Friday 17 October, 2008

पूर्व पदाधिकारिगन जो टिप्पणी करते हैं वह उपलब्ध रिकॉर्ड के विपरीत होती है- जीतेन्द्र सिंह

भारतीय रेल के ग्रुप 'बी यानी प्रमोटी अधिकारीयों की खूबी यह है की वह अपने बराबर, कुछ अपवादों को छोड़कर, किसी को समझदार नहीं मानते, दूसरी खूबी यह है की वे स्वयं को सर्वज्ञ समझते हैं, उनकी तीसरी और सबसे बड़ी खासियत यह है की वह अपने नेतृत्व पर कभी भरोसा नहीं करते। इस सबसे ऊपर उनकी एक अहम् खासियत यह भी है की वह अपने फोरम में अपनी इन सारी खूबियों का खूब बढ़-चढ़कर दिखावा तो करते हैं परन्तु अपने नेतृत्व के पीछे एकजुट होकर खड़े होने में शायद उनका अहम् उनके आड़े आता रहता है। कार्यालय में अपने बॉस के सामने वह न तो अपने अधिकार की बात कर पाते हैं, और न ही अपने प्रति होने वाले अन्याय का विरोध, बल्कि यह सब सहते हुए मौका मिलने पर भी अपनी दुम दबाकर बैठ जाते हैं।
तथापि इंडियन रेलवे प्रमोटी ऑफिसर्स फेडरेशन (आईआरपीओऍफ़) के महासचिव पद पर जब से श्री जीतेन्द्र सिंह की पदस्थापना हुई है तब से ग्रुप 'बी' अधिकारीयों को बहुत कुछ हासिल हुआ है और रेलवे बोर्ड एवं अन्य फेडरेशनों के साथ इस फेडरेशन के इंडस्ट्रियल रिलेशन भी काफ़ी मधुर हुए हैं। इसके बावजूद ग्रुप 'बी' अफसरों का एक वर्ग विशेष श्री जीतेन्द्र सिंह से नाखुश बना हुआ है, जिसके परिणाम स्वरुप फेडरेशन के ख़िलाफ़ अदालत में कुछ मामले भी दायर हैं। इस वर्ग विशेष और कुछ पूर्व पदाधिकारियों द्वारा यह दुष्प्रचार एवं भ्रम फैलाया जा रहा है की श्री सिंह ने अपने वर्ग के लिए कुछ नहीं किया। वेतन आयोग के समक्ष ग्रुप 'बी' का पक्ष मजबूती से नहीं रखा। इन तमाम मुद्दों पर पिछले दिनों मुंबई आए श्री जीतेन्द्र सिंह से 'रेलवे समाचार' ने लम्बी बातचीत की। प्रस्तुत है उसी बातचीत का विस्तृत विवरण :
< आप कब आईआरपीओऍफ़ के महासचिव बने?
> दिनांक १७.०२.२००३ को मेरा बतौर महासचिव निर्वाचन हुआ था। यह मेरा दूसरा कार्यकाल है, जिसके लिए भुवनेश्वर में हुए चुनाव में मैं भारी बहुमत से चुना गया था।
< आपको विरासत में मिली किन-किन समस्याओं का सामना करना पद रहा है? क्या उनके लिए आपको दोषी ठहराने की कोशिश हुई है?
> जब मैंने फेडरेशन का कार्यभार संभाला था, तब कैडर की बड़ी समस्या सामने थी। उस समय कुल २५० वैकेंसी पाँच साल के लिए दी गई थीं। परन्तु सभरवाल मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आ जाने से इसे चार साल में ही समाप्त कर दिया गया था और वैकेंसी बेस्ड रोस्टर की जगह पोस्ट बेस्ड रोस्टर लागू किया गया था। जिससे हमारी २५० पोस्टें घटकर मात्र १८० ही रह गई थीं। जबकि हमारा पूरा कैडर ७२० का था और सितम्बर २००० से पहले भी यह उपलब्ध था तथा पूर्व रेल मंत्री के अनुमोदन से सितम्बर २००० में ही इसे रिक्रूटमेंट रूल्स ऑफ़ प्रमोशन के लिए युपीएससी को भेजा गया था। इसी के आधार पर गत वर्ष हमें २५% (411) कैडर पोस्टें हासिल हुई हैं। यह एक बड़ी उपलब्धि है।
इसके अलावा दिनांक १९.०२.२००३ को मिस्लेनिअस कैटेगरी को छोड़कर अन्य सभी........
INTERVIEW CONTINUE.....................................................................................................................

No comments: