Monday 21 September, 2009

Indian Railways places order for
1,500 stainless steel wagons

It is reported that, despite the lull in the business activities owing to slowdown in the economy, the stainless steel industry is looking up, piggybacking on the increased demand from the railways.

India Railways has placed order for 1,500 stainless steel wagons and coaches besides steel peripherals, which can be extensively used inside the compartments. Talks are also under way with major manufacturers to place orders for stainless steel fixtures at the railway stations. The railway ministry had in its last budget, announced the plan to create word class facilities at the major railway stations.

Mr Hitendra Bhalaria co chairman of Indian Stainless Development Organization said that however, the major order from the railways will be for railway tracks. The railways has a long term plan to replace all its existing lines with the rust free stainless steel ones, there by saving crores of rupees which may otherwise go into replacing the tracks in regular intervals. In the first phase, railways has decided to replace 500 kilometers of its track with stainless steel and order for the same is been given to leading manufacturers.

He added that "After the utensils sector, the railways’ orders are boosting our production and with more metro railways being constructed in Hyderabad, Chennai and Kochi, the stainless steel industry is going to get a major leg up."

India is approximately producing 2.5 million tonne of stainless steel of which 70% is being used in utensil sector. The construction industry is the major customer of the sector, with high rise buildings and towers increasingly opting for stainless steel. The transport sector, which off late has taken to using stainless steel parts, contributes to the order book of the major companies.a

Friday 18 September, 2009

Justify Fullममता जी.....!!

विवेक सहाय द्वारा की गई भर्तियों की भी

जांच कराएं और विभिन्न पदों पर बैठे

लालू
के पिट्ठुओं को तुंरत हटायें


जब तक रेलवे बोर्ड और जोनल रेलों के विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लालू के पिट्ठुओं को नहीं हटाया जाएगा तब तक तो आप अपने मन मुताबिक रेलों का कामकाज चला पायेंगी और ही यहाँ भ्रष्टाचार कम हो पायेगा, ख़त्म होने की तो बात कहना मुश्किल है...

रेलवे में पूर्व रेलमंत्री के कार्यकाल में महाप्रबंधक कोटे में हजारों लोगों की भर्तियां की गई हैं। अब आपने इन सबकी सीबीआई से जांच करने का आदेश देकर एक बहुत ही नेक काम किया है. यहां तक आवेदकों द्वारा 'जनरल मैनेजर/रेलवे बोर्ड' के नाम से आवेदन भेजे गए थे, जबकि ऐसा कोई पद भारतीय रेल में मौजूद नहीं है। तथापि पूर्व एमआर सेल ने यह आवेदन जोनल महाप्रबंधकों को रेफर करके ऐसे उम्मीदवारों की भर्ती करने के लिए कहा गया था. इनमें 99 फीसदी उम्मीदवार बिहार के थे, जिनमें से प्रत्येक से न सिर्फ 5-6 लाख रु. वसूल किए जाने का आरोप है बल्कि उनके पास नकद पैसा न होने पर उनकी जमीनें तक लिखा लिए जाने के आरोप भी लगे हैं. इस संबंध में जेडीयू के महासचिव श्री शिवानंद तिवारी ने एक प्रतिनिधि मंडल को लेकर प्रमाण सहित प्रधानमंत्री को ज्ञापन भी दिया था, जिसके पेपर्स 'रेलवे समाचार' के पास भी उपलब्ध हैं. हालांकि पूर्व रेलमंत्री के इशारे पर ऐसी भर्तियां विभिन्न जोनल रेलों में महाप्रबंधक कोटे में हुई हैं, परंतु ऐसी सर्वाधिक भर्तियां उत्तर मध्य रेलवे में हुई हैं जो कि श्री विवेक सहाय, वर्तमान महाप्रबंधक उत्तर रेलवे ने की थीं, जो तब पूर्व रेलमंत्री के सबसे बड़े चाटुकार और विश्वासपात्र बन गए थे. इसी की बदौलत पूर्व रेलमंत्री ने उन्हें उत्तर मध्य रेलवे, इलाहाबाद से शिफ्ट करके दिल्ली में उत्तर रेलवे का महाप्रबंधक बना दिया था. तत्पश्चात उन्हें सीधे सीआरबी बनाने की कोशिश की थी. उसमें असफल रहने के बाद उन्होंने उन्हें मेंबर स्टाफ का उम्मीदवार भी बनाया था, जिसमें पीएमओ की सजगता के कारण वे असफल रहे थे.
'रेलवे समाचार' द्वारा जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत मांगी गई जानकारी में उत्तर मध्य रेलवे ने बताया है कि पूर्व रेलमंत्री के पांच वर्षों के कार्यकाल में उ.म.रे. में महाप्रबंधक कोटे के अंतर्गत कुल 619 भर्तियां की गई हैं. इनमें से वर्ष 2005 में की गई 25 भर्तियों में से 22 भर्तियां श्री आईपीएस आनंद ने, 2 भर्तियां श्री बुधप्रकाश ने और 1 भर्ती श्री के. सी. जेना ने की है. वर्ष 2006 और 2007 में हुई क्रमश: ऐसी कुल 67 एवं 77 भर्तियां अकेले श्री बुधप्रकाश ने की थीं. तत्पश्चात वर्ष 2008 में हुई कुल 450 भर्तियों में से 72 भर्तियां श्री बुधप्रकाश ने कीं और बाकी 381 भर्तियां श्री विवेक सहाय, तत्कालीन महाप्रबंधक/उ.म.रे. और वर्तमान महाप्रबंधक/उ.रे. ने की हंै. श्री सहाय द्वारा की गई 381 और श्री बुधप्रकाश द्वारा की गई 218 भर्तियों (कुल 599) में से 99 प्रतिशत उम्मीदवार बिहार के हैं जबकि उ.म.रे. की सीमा कहीं से भी बिहार प्रदेश तक नहीं पहुंचती है.
इन सभी भर्तियों में महाभयानक भ्रष्टाचार हुआ है, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, इनमें से प्रत्येक उम्मीदवार से 5-6 लाख रु. वसूले गए हैं, नकदी न होने पर उनकी जमीनें किसी न किसी के नाम लिखा ली गई हैं. इस संबंध में दुर्भाग्यवश इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल की गई एक जनहित याचिका संबंधित याचिकाकर्ता के वकीलों की मिलीभगत और पूर्व रेलमंत्री के परिचित तथा प्रतिवादी के बिरादरी वाले माननीय जजों द्वारा गलत उदाहरणों के आधार पर रद्द कर दी गई. अब इसे सुप्रीम कोर्ट में पुन: चुनौती दिए जाने की तैयारी की जा रही है, जिसमें उपरोक्त कारणों सहित पावरफुल और पहुंच वाले लोगों द्वारा कानून को अपने पक्ष में इस्तेमाल करने तथा माननीय जजों द्वारा भेदभावपूर्ण एवं असंगत तरीके से न्याय की हत्या करने का मुद्दा भी उठाया जाएगा, क्योंकि यह मामला 'सर्विस मैटर्स' का नहीं है, जिसे आधार बनाकर गलत एवं दुर्भावनापूर्ण तरीके से इलाहाबाद हाईकोर्ट के माननीय जजों ने रद्द किया है. यह विशुद्ध रूप से भ्रष्टाचार का मामला है. इसमें प्रतिवादी (श्री विवेक सहाय) द्वारा अपने 'डिस्क्रीशनरी पॉवर' का अनाधिकार दुरुपयोग किए जाने का मुद्दा भी शामिल है.
इसके अलावा श्री विवेक सहाय ने उ.म.रे. का चार्ज छोडऩे से 2-4 दिन पहले कार्मिक विभाग के चतुर्थ श्रेणी से तृतीय श्रेणी के सेलेक्शन में 10 लोगों के एक सेलेक्टेड पैनल को अनाधिकार मॉडिफाई करके लिखित परीक्षा में फेल हुए अपने चहेते चार लोगों को शामिल करके उन्हें प्रमोट कर दिया था. जबकि बतौर महाप्रबंधक श्री सहाय को इसका कोई अधिकार नहीं था. श्री सहाय के इस पैनल मॉडिफिकेशन से जब संबंधित अधिकारी (सीपीओ) सहमत नहीं हुए तो उन्होंने संबंधित नोटिफिकेशन में दी गई शर्तों के खिलाफ नियमों की गलत व्याख्या करके अपने चार चहेतों को पास करके प्रमोट किया था. यह सेलेक्शन सितंबर-अक्टूबर 2008 में हुआ था. इसमें प्रत्येक से 2-2 लाख रुपए लिए जाने का भी आरोप उ.म.रे. के कर्मचारियों ने लगाया है. उनका यह भी दावा है कि श्री सहाय द्वारा किए गए पैनल मॉडिफिकेशन और नियमों की गलत व्याख्या के प्रमाण संबंधित फाइलों में मौजूद हैं और इनका कभी भी वेरीफिकेशन किया जा सकता है.
इसके अलावा भी श्री सहाय द्वारा उ।म.रे. में तमाम रेल अधिकारियों-कर्मचारियों का जिस तरह उत्पीडऩ किया गया था और अब जिस तरह उ.रे. में किया जा रहा है, उसका भी वेरीफिकेशन किया जा सकता है. हाल ही में उन्होंने राजनीतिक सहयोग की अपेक्षा में सीपीआरओ/उ.रे. की पोस्ट पर आईआरपीएस अधिकारी की मनमानी तरीके से नियुक्ति की है. जबकि प्रचलित परंपरानुसार यह पोस्ट ट्रैफिक कैडर की है. अपनी राजनीतिक पहुंच और धन-बल के बावजूद सीआरबी एवं एमएस बनने में विफल रहे श्री विवेक सहाय अब पुन: इन्हीं के बल पर मेंबर ट्रैफिक बनने की तैयारी कर रहे हैं. इन तमाम तथ्यों के मद्देजनर 'रेलवे समाचार' ने श्री विवेक सहाय की विभिन्न गतिविधियों के बारे में 21 जनवरी और 6 फरवरी 2009 को दो पत्र लिखकर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से इनकी गहन जांच कराने की मांग की थी. अब पुन: यही मांग रेलमंत्री ममता बनर्जी से दोहराई जा रही है कि वे श्री सहाय द्वारा पहले उ.म.रे. और बाद में उ.रे. में की गई उनकी तमाम भर्तियों की जांच करवाएं और इसमें उनकी जिम्मेदारी तय करके उनके खिलाफ कड़ी अनुशासनिक कार्रवाई की जाए तथा उन्हें महाप्रबंधक पद से हटाकर रेलवे स्टाफ कॉलेज अथवा रेलवे बोर्ड में भेजा जाना चाहिए, जहां के लिए वे वास्तव में फिट हैं. इसके साथ ही जब तक रेलवे बोर्ड और जोनल रेलों के विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लालू के पिट्ठुओं को नहीं हटाया जाएगा तब तक न तो आप अपने मन मुताबिक रेलों का कामकाज चला पायेंगी और न ही यहाँ भ्रष्टाचार कम हो पायेगा, ख़त्म होने की तो बात कहना मुश्किल है.
बीसों साल से जमें लोगों को

भी दिल्ली से बाहर भेजा जाए


नयी दिल्ली :
विभिन्न जोनल रेलों के तमाम अधिकारियों का मानना है कि रेलवे बोर्ड सहित दिल्ली में इधर-उधर करके बीसों साल से जमें रेल अधिकारियों को दिल्ली से बाहर ट्रांसफर किया जाए, जिससे अन्य अधिकारियों को भी बोर्ड में काम करने का अवसर एवं अनुभव मिल सके. उनका कहना है कि जो लोग एक बार दिल्ली आ जाते हैं, वह बोर्ड, उ.रे., दिल्ली डिवीजन, फिर विभिन्न पीएसयू में इधर-उधर पोस्टिंग लेकर अपनी पूरी सर्विस दिल्ली में ही पूरी कर लेते हैं. इस पर रेलमंत्री को ध्यान देना चाहिए क्योंकि इससे अन्य तमाम काबिल रेल अधिकारियों को बोर्ड में काम करने का अवसर नहीं मिल पा रहा है. अगले अंक में 'रेलवे समाचार' द्वारा ऐसे तमाम अधिकारियों की सूची प्रकाशित की जाएगी.
'रेलवे समाचार' की मुहिम रंग लाई

जीएम कोटे की भर्तियों की

सीबीआई
जांच के आदेश


नयी दिल्ली :
उत्तर पश्चिम रेलवे के पूर्व महाप्रबंधक अशोक गुप्ता के ठिकानों पर 11 सितंबर को पड़े सीबीआई छापे के परिप्रेक्ष्य में रेलमंत्री ममता बनर्जी ने पिछले पांच वर्षों के दौरान महाप्रबंधक कोटे की भर्तियों की सीबीआई से जांच कराने की घोषणा कर दी है. रेल मंत्री की इस घोषणा से 'रेलवे समाचार' की मुहिम भी पूरी होती नजर आ रही है, जो कि लगातार इस मामले में लिखता रहा है कि पूर्व रेलमंत्री और उनके कुनबे ने जोनल महाप्रबंधकों पर दबाव डाल-डालकर बड़े पैमाने पर एक प्रदेश विशेष के बेरोजगार युवकों की भर्ती करवाई थी जो कि यह नौकरी पाने के लिए अपने खेत-बाग, गहना-गुरिया बेचकर 4 से 5 लाख रु. दिए थे. यहां तक कि जिनके पास देने के लिए कुछ नहीं था, उनसे नौकरी की एवज में पूर्व रेलमंत्री और उनके कुनबे ने उनकी जमीनें अपने नाम लिखा ली थीं. इस संबंध में गत वर्ष जद(यू) के महासचिव श्री शिवानंद तिवारी ने एक प्रतिनिधि मंडल के साथ प्रधानमंत्री को सप्रमाण एक ज्ञापन देकर ऐसी सभी भर्तियों की सीबीआई से जांच कराने की मांग की थी.
इसके साथ ही रेलमंत्री ममता बनर्जी ने पिछले पांच वर्षों के रेलवे के संपूर्ण कामकाज की आंतरिक समीक्षा (जांच) करने के भी आदेश दिए हैं. इससे पूर्व रेल मंत्री के पिछले पांच वर्षों के भ्रष्टाचारपूर्ण मनमानी कामकाज की सही स्थिति तो सामने आएगी ही बल्कि उनके कार्यकाल में हुई भर्तियों की सीबीआई जांच से पिछले पांच वर्षों के दौरान चले मनमानी एकछत्र राज का भारी भ्रष्टाचार भी उजागर होगा. परंतु रेल मंत्री से 'रेलवे समाचार' की यह अपेक्षा है कि सीबीआई द्वारा पिछले पांच वर्षों में उच्च रेल अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने अथवा मामला दर्ज करके जांच करने की जो अनुमतियां रेल बोर्ड (रेल मंत्रालय) से मांगी गई हैं और वह नहीं दी गई हैं, उन्हें शीघ्र जारी किया जाए तो इस काम और उनकी इस महत्वपूर्ण घोषणा को और अधिक बल मिलेगा.
ज्ञातव्य है कि पूर्व रेलमंत्री के दबाव में और उनके कार्यकाल में ऐसी सर्वाधिक भर्तियां उत्तर रेलवे, दिल्ली, उत्तर-मध्य रेलवे, इलाहाबाद, उत्तर-पश्चिम रेलवे, जयपुर, पश्चिम-मध्य रेलवे, जबलपुर, पूर्व रेलवे एवं दक्षिण-पूर्व रेलवे, कोलकाता, दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे, बिलासपुर के साथ ही बिहार प्रदेश स्थित पूर्व मध्य रेलवे एवं यहां स्थापित हो रही नयी रेलवे उत्पादन इकाइयों में ही हुई हैं. 'रेलवे समाचार' ने करीब एक साल पहले ही एक अनुमान के आधार पर पूर्व रेल मंत्री के कार्यकाल में उनके दबाव के चलते हुई ऐसी करीब 15 हजार भर्तियों का उल्लेख प्रकाशित किया था. जबकि इसमें यदि तमाम रेलवे भर्ती बोर्डों की उनके समय में हुई भर्तियों को जोड़ा जाए तो यह आंकड़ा करीब 50 हजार भर्तियों का है, जिनमें से 90 प्रतिशत भर्तियां बिहार से ही हुई है. रेलमंत्री से 'रेलवे समाचारÓ की मांग है कि सिर्फ जोनल महाप्रबंधकों द्वारा की गई भर्तियों की ही नहीं बल्कि पिछले पांच वर्षों के दौरान विभिन्न रेलवे भर्ती बोर्डों (आरआरबी) द्वारा की गई भर्तियों की भी लगे हाथ यदि जांच कराई जाए, तो सिर्फ इसी मद में पूर्व रेलमंत्री और उनके कुनबे सहित उ.प.रे., उ.रे., उ.म.रे., उ.पू.रे., पू.रे., द.पू.रे., द.पू.म.रे. के पूर्व महाप्रबंधकों एवं कुछ आरआरबी चेयरमैनों द्वारा किए गए करोड़ों के भ्रष्टाचार का आकलन आसानी से किया जा सकता है.
रेलमंत्री को इस घोषणा के लिए हार्दिक बधाई देते हुए 'रेलवे समाचार' उनसे इस बात की और अपेक्षा करता हैै कि वे शीघ्र ही जोनल महाप्रबंधकों के इस तथाकथित 'डिस्क्रीशनरी पावर' को यदि पूरी तरह से खत्म कर दें तो अंग्रेजों द्वारा डाली गई यह एक और परंपरा रेलवे से समाप्त हो जाएगी. यदि यह संपूर्ण रूप से संभव न भी हो तो भी इस 'पावर' को इतना सीमित और पारदर्शी कर दिया जाए कि इसमें भ्रष्टाचार की संभावनाओं को खत्म किया जा सके.
उ.प.रे. के पूर्व महाप्रबंधक अशोक गुप्ता

के ठिकानों पर सीबीआई का छापा


करोड़ों की संपत्ति बरामद


जयपुर :
कुल मिलाकर मात्र 11 दिन पहले 31 अगस्त को उ.प.रे. जयपुर के महाप्रबंधक पद से रिटायर हुए श्री अशोक गुप्ता (आईआरटीएस) के गुडग़ांव, दिल्ली स्थित ठिकानों पर सीबीआई ने शुक्रवार 11 सितंबर को एक साथ छापा मारकर करोड़ों रुपए की नामी-बेनामी संपत्ति बरामद की है. प्राप्त जानकारी के अनुसार सीबीआई ने छापे में श्री गुप्ता की 4 करोड़ रु. से ज्यादा की संपत्ति का पता लगाया है. सीबीआई ने श्री गुप्ता के गुडग़ांव स्थित 18 बैंक खातों सहित उनके कई लॉकर्स को भी सील कर दिया है. ज्ञातव्य है कि यह छापा सीबीआई की जयपुर शाखा ने मारा है और दूसरे दिन देर रात तक श्री गुप्ता के गुडग़ांव वाले मकान में उनसे पूछताछ चल रही थी.
श्री गुप्ता ने बतौर महाप्रबंधक/उ.प.रे. जयपुर में 27 मार्च 2007 को पदभार संभाला था और 31 अगस्त 2009 को इसी पद से रिटायर हुए हैं. बताते हैं कि श्री गुप्ता ने जो भी चल-अचल संपत्ति बनाई है, वह वर्ष 2006 के बाद की है. सीबीआई को एक टिप मिली थी कि श्री गुप्ता ने 1.50 करोड़ की जो संपत्ति दर्शायी है, वास्तव में वह उससे कई गुना ज्यादा के मालिक बन बैठे हैं. सीबीआई के प्रवक्ता श्री अतुल गुप्ता ने बताया कि जांच एजेंसी की जयपुर शाखा को एक शिकायत प्राप्त हुई थी, जिसमें कहा गया था कि श्री गुप्ता ने अपनी ज्ञात आय से काफी ज्यादा संपत्ति अर्जित की है. उन्होंने बताया कि छापे में अब तक श्री गुप्ता की 4 करोड़ की संपत्ति का पता चला है.
उन्होंने बताया कि सीबीआई टीम ने श्री गुप्ता के गुडग़ांव पालम विहार स्थित मकान, जहां उनका पूरा परिवार रहता है, पर छापा मारा. इस छापे में दो फ्लैट और एक दूकान तथा उनके बेटे का एक कार्यालय पाया गया है. उनका बेटा चार्टर्ड एकाउंटेंट है. इसके साथ ही उनका और एक मकान दिल्ली में मिला है. इसके अलावा श्री गुप्ता के नाम दो बड़े प्लाटों के कागजात भी बरामद हुए हैं. पालम विहार स्थित भारतीय स्टेट बैंक के एक खाते से 96 लाख रु. की जमा राशि और गुडग़ांव स्थित अन्य 17 बैंक खातों से 6 लाख की अन्य राशि का पता चला है. छापे में 4 लाख की ज्वेलर उनके एक लॉकर से मिली है.
सीबीआई प्रवक्ता ने बताया कि छापे में पालम विहार स्थित मकान से 1 लाख की नकदी, 1.37 करोड़ की फिक्स डिपॉजिट और 14 लाख की ज्वेलरी सहित विभिन्न कंपनियों के 10 लाख मूल्य के शेयर सर्टिफिकेट बरामद हुए हैं. प्रवक्ता के अनुसार सीबीआई टीम ने श्री अशोक गुप्ता के भाई किरनचंद गुप्ता के गुडग़ांव स्थित बैंक खातों को भी सील किया है और उनके पास से 20 लाख रु. की नकदी और 16 लाख की ज्वेलरी भी बरामद की है. प्रवक्ता ने बताया कि देर रात तक सीबीआई टीम श्री गुप्ता और उनके पारिवारिक सदस्यों से पूछताछ कर रही थी और जरूरत पडऩे पर बाद में गुप्ता को गिरफ्तार भी किया जा सकता है.
हमारे विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार श्री गुप्ता ने अपनी अकड़बाजी और पद के घमंड में कई अफसरों को बेवजह परेशान किया था, जबकि दूसरी तरफ उन्हीं के देखते हुए ग्रुप 'डी' की भर्तियों में अनाप-शनाप अवैध कमाई भी कर रहे थे. सूत्रों का कहना है कि सिर्फ भर्तियों में ही नहीं कई अन्य इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट्स में निजी सीमेंट कंपनियों और बड़े ठेकेदारों के साथ मिलकर श्री गुप्ता ने रेलवे को करोड़ों का चूना लगया है और इन सबकी दलाली उनके सचिव एवं उनका प्रोटोकॉल इंस्पेक्टर वसूल रहे थे.
प्राप्त जानकारी के अनुसार श्री गुप्ता जब उ.रे. में सीएफटीएम थे, तब से वह दिल्ली के एक डिप्टी एसएस सुरेश गौतम को अपना बगलबच्चा बनाए हुए थे. डीआरएम, सीओएम/पू.म.रे. और बोर्ड में रहते हुए भी वे गौतम को हमेशा अपने साथ व्यक्तिगत नौकर की तरह चिपकाये रहे. महाप्रबंधक बनने के बाद वे गौतम को जयपुर लेकर आये और यहां उन्हें प्रोटोकॉल इंस्पेक्टर बना दिया. इसके बाद रिटायरमेंट के मात्र 3 दिन पहले उन्होंने बिना किसी नियम या सेलेक्शनप्रक्रिया को अपनाए अथवा परीक्षा लिए बिना ही गौतम को ग्रुप 'बी' अफसर बनाकर चले गए हैं.
सूत्रों का कहना है कि श्री गुप्ता की तमाम अवैध कमाई गौतम और वी. शंकर (सचिव/जीएम) के पास रखी हो सकती है. सूत्रों का कहना था कि सीबीआई टीम यदि इन दोनों को हिरासत में लेकर कड़ाई से पूछताछ करेगी तो श्री गुप्ता की सारी पोल खुल जाएगी. उल्लेखनीय है कि रिटायरमेंट के हफ्ते भर पहले ही 25 अगस्त को जीएम हाउस खाली करके ईमानदारी और आदर्शवादिता का ढोंग करने वाले श्री गुप्ता का रिटायरमेंट के दिन 31 अगस्त को रात 9.30 बजे के बाद बोर्ड/सीवीसी विजिलेंस क्लीयरेंस आया था और तब करीब रात 10.30 बजे उन्हें उनके फाइनल सेटलमेंट का करीब 73 लाख का चेक देने एक डिप्टी एफए एंड सीएओ उनके सूट नं. 1 में गया था, जहां वह जीएम बंगला खाली करने के बाद पिछले एक हफ्ते से टिके हुए थे.
विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि करीब एक महीने पहले उन्हें बोर्ड विजिलेंस द्वारा एक लंबी प्रश्नावली थमाई गई थी. यह मामला भर्ती मामले से अलग और काफी गंभीर माना जा रहा था, जिसके चलते श्री गुप्ता का न सिर्फ फाइनल सेटलमेंट रुक जाना था, बल्कि रिटायरमेंट से पहले उन्हें मेजर पेनाल्टी चार्जशीट भी दिए जाने का निर्णय बोर्ड विजिलेंस में हो चुका था. सूत्रों का कहना है कि इस संबंध में डायरेक्टर विजिलेंस संजय कुमार (आईपीएस) ने व्यक्तिगत रूप से जयपुर का दौरा करके श्री गुप्ता से विस्तृत पूछताछ भी की थी. परंतु अपनी अवैध कमाई और फेवर की बदौलत श्री गुप्ता को देर से ही सही मगर विजिलेंस क्लीयरेंस मिल गया था. इस संबंध में हमारे सूत्रों का कहना है कि 25 अगस्त को शिफ्टिंग के दौरान श्री गुप्ता का एक खास आदमी दिल्ली में बोर्ड के एक उच्च अधिकारी को उसके घर पर जाकर मिला था और उसे काफी मोटा 'नजराना' भेंट करके आया था. सूत्रों ने यह भी बताया कि इसके बाद इस नजराने की दूसरी किश्त 28-29 अगस्त को पहुंचाई गई थी. इसी नजराने की बदौलत ही अंतत: रात 9.30 बजे श्री गुप्ता का विजिलेंस क्लीयरेंस आ पाया था. तथापि हमारे सूत्रों सहित कई उच्च पदस्थ अधिकारियों का भी यह मानना है कि इतनी भी देर होना एक रिटायर हो रहे महाप्रबंधक के लिए बड़े ही शर्म की बात होती है कि उसे अपना फाइनल सेटलमेंट लेने के लिए रात 10-11 बजे तक इंतजार करते हुए इस तरह से बेइज्जत होना पड़े.
'सबक'
जो रेल अधिकारी अपने सरकारी पद के घमंड में 'लोगों' की बात नहीं सुनते हैं अथवा उसे दखलंदाजी मानते हैं या उनसे मिलने से कतराते हैं, उन्हें सतर्क हो जाना चाहिए. क्योंकि ऐसे लोगों की भूमिका रेलवे विजिलेंस से भी ज्यादा बड़ी है. यह लोग बिना किसी अपेक्षा के संबंधित गड़बडिय़ों से अधिकारियों को अवगत कराते हैं और साथ ही सीवीसी एवं रेलवे विजिलेंस सहित सीबीआई को जो मामले पता नहीं चल पाते हैं उन्हें खोज कर व्यवस्था को ठीक करने के लिए इन जांच एजेंयिों की मदद करते हैं. इसीलिए श्री अशोक गुप्ता, जिनके यहां पड़े सीबीआई छापे में प्रमुख भूमिका ऐसे ही लोगों की भी रही है, के हस्र से तमाम रेल अधिकारियों को सबक लेना चाहिए. उल्लेखनीय है कि श्री गुप्ता के खिलाफ चली इस मुहिम की महत्वपूर्ण कड़ी 'रेलवे समाचार' भी था. जिसने अपनी वेबसाइट पर विस्तार से श्री गुप्ता की करतूतों को उजागर किया था और उन्हें बोर्ड विजिलेंस सहित पीएमओ, सीवीसी, सीबीआई तक पहुंचाया था.

अधर में महाप्रबंधकों की पोस्टिंग का प्रस्ताव

नई दिल्ली : रेलमंत्री ने बंद लिफाफे में महाप्रबंधकों की पोस्टिंग का प्रस्ताव डीओपीटी को करीब 15 दिन पहले भेज दिया था। परन्तु भेजे गए प्रस्ताव में किसको कहाँ या कौन सी रेलवे के लिए नामांकित किया गया है, यह किसी को भी पता नहीं चल पाया था, सब अपने - अपने कयास लगा रहे थे. 'रेलवे समाचार' को अपने विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जीएम् पैनलिस्ट निम्न लिखित नौ अधिकारियों की पोस्टिंग का प्रस्ताव उनके सामने लिखी जोनल रेलों के लिए भेजा गया है...
1. श्री संजीव हांडा (IRSME) - महाप्रबंधक/पूर्व मध्य रेलवे, हाजीपुर
2. श्री अमर नाथ (IRSEE) - महाप्रबंधक/मेट्रो रेलवे, कोलकाता
3. श्री वी. एन. त्रिपाठी (IRTS) - महाप्रबंधक/दक्षिण मध्य रेलवे, सिकंदराबाद
4. श्री पी. बी. मूर्ति (IRTS) - महाप्रबंधक/सीएलडबल्यू, चित्तरंजन
5. श्रीमती पम्पा बब्बर (IRAS) - महाप्रबंधक/डीएलडबल्यू, वाराणसी
6. श्री विनय मित्तल (IRTS) - महाप्रबंधक/उत्तर पश्चिम रेलवे, जयपुर
7. श्री एम. एस. जयंत (IRTS) - महाप्रबंधक/दक्षिण रेलवे, चेन्नई
8. श्री के. के. सक्सेना (IRTS) - महाप्रबंधक/आईसीएफ़, पेराम्बुर
9. श्री सी. पी. वर्मा (IRSSTE) - महानिदेशक/रेलवे स्टाफ कॉलेज, वडोदरा
सूत्रों का कहना है कि डीपीसी होकर यह पोस्टिंग प्रस्ताव अभी तो डीओपीटी द्वारा अप्वाइंटमेंट कमेटी ऑफ़ कैबिनेट (एसीसी) को भेजा जाएगा, वहां से अप्रूवल होने के बाद पीएमओ को जाएगा, उसके बाद भी कुछ अड़चनें आ सकती हैं अथवा 'जुगाडू' अपनी पोस्टिंग अपने मनमुताबिक करवाने के प्रयास करेंगे तो पोस्टिंग आर्डर निकलने में और देरी हो सकती है अन्यथा इस महीने के अंत तक सबकी पोस्टिंग हो सकती है।
'रेलवे समाचार' का मानना है कि उपरोक्त सभी अधिकारियों की पोस्टिंग का प्रस्ताव उनकी योग्यता के अनुरूप ही भेजा गया है और अब इस में किसी प्रकार का बदलाव करने का मतलब नए विवादों को पैदा करना होगा। वैसे भी इस प्रस्ताव में एक वरिष्ठ अधिकारी श्री आर. एन. लाल (आईआरएसईई), जो कि वर्तमान में सीनियर ईडी/ आरडीएसओ हैं, का नाम नहीं डाला गया है जबकि यदि चालू महीने यानी इसी महीने के अंत तक यदि श्री लाल जीएम् नहीं बन पाते हैं तो फिऱ कभी नहीं बन पायेंगे, चूंकि उनका बकाया कार्यकाल दो साल से कम रह जाएगा क्योंकि अगले साल 30 सितम्बर 2011 को वह रिटायर होने वाले हैं.
सूत्रों का कहना है कि इसका सबसे बड़ा कारण मेंबर इलेक्ट्रिकल की पोस्टिंग का अभी तक भी तय न हो पाना है। इससे श्री लाल का भारी नुकसान हो रहा है। जबकि एक आईआरटीएस अधिकारी द्वारा जीएम् बनने से मना कर दिए जाने से अथवा उसे दरकिनार कर दिए जाने से श्री विनय मित्तल की लाटरी निकल गई है। सूत्रों का कहना है कि भेजे गए प्रस्ताव में श्री वी एन त्रिपाठी को मेट्रो रेलवे, कोलकाता से शिफ्ट करके दक्षिण मध्य रेलवे, सिकंदराबाद और श्री एम. एस. जयंत को आईसीएफ़, पेराम्बुर से हटा कर दक्षिण रेलवे, चेन्नई में पदस्थ करने और उनकी जगह क्रमश: श्री अमर नाथ एवं श्री के. के. सक्सेना को भेजे जाने की बात कही गई है।
प्राप्त ताजा जानकारी के अनुसार 'रेलवे समाचार' की वेबसाइट की जानकारी के आधार पर श्री पी. बी. मूर्ति, श्री के. के. सक्सेना, श्री सी.पी. वर्मा और श्रीमती पम्पा बब्बर ने अपनी-अपनी प्रस्तावित जीएम पोस्टिंग के प्रति यह कहते हुए ज्ञापन दाखिल कर दिया है कि वे ओपन लाइन के लिए फिट हैं और सीनियर हैं. बताते हैं कि इन अधिकारियों ने लेटरल शिफ्टिंग की भी खिलाफत अपने ज्ञापन में की है. जबकि डीओपीटी स्थित हमारे सूत्रों का कहना है कि डीओपीटी द्वारा यह प्रस्ताव रेल मंत्रालय को वापस भेजा जा रहा है, क्योंकि डीओपीटी खुद लेटरल शिफ्टिंग के पक्ष में नहीं है, क्योंकि रेल मंत्रालय ने पिछली बार यह कहा था कि जिसे मेंबर बनना होता है, उसे ओपन लाइन में शिफ्ट किया जाता है. इसके अलावा प्रस्तावित पोस्टिंग पैनल वरिष्ठता क्रम में भी नहीं है. इसलिए डीओपीटी द्वारा यह प्रस्तावित पैनल शीघ्र ही रेलमंत्रालय को वापस भेज दिया जाएगा.

नवंबर में तैयार हो जायेगा

भारत का सबसे लंबा रेलवे पुल


एर्नाकुलम(केरल) :
देश के सबसे लंबे रेलवे पुल के निर्माण को फाइनल टच दिया जा रहा है. केरल के एर्नाकुलम जिले में कोच्ची के पास पूरी वेम्बानाड झील के ऊपर कुल 4.62 किमी. लंबा बनाया गया यह पुल मुख्य जमीन से वल्लारपद्म द्वीप को जोड़ रहा है, जहां प्रस्तावित इंटरनेशनल कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल (आईसीटीटी) बनाया जा रहा है. इसी साल नवंबर में चालू हो रहा यह पुल भारत का अब तक का सबसे लंबा रेलवे पुल होगा. वर्तमान में देश का सबसे लंबा रेल पुल नेहरू सेतु (3.065 किमी) है जो कि कोलकाता-दिल्ली लाइन पर देहरी-आन-सोन के पास है.
अब तक का देश में बना यह सबसे लंबा रेलवे पुल है और इसके प्रोजेक्ट कांट्रैक्टर एफकॉन ने काफी बेहतरीन काम किया है. यह कहना है रेल विकास निगम लि. (आरवीएनएल) के डीजीएम श्री केशव चंदन का, जो कि इस पूरे प्रोजेक्ट के इंचार्ज हैं. श्री चंदन ने बताया कि इस प्रोजेक्ट की शुरुआत मई 2007 में हुई थी. उन्होंने बताया कि प्रोजेक्ट का ढांचागत निर्माण लगभग पूरा हो चुका है, अब सिर्फ रेल लिंक वर्क बाकी बचा है जो कि एक-दो महीने में पूरा हो जायेगा. ज्ञातव्य है इस प्रोजेक्ट का ढांचा झील के वाटर लेवल से 7 मीटर ऊंचा बनाया गया है और इस 4.62 किमी. लंबे पुल में कुल 134 खंबे बनाये गये हैं, जिनके ऊपर रेल लाइन बिछाई जा रही है.
श्री चंदन के अनुसार यह पुल आईसीटीटी प्रोजेक्ट की रेल लाइन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है. इस पुल को 700 मीटर इसलिए वाटर सरफेस पर बढ़ाना पड़ा क्योंकि जमीन अधिग्रहण की समस्या थी. जहां पर आबादी है और जमीन का मिल पाना अत्यंत कठिन था. इसलिए झील के ऊपर 700 मीटर और इस पुल को बढ़ाना पड़ा क्योंकि स्थानीय लोगों द्वारा जमीन के अधिग्रहण का जबरदस्त विरोध हुआ था. उन्होंने बताया इस पूरे प्रोजेक्ट की शुरुआती लागत 246 करोड़ रु. थी. मगर स्टील जैसे कच्चे माल की लागत बढ़ जाने से इसकी लागत बढ़कर 298 करोड़ रु. हो गई है. इस पूरी परियोजना का वित्त पोषण केंद्र सरकार द्वारा किया गया है. इसमें करीब 1800 मीट्रिक टन सीमेंट और 5000 मीट्रिक टन स्टील का इस्तेमाल किया गया है.
नवंबर 2009 में शुरू हो रहे इस आईसीटीटी प्रोजेक्ट से निर्यातकों को करोड़ों रुपये की बचत होगी, जो कि वे अब तक दुबई और कोलंबो पोर्ट लिंक को अपने गुड्स निर्यात के लिए ट्रांसशिपमेंट में करोड़ों की राशि खर्च कर रहे थे. इसके अलावा केरल राज्य में इस प्रोजेक्ट की शुरुआत से अन्य तमाम औद्योगिक गतिविधियों को गति मिलेगी. आईसीटीटी के साथ ही इसके आसपास 1600 करोड़ रु. की लागत से एक एलएनजी टर्मिनल, पोर्ट आधारित विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड), इंटरनेशनल शिप रिपेयर काम्प्लेक्स, और गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लि. (गेल)के लिए पेट्रोकेमिकल कॉम्प्लेक्स तथा क्रूज शिप टर्मिनल भी बनाये जाने वाले हैं.
गुमशुदा की तलाश - पापा जल्दी घर लौटें
व्यंग्य : रवींद्र कुमार
मेरे प्यारे पापा जी! पिछली सब बातें भूलकर फौरन घर लौटें. आपकी 'गुडिय़ा' टीटी ने चार दिन से कुछ खाया नहीं है. टीशी बुखार में तप रही है और टीटू स्कूल नहीं जा रहा है. कहता है जब तक ग्रांडपा स्कूल छोडऩे नहीं जाएंगे, मैं स्कूल नहीं जाऊंगा. मिनी ने तो जैसे किचन में जाना ही छोड़ दिया है. ताजी, सस्ती सब्जी तो दूर की बात है, कोई सब्जी लाने वाला ही नहीं है. हम आखिर कब तक होम डिलीवरी पिज्जा खा-खा के गुजारा करेंगे. मेरी भी रातों को अक्सर नींद कई बार खुल जाती है. घर में कोई चोर तो नहीं घुस आया. आप थे तो दरवाजे पर ही सोने से, खांसते रहने से और बार-बार उठ कर टॉयलेट जाने से कोई चोर हिम्मत नहीं करता था. आप तो कॉलोनी का हाल जानते हैं. दिन में ही चोरी हो जाती है. जब से यह स्मैक चली है, चोरों का भी कोई स्टैंडर्ड नहीं रहा है. धूप में बाहर सुखाने डाले गए कपड़े तक उठा ले जाते हैं.
मेरे अच्छे पापाजी! अब देखिए कि झगड़े किस घर में नहीं होते. चार बर्तन हैं तो आपस में टकराएंगे भी. मैं इतना पीछे भी नहीं पड़ता, मगर एक तो ये दो बेडरूम का मकान आपके नाम है, सो खटका-सा ही लगा रहता है कि वो नालायक आर. पी. (राम प्रसाद) कहीं आपको बहका कर न ले गया हो. कहने को तो मेरा बड़ा भाई है, पर सब जानते हैं कि वो कसाई है. मेरी पत्नी मिनी तो उसे एक नजर में ही पहचान गई थी. वह तो यही कहती है, ''तुम तो बड़े भोले हो जी. एक तुम्हारे भाई हैं..." अब जाने दीजिए.
माई पापा बेस्ट! जरा सोचिए, आप जैसे मैच्योर व्यक्ति को ये शोभा देता है? क्या हुआ अगर मिनी हफ्ते में एकाध बार आप से कपड़े धुलवा लेती है तो. आखिर आपकी बेटी-सी ही है न. क्या ऐसे रूठ जाते हैं. आप ही तो कहा करते हैं- हम सब को मेहनत करनी चाहिए. ये क्या? आप तो जरा-सी मेहनत से ही घबरा के भाग खड़े हुए. आपको पता भी है आपके जाने के बाद मिनी मुझे कैसे-कैसे ताने दे रही है.
माई पापा स्ट्रॉंगेस्ट! बुरा न मानिएगा, आपने तो मेरी नाक ही कटा दी. जरा मिनी के कपड़े धो देते तो क्या बिगड़ जाता आपका. आखिर मशीन से ही तो धोने थे. अब ये पचास हजार की मशीन भी आपके बिना पड़े-पड़े सड़ रही है. हमारी नहीं तो इस मशीन की खातिर ही लौटे आइये.
ओ मेरे स्वीट पापा! ये आप वाला जमाना नहीं है. आपको पता है न, नौकर कितने महंगे मिलते हैं. सबसे बड़ी बात- भरोसे के नहीं मिलते मेरे डार्लिंग पापा! अब लौट भी आइये. क्या अपने इस जिगर के टुकड़े को ऐसे ही मंझधार में छोंड़ देंगे. देखिए! देखिए! आप सचमुच बहुत खुदगर्ज हैं. अभी तक मिनी मुझसे यह कहती थी तो मुझे यकीन नहीं आता था. मैं उसकी इस बात को गंभीरता से नहीं लेता था. मगर अब जबकि आपको गए हुए महीना होने को आया मुझे भी शक पडऩे लगा है कि आप वो मेरे पहले वाले पापा नहीं रहे.
अब देखिए न! सब्जी लाना, गेहूं पिसाना, दूध लाना, घर की रखवाली, आप नहीं करेंगे तो क्या कोई बाहरवाला गैर करेगा. पूरा का पूरा घर आपका है और आप ही ने तो चलाना है. अब आपका घर, आप ही चलाएं, तो बुरा क्या है? क्या ऐसे भी कोई अपना ही घर छोड़ के जाता है. आपने तो हमें पाठ पढ़ाया था- आदमी को कभी भी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोडऩा चाहिए. कभी-भी मैदान छोड़कर नहीं भागना चाहिए. अब देखिए न डैड- आपनेे ये क्या किया. सच पूछो तो मैं कॉलोनी में कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहा. मिनी की सारी सहेलियां भी किटी पार्टी, कार्ड पार्टी, जिम, क्लब, कॉकटेल में इतना मजाक बनाती हैं कि सहा नहीं जाता.
माई सुपरमैन पापा! आपको बुढ़ापे में ये क्या सूझा? पापा जल्दी घर आ जाओ. घर सूना-सूना है. पता है महीने भर में ही घर के कोने-कोने में मकड़ी ने जाले बना लिए हैं. आप थे तो बांस लेकर आए दिन खिड़की पर, छज्जे पर चढ़े रहते थे. मजाल है आपके रहते एक भी मकड़ी जाला बना पाती.
आदरणीय पापाजी! आपके जाने के बाद कमरों की हालत मुझसे तो देखी नहीं जाती. आप थे तो कितने प्यार से रगड़-रगड़ कर फ्लोर साफ करते थे. मिनी तो मजाक में कह भी देती थी कि तुम्हारी फैमिली में पापा जैसा फर्श कोई भी साफ नहीं कर सकता. देखो पापा. एक हम हैं जो हर फोरम में आपकी तारीफ करते नहीं थकते. एक आप हैं कि इस बेरूखी से पेश आए हैं. अब देखिए न पापाजी. मम्मी जी जब तक जिन्दा थीं, तो कभी हमने आपको फर्श साफ करने को कहा? कभी नहीं न. याद है पापा. मम्मी कैसे खुद ही मिनी के सोकर उठने से पहले चौका-बरतन, झाड़ू-बुहारी कर लेती थीं. कुछ सीखिए मम्मी जी से! अपने घर के काम में शर्म कैसी. यूं तो जितने मुंह उतनी बातें.
मेरे श्रीयुत श्रद्धेय पापा जी की आयु ८० वर्ष है. आंखों से कम दिखता है. (चश्मा टूट गया था) हाथ कांपते हैं. मैला कुरता-पायजामा और टूटी चप्पल पहने हैं. सुराग देनेवाले अथवा पहुंचाने वाले को उचित इनाम दिया जाएगा. पूज्य पापा, आप जल्दी घर लौट आओ. पुरानी बातें सब भूल जाओ. आपको कोई कुछ नहीं कहेगा.
जागरूकता का माध्यम बन

गया है 'रेलवे समाचार'


प्रिय श्री त्रिपाठी जी,

आपके लोकप्रिय 'परिपूर्ण रेलवे समाचार' के 1 से 15 सितंबर 2009 के अंक में पेज नं. 3 पर 'चौराहे पर खड़े मजदूरों जैसी हो जाएगी रेलकर्मियों की हालत' शीर्षक से छपे लेख को पढ़कर खुशी और गम दोनों का अहसास एक साथ हुआ. खुशी इस बात के लिए हुई है कि जिस यथार्थ को रेल संगठन और बाकी लोग छिपाते फिर रहे हैं, उसे आपने बड़ी बेबाकी और पूरे तथ्यों के साथ प्रस्तुत कर दिया है. ऐसा करके आपने रेलकर्मियों को न सिर्फ समझाने की कोशिश की है बल्कि उन्हें अपने भविष्य के प्रति जागरूक किया है. दु:ख इस बात का हुआ कि आने वाले समय में जो भयावह स्थिति उत्पन्न होने वाली है, उससे रेल कर्मचारियों का भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा है.

इसी अंक के पेज नं. 6 पर 'रेलवे के 5500 करोड़ के आउटसोर्सिंग कांट्रैक्ट हासिल करने के लिए आईटी क्षेत्र की कंपनियों में होड़' तथा 'लेखा प्रक्रिया में सुधार के लिए आईसीएआई करेगा रेलवे की मदद' शीर्षकों से छपी खबरें पढ़कर भी मन काफी उदास हो गया क्योंकि इससे आने वाले समय में रेलवे के एकाउंट्स कर्मचारियों की भी हालत खराब होने वाली है। छठवें वेतन आयोग की रिपोर्ट के पैरा 3.1.7 (पेज नं. 159) में कहा गया है कि पांचवे वेतन आयोग के वेतनमान 5000-8000, 5500-9000 एवन 6500-10500 को मर्ज कर दिया जाए. इससे सरकारी कार्यालयों के सभी वेतनमान सहायक श्रेणी के हो जाएंगे, जबकि अनुभाग अधिकारी (सेक्शन ऑफीसर-एसओ) का एंट्री लेवल स्केल 6500-10500 का है, लेकिन इनके मामले में डिस्टिंक्शन यह है कि 4 साल की सर्विस के बाद यह स्वमेव पांचवे वेतन आयोग 8000-13500 के वेतनमान में पहुंच जाते हैं. लेकिन तब यह वेतनमान ग्रुप 'ए' का नहीं रह जाएगा और यह वेतनमान फाइनेंशियल अपग्रेडेशन (वित्तीय उन्नति) देने वाली एसीपी स्कीम के समय ही पकड़ में आएगा. इसका मतलब यह होगा कि जो एंट्री लेवल एसओ होगा, सिर्फ उसे ही इसका लाभ मिल पाएगा.अब मॉडिफाई एसीपी स्कीम के तहत रेलवे बोर्ड ने पांचवे वेतन आयोग के वेतनमान 6500-10500 एवं 7450-11500 को आपस में मर्ज करने का आदेश दिया है. इसे इस तरह भी कहा जा सकता है कि 7450-11500 के ग्रेड को 6500-10500 के ग्रेड में मिलाया गया है. वेतनमान 7450-11500 की ग्रेड पे 4600 रु. है. उधर, डीओपीटी ने एसीपी स्कीम के अंतर्गत यह आदेश जारी किया है कि पांचवे वेतन आयोग के 5000-8000, 5500-9000 एवं 6500-10500 के वेतनमानों को मर्ज कर दिया जाए. लेकिन रेलवे में तो रेलवे बोर्ड ने इससे पहले ही वेतनमान 6500-10500 एवं 7450-11500 को मर्ज करने का निर्देश जारी किया हुआ है.

इससे कर्मचारियों में असमंजस की स्थिति यह पैदा हो रही है कि क्या रेलवे में 5000-8000 से लेकर 7450-11500 तक के तीनों वेतनमानों को एक कर दिया गया है और क्या इन तीनों के कर्मचारियों को एक ही ग्रेड पे (4600) मिलेगी? अथवा जो कर्मचारी पांचवे वेतन आयोग के वेतनमान 6500-11500 में कार्यरत थे और जिन्हें उसके 7450-11500 के वेतनमान में मर्ज मानकर 4600 रु. की ग्रेड पे दी गई है, उन्हें वहां से वापस करके पांचवे वेतन आयोग के वेतनमान 5000-8000 तथा 5500-9000 के साथ जोड़कर 4200 रु. की ग्रेड पे दी जाएगी? या फिर पांचवे वेतन आयोग के वेतनमान 5000-8000 से आगे यानी 6500-10500 एवं 7450-11500 के लोगों, जिन्होंने वेतन आयोग के वेतनमान 5000-8000 में प्रमोशन मिलने के 10 साल बाद उन्हें दो प्रमोशन मिले हैं, ऐसा मानकर पांचवे वेतन आयोग के वेतनमान 7450-11500 में अपग्रेड किया जाएगा और उन्होंने 4600 की ग्रेड पे दी जाएगी? क्योंकि यहां ध्यान में रखने वाली बात यह है कि वेतनमान 5000-8000 और 6500-10500 तक के ग्रेड मर्ज हो चुके हैं.

अब रेलवे के लाखों सबॉर्डिनेट इंजीनियरों के आवाज की गूंज हाल ही में संसद तक भी जा पहुंची है, जहां उनकी वेतन विसंगतियों के खिलाफ कई सांसदों ने सरकार से सवाल उठाकर उन्हें शीघ्र ठीक करने के लिए कहा गया है और 'रेलवे समाचार' ने भी इस खबर को 16-31 अगस्त 2009 के अंक में पेज नं. 3 पर प्रकाशित किया है. यहां ध्यान देने की बात यह है कि 'रेलवे समाचार' ने हमेशा प्रत्येक कैडर और उनकी एसोसिएशनों की बात उठाई है, परंतु ऐसा लगता है कि ये कैडर एवं उनके संगठन अपना हितसाधन हो जाने के बाद 'रेलवे समाचार' को ही भूल जाते हैं. यह बात मेरे जेहन में इसलिए आई है क्योंकि वेतन आयोगों के आगे-पीछे ही इन कैडर संगठनों की खबरें 'रेलवे समाचार' में दिखाई देती हैं. बाकी समय ये संगठन ऐसा लगता है कि सुशुप्ता अवस्था में चले जाते हैं. ऐसा ही कुछ सबॉर्डिनेट इंजीनियर्स एसोसिएशनों एवं फेडरेशन के साथ भी है. संसद में इनके वेतनमानों में सुधार करने की मांग प्रमुख रूप से उठी है.

इस सबसे यह जाहिर हो रहा है कि रेलवे बोर्ड सहित रेलवे के दोनों मान्यताप्राप्त लेबर फेडरेशन भी त्रिशंकु बन गए हैं और असमंजस की स्थिति में हैं. यही वजह है कि जोनल एवं स्थानीय रेल प्रशासन सहित जोनल संगठनों के पदाधिकारी एवं सर्वसामान्य कर्मचारी सब अपना-अपना निष्कर्ष निकाल रहे हंै, जबकि आशंकाओं से कोई भी मुक्त नहीं हो पा रहा है. परंतु सच्चाई यह भी है कि 6वें वेतन आयोग के लागू होने से सरकारी कर्मचारियों का कम सरकार का ज्यादा फायदा हुआ है. इसकी सिफारिशों के मुताबिक मल्टीस्किलिंग एवं विलयनों से कंट्रोलिंग अथॉरिटी यानी जूनियर स्केल अधिकारी (यथा एसीएम, एओएम, एईएन, एएमई, एएसटीई, एएमएम, एएफएम, एईई) को ही मरना है और इनके साथ काम करते-करते विलय (मर्ज) हुए कैडरों के कर्मचारियों को भी शहीद होना है.

महोदय, उपरोक्त तमाम हालात के मद्देनजर रेलकर्मियों ने जो पेंशन सहित 40-45 लाख की एकमुश्त मुक्ति की मांग की है. वह उचित ही जान पड़ती है क्योंकि एक तो वे सब एकदम बिना हीलाहवाली के वहां (घर) चले जाएंगे, जहां धीरे-धीरे सरकार इन्हें भेज रही है. दूसरे वे रिटायरमेंट बाद फ्री पास भी छोडऩे को तैयार हैं. इस तरह दोनों एक-दूसरे से एक साथ हमेशा के लिए और जल्दी छुटकारा पा जाएंगे. अपनी यह बात कहने के लिए रेलकर्मियों ने 'रेलवे समाचार' का जो माध्यम चुना है, वह भी सही है क्योंकि उन्हें नुकसान पहुंचाने वाली 6वें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने-करवाने में जब सरकार सहित लेबर फेडरेशनों ने भी कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है तब एक 'रेलवे समाचार' ही है जो रेल कर्मचारियों की मनोदशा और उनकी कार्य एवं वेतन विसंगतियों को उजागर करके सरकार के समक्ष रख रहा है. इस बात को अब सभी रेल कर्मचारी और अधिकारी बखूबी समझने लगे हैं.

महोदय, इस संदर्भ में हमारा एक सुझाव यह है कि अखिल भारतीय स्तर पर 'रेलवे समाचार' द्वारा 'रेलवे का सामान्य कैडर और उसका भविष्य' विषय पर एक संगोष्ठी (सेमिनार) का आयोजन करवाया जाए ताकि 6वें वेतन आयोग की नुकसानदेह सिफारिशों को रोककर वर्ष 1983 (25 साल) से इन कैडरों की भर्ती पर लगी रोक को हटवाया जा सके. इस तरह इनके कामों की आउटसोर्सिंग करने से रेलवे एवं रेल यात्रियों के जान माल की सुरक्षा-संरक्षा को पैदा हो रहे भारी खतरे से सरकार को आगाह किया जा सकेगा. यदि यह सब नहीं रोका जा सकता है तो यही बेहतर होगा कि 40-45 लाख का एकमुश्त पैकेज देकर इन कैडरों को स्थाई रूप से घर भेज दिया जाए.
-एक रेल कर्मचारी और 'रेलवे
समाचार' का एक नियमित पाठक
मुंबई मंडल, मध्य रेल, मुंबई.

प्रिय अनाम बंधु,
आपका पत्र मिला पढ़कर अच्छा भी लगा कि आपने रेलकर्मियों की मन:स्थिति को काफी अच्छी तरह से समझा और प्रस्तुत किया है. इससे अन्य रेल कर्मचारियों में भी अवश्य जागरूकता आएगी. जहां तक इन कैडरों की समस्याओं, भविष्य एवं वेतन विसंगतियों को लेकर संगोष्ठी या सेमिनार करवाने का आपका सुझाव है तो 'रेलवे समाचार' ने विगत में विभिन्न समस्याओं पर ऐसी संगोष्ठियों का आयोजन करके रेल प्रशासन, रेल कर्मियों और रेल यात्रियों में जागरूकता के साथ-साथ एक समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया है. इन संगोष्ठियों में इंजीनियरिंग, सेफ्टी, सेफ्टी-सिक्योरिटी, विजिलेंस की भूमिका, आपदा प्रबंधक (डिजास्टर मैनेजमेंट), रेलवे में 'रेलवे समाचार' की भूमिका, सार्वजनिक यातायात प्रबंधन आदि महत्वपूर्ण एवं व्यापक विषय शामिल रहे हैं. 'रेलवे समाचार' कैडर आधारित संगोष्ठियों का भी आयोजन करने के लिए तैयार है, यहां तक कि हम यह संगोष्ठियां सभी जोनल अथवा डिवीजनल मुख्यालयों में भी जाकर करेंगे और वहां उभर कर आने वाली विसंगतियों अथवा कमियों को पूर्व की भांति रेल प्रशासन, लेबर फेडरेशनों, एनसी-जेसीएम, एनॉमली कमेटी और सरकार-संसद तक भी हम पहुंचाने की व्यवस्था करेंगे. परंतु इस तरह की संगोष्ठियां किए जाने की ख्वाहिश वास्तव में संबंधित जोनों के कर्मचारियों की तरफ से जब जाहिर की जाएंगी तभी कुछ बात बन पाएगी.
शुभकामनाओं सहित
संपादक
बी. आर. सिंह अस्पताल : एक अनुभव
कुसुममणि त्रिपाठी 'कुसुम'
कोलकाता : बी.आर. सिंह अस्पताल, सियालदह मंडल पूर्व रेलवे का एक प्रतिष्ठित अस्पताल है. इस अस्पताल में एक से बढ़कर एक अच्छे डॉक्टर मौजूद हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र में महारत हासिल किये हुए हैं. मुझे खुशी है कि इस रेलवे अस्पताल में इतने अच्छे डॉक्टर हैं परंतु दु:ख है कि अज्ञानतावश रेलवे कर्मचारी-अधिकारीगण कुकुरमुत्ते की तरह उग आये प्राइवेट नर्सिंग होम में जाते हैं और गलत डाइग्नोसिस से अपनी सेहत और पैसा दोनों बरबाद करते हैं. मुझे यह भी लिखने में कोई संकोच नहीं है कि मैं भी नामी-गिरामी नर्सिंग होम के गलत डाइग्नोसिस का शिकार थी. मुझे पेट में दर्द था. चलने में असुविधा होती थी. दिनांक 5 जून को प्रात: दर्द बढ़ गया और मैं उसी दिन बी. आर. सिंह अस्पताल के केबिन नं. 03 में भर्ती हो गयी. मुझे इस अस्पताल में 13 जून तक रहना पड़ा. मैं डॉ. प्रामाणिक की देखरेख में भर्ती हुई थी. तमाम तरह के खून की जांच, सोनोग्राफी, अल्ट्रासाउन्ड एक्सरे आदि तमाम जांच किये गये और तब असली मर्ज पकड़ में आया. अस्पताल में प्रवास के दौरान मैंने अनुभव किया कि साफ-सफाई का स्तर अच्छा था. विशेष रूप से न्यू केबिन परिसर का रखरखाव काफी उम्दा था. अस्पताल के डॉक्टरों-नर्सों का व्यवहार भी काबिले तारीफ है. डॉ. मिलन मजूमदार, डॉ. शिखा सिंह, डॉ. इन्दिरा झा, डॉ. शर्मिष्ठा मुखर्जी, डॉ. तरुण चौधरी और यहां तक कि डॉक्टरों की एक टीम के साथ एम. डी. डॉ. घोषाल भी मुझे देखने आये. मेरी हौसलाअफजाई की. न्यू-केबिन की नर्सों का व्यवहार भी काफी अच्छा था.
मुझे अस्पताल प्रबंधन से कुछ शिकायतें भी हैं क्योंकि मुझे प्रतिदिन पीने के पानी हेतु 50 से 60 रुपये खर्च करने पड़ते थे. अस्पताल में एक्वागार्ड की व्यवस्था नहीं है. पूछने पर पता चला कि एक-दो मशीनें लगी थीं, जो खराब पड़ी हैं. मरीजों को मंहगी दवायें, दूध, फल, खाना दिया जाता है. इसी के साथ अस्पताल प्रबंधन को पीने के शुद्ध पानी की व्यवस्था भी करनी चाहिए. अस्पताल में केवल न्यू केबिन के 16 कमरों में 34 बेड़ हैं, जो लगभग मरीजों से भरे रहते हैं. ऐसे में एक या दो मेट्रन/नर्स ड्यूटी पर रहती हैं और उनके लिये मरीजों को ठीक से अटेंड करना काफी कठिन होता है. मुझे लगा कि अस्पताल में स्टाफ की भारी कमी है. अस्पताल प्रशासन को इन समस्याओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए.
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समय-सारणी की नियमितता
कोलकाता : मेम्बर ट्रैफिक श्री श्रीप्रकाश की अध्यक्षता में महाप्रबंधक श्री दीपक कृष्ण समेत पूर्व रेलवे के उच्च अधिकारियों की एक बैठक मुख्यालय फेयरली प्लेस में हुई जिसमें गाडिय़ों को समय-सारणी के अनुरूप चलाने एवं यात्रियों की सुरक्षा पर विशेष बल दिया गया. पूर्व रेलवे की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञाप्ति के मुताबिक यातायात सदस्य श्री प्रकाश ने कहा कि ट्रेनों को समय पर खोलने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि ट्रेनों की समय-सारणी को नियमित करने की दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. इसके साथ ही उन्होंने यात्रियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने पर भी जोर दिया. बैठक के उत्तरार्ध में पूर्व रेलवे के महाप्रबंधक श्री दीपक कृष्ण ने रेलवे के पिछले साल के कामकाज की समीक्षा की और अगले साल के लिए लक्ष्य को भी निर्धारित किया. उन्होंने बताया कि वित्तीय वर्ष 2009-10 में आमदनी को बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है.
ऋषि कुमार मिश्रा को 'हिंदी मनस्वी सम्मान'
मुंबई : आगरा, उ।प्र. की दो प्रतिष्ठित संस्थाओं 'हिंदी साहित्य सभा' और 'हरप्रसाद मानव व्यवहार अध्ययन संस्थान' ने मध्य रेलवे के वरिष्ठ अनुभाग अधिकारी/लेखा (एसएसओ/एकाउंट्स) श्री ऋषि कुमार मिश्रा को क्रमश: 'हिंदी मनस्वी सम्मान-२००९' तथा 'राजेंद्रनाथ भार्गव सम्मान' से सम्मानित किया है. श्री मिश्रा को हिंदी मनस्वी सम्मान के साथ 2100 रु. नकद तथा दोनों सम्मानों के साथ सम्मान पत्र एवं शॉल-श्रीफल देकर सम्मानित किया गया. श्री मिश्रा को यह सम्मान हिंदी सेवा के लिए प्रदान किए गये हैं. श्री मिश्रा का 'खाकी मिट्टी' कविता संग्रह प्रकाशित हो चुका है जबकि उनकी गद्य-पद्य साहित्यिक रचनाएं राष्ट्रधर्म, साहित्य अमृत, नवनीत, कादम्बिनी, अक्षरा, साक्षात्कार, पांचजन्य आदि प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लंबे अर्से से लगातार प्रकाशित हो रही हैं. सभी मित्रों एवं शुभचिंतकों ने श्री मिश्रा को इन सम्मानों के लिए बधाई दी है.

सिसौदिया 'सिटीजन फोरम' के उपाध्यक्ष
मुंबई : सीआरएमएस के पूर्व कार्याध्यक्ष श्री जे. वी. एस. सिसौदिया को सिटीजन फोरम ऑन ह्यूमन राइटस फॉर रेलवेमेंस का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है. हाल ही में दिल्ली में फोरम का गठन किया गया है. श्री सिसौदिया को भारतीय रेलवे स्तर पर जोनल एवं मंडल स्तरीय पदाधिकारियों की नियुक्ति और रेलवे में फोरम को विस्तार देने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. श्री सिसौदिया ने बताया कि इस फोरम का मुख्य उद्देश्य रेल कर्मचारियों के मानवाधिकारों की रक्षा करना और उन्हें मानवीय कार्य स्थितियां प्रदान करवाना है. उन्होंने बताया कि फोरम का केंद्रीय कार्यालय नयी दिल्ली में स्थापित किया गया है. फोरम की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के पदाधिकारियों में राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री के. एस. मूर्ति, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री. जे. वी. एस. सिसौदिया, राष्ट्रीय महामंत्री श्री तपन चटर्जी, राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री. के. एस. चौहान (प्रभारी म.रे.)और श्री अजय सिंह (प्रभारी प.रे.) प्रमुख हैं. फोरम के मानद राष्ट्रीय चेयरमैन श्री. एस. के. भट्टाचार्य हैं.
भारतीय रेल मजदूर संघ का अभ्यास वर्ग संपन्न
मुंबई : भारतीय रेल मजदूर संघ द्वारा मध्य रेलवे कर्मचारी संघ एवं पश्चिम रेलवे कर्मचारी परिषद के कार्यकर्ताओं के लिए एक दिवसीय अभ्यास वर्ग कल्याण के सरस्वती विद्यामंदिर सभागार में आयोजित किया गया. अभ्यास वर्ग की अध्यक्षता प.रे.क. परिषद के अध्यक्ष श्री रघुवीर सिंह शिशौदिया ने किया. अभ्यास वर्ग का उद्घाटन भारतीय मजदूर संघ महाराष्ट्र के संगठन मंत्री श्री चंद्रकांत धुमाल ने किया.
चार सत्रों में आयोजित अभ्यास वर्ग में आर्थिक विकास का तीसरा मार्ग, मॉडिफाइड एश्योर्ड कैरियर प्रोग्रेशन स्कीम, (एमएसीपीएस) रेलवे में मजदूर संगठनों का विस्तार, विजन 2012 इत्यादि थे. अपने उद्घाटन भाषण में श्री धुमाल ने संगठन की कार्यपद्धति, आदर्श कार्यकर्ता, भा.रे.म. संघ की मजदूर आंदोलन में भूमिका आदि पर प्रकाश डाला. उन्होंने जोर देकर कहा कि आज जबकि संगठित क्षेत्र लगभग समाप्त होता जा रहा है, मजदूरों का असंगठित क्षेत्र में शोषण हो रहा है, रेलवे में ठेकेदारी प्रथा बढ़ रही है, भा.रे.म. संघ को भी असंगठित मजदूरों के हितार्थ कार्य करना चाहिए.
नासिक से आए हुए श्री डी. अनिल ने देश में मजदूर आंदोलन के विकास क्रम पर विस्तृत व्याख्यान दिया. उन्होंने द्वितीय सत्र में आर्थिक विकास के तीसरे विकल्प पर जोर देते हुए कहा कि साम्यवादी और पूंजीवादी विकास की अवधारणा के विश्व पटल से गायब होने की स्थिति में राष्ट्रवादी आर्थिक विकास की नीति ही तीसरे विकल्प में सफल हो सकती है. इस संदर्भ में उन्होंने स्व. दत्तोपंत ठेंगड़ी द्वारा रखे गए अनेक तर्कों तथा उदाहरणों द्वारा विषय को पुष्ट किया.
एमएसीपीएस द्वारा रेल कर्मचारियों को पदोन्नति व अगले पे ग्रेड में पदस्थापित करने की योजना पर श्री सतीश कुशवाह ने विस्तार से कार्यकर्ताओं की समस्याओं एवं आशंकाओं का समाधान किया. उन्होंने इस नीति के प्रत्येक बिंदु को उदाहरण सहित समझाया. अभ्यास का समापन करते हुए भारतीय रेलवे मजदूर संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री एम. बी. दवे ने 'विजन 2012' का ब्यौरा रखा.
उन्होंने कहा कि वस्तुत: सन 2005 में घोषित विजन 2012 लक्ष्य की तैयारी के लिए 5 वर्षों का समय भारतीय मजदूर संघ ने तय किया था. इस दौरान सभी संगठनों को क्रम व कालबद्ध तरीके से संगठन का विस्तार एवं सशक्तीकरण करना था. अब तक लगभग 90 प्र.श. तैयारी हो चुकी है. इसलिए सन 2012 में आने वाली जिम्मेदारी के संगठन किस प्रकार निर्वाह करेगा, इसकी तैयारी विजन 2012 है. यह तैयारी कार्यकर्ताओं की है, उनकी दक्षता, कार्यकुशलता, नियमों की जानकारी, संवाद, पत्र लेखन व मजदूरों की समस्याओं का निदान आदि किस प्रकार से किया जाए और संपूर्ण उद्योग में अपना संगठन किस प्रकार से अग्रणी रहे, इसका प्रशिक्षण अगले दो वर्षों में दिया जाना है. श्री दवे ने इस पर गहन चिंतन से निकले निष्कर्षों को प्रस्तुत किया.
अभ्यास वर्ग के विभिन्न सत्रों की अध्यक्षता क्रमश: श्री जीवन सिंह अधिकारी, दत्ता गोडबोले, श्री खातू, रत्नाकर वागज ने की. अभ्यास वर्ग का संचालन म.रे.क. संघ के कोषाध्यक्ष डॉ. दिनेश प्रताप सिंह ने किया. प्रास्ताविक श्री विट्ठल गाढवे ने और आभार प्रदर्शन दत्ता गोडबोले ने किया. पूरे दिन दोनों जोनल रेलों के मुंबई मंडल के 94 कार्यकर्ताओं ने अभ्यास वर्ग में भाग लिया. प्रेक्षक के रूप में भा.रे.म. संघ के सहायक महामंत्री श्री मंगेश देशपांडे विशेष रूप से उपस्थित थे. वंदेमातरम के साथ अभ्यासवर्ग का समापन हुआ.
सम्पादकीय

लूट की छूट

आजकल
देश में भ्रष्टाचार पर बहस चल रही है. वह भी सुप्रीम कोर्ट और भारत के मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालकृष्णन द्वारा इसकी शुरुआत एक संगोष्ठी में यह कहकर की गई कि भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों की संपत्ति जब्त कर ली जानी चाहिए. इसके बाद उनकी इस टिप्पणी का पुछल्ला पकड़कर कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने एक कदम और आगे बढ़ाकर कहा कि संविधान का अनुच्छेद 311 हमेशा भ्रष्ट अधिकारियों को दंडित करने में सबसे बड़ी बाधा खड़ी कर रहा है. सरकार एवं न्यायपालिका दोनों के शीर्ष स्तरों पर यह तो माना जा रहा है बल्कि मान लिया गया है कि भ्रष्टाचार को रोकने में कानून की कुछ धाराएं आड़े आ रही हैं. परंतु यह लोग तब चुप क्यों थे, जब केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम में संशोधन करके संयुक्त सचिव एवं उससे ऊपर स्तर के सरकारी अधिकारियों पर कोई भी कार्रवाई करने से पहले सरकार की पूर्व अनुमति लिए जाने का संशोधन किया जा रहा था? यह संशोधन करके सरकार ने उच्च स्तर के महाभ्रष्टाचार को पूरी तरह अभय प्रदान कर दिया था. एक वक्त था जब बेईमानी, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी जैसी एकाध होने वाली हरकतें करने वालों को सर्वसामान्य आदमी नफरत की दृष्टि से देखता था और इनके उजागर होने पर गली मुहल्ले में उसे नजरें नीची करके पूरी शर्मिंदगी के साथ दुबक कर गुजरना पड़ता था. पर राजनीतिक आश्रय ने सरकारी महकमों में फैले भ्रष्टाचार को तो समाज में लगभग मान्यता ही प्रदान करा दी है क्योंकि काफी पहले से यह माना जाने लगा कि सरकारी नौकरी में है तो 'ऊपरी कमाई' तो होगी ही, लेकिन अब इसे संपूर्ण व्यवस्था की विकृति नहीं बल्कि बकायदा एक 'व्यवस्था' ही मान लिया गया है. सामान्य आदमी ने अब यह मान लिया है कि सरकारी अधिकारी न सिर्फ विभिन्न प्रकार के लुटेरों (ठेकेदारों, राजनीतिज्ञों, दलालों) को लूट की खुली छूट दे रहे हैं बल्कि गैंगस्टरों, माफियाओं, अपहरणकर्ताओं की ही भांति बाद में उनसे बकायदे अपना हिस्सा (हफ्ता, महीना, कमीशन, पर्सन्टेज) वसूल रहे हैं. इस तरह यदि देखा जाए तो परोक्ष रूप से इस देश के लुटेरे वास्तव में वे कुछ सरकारी अफसर ही हैं, जो इस देश की जड़ों में मट्ठा डालकर उन्हें खोखला कर रहे हैं. इन्हीं अफसरों ने ही राजनीतिज्ञों को भी भ्रष्टाचार का पाठ पढ़ाया और उनका वरदहस्त हासिल किया है. यहां यह कहना ठीक होगा कि जिस देश की नौकरशाही ईमानदार, कर्मठ और कर्तव्यपरायण होती है, उस देश की तरक्की सुनिश्चित होती है. मगर नौकरशाही का इसी के विपरीत आचरण होने पर उस देश का बंटाधार भी सुनिश्चित होता है. यही इस देश में हो रहा है, जहां न तो नौकरशाही ईमानदार और कर्तव्यपरायण रह गई है न ही राजनेता. इस गठजोड़ ने ही वास्तव में भ्रष्टाचार की इस समस्या को अति विकराल बना दिया है. आज यदि ईमानदार और कर्तव्यपरायण अधिकारी कुछ करना भी चाहते हैं तो लालू, मुलायम, मायावती जैसे तथाकथित राजनेताओं और अशोक गुप्ता, ए.के. मित्तल, ए. के. चंद्रा, बी. डी. राय, अनिल जोशी, अनिल कुमार, नारायणदास जैसे महाभ्रष्ट अधिकारियों का गठजोड़ न उन्हें कुछ करने देता है और न खुद करता है बल्कि उसका उत्पीडऩ बढ़ जाता है.
अब शीर्ष स्तर पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) और केन्द्र सरकार के कानून मंत्री के बयान सुनने के बाद भी देश के आम आदमी के मन में एक पुख्ता आश्वासन पैदा होने के बजाय यह आशंका उपज रही है कि उनके यह बयान कहीं पहाड़ों के बीच प्रतिध्वनित आवाज तो नहीं है, जो वास्तव में सुनने में तो बहुत सुंदर, मनमोहक लगती है, मगर निरुद्देश्य होती है. संविधान की धारा 311 किसी भी सरकारी अधिकारी या राजनेता के खिलाफ कोई भी कानूनी या आपराधिक कार्रवाई शुरू करने से पहले सक्षम प्राधिकारी (एप्रोपिएट अथॉरिटी) से तत्संबंधी पूर्व अनुमति लेने को अनिवार्य बनाती है. इसका उद्देश्य यह था कि निहितस्वार्थी लोगों को जानबूझकर किसी सरकारी अधिकारी को तंग या परेशान करने अथवा सरकारी गतिविधियों में अड़चन पैदा करने से हतोत्साहित किया जा सके. परंतु इसका व्यावहारिक अर्थ यह निकाला गया है कि यदि कोई महाभ्रष्ट सरकारी अफसर उक्त तथाकथित एप्रोपिएट अथॉरिटी को पटाये रखे और उसे भी उसका हिस्सा पहुंचाता रहे तो उनके खिलाफ जांच या कार्रवाई की ऐसी कोई अनुमति वहां से नहीं मिलेगी. और इस तरह उन्हें दिनदहाड़े और सरेआम चौराहे पर खड़े होकर खुली लूट की छूट मिल जाती है. यही तो हो रहा है. रेलवे में भी ऐसे कई मामले हैं. जिनमें कई महाभ्रष्टों के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति रेलवे बोर्ड के सक्षम अधिकारियों ने नहीं दी है और सीबीआई के ऐसे तमाम मांग पत्र रेलवे बोर्ड में धूल खा रहे हैं, परंतु आश्चर्य यह है कि जिन अशोक गुप्ता, पूर्व जीएम/उ.प.रे. के खिलाफ विजिलेंस जांच की अनुमति नहीं दी गई, उन्हीं के खिलाफ सीबीआई छापे की अनुमति दे दी गई, जबकि द.रे. के एक पूर्व जीएम के खिलाफ ठीक ऐसे ही मामलों में आज करीब दो साल बाद भी सीबीआई को रेलवे बोर्ड ने इजाजत देना जरूरी नहीं समझा है, ऐसा क्यों?
अब सीजेआई ने इस कानून और व्यवस्था को बदलने की वकालत की है और कानून मंत्री ने किन मामलों में इजाजत ली जानी चाहिए और किनमें सीधे कार्रवाई शुरू की जा सकती है, इसे संशोधन के जरिए स्पष्ट किए जाने की तरफदारी की है, परंतु ध्यान देने योग्य बात यह है कि यही वह सीजेआई हैं, जिन्हें सनसनीखेज बयान देने और प्रचार में बने रहने की बुरी लत है. अभी कुछ समय पहले जब न्यायपालिका को सूचना अधिकार के तहत लाने और न्यायाधीशों को अपनी सम्पत्ति की सार्वजनिक घोषणा करने पर बहस चल रही थी तब इन्हीं माननीय सीजेआई ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि इससे न्यायाधीशों पर अनावश्यक दबाव पड़ेगा और न्यायिक प्रक्रिया बाधित होगी. परंतु जब कर्नाटक हाईकोर्ट के एक जज ने न सिर्फ एक लेख लिखकर न्यायाधीशों की संपत्ति सार्वजनिक करने की वकालत कर दी बल्कि सभी न्यायाधीशों की तरफ से बोलने के सीजेआई के अधिकार के प्रति सवाल खड़ा कर दिया तो इन्हीं माननीय सीजेआई ने उक्त जज के खिलाफ टिप्पणी करते हुए कहा कि उसे प्रचार पाने की भूख है. यह विरोधाभाष क्यों? अत: स्थिति यह है कि शीर्ष स्तर पर जो लोग निर्णय लेने की स्थिति में हैं, सर्वप्रथम उनके वक्तव्यों में कोई विसंगति नहीं होनी चाहिए और उन्हें इस बात का अहसास होना चाहिए कि अब भारत में भ्रष्टाचार का इलाज फोड़ा नहीं कैंसर समझकर किए जाने की जरूरत आ पड़ी है. यदि यह 'ऑपरेशन' वास्तव में किया जाना है तो नेताओं और सरकारी अफसरों सहित न्यायाधीशों के भी विशेषाधिकारों को अविलंब समाप्त किया जाना चाहिए.
रेल भी हिंदी की तरह देश को जोड़ती है-वर्मा
मुंबई : पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक रवींद्रनाथ वर्मा ने कहा कि जिस तरह रेलगाड़ी देश के विभिन्न प्रदेशों में लोगों को आपस में जोड़ती है, उसी तरह हिंदी भाषा ने भी देश के विभिन्न प्रदेशों के लोगों के बीच भावनात्मक एकता बनाए रखने में हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसलिए रेल और हिंदी का यह अटूट रिश्ता हमारी राष्ट्रीय अस्मिता की गौरवपूर्ण पहचान है. श्री वर्मा ने राजभाषा हिंदी की हीरक जयंती के उपलक्ष्य में पश्चिम रेलवे द्वारा 7 सितंबर से 18 सितंबर तक मनाये गये. राजभाषा पखवाड़े के दौरान हिंदी टिप्पण, लेखन, हिंदी निबंध तथा हिंदी डिक्टेशन प्रतियोगिताएं रखी गईं. राजभाषा अनुभाग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा विभागों में जाकर सभी रेलकर्मियों को राजभाषा हिंदी में कार्य करने के लिए प्रेरित किया गया. बीस हजार शब्द योजना के अंतर्गत हिंदी मेेेें उत्कृष्ट कार्य करने वाले 172 अधिकारियों एवं कर्मचारियों को नकद पुरस्कार किये गये. हिंदी में सर्वश्रेष्ठ कार्य करने वाले प्रधान कार्यालय के भंडार विभाग के अलावा राजकोट मंडल एवं लोअर परेल काखाने का चयन किया गया. स्वरचित हिंदी काव्य पाठ एवं कथावाचन तथा प्रश्न-मंच प्रतियोगिता रखी गई 18 सितम्बर को सम्पूर्ण पखवाड़े के दौरान सम्पन्न प्रतियोगिताओं के विजेताओं को महाप्रबंधक के हाथों पुरस्कृत किया गया.

तायल बने कोंकण रेलवे के प्रबंध निदेशक
मुंबई : 31 अगस्त को श्री अनुराग मिश्रा के रिटायर होने पर कोंकण रेलवे के डायरेक्टर/ऑपरेशन रहे श्री भानु प्रकाश तायल कोंकण रेलवे कार्पोरेशन लि. (केआरसीएल) के प्रबंध निदेशक (एमडी) बन गए हैं. श्री तायल ने करीब ढाई साल पहले बतौर सीओएम कोंकण रेलवे में प्रतिनियुक्ति पर ज्वाइन किया था. मई 2008 से वह इसके डायरेक्टर/ऑपरेशन के पद पर कार्यरत थे. श्री तायल ने कोंकण रेलवे रूट पर 4 नई मेल/एक्स. गाडिय़ां शुरू करवाई जबकि तीन गाडिय़ों के फेरे बढ़ाये और एक गाड़ी का गंतव्य आगे तक बढ़वाया तथा स्थायी तौर पर 4 गाडिय़ों में अतिरिक्त कोच जुड़वाये हैं. 1981 बैच के आईआरटीएस अधिकारी श्री तायल इस पद पर लंबे अर्से तक रह सकते हैं. जब तक कि उनका महाप्रबंधक बनने का अवसर नहीं आता क्योंकि उनका कार्यकाल 31 दिसंबर 2015 तक है. उनके नेतृत्व में कोंकण रेलवे और अधिक प्रगति करेगी, यह कहते हुए उनके तमाम आईआरटीएस साथियों ने उन्हें अपनी शुभकामनाएं दी हैं.
नहीं हुआ है सिद्धू का सेवा विस्तार

मुंबई : उ.प्र. आईपीएस कैडर के श्री बी.एस. सिद्धू ने आईजी/सीएससी/आरपीएफ के तौर पर म.रे. में अपनी प्रतिनियुक्ति का कार्यकाल पूरा कर लिया है, जो कि बताते हैं कि जुलाई में ही समाप्त हो गया है. बताते हैं कि उनकी प्रतिनियुक्ति को अब तक विस्तार नहीं मिला है. प्राप्त जानकारी के अनुसार उनकी प्रतिनियुक्ति के विस्तार संबंधी फाइल रेलमंत्री सेल में पड़ी है. सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय से सीधे उन्हें 6 महीने का विस्तार देने संबंधी संस्तुति की गई है, जबकि नियमानुसार यह संस्तुति सर्वप्रथम रेल मंत्रालय की तरफ की जानी चाहिए थी, जिस पर गृह मंत्रालय को अपनी संस्तुति देनी होती है. परंतु यह प्रॉपर चैनल इस मामले में नहीं अपनाया गया है. बताते हैं कि उन्हें वापस भेजे जाने की संस्तुति म.रे. की तरफ से की गई थी. परंतु अपने उच्च संपर्कों के माध्यम से श्री सिद्धू ने गृह मंत्रालय से अपने सेवा विस्तार संबंधी संस्तुति करा ली है. परंतु रेल मंत्रालय की तरफ से अभी तक उन्हें यह विस्तार नहीं दिया गया है. रेलवे बोर्ड के मेंबर की लापरवाही के कारण यह मामला रेलमंत्री के संज्ञान में नहीं लाया जा रहा है. इससे म.रे. आरपीएफ स्टाफ ने भारी बेचैनी नजर आ रही है. म.रे. आरीएफ स्टाफ का कहना है कि श्री सिद्धू को किसी भी स्थिति में अब आगे प्रतिनियुक्ति विस्तार नहीं दिया जाना चाहिए.

म.रे. आरपीएफ एसोसिएशन में आक्रोश

श्री सिद्धू द्वारा बुरी तरह उत्पीडि़त किए गए म.रे. आरपीएफ एसोसिएशन के पदाधिकारियों और स्टाफ में इस बात को लेकर भारी आक्रोश व्याप्त है कि उनके कार्यालय का आवंटन रद्द करने की साजिश की जा रही है. सूत्रों का कहना है कि 29 अगस्त को सीएससी श्री सिद्धू ने मुलुंड के गणेश मंदिर, जो कि भ्रष्टाचार का एक अड्डï बन गया है, के गणेशोत्सव में आकर यहां बैरक में एसोसिएशन को रेल प्रशासन द्वारा आवंटित किए गए कार्यालय के बारे में जब सिद्धू द्वारा पूछताछ की गई तो उनके एक पिट्ठू एएससी ने उन्हें गलत जानकारी देते हुए बताया कि 'कार्यालय का आवंटन नहीं है, एसोसिएशन ने जबरन वहां कब्जा किया हुआ है.' जबकि उक्त एएससी की बात को तत्काल काटते हुए वहां उपस्थित सीनियर डीएससी ने श्री सिद्धू को बताया कि एसोसिएशन को बकायदे उक्त कार्यालय का आवंटन किया गया है. तब श्री सिद्धू ने कार्यालय आवंटन संबंधी फाइल उनके समक्ष प्रस्तुत किए जाने की बात कही और साथ ही यह भी कहा कि वे उक्त आवंटन को रद्द कर देंगे.
उल्लेखनीय है कि श्री सिद्धू ने अपने इस पिट्ठू एएससी को वलसाड ट्रांसफर होने के बावजूद रोक रखा है. इसकी एसोसिएशन एवं उसके पदाधिकारी विरोधी रवैये से एसोसिएशन के लोग पहले से ही नाराज हैं, क्योंकि सीएससी ने इसी का इस्तेमाल करते हुए एसो. के दो प्रमुख पदाधिकारियों को नौकरी से बर्खास्त किया है, जबकि एक अन्य मंडल पदाधिकारी का बुरी तरह उत्पीडऩ किया गया है. यहां तक कि पदाधिकारियों के ट्रांसफर न किए जाने संबंधी डीजी/बोर्ड के आदेशों पर भी अमल नहीं किया जा रहा है.
कार्यालय का आवंटन रद्द किए जाने संबंधी खबर की भनक लगते ही एसो. के महासचिव श्री एस. आर. रेड्डी ने संपर्क करने पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यदि ऐसा होता है तो वे महाप्रबंधक कार्यालय के समक्ष खुद आमरण अनशन करेंगे. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि यही नहीं यदि सीएससी और उनके चमचों ने ऐसा कोई कदम उठाया तो जो आरपीएफ स्टाफ अब तक चुपचाप धैर्य रखकर उनके उत्पीडऩ को सहन कर रहा है, वह सीएससी के खिलाफ बगावत पर उतर आएगा. श्री रेड्डी ने 26/11 के आतंकी हमले और उसमें सीएससी कार्यालय के नीचे ही मारे गए 57 निर्दोष यात्रियों की अकाल मौत के लिए सीएससी को सीधे जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि यदि सीएससी में तनिक भी स्वाभिमान बचा हो तो उन्हें आईपीएस से तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए.
सीआरपीओए की एजीएम संपन्न
मुंबई : सेंट्रल रेलवे प्रमोटी ऑफीसर्स एसोसिएशन (सीआरपीओए) की सर्वसाधारण वार्षिक सभा (एजीएम) सीएसटी ऑडिटोरियम में शुक्रवार 11 सितंबर को संपन्न हुई. इस अवसर पर इंडियन रेलवे प्रमोटी ऑफीसर्स फेडरेशन (आईआरपीओएफ) के महासचिव श्री जितेंद्र सिंह बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थे. इसके अलावा सीआरपीओए के अध्यक्ष श्री एस. के. कुलश्रेष्ठ, उपाध्यक्ष श्री आर.बी. दीक्षित, महासचिव श्री लक्ष्मीकांत वी. दूदम, कोषाध्यक्ष श्री एस. वी. चारी, सचिव बेन्वोलेंट फंड श्री अब्राहम जॉन, डब्ल्यूआरपीओए के अध्यक्ष श्री वी. के. त्रिपाठी, महासचिव श्री दीपक शेली, आईआरपीओएफ के संगठन सचिव श्री डी. डी. लोलगे आदि सहित बड़ी संख्या में अधिकारीगण एवं मंडलों से आये प्रतिनिधिगण उपस्थित थे.
सभा का संचालन महासचिव श्री दूदम ने किया. इस अवसर पर श्री लोलगे ने प्रस्ताव रखा कि जोनल कमेटी में मंडलों के अध्यक्ष एवं सचिव को पदेन सदस्य बनाया जाना चाहिए. इस पर राष्ट्रीय महासचिव श्री जितेंद्र ङ्क्षसह ने स्पष्ट किया कि यदि 'इरपोफÓ की व्यवस्था पर अमल किया जाए इस प्रस्ताव को तो अमल में लिया जा सकता है, जहां प्रत्येक जोन का महासचिव राष्ट्रीय कार्यकारिणी का पदेन सदस्य है. इसे मान लिया गया. भुसावल मंडल के पदाधिकारी/प्रतिनिधि श्री खरे ने प्रस्ताव रखा कि खर्चे बढ़ गए हैं और 6वें वेतन आयोग की मेहरबानी से अब अधिकारियों के वेतन भी अच्छे हो गए हैं तो सदस्यता शुल्क को 50 रु. से बढ़ाकर 100 रु. करना उचित होगा. श्री खरे के इस प्रस्ताव को तत्काल ध्वनिमत से पारित कर दिया. तथापि इस प्रस्ताव को जोनल कार्यकारिणी और अगली एजीएम या मीटिंग, जिसमें ज्यादातर अधिकारी उपस्थित हों, में रखकर अंतिम तौर पर पारित करने की बात की गई.
इसके बाद श्री त्रिपाठी, श्री शैली और श्री कुलश्रेष्ठ ने भी अपने विचार व्यक्त किए. जुलाई में हुई इरपोफ की चुनावी एजीएम के दौरान मिले सहयोग के लिए श्री दूदम ने प.रे. के पदाधिकारियों के सहयोग की सराहना की. तत्पश्चात कार्यकारिणी के चुनाव के लिए बतौर चुनाव पर्यवेक्षक श्री दीपक शैली की नियुक्ति की गई. इस प्रक्रिया में सर्वश्री एस. एस. तोमर, वी. चंद्रशेखर, एस. के. कुलश्रेष्ठ, एस. के. गर्ग, आर. जे. सिंह, एन. के. अग्रवाल, एल. वी. दूदम, अब्राहम जॉन, सी.एम. तिवारी, डी.एस. बंसल, आर.पी. पोद्दार, एस. जे. चौहान, आर.बी. दीक्षित, सुरेश सक्सेना, बलबीर सिंह, एम. के. गोयल, आर.बी. बरकड़े, विलियम कोशी, महमूद अहमद, संजय निगम विभागीय प्रतिनिधि के रूप में सर्वसम्मति से चुने गए. प्रत्येक विभाग से चुने गए उपरोक्त दो-दो प्रतिनिधि बाद में अध्यक्ष, महासचिव एवं अन्य पदाधिकारियों का चुनाव करेंगे, जिसकी घोषणा बाद में की जाएगी
इस अवसर पर अपने संबोधन में मुख्य अतिथ श्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि बेन्वोलेंट फंड में यह प्रस्ताव तय किया गया है कि ए$क बार जो अधिकारी 2500 रु. (नॉन रिफंडेबल) देकर सदस्य बनेगा और जो पूर्व सदस्य हैं वह यदि 31 दिसंबर तक 1500 रु. की और भरपाई कर देंगे तो उनके साथ हुई किसी दर्दनाक दुर्घटना पर उनके परिवार को एकमुश्त 1 लाख रु. की तत्काल नकद सहयोग राशि उपलब्ध कराई जाएगी. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जो अधिकारीगण 1000 रु. की ही सदस्यता में रहेंगे, उन्हें 20,000 रु. की मदद पहुंचाई जाएगी. श्री सिंह ने इसके अलावा विभिन्न विभागों की डीपीसी पोजीशन और बोर्ड स्तर पर फेडरेशन की गतिविधियों की विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने उपस्थित जोनल पदाधिकारियों/अधिकारियों से जोनल प्रशासन के साथ औद्योगिक संबंधों को प्रगाढ़ बनाकर आपसी संबंधों को बढ़ावा देने की अपील की. अंत में श्री बरकड़े ने सभी उपस्थितों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन किया. तत्पश्चात रात्रिभोज के बाद सभा समाप्त हुई.
एनईआर ने शुरू किया ई-प्रोकरमेंट

गोरखपुर : पूर्वोत्तर रेलवे (एनईआर) स्टोर्स डिपाटरमेंट ने महाप्रबंधक श्री यू.सी.डी. श्रेणी के नेतृत्व में संपूर्ण टेंडर सिस्टम का आधुनिकीकरण करते हुए न सिर्फ समय की बचत की है बल्कि इससे सालाना करोड़ों रु. की भी बचत होगी. जुलाई 2009 से एनईआर ने ई-प्रोकरमेंट की शुरुआत कर दी है. जुलाई 2005 से पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चल रहे इस कार्य को अंतिम रूप दिया गया. नवंबर 2008 में उ.रे. ने शत-प्रतिशत ई-टेंडरिंग की सर्वप्रथम शुरुआत की थी. जनवरी 2009 में एनईआर सहित अन्य 8 रेलों को ई-प्रोकरमेंट सिस्टम (ईपीएस) शुरू करने का निर्देश रेलवे बोर्ड द्वारा दिया गया था. एनईआर ने इस दरम्यान अपने एकाउंट्स एवं स्टोर्स कर्मचारियों को ईपीएस के लिए प्रशिक्षित किया. इसके साथ ही वेंडर्स/सप्लायर्स को भी इसकी पर्याप्त जानकारी मुहैया कराई गई.
तत्पश्चात 5 मई 2009 में पहला लिमिटेड टेंडर इसके माध्यम से खोला गया. तब से अब तक ईपीएस के माध्यम से करीब 200 से ज्यादा टेंडर खोले जा चुके हैं. सीओएस कार्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार टेंडर ओपनिंग में जहां परंपरागत रूप से 15 दिन का समय लगता था वहीं ईपीएस में मात्र 1 दिन लगने लगा है. जिससे पूरे 14 दिन के समय की बचत हुई है. सप्लायर्स की मैनुअल टेंडरिंग की अपेक्षा ईपीएस माध्यमों में 50 प्र.श. लागत की बचत हुई है. ई-टेंडरिंग के समय किसी वेंडर की व्यक्तिगत उपस्थित की जरूरत नहीं रह गई है. टेंडरों के विज्ञापन खर्च की भी सालाना करोड़ों की बचत होगी. टेंडर डिस्पैच में जहां मैनुअली 2 से 10 दिन का कुल समय लगता था. वहीं यह अब उसी दिन होने लगा है. इससे 8-9 दिन का समय बच गया है. टेंडर बुलेटिन प्रकाशित करने और उन्हें वेंडर्स को भेजने का भी खर्च बच गया है. इसके अलावा टेंडर्स ओपनिंग नंबरिंग, सर्किलिंग एवं अन्य गतिविधियों के लिए बड़ी संख्या में स्टाफ की जरूरत खत्म हो गई है.
इससे टेंडर सेक्शन के स्टाफ में करीब 8 कर्मचारियों की कमी की जा सकती है. इससे सालाना करीब 25 से 30 लाख रु. की बचत होगी. डाक से वेंडर्स को टेंडर भेजे जाने की जरूरत खत्म हो गई है, जिससे सालाना करीब 10 लाख की बचत होगी. वर्ष 2008-09 में ही एनईआर ने इस मद में करीब 6 लाख की बचत कर ली है. ईपीएस से सालाना लाखों की स्टेशनरी बचेगी. इसके साथ ही प्रत्येक टेंडर/कोटेशन को ओपन करने दो-दो बार नंबरिंग करने फिर एक्जामिनेशन, सर्किलिंग और साइन करने, टेंडर डाक्यूमेंट्स को तैयार करने और उनकी बिक्री से भी पूरी तरह निजात मिल गई है.
इसके अलावा ईपीएस से टेंडर मेनीपुलेशंस, कार्टेलिंग आदि भी समाप्त होगी तथा पर्याप्त पारदर्शिता आएगी, ऐसी उम्मीद है. 4 अगस्त को महाप्रबंधक श्री श्रेणी ने स्टोर्स डिपार्टमेंट का सघन निरीक्षण किया. इस अवसर पर सीओएस श्री एम. के. सुराना एवं अन्य स्टोर्स अधिकारी तथा पीएचओडी उनके साथ थे. एनईआर द्वारा सालाना करीब 350 करोड़ रु. की स्टोर्स खरीद की जाती है. निरीक्षण के दौरान श्री श्रेणी ने स्टोर्स डिपार्टमेंट की इस ईपीएस उपलब्धि पर उसके कर्मचारियों को 10 हजार रु. का नकद पुरस्कार प्रदान किया. इसके साथ ही उन्होंने इंजी., इले. एसएंडटी और एकाउंट्स विभागों को भी 5-5 हजार रु. के प्रोत्साहन पुरस्कार प्रदान किए. श्री श्रेणी ने इस अवसर पर श्री सुराना, डिप्टी सीएमएम श्री अमित दुबे सहित ईपीएस प्रक्रिया से जुड़े रहे सभी कर्मचारियों एवं अधिकारियों की तारीफ की. जबकि सभी अधिकारियों ने ईपीएस की शुरुआत के लिए श्री श्रेणी के मार्गदर्शन को महत्व दिया है.
इंजीनियर्स डे मनाया गया
मुंबई : भारतरत्न सर डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के 148वें जन्म दिवस के अवसर पर ऑल इंडिया रेलवे इंजीनियर्स फेडरेशन से संबद्ध सेंट्रल रेलवे इंजीनियर्स एसोसिएशन (सीआरईए) और वेस्टर्न रेलवे इंजीनियर्स एसोसिएशन (डब्ल्यूआरईए) के संयुक्त तत्वावधान में सीएसटी ऑडिटोरियम में 15 सितंबर को हर साल की भांति 'इंजीनियर्स डे' एवं सेफ्टी सेमिनार का आयोजन किया गया. इस अवसर पर मुख्य अतिथि म.रे. के सीएमई श्री रंजीत खोसला और सम्माननीय अतिथि सीएसओ श्री एम. एस. शर्मा सहित सीआरएसई श्री एस. सी. त्रिवेदी, सीनियर डीएमई/कोचिंग श्री बृजेश दीक्षित आदि गणमान्य अधिकारी और एआईआरईफ के मुख्य सलाहकार ए. एस. तिवारी, वरिष्ठ उपाध्यक्ष मनोज पांडेय, सीआरईए के अध्यक्ष टी. के. मारगाये, मंडल अध्यक्ष टी.पी. सिंह आदि बड़ी संख्या में सबॉर्डिनेट इंजीनियर उपस्थित थे.
सेफ्टी सेमिनार का संचालन इंजी. जे.के. सिंह ने किया. इस अवसर पर कई वक्ताओं ने सेफ्टी से संबंधित अपने प्रत्यक्ष अनुभव बताए. लगभग सभी वक्ताओं के वक्तव्य में सेफ्टी के प्रति गहन चिंता व्यक्त की गई. फेडरेशन के पूर्व सलाहकार और संगठन से लगातार जुड़े सीआरएमएस के पूर्व कार्याध्यक्ष श्री जेवीएस शिशौदिया ने अपने बहुत नपे-तुले वक्तव्य में उपस्थित इंजीनियरों का हर दृष्टिकोण से मार्गदर्शन किया. हमेशा की भांति इंजी. ए.एस. तिवारी का भाषण बार-बार पटरी से उतरता रहा. सभी वक्ताओं ने सुरक्षा और समय पालन पर संरक्षा (सेफ्टी) को वरीयता दिए जाने की बात कही.
सम्मानीय अतिथि सीएसओ श्री एम. एस. शर्मा ने कहा कि इंजीनियरों को संतोष एवं धैर्य से काम लेना चाहिए. कमियां हो सकती हैं और कमियां हैं, इसीलिए तो प्रगति है. यदि कमियां नहीं होंगी तो प्रगति कैसे होगी. उन्होंने कहा कि पहले की अपेक्षा काफी सुधार हुआ है और आगे भी होगा. यह एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है. उन्होंने सेफ्टी के प्रति जागरूकता के लिए सभी सबॉर्डिनेट इंजीनियरों की तारीफ की. मुख्य अतिथि सीएमई श्री रंजीत खोसला ने अपने गहन और दीर्घ अनुभव एवं गरिमा के अनुसार इंजीनियरों को संबोधित किया. उन्होंने विभिन्न वक्ताओं द्वारा मैन, मटीरियल, मैनेजमेंट संबंधी उठाए गए तमाम मुद्दों का सटीक समाधान किया. करीब आधे घंटे से भी ज्यादा चले उनके उदाहरण सहित वक्तव्य को सभी इंजीनियरों ने तन्मयता के साथ सुना.