allow certain specific party as ‘co-user’. Railways used to examine this request on case to case basis for every third party and used to allow the ‘co-user’ status for a specified period or regret it as the case may be.

For construction of private siding, the intending party MUST be an end user, ie. Either an industry or mine owner, etc., who intends to use the same for his own business. 

Before construction of private siding, party has to obtain RTC (Rail Transport Clearance) from Railway Board. This RTC was granted/rejected by the Railway Board after examining the likely traffic to be dealt in the proposed siding by the end user. The intending party had to provide the full detail of its production plans, the likely inward and outward traffic along with the originating and destination stations for the same. Here again the RTC could be granted to the end user only. 

Referenced companies are not an end users. Thus they neither should have been issued RTC nor should have been allowed to construct the private siding. 

It is most unfortunate that the party who should not have been allowed to construct private siding even on private land had been allowed to construct the same on railway land flouting all rules and regulations. 

Further, after the issue of the PFT Policy (FM Circular No. 14 of 2010) as amended, all the private sidings handling third party cargo MUST convert to PFT. Thus on date there cannot be a private siding handling ‘third party cargo’ unless it has been converted into a PFT. 
But in case of above refered companies, this conversion into PFT is not possible as PFT can only be on private land and a particular company is functioning on Railway land. 
This continuance of that particular company is totally illegal. 

Note: Last two paragraphs apply to NTPC, Sipat also. As on date their siding cannot be used by ‘third-party’ as ‘co-user’. Unless the siding of NTPC is converted into PFT its use by third party is illegal. 

उपरोक्त स्पष्टीकरण से यह एकदम स्पष्ट है कि न सिर्फ उक्त कंपनी की रेलवे की जमीन पर बनाई गई उपरोक्त दोनों साइडिंग अवैध और गैर-क़ानूनी हैं बल्कि निजी कंपनियों को एनटीपीसी की साइडिंग से रेल अधिकारियों द्वारा दी जा रही लोडिंग सहूलियत भी अवैध एवं गैर-क़ानूनी है. सूत्रों का कहना है कि इन सारी सहूलियतों को ख़त्म कर देना रेलवे बोर्ड और जोन के ही अधिकार में है, मगर यहाँ यह जानकर घोर आश्चर्य होगा कि इन अवैध गतिविधियों को बंद कराने की अपेक्षा रेलवे की जमीन पर अवैध एवं गैर-क़ानूनी रूप से दो साइडिंग बना लेने वाली कंपनी को और चार साइडिंग बनाने की अनुमति जोन के दायरे में दे दी गई है, जिनका निर्माण काफी जोरशोर से चल रहा है. यही नहीं, इसकी मांग पर इसे बढाकर प्रतिमाह 100 रेक लोड करने की अनुमति भी दे दी गई है, जो कि काफी लम्बे अरसे से पेंडिंग थी.. 

चूँकि रेलवे के कई कार्यरत और सेवानिवृत्त ट्रैफिक अधिकारियों का पैसा उपरोक्त प्रकार की तमाम कंपनियों में लगा हुआ है, और चूँकि कई अन्य अथवा जूनियर ट्रैफिक अधिकारियों को इनसे भरपूर लाभ मिल रहा है, तथा कई सेवानिवृत्त ट्रैफिक अधिकारी इन कंपनियों में नौकरी कर रहे हैं, इसलिए इन कंपनियों का कारोबार दिन दुनी-रात चौगुनी तरक्की कर रहा है और सबको समान रूप से उसका वाजिब हिस्सा भी मिल रहा है. प्राप्त जानकारी के अनुसार विमला लाजिस्टिक के एक डायरेक्टर श्री एम. के. मिश्रा, रेलवे बोर्ड में एडीशनल मेम्बर/कमर्शियल रहे हैं. इसी प्रकार केएसके एनर्जी में कंसल्टेंट की नौकरी जीएम/द.म.रे. रहे श्री एम. एस. जयंत कर रहे हैं. जबकि बिजुरी और अनूपपुर की साइडिंग से कोयले की लोडिंग करने वाली माँ शारदा इंटरप्राइजेज के कंसल्टेंट पूर्व सीसीएम/द.पू.म.रे. श्री राधाचरण हैं. अब अगर इतने तथ्यों के बाद भी रेलवे बोर्ड को अक्ल नहीं आती है, तो इन पर अन्य जाँच एजेंसियों को ध्यान देना चाहिए. 
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