Tuesday 23 September, 2008

एलडीसीई की कापियां जप्त

गोरखपुर : पूर्वोत्तर रेलवे की गत दिनों हुई इंजीनियरिंग की एलडीसीई की कापियां विजिलेंस ने शुक्रवार, १९ सितम्बर को अपने कब्जे में ले ली हैं। विजिलेंस की यह कार्रवाई 'रेलवे समाचार' के पिछले अंक में इसकी विस्तृत ख़बर छपने के बाद हुई है। इससे पहले जब इसमें तमाम गडबडियां होने के जानकारी विजिलेंस को दी गई थी तब उसके कान में जूं नहीं रेंगी थी।

फर्जी चेक घोटाले में ११ गिरफ्तार

गोरखपुर : पूर्वोत्तर रेलवे में गत दिनों हुए १८ करोड़ के फर्जी चेक घोटाले में सीबीआई ने अब तक ११ लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। यह घोटालेबाज दिल्ली, गोंडा, इज्जत नगर आदि शहरों से पकडे गए हैं। ज्यादा जानकारी का इन्तजार है।

तथाकथित ईमानदारी की मिसाल हैं असित चतुर्वेदी

नई दिल्ली : श्री असित चतुर्वेदी वर्तमान में रेलवे बोर्ड में एडिशनल मेंबर सी एंड आईएस हैं। इससे पहले वे डीआरएम्/बिलासपुर और आईआरआईटीईएम्/लखनऊ के प्रिंसिपल रह चुके हैं। सन २००३ से २००५ तक वे एसडीजीएम्(सीवीओ)/एसईआर भी रहे हैं। इस दौरान उन्होंने करीब १०० से ज्यादा ईमानदार अधिकारियों की जिंदगी बरबाद की थी। अगर ये किसी से नाराज हो जाते अथवा कोई इनकी अनुचित मांगे पूरी नहीं करता था तो ये उस अधिकारी का नाम विजिलेंस में दर्ज करा देते थे। यदि और कुछ नहीं कर पाते थे तो ये उस अधिकारी का नाम एग्रीड लिस्ट में डलवा देते थे जिससे इनकी मनसा उस अधिकारी के खिलाफ अपनी खुन्नस निकालने की पूरी हो जाती थी।
इस तरह से श्री चतुर्वेदी जी ने करीब १०० से अधिक रेल अधिकारियों का कैरियर ख़राब किया था। परन्तु आज वे सभी लगभग बेदाग़ छुट गए हैं। क्योंकि जांच में उनके खिलाफ कुछ नहीं पाया गया है। मगर इस दौरान उन सभी को जिस मानसिक क्लेश और पदोन्नति के अवसर गंवाने का जो दर्द झेलना पड़ा, उसके लिए कौन जिम्मेदार है?
श्री चतुर्वेदी जी को किसी अधिकारी के खिलाफ कोई 'जेनुइन' शिकायत की जरुरत नहीं होती थी। क्योंकि वह ख़ुद किसी पानवाले, मिठाईवाले, ठेलावाले इत्यादि लोगों को बुलाकर उससे बनावटी (फर्जी) शिकायत लिखवा लेते थे। वे अपने शिकार के ख़िलाफ़ बड़े से बड़ा झूठ और सरासर निराधार रिपोर्ट तैयार करके रेलवे बोर्ड को भेजते थे और रे. बो. की विजिलेंस बांच उसकी बिना कोई जांच - पड़ताल किए ही सम्बंधित अधिकारी का नाम एग्रीड लिस्ट में डलवा देती थी। चतुर्वेदी जी अक्सर अपनी रिपोर्ट में 'सोर्स इन्फार्मेशन - इनसाइड इन्फार्मेशन' इत्यादि का उल्लेख करते थे, जो की पूरी तरह निराधार अथवा बेबुनियाद होती थी।
चतुर्वेदी जी का डीआरएम् /बिलासपुर का कार्यकाल सिर्फ़ १४ महीने में खत्म कर दिया गया था क्योंकि उनके खिलाफ रेलवे बोर्ड में शिकायतों का अम्बार लग गया था। बिलासपुर मंडल के सभी अधिकारी और कर्मचारी इनसे पूरी तरह असंतुष्ट थे और लगभग सभी ब्रांच अधिकारी इनके खिलाफ रेलवे बोर्ड को शिकायत कर चुके थे। इसीलिए जब चतुर्वेदी जी एसडीजीएम्/एसईआर की पोस्ट संभाली थी तो सबसे पहले बिलासपुर मंडल के ही सारे अधिकारियों के खिलाफ ही विजिलेंस की फाईलें खुलवाई थीं।
शायद यही कारण था की उन्हें आज तक kisi railway mein सीओएम् और सीसीएम् नहीं बनाया गया। अब यह रेलवे को सोचना चाहिए की ऐसे रुग्ण दिमाग वाले व्यक्ति को बोर्ड ki किसी महत्वपूर्ण पोस्ट पर रखकर रेल अधिकारियों अरु कर्मचारियों में असंतोष फैलाना कहाँ तक जायज है ?
मजे की बात यह है की चतुर्वेदी जी बीच - बीच में दक्षिण पूर्व रेलवे के जाने माने बेईमान अधिकारियों का अच्छा चरित्र प्रमाण पत्र बनाकर रेलवे बोर्ड को भेजा करते थे और ऐसे अधिकारियों को वह अपने संरक्षण में रखते थे। चतुर्वेदी जी की ईमानदारी की सबसे बढ़िया मिसाल यह है की जब वह बिलासपुर मंडल के डीआरएम् थे तब उन्होंने अपनी श्रीमती जी द्वारा चलाये जा rahe ek private स्कूल को १० लाख से ज्यादा का अनुदान दिलवाया था और तमाम बाहरी लोगों को करीब ६ लाख का खाना railway कैटरिंग से खिलवाया था। इस बारे में रेलवे बोर्ड में लिखित शिकायत दर्ज है लेकिन विजिलेंस में पूर्व पोस्टिंग के कारण चतुर्वेदी जी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं को रही है।
चतुर्वेदी जी की ईमानदारी का नाटक बिलासपुर में इस हद तक पहुँच गया था की निरीक्षण के दौरान यदि शिष्टाचार के नाते किसी स्टेशन मास्टर ने अगर इन्हें चाय मांगा कर पिलाई तो यह उसे अपमानित करते थे और बाद में पत्र लिखकर उससे चाय की रसीद मंगाते थे। मेट्रो रेलवे कोल्कता में पोस्टिंग के दौरान उन्हें अपने इसी 'खब्ती आचरण' के कारण दो बार कर्मचारियों से अपमानित भी होना पडा था।
यहाँ यह विचार करने की जरुरत है की जिन अधिकारियों को श्री चतुर्वेदी की इस बीमार मानसिकता के कारण लंबे समय तक मानसिक क्लेश झेलना पडा क्या रेलवे बोर्ड और रेलमंत्री उनको न्याय दिलाने के लिए श्री चतुर्वेदी के ख़िलाफ़ कोई कठोर कार्रवाई की क्षमता रखते हैं ?
आई आर टी एस अधिकारियों में चतुर्वेदी जी इतने कुख्यात राहे हैं की कोल्कता में लंबे समय तक इनकी पोस्टिंग के दौरान इन्हें न तो कोई अधिकारी अपने घर बुलाता था न ही इनसे कोई बात करता था यानी यह वहां पूरी तरह अलग - थलग पड़ गए थे क्योंकि सभी अधिकारियों ने इनका बायकाट कर रखा था।
अधिकारियों का कहना है की बीमार मानसिकता के इस अधिकारी को रेलवे से turant पदमुक्त करके इनके द्वारा बनाए गए झूठे, निराधार और बनावटी विजिलेंस maamalon की jaldi se जांच पड़ताल करके सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को न्याय दिया जाना चाहिए।

Thursday 18 September, 2008

चड्ढा को मिली जमानत

गोरखपुर : पूर्वोत्तर रेलवे के सेक्स रैकेट में स्थानीय व्यापारी धर्मेन्द्र सिंह चड्ढा को शुक्रवार, १२ सितम्बर को हाई कार्ट इलाहाबाद से जमानत मिल गई है। जमानत पाने वाले चड्ढा एकमात्र आरोपी हैं। अन्य किसी की भी जमानत नहीं हो पायी है।

डीएलडबल्यू में डेमेज कंट्रोल की कोशिश शुरू, कई टेंडर रुके

सीडीई/डीएलडबल्यू अनूप कुमार के लिए बनाई जा रही है एक्स्ट्रा पोस्ट।
ट्रांसफर के बावजूद बिलासपुर नहीं चाहते हैं अनूप कुमार।
एसईसीआर/बिलासपुर से आए विवेक कुमार ने बतौर सीडीई ज्वाइन किया डीएलडबल्यू में।
डीएलडबल्यू के जीएम्, सीएम्ई, सीडीई खिला रहे हैं कंपनी के वाइस प्रेसीडेंट को अपने घरों में दावतें।
चोरों को चोर ही बता रहे हैं चोरी से बचने के रास्ते।

सारा भुगतान किया EMD और NEI को।

Tuesday 16 September, 2008

परेल रेलवे ग्राउंड में अवैध कब्जों को आरपीऍफ़ का संरक्षण

मुंबई : सेंट्रल रेलवे मेकेनिकल वर्कशॉप, परेल के रेलवे ग्राउंड में आरपीऍफ़ द्वारा अवैध कब्जों को संरक्षण दिया जा रहा है और रेल प्रशासन इसकी लगातार अनदेखी कर रहा है। परेल ग्राउंड पर बने अवैध स्वामी समर्थ मन्दिर और श्री स्वामी समर्थ सेवा मंडल एवं अन्य अवैध कब्जों को अवैध रूप से पानी बिजली की सप्लाई से रेलवे को सालाना लाखों रुपये का नुक्सान हो रहा है। इन अवैध कब्जों और मन्दिर में महीने के लाखों रुपये के चढावे से यहाँ के आरपीऍफ़ इंसपेक्टर को लाखों रुपये का हफ्ता मिलता है, इस बात की लिखित रूप से एक शिकायत वर्कशॉप के एक टेक्नीशियन जोसेफ अलेक्स थॉमस ने 'रेलवे समाचार' को भेजे गए एक पत्र में की है। श्री थॉमस ने लिखा है की यहाँ इन अवैध कब्जों से कुछ बाहरी असामाजिक तत्त्व अब तक करोड़पति बन गए हैं। उन्होंने लिखा है की कई बार इन अवैध कब्जों के बारे में कई स्थानीय दैनिक अखबारों में ख़बर छपने और यहाँ की सीनियर दीएम्ओ द्वारा लिखे जाने के बाद अपनी जांच रिपोर्ट में यहाँ के आरपीऍफ़ इंसपेक्टर ने लिख दिया की यहाँ कोई अवैध मन्दिर अथवा अवैध कब्जे नहीं हैं, श्री थॉमस ने इस जांच रिपोर्ट की जांच कराये जाने की मांग की है। उन्होंने लिखा है की वर्कशॉप के कमरों में भी इन असामाजिक तत्त्वों का कब्जा है। उन्होंने परेल ग्राउंड और इंस्टिट्यूट आदि को किराए पर दिए जाने के मामलों की भी जांच कराये जाने की मांग की है क्योंकि इनमें भी लाखों रुपये की हेराफेरी हो रही होने की आशंका उन्होंने जतायी है।

जीएम्/एससीआर के साथ जनप्रतिनिधियों की बदसलूकी

सिकंदराबाद : दक्षिण मध्य रेलवे के मुख्यालय 'रेल निलयम' स्थित महाप्रबंधक कार्यालय में घुसकर स्थानीय सांसद सर्वे सत्यनारायण और उनके समर्थकों ने जी एम् श्री एच के पाधी के साथ बदसलूकी की है। इसकी जितनी भर्त्सना की जाए कम होगी। यदि जनप्रतिनिधि ही इस तरह की लुच्चाई पर उतर आयेंगे तो महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के लोगों से क्या उम्मीद की जा सकती है ? पता चला है की एक रेलवे प्लाट से अवैध कब्जे हटाये जाने से सांसद को ऐतराज था क्योंकि उससे उनका वोट बैंक जुडा हुआ है। 'रेलवे समाचार' राजनीतिक लोगों की सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के साथ ऐसी किसी भी तरह की बदसलूकी की कड़ी भर्त्सना करता है। ऍफ़आरओऐ ने इस घटना की निंदा की है और एससीआर के सभी अधिकारियों ने एक मीटिंग बुलाकर इस घटना के ख़िलाफ़ निंदा प्रस्ताव पास किया है जबकि श्री पाधी ने इस मामले में मुख्यमंत्री से मुलाक़ात करके उन्हें सारी वस्तुस्थिति से अवगत करा दिया है।

मीना ने माँगा वी आर एस

इलाहाबाद : उत्तर मध्य रेलवे के पूर्व सीसीएम् और वर्त्तमान सीओएम् श्री मीना ने वीआरएस माँगा है। पता चला है की श्री मीना को उत्तर पश्चिम रेलवे जयपुर में पोस्टिंग नहीं मिलने से उन्होंने यह कदम उठाया है। ज्ञातव्य है की गुर्जर आन्दोलन के कारण श्री मीना के बेटे ने राजस्थान सरकार से इस्तीफा दे दिया था और उनकी एक बेटी सांसद भी हैं। बताते हैं की भाजपा से नजदीकी के कारण कुछ राजनीतिक लोग श्री मीना की एनडबल्यूआर में पोस्टिंग के ख़िलाफ़ थे, इसी वजह से उन्हें जयपुर नहीं जाने दिया गया।

Friday 12 September, 2008

पूर्वोत्तर रेलवे की इंजीनियरिंग की एलडीसीई पर कैट का स्थगनादेश

पूर्वोत्तर रेलवे की इंजीनियरिंग की एल डी सी ई पर कैट ने स्थगनादेश दे दिया है। यह स्थगनादेश सुपर्वाइजर्स ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट इंस्त्रक्टार्स डी सी श्रीवास्तव की एक याचिका पर कैट ने दिया है। श्रीवास्तव ने उन्हें एल डी सी ई की लिखित परीक्षा के लिए spare नहीं किए जाने पर कैट का दरवाजा ख़त खटाया था। पता चला है की प्रशासन ने हाल ही में उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी करके पूछा था की वे लिखित परीक्षा में शामिल क्यों नहीं हुए। इस पर श्रीवास्तव ने प्रशासन से पूछा की वह उन्हें स्पेयर करने का लेटर बता दे की कब उन्हें इसके लिए स्पेयर किया गया था। पता हो की आधे से jyaadaa एस सी / एस टी कर्मचारियों को परीक्षा पूर्व ट्रेनिंग के लिए स्पेयर नहीं किया गया था। यहाँ तक की इज्ज़त नगर मंडल के एक देपुटी सी ई/सी ने लिखित रूप से एस सी / एस टी कर्मचारियों को ट्रेनिग के लिए स्पेयर करने से मना कर दिया था। इसका प्रमाण 'रेलवे समाचार' के पास उक्त देपुटी सी ई/सी के द्वारा लिखे गए लेटर के रूप में उपलब्ध है। पता चला है की प्रशासन जल्दी से जल्दी इस एल डी सी ई का परिणाम अमल में लाना चाहता था परन्तु श्रीवास्तव द्वारा लाये गए स्थगनादेश ने उसके मंसूबों पर अब पानी फेर दिया है।

पूर्वोत्तर रेलवे के सेक्स रैकेट के सभी आरोपियों की जमानत याचिकाएँ खारिज कर दी हाई कोर्ट ने

पूर्वोत्तर रेलवे में अप्रैल माह में हुए सेक्स रैकेट के मुख्य आरोपी ज्ञान प्रकाश श्रीवास्तव उर्फ़ जीपीएस सहित सीई/सी आर के मेहता, व्यापारी चड्ढा, एक लिनन क्लीनर आदि सभी आरोपियों की जमानत याचिकाएँ इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आज दि १२ सितम्बर को खारिज कर दीं। इससे सभी आरोपी एक बार फ़िर से निराशा के गर्त में समा गए हैं क्योंकि पिछले करीब ६ महीने से वे सब बड़ी शिद्दत से इसकी आशा लगाये बैठे थे। उन्हें हाई कोर्ट से बड़ी उम्मीद थी की वहाँ से उन्हें जरुर जमानत मिल जायेंगी मगर हाई कोर्ट ने भी उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है, अब उनके पास सुप्रीम कोर्ट जाने के सिवा कोई चारा नहीं बचा है। ज्ञातव्य है की निचली अदालतों से उनकी जमानतें पहले ही खारिज हो चुकी हैं।

Tuesday 9 September, 2008

सेक्स रैकेट के सरगना जीपीएस की बीवी भगोड़ी घोषित

पूर्वोत्तर रेलवे के बदनाम वेलफेयर इंसपेक्टर ज्ञान प्रकाश श्रीवास्तव उर्फ़ जीपीएस की बीवी शोभा रानी श्रीवास्तव को अदालत ने भगोड़ी घोषित कर दिया है और उसके ख़िलाफ़ सीआरपीसी की धारा ८२/८३ की कार्रवाई शुरू करने के आदेश दे दिए हैं।
धारा ८२ के तहत भगोड़ा या फरार घोषित किया जाता है जबकि धारा ८३ के तहत सम्बंधित आरोपी की संपत्ति की कुर्की के आदेश होते हैं। ये दोनों कार्रवाइयां एक साथ शोभा रानी की 'शोभा' बढ़ाने की खातिर की गई हैं।
शोभा रानी के साथ ही उनके महान पतिदेव 'श्री जीपीएस' की रखैल 'ज्योति रानी' को भी अदालत ने धारा ८२ के तहत ही फरार घोषित कर दिया है। बताया जाता है की 'ज्योति रानी' नेपाल भाग गई हैं, इसीलिए किसी की पकड़ में नहीं आ रही हैं।
उधर 'श्री जीपीएस' के साथ ही इस सेक्स रैकेट में कथित रूप से शामिल सभी आरोपियों की अब तक जमानत नहीं हो पायी है।

Thursday 4 September, 2008

पूर्वोत्तर रेलवे में १५ करोड़ से ज्यादा का घपला उजागर

पूर्वोत्तर रेलवे, गोरखपुर में डुप्लीकेट चेकों का करीब १५ करोड़ रुपये से ज्यादा का घपला उजागर हुआ है। पता चला है कि जिस सीरीज के चेक पूर्वोत्तर रेलवे एकाउन्ट्स विभाग से जारी ही नहीं हुए थे उन सीरीज के डुप्लीकेट माइकर चेक बाहर बना लिए गए थे। इनमें से करीब २२ चेक भुना लिए जाने की आशंका व्यक्त की जा रही है। इनमें से प्रत्येक चेक ८५ लाख का बताया जा रहा है।
जैसे मान लें कि चेक नम्बर ०००७५१ से ००८०० सीरीज के चेक तो अभी तक निर्माण संगठन, पूर्वोत्तर रेलवे के पास ही हैं मगर इन नंबरों के डुप्लीकेट चेक बाहर से छाप लिए गए जिनमें से चेक नम्बर ०००७५१ से ०००७७२ तक के चेक बैंक के पास भुनाने के लिए भेजे गए थे, इनमें से ७ चेक आनर होकर पूर्वोत्तर रेलवे के पास आए हैं, इसमें से अन्तिम चेक ०००७७२ नम्बर का है जो की ८५ लाख का बताया गया है, जिससे रेलवे का यह अनुमान है कि कुल २२ चेक अब तक भुनाए जा चुके होंगे।
बताया जाता है कि इन डुप्लीकेट चेकों में दो लेखाधिकारियों - अशोक कुमार पाठक और हरी शंकर महतो, दोनों सीनियर ऐऍफ़ऐ, जो अब निर्माण संगठन से ट्रांसफर होकर हेड क्वार्टर में पोस्टेड हैं, के हस्ताक्षर हैं। ऐसा लगता है की पूर्वोत्तर रेलवे घपलों और विवादों की रेलवे बन कर रह गई है....?
बताते हैं की इस फोर्जरी की जानकारी मिलने पर जीएम् ने ऍफ़ऐ एंड सीऐओ को इस विभागीय लापरवाही के लिए खूब लताड़ लगाई थी।
पता चला है की शनिवार ६ सितम्बर को सीबीआई और रिजर्व बैंक के दिल्ली से आए अधिकारी तत्सम्बन्धी सभी फाइलों सहित उपरोक्त दोनों अधिकारीयों के नमूना हस्ताक्षर, बयान और साथ ही ऍफ़ऐ एंड सीऐओ श्री विजेंद्र कुमार के भी बयान ले गए हैं।
बताया जाता है की डुप्लीकेट चेक में भाषा सम्बन्धी कई गलतियाँ हैं, जैसे Axis Bank को exis bank लिखा गया है।
इसके अलावा ये माइकर चेक रेलवे को रिजर्व बैंक द्वारा सप्लाई किए जाते हैं और बिना रिजर्व बैंक के कर्मचारियों की मिलीभगत के ऐसे चेक बाहर या सिक्योरिटी प्रेस में प्रिंट कर पाना बिल्कुल असंभव है। ऐसा हमारे सूत्रों का कहना है। सूत्रों का कहना है की जो कवरिंग लेटर बनाया गया है वैसा लेटर रेलवे द्वारा कभी जारी ही नहीं किया जाता है।
बहारहाल इस फोर्जरी की घटना से पूर्वोत्तर रेलवे में एक बार फ़िर हड़कंप मचा हुआ है.

Wednesday 3 September, 2008

पश्चिम रेलवे के कामचलाऊ एसडीजीएम् का कारनामा

नियमों की मनचाही व्याख्या करके और दो -दो मेजर पेनाल्टी विजिलेंस केस
पेंडिंग होने के बावजूद आरोपी कर्मचारी को किया गया ग्रुप 'बी' में पदोन्नत.
महाप्रबंधक को ग़लत जानकारी देकर किया गया गुमराह.
कार्यकारी एसडीजीएम्, सीसीएम् की संदिग्ध भूमिका.
संबंधित आरोपी की कर्मचारी की संदिग्ध पदोन्नति में निहित भ्रष्टाचार की पुरी संभावना.
पदोन्नति के तुंरत बाद आरोपी कर्मचारी ने शुरू की कर्मचारियों के खिलाफ बदले की भावना से अपनी कार्यप्रणाली
मुंबई: दिनांक ८ जुलाई २००८ को जैसे ही श्री राजीव एम् जैन सहायक, वाणिज्य निरिश्चक, मुंबई सेंट्रल, को ग्रुप 'बी' में पद्दोनत करके सहायक वाणिज्य प्रभंधक टिकट चेलिंग (सीसीएम्/ टी सी ) के पद पा वाणिज्य मुख्यालय, चर्चगेट में पदस्थ किया गया, उसी दिनसे मुंबई सेंट्रल के कई कर्मचारियों के फ़ोन लगातार 'रेलवे समाचार' को शुरू हो गए थे। इन कर्मचारियों ने दो-तीन दिन लगातार फ़ोन करके 'रेलवे समाचार' को बताया की श्री राजीव एम् जैन के खिलाफ कई विजिलेंस केस पेंडिंग हैं। उन्होंने इन विजिलेंस मामलो का हवाला देते हुए यह भी कहा की श्री जैन की पदोन्नति घोर पक्षपात पूर्ण और नियम विर्रुध हैं। इसके आलावा उन्होंने श्री जैन की कार्यप्रणाली और उनकी छवि के भी तमाम तथ्पात्मक उद्धरण गिनाये।
इस प्रष्ठभूमि में 'रेलवे समाचार' ने सर्वप्रथम जनसुचना अधिकार अधिनियम २००५ (आरटीआई एक्ट-२००५) के तहत प.रे.से इस सम्बन्ध में पुरी जानकारी मांगने की तैयारी की और दिनांक-२१/०१/०८ को तत्सम्बन्धी आवेदन केंद्रिय जनसूचना अधिकारी/ प.रे ( सीपीआईओ/प. रे. ) के उक्क्त आवेदन के अंतर्गत प्रदान की गई आधी- अधूरी जानकारी तथा अन्य श्रोतो से प्राप्त जानकारी से यह उजागर हुआ हैं की श्री राजीव एम् जैन को एक सुनियोजित तरीके से और तत्वों को तोड़- मरोड़कर तथा नियमो की मनचाही व्याख्या करके ग्रुप 'बी' में पदोन्नत किया गया हैं। इस पूरे प्रकरण में सबसे ज्यादा महत्वापूर्ण योगदान तत्कालिन एसदीजीएम् श्री राकेश गुप्ता का रहा है।
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