Tuesday 28 October, 2008

चार फेडरेशनों द्वारा लंच का बहिष्कार

नई दिल्ली : शुक्रवार, २४ अक्तूबर को रेलवे बोर्ड में हुई जीएम्स कांफ्रेंस में शामिल हुए चारों फेडरेशनों, नॅशनल फेडरेशन ऑफ़ इंडियन रेलवेमेंस ( एनऍफ़आईआर ), आल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन ( ऐआईआरऍफ़ ), आल इंडिया आरपीऍफ़ एसोसियेशन ( ऐआईआरपीऍफ़ऐ ) और इंडियन रेलवे प्रमोटी ऑफिसर्स फेडरेशन ( आईआरपीओऍफ़ ), ने रेल मंत्री के सामने बोलने का मौका न दिए जाने के कारण जीएम्स के साथ लंच का बहिष्कार कर दिया।
रेल प्रशासन के लिए यह एक खतरे की घंटी है क्योंकि बोर्ड के हमारे सूत्रों का कहना है की मंत्री के सामने बोलने का मौका न मिलने का सबसे ज्यादा मलाल दोनों लेबर फेडरेशनों के पदाधिकारियों को हुआ है और उन्होंने अब यह तय कर लिया है की आगे अब प्रशासन को सोच विचार कर सहयोग दिया जाएगा।
इससे रेल प्रशासन के साथ इनके औद्योगिक सम्बन्ध बुरी तरह ख़राब होने का खतरा पैदा हो गया है। सूत्रों का कहना है की इन पदाधिकारियों का कहना था की वे ऐसी कांफ्रेंसों में खाना खाने नहीं बल्कि अपनी बात मंत्री के सामने रखने आते हैं और अगर बोर्ड मेंबर मंत्री से इतना ही घबराते हैं तो उन्हें बुलाना बंद कर दें तथा जिस तरह पिछले चार-साढ़े वर्षों से मत्री को गुमराह करते आ रहे हैं, वैसे ही आगे भी करते रहें। लेबर फेडरेशनों का यह रवैया बिल्कुल वाजिब है क्योंकि वर्त्तमान 'निजाम' में बोर्ड की मनमानी बिल्कुल अपने 'निजाम' की ही तरह है जहाँ हर कोई अपना-अपना सिक्का चला रहा है।
रागिनी येचुरी का साहस
बताते हैं की इसी जीएम्स कांफ्रेंस में फेडरेशन ऑफ़ रेलवे ऑफिसर्स एसोसियेशन ( ऍफ़आरओऐ ) की अध्यक्ष श्रीमती रागिनी येचुरी को भी मंत्री की उपस्थिति में लंच के पहले बोलने का अवसर नहीं दिया गया। सूत्रों का कहना है की लंच बाद के सत्र में उन्होंने ओपन लाइन से ओपन लाइन में जीएम्स के ट्रांसफर का मुद्दा उठाकर लगभग नाराजगी व्यक्त करते हुए पूरे board के समक्ष कहा की वह यह मामला मंत्री के सामने उठाना चाहती थीं मगर उन्हें इसका मौका नहीं दिया गया। सूत्रों का कहना है की shrimati yechuri ने इसे एक ग़लत परम्परा की शुरुआत की संज्ञा दी है। श्रीमती येचुरी के इस साहस को देखकर पूरा बोर्ड सकते में है और सीआरबी को इस पर कुछ कहते नहीं बन रहा है। सूत्रों का कहना है की श्रीमती येचुरी ने अपनी यह बात कुछ इस तरह से कही थी की उससे यह मेसेज चला गया है की जिन लोगों को ओपन लाइन से ओपन लाइन में ट्रांसफर किए जाने का प्रस्ताव है, न सिर्फ़ उनका फेवर किया जा रहा है बल्कि इस मामले में करोड़ों का भारी भ्रष्टाचार होने की भी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

Monday 27 October, 2008

आफिसर्स फेडरेशन में जीएम की अदला-बदली के खिलाफ प्रस्ताव पारित

नई दिल्ली : फेडरेशन ऑफ़ आफिसर्स एसोसिएशंस ( ऍफ़आरओऐ ) के प्रमुख पदाधिकारियों की आज दि. २७-१०-०८ को रेलवे बोर्ड में एक बैठक हुई जिसमें ओपन लाइन से ओपन लाइन में जीएम्स की अदला-बदली किए जाने के बोर्ड के प्रस्ताव का कड़ा विरोध जताया गया। हमारे सूत्रों का कहना है की इस ग़लत परम्परा का विरोध करते हुए अधिकारीयों ने कहा की इससे योग्य लोगों का हक मारा जा रहा है और एक ख़ास लाबी को फायदा पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। जबकि इसी लाबिंग की वजह से अन्य कैडरों को नुक्सान हो रहा है जो की कतई उचित नहीं है।
सूत्रों का कहना है की बैठक में इस आशय का एक प्रस्ताव भी पारित कर दिया गया है और यह प्रस्ताव दीवाली के बाद पहले कार्य दिवस गुरुवार या शुक्रवार को सीआरबी और मंत्री की टेबल पर पहुँचा दिया जायेगा। सूत्रों ने बताया की बैठक में इंजीनियरिंग अधिकारीयों ने ख़ास तौर पर इस अदला-बदली का विरोध किया क्योंकि ट्रैफिक लाबी की मनमानी से सबसे ज्यादा नुक्सान उन्हीं का हो रहा है।
पता चला है की सीआरबी ने अपने 'बिरादरी' भाइयों का फेवर करते हुए श्री आर. एन. वर्मा को मेट्रो से प. रे. और उनकी जगह सीओएम्/प. म. रे. श्री वि. एन. त्रिपाठी को तथा श्री विवेक सहाय को उ. म. रे. से उ. रे. में और उनकी जगह सीईई/प. रे. श्री ऐ. के. वोहरा को भेजे जाने का प्रस्ताव भेजा है। हालांकि हमारे सूत्रों का कहना है की श्री वर्मा की फाइल अभी तक डीओपीटी में ही अटकी पड़ी है।
सूत्रों ने बताया की डीओपीटी ने श्री यु. सी. डी. श्रेणी के आरएससी में भेजे जाने के प्रस्ताव के करके बोर्ड के सांसत में डाल दिया है क्योंकि श्री श्रेणी के मेट्रो से ओपन लाइन पूर्वोत्तर रेलवे में भेजे जाने के समय बोर्ड ने डीओपीटी के यह बताया था की जिसे मेंबर बनाना होता है उसे ओपन लाइन में भेजा जाता है, डीओपीटी ने यही बोर्ड से पूछा है की अब ऐसा क्या हो गया है की श्री श्रेणी को ओपन लाइन से हटा कर साइड लाइन ( आरएससी ) में भेजा जा रहा है? बताया जाता है की अब श्री श्रेणी के साथ भी सीआरबी और मंत्री की 'सेटिंग' हो गई है इसलिए अब उन्हें एनईआर से नहीं हटाने का नया प्रस्ताव भेजा गया है।
इसी तरह दूसरा प्रस्ताव यह था की श्री श्रेणी की जगह श्री दीपक कृष्ण को और श्री सहाय की जगह श्री वोहरा को था श्री वर्मा की जगह श्री त्रिपाठी को भेजा जाएगा। जबकि इसके पहले का प्रस्ताव यह था की श्री दीपक कृष्ण को पूर्वोत्तर रेलवे और श्री सुदेश कुमार को ( आरएससी ) में भेजा जाए। परन्तु यह प्रस्ताव धरा रह गया। बाद में श्री दीपक कृष्ण को पूर्व रेलवे का भी प्रस्ताव बना था।
अपने ब्लॉग में 'रेलवे समाचार' ने 'बिरादरी' और 'लेनदेन' के इस खेल को दो दिन पहले ही एक्सपोज कर दिया था जिससे बोर्ड और पीएम्ओ तथा डीओपीटी में हड़कंप मच गया था और इसी के मद्देनजर ऍफ़आरओऐ की यह अर्जेंट मीटिंग बुलाई गई थी क्योंकि इस तमाम 'खेल' से रेलवे की छवि ख़राब हो रही है बल्कि अधिकारीयों के बीच वैमनस्यता भी बढ़ रही है जिससे उनके अन्दर एक-दूसरे के प्रति आक्रोश की भावना पैदा हो रही है जो की स्वस्थ प्रशासन के हित में नहीं है।
सूतों का कहना था की बैठक के बाद अधिकारीयों ने आपस में यह उम्मीद अवश्य जाहिर की की उपरोक्त तमाम वस्तुस्थितियों को मद्देनजर रखते हुए पीएम्ओ इस 'लेनदेन के खेल' को सफल नहीं होने देगा। क्योंकि इससे न सिर्फ़ रेलवे की छवि ख़राब हो रही है बल्कि अधिकारीयों में भी आपस में वैमनस्यता बढ़ रही है। इसके अलावा जोनल रेल प्रशासन भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।

Thursday 23 October, 2008

जीएम्स की पोस्टिंग में 'बिरादरी' और 'लेनदेन' का खेल

नई दिल्ली : पता चला है की सीआरबी ने जीएम की पोस्टिंग का जो प्रस्ताव रेल मंत्री को भेजा है उसमें जीएम/मेट्रो रेलवे श्री आर एन वर्मा को पश्चिम रेलवे और जीएम/एनसीआर श्री विवेक सहाय को उत्तर रेलवे का जीएम बनाया जाना प्रस्तावित किया गया है। ज्ञातव्य है की श्री वर्मा और श्री सहाय दोनों ही वर्त्तमान में ओपन लाइन के जीएम हैं क्योंकि मेट्रो को भी ओपन लाइन माना गया है।
उल्लेखनीय है की ओपन लाइन से ओपन लाइन में ट्रांसफर की कोई पॉलिसी नहीं है, ओपन लाइन से ओपन लाइन में अपवाद स्वरुप ही जीएम्स की अदला-बदली की जाती है, इसी के तहत शायद यू.सी.डी.श्रेणी को मेट्रो से पूर्वोत्तर रेलवे में भेजा गया था, जिन्हें पुनः वहाँ से हटाकर रेलवे स्टाफ कॉलेज ( आरएससी ) वडोदरा भेजे जाने के बोर्ड के प्रस्ताव को डीओपीटी ने करारे जवाब के साथ लौटा दिया है। ज्ञातव्य है की वर्त्तमान जीएम पैनल के पहले नंबर पर श्री सुदेश कुमार, आईआरएसईई, को आरएससी और दूसरे नंबर पर श्री दीपक कृष्ण, आईआरएसई, को पूर्व रेलवे का जीएम बनाने के प्रस्ताव को रेल मंत्री वापस लौटा चुके हैं।

अब जो श्री वर्मा और श्री सहाय को क्रमशः पश्चिम रेलवे एवं उत्तर रेलवे में भेजे जाने का प्रस्ताव सीआरबी ने किया है उसके पीछे 'बिरादरी' की भावना और करोड़ों रुपये के खेल की अहम् भूमिका बताई जा रही है। क्योंकि एक तो ओपन लाइन से ओपन लाइन में जीएम्स के ट्रांसफर की कोई पॉलिसी नहीं है, दूसरे जिस जीएम को आगे बोर्ड मेंबर बनाना होता है और वह यदि किसी प्रोडक्शन यूनिट, जैसे डीएलडबल्यू / सीएलडबल्यू / डीएम्डबल्यू / आईसीऍफ़ / आरडबल्यूऍफ़ / आरसीऍफ़, में बतौर जीएम पदस्थ होता है, तो उसे वहाँ से निकालकर ओपन लाइन का जीएम बनाया जाता है। यही अब तक की परम्परा रही है।
परन्तु अब 'बिरादरी' और पैसे के लिए इस परम्परा को भी टाक पर रखा जा रहा है। उल्लेखनीय है की श्री सहाय हमेशा अपने अपंग बेटे के नाम पर अपनी पसंद की पोस्टिंग में रहे हैं अब पुनः उसी के नाम पर दिल्ली में पोस्टिंग मांग रहे हैं जबकि अब तक वह पहले मध्य रेलवे एवं बाद में पश्चिम रेलवे की जुगाड़ में थे। अब चूंकि उनके अपंग बेटे का एडमीशन दिल्ली में अपंग कोटे में हो गया है इसलिए उन्हें अब उत्तर रेलवे, दिल्ली में पोस्टिंग चाहिए। अपने साढू भाई श्री वर्मा को वह अपनी जगह पश्चिम रेलवे में भिजवा रहे हैं...?
पता चला है की श्री आर एन वर्मा के पश्चिम रेलवे में आने का प्रस्ताव सुनकर पीपावाव रेलवे कारपोरेशन लिमिटेड और कच्छ रेलवे कारपोरेशन लिमिटेड के दोनों प्रबंध निदेशक परेशान हो गए हैं क्योंकि उन्हें लगता है की श्री वर्मा के पश्चिम रेलवे में आने से उनको अपना काम करना काफ़ी मुश्किल हो जाएगा। हमारे विश्वसनिय सूत्रों का कहना है की यह बात दोनों प्रबंध निदेशकों ने दिल्ली जाकर सीआरबी से भी कही है। सूत्रों का कहना है की सीआरबी ने उन्हें 'एज यूजुअल' एम्आर का नाम लेकर कहा की यह प्रस्ताव उनका नहीं एम्आर का है, इसमें वह कुछ नहीं कर सकते हैं।
यहाँ वही कहावत लागू हो रही है की 'कुछ करें देवी कुछ करें पंडा' , यानी एम्आर के नाम पर तो भारतीय रेल में किसी से भी कुछ भी करा या करवाया जा सकता है, वैसे भी एम्आर के मुंह से निकला हर शब्द नियम बन जाता है और अब तो रेल अधिकारीयों को भी इसकी आदत हो गई है और इसी के नाम पर ट्रान्सफर, पोस्टिंग, प्रमोशन आदि में 'बाढ़ ही खेत को खा रही है'। सूत्रों का कहना है की चूँकि सीआरबी को रिटायर होने से पहले अपना घाटा पूरा करना है, इसलिए जो ज्यादा 'बोली' लगा रहा है उसे ओपन लाइन में भेजने का प्रस्ताव बनाकर भेजा जा रहा है और इसके लिए एम्आर का नाम आगे किया जा रहा है जबकि सबको मालूम अहि की एम्आर को अपनी राजनीती चमकाने के आगे यह सब देखने की फुर्सत नहीं है।
इसके अलावा सूत्रों का यह भी कहना है की श्री वर्मा को प. रे. और श्री सहाय को उ. रे. में भेजे जाने के सीआरबी के प्रस्ताव से रेल राज्य मंत्री श्री नारण भाई राठवा भी नाराज हैं क्योंकि उन्हें भी पता है की श्री वर्मा के प रे में आने से उनके क्षेत्र के कई काम अटक जायेंगे। सूत्रों का कहना है की श्री राठवा प. म. रे. के वर्त्तमान सीओएम् श्री वी. एन. त्रिपाठी को प. रे. में लाना चाहते थे मगर सीआरबी ने उन्हें धोखे में रखकर प्रस्ताव बनाकर भेज दिया। सूत्रों का कहना है की श्री राठवा को इस बात की आशंका है की श्री वर्मा के प. रे. में आने से उनके कामों वे अड़ंगा लगायेंगे। क्योंकि उनकी यह आदत है।
सम्बंधित जांच एजेंसियों से यह उम्मीद की जाती है की वह रेलवे बोर्ड और सीआरबी की इस मनमानी को समय पर रोक पाने में कामयाब होंगी।

Monday 20 October, 2008

पूर्व पदाधिकरिगन... -जीतेन्द्र सिंह Interview continue...4

< कुछ अधिकारीयों का कहना है की फेडरेशन के वर्त्तमान नेतृत्व ने छठे वेतन आयोग के सामने ग्रुप 'बी' का पक्ष पूरी मजबूती के साथ नहीं रखा, इसलिए ग्रुप कोई कोई ख़ास लाभ नहीं मिला, इस बारे में आपका क्या कहना है?
> कौन अधिकारी ऐसा कह रहे हैं...? मेरी समझ से कार्यरत अधिकारीयों में से तो कोई ऐसी बचकानी बात कहेगा नहीं। आप बताएं या नहीं, मगर मैं समझ सकता हूँ की ऐसा कौन लोग कह सकते हैं। सच्चाई यह है की छठे वेतन आयोग के समक्ष ग्रुप 'बी' का पक्ष पूरी मजबूती के साथ प्रस्तुत किया गया था और आयोग की रिपोर्ट आने के बाद हमारी फेडरेशन ने ही सबसे पहले उसकी सिफारिशों की मुखालफत की थी। इसके साथ ही विभिन्न मंचों से बयान जारी करके सरकार को यह चेतावनी भी सबसे पहले जारी कर दी थी की इसमे पर्याप्त सुधार नहीं किया गया तो ग्रुप 'बी' अधिकारी इन्हे स्वीकार नहीं करेंगे और जरुरत पड़ी तो हड़ताल पर जाने से भी नहीं हिचकिचाएंगे।
इसके लिए बडोदा हॉउस नई दिल्ली में एक बड़ी सभा की आयोजन भी किया गया था, जिसे सभी फेडरेशनों के पदाधिकारियों ने भी संबोधित करके हमारे साथ अपनी एकजुटता दर्शायी थी। इसी के बाद बनी सचिवों की समिति में सिफारिशों में काफी सुधार किया गया और फेडरेशन ने selection grade को PB4 में रखवाकर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। इससे अब ग्रुप 'बी' के लगभग ५०० अधिकारी हमेशा selection grade में रहेंगे, जिन्हें इसका सर्वाधिक लाभ मिला है। इसके अलावा भी कई फायदे हुए हैं जिन्हें नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। अतः जो लोग भी ऐसा कह रहे हैं वह vastav में अपनी नाकामयाबियों की तरफ़ से लोगों की ध्यान हटाये रखना चाहते हैं।

< वर्त्तमान में फेडरेशन की अजेंडा क्या है?
> फेडरेशन की सर्वप्रथम प्राथमिकता सभी ग्रुप 'बी' अधिकारीयों को, मिस्लेनिअस कैटेगरी के साथ ८००-१३५०० की grade दिलाना और पूरे basic cadre १६४७ की ५०% ( ८२४ ) हासिल करना है। इसके अलावा समय-समय पर आने वाले मुद्दों को उनकी प्राथमिकता और अनिवार्यता के आधार पर समाधान करवाना है।
मैंने को ५०% cadre की बात कही है वह इसलिए आवश्यक है क्योंकि ग्रुप 'बी' में नियुक्ति के बाद इस वर्ग के अधिकारीयों की सेवा काल लगभग १५ से २० वर्ष शेष बचता है। इसलिए हमारी भरपूर कोशिश है की ५०% cadre मिल जाए तो सभी ग्रुप 'बी' अधिकारीयों को कम से कम junior administrative grade (JAG) में confirm होने की स्थिति बन जाए। जबकि 20vi सदी में हमारे फेडरेशन की सोच सिर्फ़ adhoc तक ही सीमित थी। परन्तु अब badalte समय के अनुसार उनकी ummeeden भी badali हैं और अब वह जो पाना चाहते हैं वो अपने अधिकार के अनुरूप पाना चाहते हैं। अब उन्हें adhoc ( खैरात ) बिल्कुल नहीं चाहिए। अब स्थिति यह है की ८-९ साल अन्दर ही adhoc की जगह उन्हें १००००-४५००० ( grade pay ६६०० ) का senior scale मिलने लगा है।
Interview continue.......

Saturday 18 October, 2008

पूर्व पदाधिकरिगन....जीतेन्द्र सिंह... इंटरव्यू continue...3

< कृपया अपने कार्यकाल की उपलब्धियों के बारे में बताएं ?
> मैं इन्हें अपनी उपलब्धियों के बजाय अपने ग्रुप के लोगों के अधिकार के रूप में लेता हूँ। अब तक हमारे फेडरेशन की सबसे बड़ी उपलब्धि वर्ष २००२ में जेटीएस की ७२० कैडर पोस्टों में जो मात्र १८० पोस्टें थीं उन्हें बढाकर ४११ पोस्टें हासिल कर ली हैं। यह कुल कैडर १६४७ का २५% है। इसे जल्दी ही ५०% (८२४ पोस्ट) कर लिया जाएगा। सिर्फ़ इसी एक मुद्दे पर शीघ्र ही सभी फेडरेशनों के साथ बोर्ड की मीटिंग होने वाली है।
यहाँ ये भी जान लेना जरुरी है की यह २५% कैडर पिछले २० वर्षों से मौजूद था, मगर इसे हासिल करने में कोताही बरती गई है। इससे यह पता चलता है की पिछले २० वर्षों में ग्रुप 'बी' का कितना भयंकर नुक्सान हो चुका है?
इसी सम्बन्ध में यह भी जान लेना चाहिए की ग्रुप 'बी' की डीपीसी में जो २ से ढाई साल का विलंब होता था, वह अब सामान्य स्तरपर आ रहा है। अब आशा है की सभी विभागों की डीपीसी वर्ष २००८-०९ के लिए मार्च २००९ के पहले हो जायेगी। यह सर्वथा पहली बार होगा जब उसी वर्ष की डीपीसी उसी वर्ष में हो जायेगी और वर्ष २००९-१० एवं २०१०-११ के लिए पूरी उम्मीद है की यह भी दिनांक ०१.०४.२०१० को उपलब्ध हो जायेगी।
इसके अलावा स्टोर और मेकेनिकल विभाग की वर्ष २००९ की डीपीसी मार्च २००९ में उपलब्ध कराने की कोशिश की जा रही है। इसके साथ ही ८०% ( ८०००-१३५०० ) अपग्रेडेशन का इम्प्लीमेंटेशन, जो अब तक १ जनवरी और १ जुलाई को होता था, अडवांस डीपीसी कराकर अब हर महीने कर दिया गया है।
इसके अतिरिक्त सेवानिवृत्त अधकारियों से खाली होने वाले पदों पर ekstended painal का praavadhaan करके ऐसे kareeb ६०० adhikariyon को ८०००-१३५०० का grade मिलने लगा है।
एक बड़ी uplabdhi fedareshan ने और haasil की है की नई zonal railon के बनने के बाद wahan जो seeniyarty की samasya पैदा हुई थी, जिससे adhikaansh group 'bi' adhikariyon का nuksaan हो रहा था, fedareshan ने इस maamale में लगभग ८०० group 'b' adhikariyon की seniority sunishchit karayi है। यही नहीं, लगभग ६०० लोगों, जो की september 2002 की nirdhaarit tithi के बाद request transfer पर नई railon में गए थे, उनके seniority rule में मूलभूत parivartan कराकर उन्हें भी इसका labh dilaaya गया है।
यह parivartan होने से request transfer पर नई railon में जाने वाले adhikari अब अपने सेवा काल का वह hissaa bacha पाने में safal हुए हैं जहाँ ज्वाइन करने पर उन्हें bottam seniority मिलती थी और उनकी सर्विस jeero count होती थी। परन्तु अब उन्हें sambandhit rail में junior most के बराबर seniority मिलेगी। fedareshan की पहल पर ये praavadhaan हो जाने का labh अब group 'क' को भी मिलेगा क्योंकि दोनों labour fedareshanon ने भी board से यह kara लिया है, जो की pichhale ४० varshon से इसे नहीं kara पाये थे। इस praavadhaan से group 'b' के ६०० से ज्यादा adhikariyon को labh मिला है।
इसके बाद जो बड़ी uplabdhi haasil हुई वह है stegnation ratio का badhaaya जाना, अब तक अखिल bhartiya स्तर पर zonal railon के पदों पर stegnation पर कोई dhyaan नहीं दिया जाता था, और जब wahaan ४ से ६ साल का antaraal होने लगा to ९० के dashak में इस को ५०% zonal railon के पदों के anupaat में तथा ५०% stegnation पर दिया गया था। लेकिन नई railon, जहाँ रेवेनुए पोस्टें न के बराबर हैं, के srujan के बाद फ़िर से seniority में ३ से ४ वर्ष का अन्तर padne लगा, अतः fedareshan ने may २००५ की अपनी AGM में सर्व sammati से यह aitihaasik निर्णय लिया की group 'ऐ' में induction १००% stegnation के आधार पर ही होना chaahiye।
इस विषय में board को सूचित किया गया की induction में samataa लाने के लिए किसी एक वर्ष के stegnation को maapdand banakar poston का aanupaatik vitaran किया जाए। board द्वारा अब यह व्यवस्था की गई है और यह होने से अब सिर्फ़ कुछ महीनों से ज्यादा कोई adhikari junior टाइम scale में नहीं रहेगा। यह vishamata khatm होने से adhikaansh group 'b' adhikariyon को pramoshan में labh मिला है। सभी zonal railon ने इस पर paryaapt संतोष व्यक्त किया है।
मैं यहाँ यह भी कहना chaahunga की इस व्यवस्था से किसी zone में एक या दो adhikariyon को व्यक्तिगत nuksaan भी जरूर हुआ होगा, इसके लिए सिर्फ़ इतना ही कहा का सकता है की कोई भी niyam किसी व्यक्ति विशेष के nafa-nuksaan को dhyaan में रखकर नहीं बनाया जाता।
< परन्तु कुछ लोग तो यह कह रहे हैं की आपने अपनी खातिर ही विशेष praavadhaan विशेष रूप से karwaya। इस तरह का aarop भी आपके ऊपर लगाया गया है? यह कहाँ तक सही है?
> हमें भी यह सुनाने में आया था और आप सही कह रहे हैं ऐसा aarop भी हम पर लगाया gaya था, परन्तु मैं यहाँ bataa देना चाहता हूँ की मैं bottam में नहीं था, मेरे बाद भी दो लोग और हैं जिनको इसका labh मिला है, यदि मैं सही में bottam में होता शायद इसका sanket यही जाता। tab to सही में 'bhaayi लोग' सारा aasamaan sir पर उठा लिए होते। यह हमको भी पता है, eshwar जो करता है theek ही करता है।
interview continue....

Friday 17 October, 2008

पूर्व पदाधिकरिगन..... जीतेन्द्र सिंह इंटरव्यू continue...

इसके अलावा दिनांक १९.०२.२००३ को मिस्लेनिअस कैटेगरी को छोड़कर अन्य सभी आर्गेनाइज्द सर्विसेस को लाभ दिया गया, जो की मिस्लेनिअस कैटेगरीजके साथ एक बड़ा अन्याय था, क्योंकि मेरा यह व्यक्तिगत तौर मानना है की उसे छोड़कर इसे स्वीकार ही नहीं किया जाना चाहिए था। यदि ऐसा नहीं किया गया होता तो हम प्रशासन पर ज्यादा प्रेशर बनाये रख सकते थे।
इसके साथ ही मैं यह भी बताना चाहूंगा की जब २५० पोस्टें मिली थीं उस समय तक भी वर्ष १९९९ तक की डीपीसी नहीं हुई थी। यह डीपीसी क्यों डिले हुई थीं, इस बारे में कोई कुछ क्यों नहीं बोल रहा है? मेरे महासचिव बनने के ६ महीने बाद ही फेडरेशन ने सुप्रीम कोर्ट से एस एंड टी विभाग का एक मुक़दमा जीता था, इससे जुड़े लोगों की डीपीसी तो बोर्ड ने ६ महीने बाद ही कर दी थी, मगर उनके बाद के २४६ लोगों का २ से ६ साल की सीनियरटी का नुक्सान हो गया, इसके लिए कौन जिम्मेदार है?
हालांकि एस एंड टी विभाग के ८१ ग्रुप 'ऐ' अधिकारीयों को ६ महीने से लेकर डेढ़ साल तक की सीनियरटी का लाभ मिला, परन्तु इन में से ५४ अफसर तब तक सेवानिवृत्त हो चुके थे, इसलिए उन्हें इसका कोई लाभ नहीं मिला, सिर्फ़ २७ लोगों को इसका फायदा मिला मगर इन में भी ३ लोग ऐसे भी थे जो ग्रुप 'ऐ' से नीचे रिवर्ट गए थे। इन में से एक की मौत हो चुकी थी, दूसरा सेवानिवृत्त हो गया था और तीसरे ने अपनी इज्जत की खातिर स्वेच्छा सेवानिवृत्ति ले ली थी।
यही नहीं, इन में से ७६ एक्स्ट्रा पोस्टों के नाम पर केवल ६ ग्रुप 'बी' अधिकारीयों को लाभ मिला था। इस प्रक्रिया के समानांतर एस एंड टी विभाग की डीपीसी रुक गई थी, जिससे २६४ अधिकारीयों का २ से ६ साल की सीनियरटी का नुक्सान हो गया। इसलिए व्यक्तिगत तौर पर हमारा तो आज भी यह मानना है की वह मामला कोर्ट में जाना ही नहीं चाहिए था। क्योंकि एक बार कोर्ट की रूलिंग आ जाने के बाद फ़िर कुछ नहीं हो पाटा। इसलिए फेडरेशन ने सर्व सम्मति से यह ऐतिहासिक निर्णय लिया है की इस तरह के मामलों में फेडरेशन अब भविष्य में कभी पार्टी नहीं बनेगी। परन्तु मैं यह भी स्पष्ट कर देना चाहता हूँ की सदस्य अधिकारीगन ऐसा कोई कदम उठाने के लिए सर्वथा स्वतंत्र होंगे। इससे कम से कम फेडरेशन अधिकाँश अधिकारीयों को भविष्य में ऐसे किसी नुक्सान से बचा पाने में सक्षम होगी।
interview continue...........

पूर्व पदाधिकारिगन जो टिप्पणी करते हैं वह उपलब्ध रिकॉर्ड के विपरीत होती है- जीतेन्द्र सिंह

भारतीय रेल के ग्रुप 'बी यानी प्रमोटी अधिकारीयों की खूबी यह है की वह अपने बराबर, कुछ अपवादों को छोड़कर, किसी को समझदार नहीं मानते, दूसरी खूबी यह है की वे स्वयं को सर्वज्ञ समझते हैं, उनकी तीसरी और सबसे बड़ी खासियत यह है की वह अपने नेतृत्व पर कभी भरोसा नहीं करते। इस सबसे ऊपर उनकी एक अहम् खासियत यह भी है की वह अपने फोरम में अपनी इन सारी खूबियों का खूब बढ़-चढ़कर दिखावा तो करते हैं परन्तु अपने नेतृत्व के पीछे एकजुट होकर खड़े होने में शायद उनका अहम् उनके आड़े आता रहता है। कार्यालय में अपने बॉस के सामने वह न तो अपने अधिकार की बात कर पाते हैं, और न ही अपने प्रति होने वाले अन्याय का विरोध, बल्कि यह सब सहते हुए मौका मिलने पर भी अपनी दुम दबाकर बैठ जाते हैं।
तथापि इंडियन रेलवे प्रमोटी ऑफिसर्स फेडरेशन (आईआरपीओऍफ़) के महासचिव पद पर जब से श्री जीतेन्द्र सिंह की पदस्थापना हुई है तब से ग्रुप 'बी' अधिकारीयों को बहुत कुछ हासिल हुआ है और रेलवे बोर्ड एवं अन्य फेडरेशनों के साथ इस फेडरेशन के इंडस्ट्रियल रिलेशन भी काफ़ी मधुर हुए हैं। इसके बावजूद ग्रुप 'बी' अफसरों का एक वर्ग विशेष श्री जीतेन्द्र सिंह से नाखुश बना हुआ है, जिसके परिणाम स्वरुप फेडरेशन के ख़िलाफ़ अदालत में कुछ मामले भी दायर हैं। इस वर्ग विशेष और कुछ पूर्व पदाधिकारियों द्वारा यह दुष्प्रचार एवं भ्रम फैलाया जा रहा है की श्री सिंह ने अपने वर्ग के लिए कुछ नहीं किया। वेतन आयोग के समक्ष ग्रुप 'बी' का पक्ष मजबूती से नहीं रखा। इन तमाम मुद्दों पर पिछले दिनों मुंबई आए श्री जीतेन्द्र सिंह से 'रेलवे समाचार' ने लम्बी बातचीत की। प्रस्तुत है उसी बातचीत का विस्तृत विवरण :
< आप कब आईआरपीओऍफ़ के महासचिव बने?
> दिनांक १७.०२.२००३ को मेरा बतौर महासचिव निर्वाचन हुआ था। यह मेरा दूसरा कार्यकाल है, जिसके लिए भुवनेश्वर में हुए चुनाव में मैं भारी बहुमत से चुना गया था।
< आपको विरासत में मिली किन-किन समस्याओं का सामना करना पद रहा है? क्या उनके लिए आपको दोषी ठहराने की कोशिश हुई है?
> जब मैंने फेडरेशन का कार्यभार संभाला था, तब कैडर की बड़ी समस्या सामने थी। उस समय कुल २५० वैकेंसी पाँच साल के लिए दी गई थीं। परन्तु सभरवाल मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आ जाने से इसे चार साल में ही समाप्त कर दिया गया था और वैकेंसी बेस्ड रोस्टर की जगह पोस्ट बेस्ड रोस्टर लागू किया गया था। जिससे हमारी २५० पोस्टें घटकर मात्र १८० ही रह गई थीं। जबकि हमारा पूरा कैडर ७२० का था और सितम्बर २००० से पहले भी यह उपलब्ध था तथा पूर्व रेल मंत्री के अनुमोदन से सितम्बर २००० में ही इसे रिक्रूटमेंट रूल्स ऑफ़ प्रमोशन के लिए युपीएससी को भेजा गया था। इसी के आधार पर गत वर्ष हमें २५% (411) कैडर पोस्टें हासिल हुई हैं। यह एक बड़ी उपलब्धि है।
इसके अलावा दिनांक १९.०२.२००३ को मिस्लेनिअस कैटेगरी को छोड़कर अन्य सभी........
INTERVIEW CONTINUE.....................................................................................................................