Thursday 30 April, 2009

आरसीटी वाइस चेयरमैन सेलेक्शन में भेदभाव

कोलकाता हाईकोर्ट का स्थगनादेश


कोलकाता : वैसे तो पूर्व सेक्रेटरी/रेलवे बोर्ड और वर्तमान मेंबर आरसीटी दिल्ली मैथ्यू जॉन स्वयं को बहुत ईमानदार और भेदभाव रहित साबित करते रहे हैं, मगर एक तो दिल्ली के बाहर उन्होंने कभी रेल सेवा करना उचित नहीं समझा था, भले ही इसके लिए उन्होंने महाप्रबंधकी छोड़कर सेक्रेटरी/रे.बो. का उससे ज्यादा प्रभावकारी पद हासिल कर लिया था. इसके बाद भी रेल सेवा से रिटायर होने से पहले उन्होंने स्वयं को आरसीटी/दिल्ली का मेंबर भी बना लिया. क्योंकि वह स्वयं इस सेलेक्शन के लिए बतौर सेक्रेटरी/रे.बो. सक्षम थे. इसके बाद भी कुछ योग्य अधिकारियों को दरकिनार करके आरसीटी के वाइस चेयरमैन पदों पर उन्होंने स्वयं एक कंडीडेट रहते हुए भेदभावपूर्ण सेलेक्शन किया, जिस पर कोलकाता हाईकोर्ट ने स्थगनादेश दिया है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार जनवरी 2008 में मेंबर, रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल (आरसीटी) के चयन में मैथ्यू जॉन स्वयं भी बतौर एक मेंबर चयनित हुए थे, जो कि बतौर सेक्रेटरी/रे.बो. इस चयन के लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी थे. इसके बाद जून 2008 में भी आरसीटी के वाइस चेयरमैन पदों पर चयन किया गया. इस चयन में भी मैथ्यू जॉन स्वयं भी एक कंडीडेट थे, जबकि बतौर कंडीडेट उन्हें यह चयन करने का कोई अधिकार नहीं था. नैतिक रूप से भी उन्हें इस चयन प्रक्रिया से हट जाना चाहिए था. बताते हैं कि जून 2008 में हुई इस चयन प्रक्रिया में उपरोक्त नियम एवं नैतिक खामी के अलावा इस भेदभावपूर्ण चयन में पूर्व एएम/सी श्री एस. आर. ठाकुर जैसे कुछ योग्य उम्मीदवारों को जान-बूझकर श्री मैथ्यू जॉन ने दरकिनार किया था.

प्राप्त जानकारी के अनुसार श्री एस. आर. ठाकुर द्वारा कोलकाता हाईकोर्ट में दायर एक याचिका पर हाईकोर्ट ने जून 2008 में हुए इस चयन को स्थगित करते हुए इस पर अंतिम फैसला आने तक स्थगनादेश जारी कर दिया है. श्री ठाकुर ने फोन पर 'रेलवे समाचार' से इस बात की पुष्टि की है. ज्ञातव्य है कि श्री मैथ्यू जॉन सहित चार-पांच अन्य अधिकारियों ने सेवानिवृत्ति से पहले अक्टूबर-नवंबर 2008 में बतौर मेंबर विभिन्न आरसीटी में ज्वाइन कर लिया था.

यह कितनी बड़ी विडंबना है कि विवेक सहाय और मैथ्यू जॉन जैसे तथाकथित ईमानदार भी अपने स्वार्थ में न तो पक्षपात करने से बच पाते हैं और न ही इस लालच में उन्हें सामान्य नैतिकता का पालन करने की बात ध्यान रहती है, तब ऐसे लोग सर्वज्ञात भ्रष्टों को भी भ्रष्ट कहने या मानने के अधिकारी कैसे हो सकते हैं?

रेलवे बोर्ड में हड़कंप

पैसा लेकर शीघ्र और ज्यादा डीपीसी करवाने की शिकायत

नयी दिल्ली : रेलवे बोर्ड के कुछ कार्मिक अधिकारियों और एक पूर्व मेंबर स्टाफ तथा एक ऑफीसर्स फेडरेशन के पदाधिकारी के खिलाफ पैसा लेकर शीघ्र और ज्यादा डीपीसी करवाने की एक शिकायत वर्तमान मेंबर स्टाफ सहित सीआरबी को की गई है. ऐसा पता चला है कि यह शिकायत सेना के किसी रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल ने की है. हालांकि आफीसर्स फेडरेशन के पदाधिकारी इसकी पुष्टि कर रहे हैं परंतु उनके पास इस शिकायत की प्रति नहीं है. बताते हैं कि इस शिकायत में उपरोक्त पदाधिकारियों/ अधिकारियों पर पैसा लेकर डीपीसी करवाने का आरोप लगाया गया है। यदि यह शिकायत वास्तव में 'जेनुइन' है तो यह एक गंभीर मामला है क्योंकि इससे न सिर्फ पूरे रेलवे बोर्ड की बल्कि यूपीएससी की विश्वसनीयता भी संदिग्ध हो गई है.

'रेलवे समाचार' का मानना है कि यह शिकायत सच हो या झूठी हो, इसकी विस्तृत जांच सीबीआई से करवाई जानी चाहिए और इसके पहले संबंधित आफीसर्स फेडरेशन को लिखित रूप से इसकी जांच की मांग करनी चाहिए. क्योंकि इस शिकायत का सर्वाधिक नुकसान ऑफीसर्स फेडरेशन को ही हुआ है अथवा होने वाला है. यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि मात्र इसी तरह से अपनी गरिमा को बचा सकती है. हालांकि बोर्ड के हमारे सूत्रों का कहना है कि शिकायत में कोई गंभीरता नहीं है और सर्वाधिक डीपीसी पूर्व एमएस तथा वर्तमान सीआरबी की पहल पर ही हुई हैं जोकि स्टाफ और प्रशासन के हित में उठाया गया उनका एक अच्छा कदम था.

इस शिकायत की चर्चा प्रत्येक जोन में हो रही है. इसस ग्रुप 'बी' का संपूर्ण अधिकारी वर्ग असहज महसूस कर रहा है. 24 अप्रैल को नार्दर्न रेलवे प्रमोटी आफीसर्स एसोसिएशन (एनआरओए) की कार्यकारिणी की बैठक में इसकी घोर भत्र्सना सभी अधिकारियों ने की है. तथापि उनमें से ज्यादातर अधिकारियों का यह मानना था कि यह एक हौव्वा है. उन्हें इस शिकायत की सच्चाई पर भरोसा नहीं हो पा रहा है. यह स्थिति ठीक नहीं है. इस पर रेलवे बोर्ड और सीआरबी को खुद भी पहल करनी चाहिए और पत्र पर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए.

हालांकि इस बात की पुष्टि 'रेलवे समाचार' ने मेंबर स्टाफ से करने की कोशिश की मगर उनसे बात नहीं हो पाई. तथापि सीवीसी में हमारे सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि ऐसी शिकायत सीवीसी को मिली थी और इसकी विस्तृत जांच के लिए सीवीसी ने इसे एडवाइजर (विजिलेंस) रे.बो. को अग्रसारित कर दिया है. बोर्ड के हमारे सूत्रों ने भी इसकी पुष्टि की है कि सीवीसी से अग्रसारित ऐसी लिखित शिकायत विजिलेंस डायरेक्टोरेट को प्राप्त हो गई है. जिसे जांच और पुष्टि के लिए डायरेक्टर विजिलेंस (आईपीएस) श्री संजय कुमार को सौंप दिया गया है.

सूत्रों का कहना है कि यह मामला अत्यंत गंभीर है और इस पर पूरे बोर्ड में हड़कंप मचा हुआ है क्योंकि यदि शिकायत की जेनुइननेस साबित हो जाती है तो अन्य किसी का कुछ बिगड़े या नहीं, मगर डीपीसी कमेटी के मेंबरों का बहुत कुछ बिगड़ सकता है.

तथापि सूत्रों का कहना है कि यदि यह शिकायत अथवा शिकायतकर्ता फर्जी साबित हुआ तो भी यदि प्राथमिक जांच में इस बारे में कुछ गड़बड़ी पाई जाती है तो भी डीपीसी मेंबरों की स्थिति अत्यंत असमंजसपूर्ण हो जाएगी. अंत में सूत्रों का कहना था कि कुछ हो न हो, मगर फिलहाल पूरा बोर्ड सकते की हालत में है और डीपीसी मेंबरों सहित बोर्ड के दो अधिकारियों सहित प्रमोटी ऑफीसर्स फेडरेशन के एक प्रमुख पदाधिकारी की विश्वसनीयता संदिग्ध हो गई है. सूत्रों का स्पष्ट कहना था कि उन्हें इस संदिग्धपूर्ण स्थिति से तभी निजात मिल सकती है, जबकि विजिलेंस जांच से स्थिति शीघ्र स्पष्ट हो जाए. सूत्रों का यह भी कहना था कि उक्त पदाधिकारी की हांकने की आदत और अपरिपक्व व्यवहार ने बोर्ड में फेडरेशन की स्थिति को पसोपेश में डाल दिया है.
दोनों जगह लालू के हारने की आशंका

पटना : बड़बोले नौटंकीबाज राजनेता और रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने सारन और पाटलीपुत्र दो संसदीय चुनाव क्षेत्रों से अपना पर्चा दाखिल किया है. परंतु चुनाव पर्यवेक्षकों को पहले चरण के मतदान को देखते हुए सारन से लालू के हारने की आशंका है. यही आशंका पाटलीपुत्र से भी जताई गई है. उल्लेखनीय है कि सारन में लालू के सामने भाजपा के मजबूत उम्मीदवार आर.पी. रूड़ी हैं. छपरा संसदीय क्षेत्र से परिसीमन में टूट कर बने नए संसदीय क्षेत्र सारन के लोग लालू से इसलिए नाराज हैं कि उन्होंने छपरा रेल कारखाने में भर्ती को सुनिश्चित नहीं करवाया. सूत्रों का कहना है कि इस नाराजगी की जानकारी लालू को भी है. इसलिए भर्ती परिणामों को रोक कर रखा गया, जिससे लोगों को यह संदेश दिया जा सके कि प्रक्रिया जारी है और उनकी भर्ती हो जाएगी. परंतु सच्चाई यह है कि ऐसी कोई प्रक्रिया जारी नहीं है और इसकी भनक भी लोगों को है. इसीलिए लालू के खिलाफ सारन में मतदान ज्यादा हुआ है.

सूत्रों का कहना है कि सारन से हारने की आशंका के चलते ही लालू ने पाटलीपुत्र, जो कि पटना संसदीय क्षेत्र से परिसीमन में अलग हुआ है, संसदीय क्षेत्र से भी अपना पर्चा दाखिल किया है. यहां उनके सामने जेडी (यू) के रंजन यादव हैं. यहां भी लालू को कड़ा मुकाबला करना पड़ेगा. जेडी(यू) और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रंजन यादव को जिताने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी है. सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के साथ राजनीतिक दगाबाजी करने वाले लालू और रामविलास पासवान दोनों को इस बार मुंह की खानी पड़ सकती है. सूत्रों ने हाजीपुर से पासवान की भी जीत के प्रति आशंका व्यक्त की है.

चुनाव विश्लेषकों और बिहार के राजनीतिक गणित की बारीक जानकारी रखने वाले एक रेल अधिकारी ने पहले चरण के मतदान मे बिहार के हाजीपुर से रामसुंदर दास (जेडीयू), वैशाली से मुन्ना शुक्ला (जेडीयू), सारन से आर. पी. रूड़ी (भाजपा), सिवान से यादव (भाकपा/माले), मोतीहारी से राधामोहन सिंह ï(भाजपा), वाल्मीकि नगर से रघुनाथ झा (आरजेडी), दरभंगा से कीर्ति आजाद (भाजपा), मधुबनी से हुकुमदेव नारायण सिंह (भाजपा), पटना साहिब से शत्रुघ्न सिन्हा (भाजपा), सासाराम से जेडीयू, काराकट से अवधेश सिंह (जेडीयू) और आरा से मीना सिंह (जेडीयू) आदि उम्मीदवारों के जीतने की संभावना जताई है.
उम्मीद पर दुनिया कायम

छठवें वेतन आयोग की सिफारिशों
पर विसंगति समिति का गठन


सितंबर 2008 में 6वें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने की जब से घोषणा की गई और यह लागू हुई, तब सेलेकर अब तक इसमें सैकड़ों विसंगतियां सामने चुकी हैं। कहीं तो मनमानी तौर पर ग्रेड पे और वेतनमान लागूकर दिए गए तो कहीं किसी कैटेगरी विशेष को भेदभावपूर्ण तरीके से एक्जीक्यूटिव श्रेणी से भी ज्यादा ग्रेड पे दे दीगई। मात्र कुछ पे बैंड्स में सभी वर्गों को समेट दिए जाने से भी काफी विसंगतियां पैदा हुई हैं। इससे कार्मिक अधिकारी भी बुरी तरह परेशान हुए हैं. इन सबके चलते सरकार पर विसंगति समिति (एनॉमली कमेटी) के गठन के लिए श्रम संगठनों का भारी दबाव था. आखिर डीओपीटी ने दि. 2.4.09 (पत्र सं. 11/02/2008-जेसीए) को एक नोटिफिकेशन निकालकर विसंगति समिति के गठन की घोषणा कर दी है. इस समिती में रेलवे की तरफ से एआईआरएफ के अध्यक्ष कॉ. उमरावमल पुरोहित, महासचिव कॉ. शिवगोपाल मिश्रा, कार्याध्यक्ष कॉ. राखालदासगुप्ता, एनएफआईआर के अध्यक्ष श्री गुमान सिंह, महासचिव श्री एम. राघवैय्या और कार्याध्यक्ष श्री आर. पी. भटनागर को नामांकित किया गया है.

हालांकि यह विसंगति समिति वेतन आयोग की सिफारिशों में तो कोई फेरबदल नहीं कर सकती है, मगर उसकी सिफारिशों में जो विसंगतियां हैं उन्हें दुरुस्त करने के सुझाव सरकार को दे सकती है. अब देखना यह है कि यह समिति बिना किसी कर्मचारी की भावनाओं को ठेस पहुंचाए उसके वेतन संबंधी नुकसान की भरपाई कैसे करवा पाती है? हालांकि 6वें वेतन आयोग के गठन के बाद 'रेलवे समाचार' ने आयोग को तब भी यह सुझाव दिया था किउसे अपनी सिफारिशें कुछ इस तरह करनी चाहिए कि चौथे-पांचवें वेतन आयोग की जो विसंगतियां आज तक खत्म नहीं हो पाई हैं, उन्हें दूर करते हुए आयोग को 'विसंगति निवारण आयोग' की तरह काम करते हुए दिखाई देना चाहिए. ताकि विसंगति समिति के गठन की नौबत ही आए. परंतु अफसोस के साथ यह कहना पड़ रहा हैकि 6वां वेतन आयोग खुद में एक बहुत बड़ा 'विसंगति आयोग' बन गया.

रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) को रेल कर्मचारियों के एरियर्स की दूसरी किस्त के भुगतान की उतनी चिंता नहीं है, जितनी कि 6वें वेतन आयोग की भारी विसंगतिपूर्ण सिफारिशों को आनन-फानन लागू कर देने की रही है. इसी केचलते तमाम कैटेगरी के विभागीय चयन एवं पदोन्नतियों पर रोक लगा दी गई. कुछ रेलों में ही नहीं बल्कि लगभगसभी रेलों में क्लर्कों सहित नीचे स्तर के सभी चयन स्थगित कर दिए गए, जो कि ..रे. जैसी रेलों में आज भीबोर्ड के क्लीयरेंस का इंतजार कर रहे हैं. जहां करीब 25-26 क्लर्कों के लिखित परीक्षा परिणाम तो घोषित कर दिएगए, मगर उनकी पदोन्नति-पदस्थापना आज करीब 6 महीने बाद भी नहीं हो पाई है. पास हुए कर्मचारियों और प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि चूंकि एक यूनियन विशेष के कुछ पदाधिकारी या तथाकथित कार्यकर्ता इस परीक्षा में पास नहीं हुए हैं, इसलिए उसके पदाधिकारियों ने रेल प्रशासन पर दबाव डालकर इन क्लर्कों की पदस्थापना रुकवाई हुई है.

बोर्ड के इसी विसंगतिपूर्ण निर्णय के कारण कुछ सेलेक्शन एवं नॉन सेलेक्शन पोस्टों को आपस में मर्ज कर दियागया. कथित सरप्लस कर्मचारियों के लिए स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति योजना (वीआरएस) लागू कर दी गई. कॉमन कैटेगरी नियम का घोर उल्लंघन करते हुए नर्सों एवं टीचरों को 5300 रु. का ग्रेड पे दे दिया गया. पांचवें वेतन आयोग के पास एलिजिबिलिटी रूल को फ्रीज कर दिया गया. कुछ सेलेक्शन एवं नॉन सेलेक्शन पोस्टों के सेलेक्शन/प्रमोशन पर रोक लगा दी गई आदि.

अब रेल मंत्रालय ने अपनी उपरोक्त तमाम विसंगतियां (गलतियां) करने के बाद उन्हें दूर करने या सुधारने के लिए विसंगति समिति का गठन किया है. अब भले ही पहले की भांति यह एक औपचारिकता (स्थायी विसंगति) हो, मगर कर्मचारियों के संतोष के लिए तो यह सब ड्रामेबाजी सरकार और श्रम संगठनों दोनों को करनी ही पड़ती है. इसके अलावा कर्मचारियों की भी यही सोच होती है. सब नहीं तो कुछ कुछ तो मिल ही जाएगा. यानी कि उम्मीद पर दुनिया कायम है.

अब जहां सेलेक्शन और नॉन सेलेक्शन ग्रेड को मर्ज किया गया है, तो इसमें कर्मचारियों की सीनियरिटी (वरिष्ठता) को बनाए रखने के लिए इसके नियमों को बदलना पड़ेगा. क्योंकि लगभग सभी कर्मचारियों और अधिकारियों काग्रेड एवं ग्रेड पे एक हो गया है. किसी-किसी कर्मचारी का ग्रेड फिक्सेशन उसकी भर्ती की तिथि के हिसाब से अथवाउसके कनिष्ठ कर्मचारी की सेवा की लंबाई को मद्देनजर रख कर उसके वरिष्ठ कर्मचारी से ज्यादा हो गया है. कर्मचारी हताशा में कहते हैं, अब कौन सीनियर- कौन जूनियर, अब तो यह विसंगतियां शायद अगले या उससे अगले वेतन आयोगों में ही दूर हो पाएंगी. वहीं अब किसी एक कैडर के भिन्न वर्ग की पोस्टों के प्रतिशत को बनाए रखने का अवसर भी समाप्त हो गया है. वर्ष 2003 में रिस्ट्रक्चरिंग के जरिए कुछ निचले स्तर की पोस्टों को गंवाकर कर्मचारियों को जो कुछ हासिल हुआ था, वह पोस्टों को मर्ज किए जाने से उनका प्रतिशत संतुलन भी अब गंवाने की नौतब गई है. उदाहरण स्वरूप यहां इंजीनियरिंग विभाग के विभिन्न पदों का प्रतिशत-बैलेंस प्रस्तुत है.

क्लेरिकल आईओडब्ल्यू/पीडब्ल्यूआई ड्राइंग/डिजाइन

चीफ ओएस - 4 एसएसई - 18 एसएसई/डी - 15

ओएस- I- 8 एसई - 29 एसई/डी - 30

ओएस-II - 16 जेई -I - 24 जेई - I/डी - 25

हेड क्लर्क - 29 जेई -II - 29 जेई-II/डी - 30

सीनियर क्लर्क - 23

जूनियर क्लर्क - 20

कुल योग - 100 कुल योग - 100 कुल
योग - 100

'रेलवे समाचार' के पिछले अंक में क्लर्कों की पोस्टों को खत्म अथवा न्यूनतम करने की 6वें वेतन आयोग और रेलवे बोर्ड की योजना (साजिश) के बारे में बताया गया था. उपरोक्त आंकड़े उनकी इस भावी योजना को साबित कर रहे हैं. प्रस्तुत आंकड़ों से जाहिर है कि अन्य तकनीकी पोस्टों का प्रतिशत 15 या उससे ज्यादा है जबकि क्लर्कों का प्रतिशत महज 4 है. यानी कि क्लर्कों की तरक्की के अवसर अत्यंत न्यूनतम हैं. हालांकि क्लेरिकल कैटेगरी (बाबुओं) को किसी भी संस्था का हाथ पैर कहा जाता है. उनके बिना अधिकारी वर्ग का काम नहीं चल सकता. तोजब तक ये 'हाथ-पैर' हिलेंगे-डुलेंगे नहीं, मेहनत नहीं करेंगे, तब तक अधिकारी वर्ग का काम कैसे चल पाएगा...?

वर्ष 2003 में हुई रिस्ट्रक्चरिंग के समय निचले स्तर की पोस्टों को सरेंडर करके ऊपर ही पोस्टों को राउंड ऑफ (गोलबंद) करके प्रतिशत के मुताबिक सेक्शंड स्ट्रेंग्थ बनाने की कोशिश की गई थी. परंतु अब जब तमाम पोस्टें सरेंडर हो गई हैं तो सेक्शंड स्ट्रेंथ भी घट गई है जबकि अब सेलेक्शन एवं नॉन सेलेक्शन पोस्टों को भी मर्ज करदिया गया है. रिस्ट्रक्चरिंग की गलती को छिपाने के लिए शायद ऐसा किया गया है. अब जहां बाकी कैडर्स की पोस्टें मर्जर के बाद 50 प्रतिशत हो गई हैं, वहीं क्लर्कों की पोस्टें मात्र 10-12 प्रतिशत ही रह गई हैं. यदि इस प्रतिशत दर (पर्सेंटेज रेट) को माना जाता है तो संपूर्ण रेलवे पर एक कॉमन पर्सेंटेज बना पाना अत्यंत मुश्किल होगा क्योंकि अलग-अलग डिवीजनों की सेंक्शंड स्ट्रेंथ अलग-अलग है. यदि ऐसा होता है तो ज्यादा सेंक्शंड स्ट्रेंथ वाले डिवीजनों का ज्यादा फायदा होगा. इसी प्रकार कम सेंक्शंड स्ट्रेंथ वाले डिवीजनों को कम फायदा मिलेगा. यदि इस पर्सेंटेज रेट को और बढ़ाया जाता है तो इसका उल्टा होने की भी संभावना है. यह सब विसंगति इसलिए हुई है क्योंकि पहले सेइस पर्सेंटेज को बनाए रखने (मेनटेन) के लिए अलग-अलग कैडर के लिए अलग-अलग नियम लागू किए जाते रहेहैं और ऐसा करके भारी पक्षपात किया जाता रहा है. यदि अब और पक्षपात किया गया अथवा यही स्थिति जारी रही तो अलग-अलग डिवीजनों के लिए अलग-अलग जेसीएम एवं एनॉमली कमेटी गठित करने की नौबत भी सकती है.

फिलहाल तो रेलवे बोर्ड ने कुछ सेलेक्शन एवं नॉन सेलेक्शन पोस्टों पर चयन एवं पदोन्नति पर रोक लगा रखी है. कर्मचारियों को इस बात की भी आशंका सता रही है कि एनॉमली कमेटी की रिपोर्ट भी शायद जल्दी नहीं आयेगी और यदि भी गई तो जल्दी लागू नहीं हो पाएगी, क्योंकि जहां चौथे और पांचवें वेतन आयोगों की विसंगतियों कोआज तक दूर नहीं किया जा सका हो, वहां 6वें वेतन आयोग की ढेरों विसंगतियों को दूर करने में कितना समय यावर्ष लग जाएंगे. इसकी कल्पना मुश्किल है. इस आशंका का समाधान विसंगति समिति की रिपोर्ट आने के बाद हीहो पाएगा. तथापि कर्मचारियों की उससे यह उम्मीद अवश्य है कि वह क्लर्कों के कैडर सहित निचले वर्गों की पोस्टोंमें पर्याप्त वृद्धि की सिफारिश करके रिस्ट्रक्चरिंग के जरिए उनके प्रमोशन के अवसरों को बढ़ाएगी.

चौथे वेतन आयोग से लेकर आज तक जो सबसे बड़ी विसंगति चली रही है और जिसका समाधान कोई विसंगति समिति नहीं करा पाई है, वह है रेलकर्मियों को मिलने वाले मुफ्त यात्रा पासों का श्रेणी निर्धारण हो पाना. इसी वजह से रेलों के दोनों लेबर फेडरेशन जेई -I एवं जेई -II को फस्र्ट क्लास मुफ्त यात्रा पास मुहैया कराने में पूरी तरह विफल रहे हैं. जबकि उनसे निचले स्तर के कर्मचारियों को यह सुविधा पहले ही मिल रही है. अब तक यह सुविधा कर्मचारी की सेवा में नियुक्ति होने के समय और वह किस ग्रेड में नियुक्त हुआ है, इस पर निर्धारित होतीथी. परंतु अब शायद यह नियम ग्रेड पे के अनुसार निर्धारित होगा..? वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के तुरंत बाद रेलवे बोर्ड ने नर्सों एवं टीचरों को 5300 ग्रेड पे लागू कर दी, जो कि एक एक्जीक्यूटिव ग्रेड के अधिकारी को दीगई ग्रेड पे से भी ज्यादा है. हमारा मानना है कि नर्सों/टीचरों को 5300 ग्रेड पे देने में कोई हर्ज नहीं है. परंतु उसी अनुपात में उनसे ऊपर और नीचे के कैडरों का भी ख्याल रखा जाना चाहिए था. बोर्ड में बैठे तथाकथित विशेषज्ञों कोयदि इस मुंह चिढ़ाने वाली विसंगति को पैदा करने के लिए दंडित किया जाए तो आगे ऐसी विसंगति नहीं होगी. अब ग्रेड पे देने से नर्सों एवं टीचरों को या तो फस्र्ट- सफेद पास दिया जाना चाहिए या फिर समस्त पास नियमों को ही बदला जाना चाहिए. जबकि पांचवें वेतन आयोग द्वारा की गई सिफारिश और सरकार द्वारा उसकी स्वीकृति के बावजूद आज तक रेलकर्मियों को पीले पास (येलो पास) के दर्शन तक नहीं हो पाए हैं. यह भी अपने आप में एकबहुत बड़ी विसंगति है, जिसे दोनों लेबर फेडरेशन भी आज तक लागू नहीं करा पाए हैं.

तथापि केंद्र सरकार एवं रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) ने मिलकर सरकारी कर्मचारियों (पढ़ें रेल कर्मचारियों) को उनके एरियर्स की दूसरी किस्त के भुगतान से पहले ही उनके भविष्य और भावी कैरियर पर कुठाराघात करना शुरू करदिया है. उम्मीद है कि यह विसंगति समिति सेलेक्शन तथा नॉन सेलेक्शन पोस्टों के मर्जर से पैदा हुई समस्या का कोई कोई मान्य समाधान अवश्य ही और शीघ्र ही खोज निकालेगी और कर्मचारियों की वरिष्ठता का भी नुकसान नहीं होने देगी. इसी प्रकार उनके सेलेक्शन और प्रमोशन पर चल रही पाबंदी को भी शीघ्रातिशीघ्र हटवाने का प्रयास किया जाएगा. और यदि आवश्यक हो तो 'वन टाइम लिबरल सेलेक्शन' की छूट सभी कैडरों को देकर इस विसंगति को तुरंत दूर किया जाना चाहिए तथा पिछले 20-22 वर्षों से चली रही पास संबंधी विसंगति को भी यथाशीघ्र और निश्चित रूप से खत्म कराने का प्रयास किया जाएगा.
सुरेश त्रिपाठी
उम्मीद पर दुनिया कायम

छठवें वेतन आयोग की सिफारिशों पर विसंगति समिति का

सितंबर 2008 में 6वें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने की जब से घोषणा की गई और यह लागू हुई, तब से लेकर अब तक इसमें सैकड़ों विसंगतियां सामने चुकी हैं। कहीं तो मनमानी तौर पर ग्रेड पे और वेतनमान लागू कर दिए गए तो कहीं किसी कैटेगरी विशेष को भेदभावपूर्ण तरीके से एक्जीक्यूटिव श्रेणी से भी ज्यादा ग्रेड पे दे दी गई। मात्र कुछ पे बैंड्स में सभी वर्गों को समेट दिए जाने से भी काफी विसंगतियां पैदा हुई हैं। इससे कार्मिक अधिकारी भी बुरी तरह परेशान हुए हैं. इन सबके चलते सरकार पर विसंगति समिति (एनॉमली कमेटी) के गठन के लिए श्रम संगठनों का भारी दबाव था. आखिर डीओपीटी ने दि. 2.4.09 (पत्र सं. 11/02/2008-जेसीए) को एक नोटिफिकेशन निकालकर विसंगति समिति के गठन की घोषणा कर दी है. इस समिति में रेलवे की तरफ से एआईआरएफ के अध्यक्ष कॉ. उमरावमल पुरोहित, महासचिव कॉ. शिवगोपाल मिश्रा, कार्याध्यक्ष कॉ. राखालदास गुप्ता, एनएफआईआर के अध्यक्ष श्री गुमान सिंह, महासचिव श्री एम. राघवैय्या और कार्याध्यक्ष श्री आर. पी. भटनागर को नामांकित किया गया है.

हालांकि यह विसंगति समिति वेतन आयोग की सिफारिशों में तो कोई फेरबदल नहीं कर सकती है, मगर उसकी सिफारिशों में जो विसंगतियां हैं उन्हें दुरुस्त करने के सुझाव सरकार को दे सकती है. अब देखना यह है कि यह समिति बिना किसी कर्मचारी की भावनाओं को ठेस पहुंचाए उसके वेतन संबंधी नुकसान की भरपाई कैसे करवा पाती है? हालांकि 6वें वेतन आयोग के गठन के बाद 'रेलवे समाचारÓ ने आयोग को तब भी यह सुझाव दिया था कि उसे अपनी सिफारिशें कुछ इस तरह करनी चाहिए कि चौथे-पांचवें वेतन आयोग की जो विसंगतियां आज तक खत्म नहीं हो पाई हैं, उन्हें दूर करते हुए आयोग को 'विसंगति निवारण आयोगÓ की तरह काम करते हुए दिखाई देना चाहिए. ताकि विसंगति समिति के गठन की नौबत ही आए. परंतु अफसोस के साथ यह कहना पड़ रहा है कि 6वां वेतन आयोग खुद में एक बहुत बड़ा 'विसंगति आयोगÓ बन गया.

रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) को रेल कर्मचारियों के एरियर्स की दूसरी किस्त के भुगतान की उतनी चिंता नहीं है, जितनी कि 6वें वेतन आयोग की भारी विसंगतिपूर्ण सिफारिशों को आनन-फानन लागू कर देने की रही है. इसी के चलते तमाम कैटेगरी के विभागीय चयन एवं पदोन्नतियों पर रोक लगा दी गई. कुछ रेलों में ही नहीं बल्कि लगभग सभी रेलों में क्लर्कों सहित नीचे स्तर के सभी चयन स्थगित कर दिए गए, जो कि ..रे. जैसी रेलों में आज भी बोर्ड के क्लीयरेंस का इंतजार कर रहे हैं. जहां करीब 25-26 क्लर्कों के लिखित परीक्षा परिणाम तो घोषित कर दिए गए, मगर उनकी पदोन्नति-पदस्थापना आज करीब 6 महीने बाद भी नहीं हो पाई है. पास हुए कर्मचारियों और प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि चूंकि एक यूनियन विशेष के कुछ पदाधिकारी या तथाकथित कार्यकर्ता इस परीक्षा में पास नहीं हुए हैं, इसलिए उसके पदाधिकारियों ने रेल प्रशासन पर दबाव डालकर इन क्लर्कों की पदस्थापना रुकवाई हुई है.

बोर्ड के इसी विसंगतिपूर्ण निर्णय के कारण कुछ सेलेक्शन एवं नॉन सेलेक्शन पोस्टों को आपस में मर्ज कर दिया गया. कथित सरप्लस कर्मचारियों के लिए स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति योजना ï(वीआरएस) लागू कर दी गई. कॉमन कैटेगरी नियम का घोर उल्लंघन करते हुए नर्सों एवं टीचरों को 5300 रु. का ग्रेड पे दे दिया गया. पांचवें वेतन आयोग के पास एलिजिबिलिटी रूल को फ्रीज कर दिया गया. कुछ सेलेक्शन एवं नॉन सेलेक्शन पोस्टों के सेलेक्शन/प्रमोशन पर रोक लगा दी गई आदि.

अब रेल मंत्रालय ने अपनी उपरोक्त तमाम विसंगतियां (गलतियां) करने के बाद उन्हें दूर करने या सुधारने के लिए विसंगति समिति का गठन किया है. अब भले ही पहले की भांति यह एक औपचारिकता (स्थायी विसंगति) हो, मगर कर्मचारियों के संतोष के लिए तो यह सब ड्रामेबाजी सरकार और श्रम संगठनों दोनों को करनी ही पड़ती है. इसके अलावा कर्मचारियों की भी यही सोच होती है. सब नहीं तो कुछ कुछ तो मिल ही जाएगा. यानी कि उम्मीद पर दुनिया कायम है.

अब जहां सेलेक्शन और नॉन सेलेक्शन ग्रेड को मर्ज किया गया है, तो इसमें कर्मचारियों की सीनियरिटी (वरिष्ठता) को बनाए रखने के लिए इसके नियमों को बदलना पड़ेगा. क्योंकि लगभग सभी कर्मचारियों और अधिकारियों का ग्रेड एवं ग्रेड पे एक हो गया है. किसी-किसी कर्मचारी का ग्रेड फिक्सेशन उसकी भर्ती की तिथि के हिसाब से अथवा उसके कनिष्ठ कर्मचारी की सेवा की लंबाई को मद्देनजर रख कर उसके वरिष्ठ कर्मचारी से ज्यादा हो गया है. कर्मचारी हताशा में कहते हैं, अब कौन सीनियर- कौन जूनियर, अब तो यह विसंगतियां शायद अगले या उससे अगले वेतन आयोगों में ही दूर हो पाएंगी. वहीं अब किसी एक कैडर के भिन्न वर्ग की पोस्टों के प्रतिशत को बनाए रखने का अवसर भी समाप्त हो गया है. वर्ष 2003 में रिस्ट्रक्चरिंग के जरिए कुछ निचले स्तर की पोस्टों को गंवाकर कर्मचारियों को जो कुछ हासिल हुआ था, वह पोस्टों को मर्ज किए जाने से उनका प्रतिशत संतुलन भी अब गंवाने की नौतब गई है. उदाहरण स्वरूप यहां इंजीनियरिंग विभाग के विभिन्न पदों का प्रतिशत-बैलेंस प्रस्तुत है.

क्लेरिकल आईओडब्ल्यू/पीडब्ल्यूआई ड्राइंग/डिजाइन

चीफ ओएस - 4 एसएसई - 18 एसएसई/डी 15

ओएस- ढ्ढ 8 एसई - 29 एसई/डी 30

ओएस ढ्ढढ्ढ 16 जेई ढ्ढ 24 जेई - ढ्ढ/डी 25

हेड क्लर्क 29 जेई ढ्ढढ्ढ 29 जेई-ढ्ढढ्ढ/डी 30

सीनियर क्लर्क 23

जूनियर क्लर्क 20

कुल योग 100 कुल योग 100 कुल योग 100

'रेलवे समाचारÓ के पिछले अंक में क्लर्कों की पोस्टों को खत्म अथवा न्यूनतम करने की 6वें वेतन आयोग और रेलवे बोर्ड की योजना (साजिश) के बारे में बताया गया था. उपरोक्त आंकड़े उनकी इस भावी योजना को साबित कर रहे हैं. प्रस्तुत आंकड़ों से जाहिर है कि अन्य तकनीकी पोस्टों का प्रतिशत 15 या उससे ज्यादा है जबकि क्लर्कों का प्रतिशत महज 4 है. यानी कि क्लर्कों की तरक्की के अवसर अत्यंत न्यूनतम हैं. हालांकि क्लेरिकल कैटेगरी (बाबुओं) को किसी भी संस्था का हाथ पैर कहा जाता है. उनके बिना अधिकारी वर्ग का काम नहीं चल सकता. तो जब तक ये 'हाथ-पैरÓ हिलेंगे-डुलेंगे नहीं, मेहनत नहीं करेंगे, तब तक अधिकारी वर्ग का काम कैसे चल पाएगा...?

वर्ष 2003 में हुई रिस्ट्रक्चरिंग के समय निचले स्तर की पोस्टों को सरेंडर करके ऊपर ही पोस्टों को राउंड ऑफ ï(गोलबंद) करके प्रतिशत के मुताबिक सेक्शंड स्ट्रेंग्थ बनाने की कोशिश की गई थी. परंतु अब जब तमाम पोस्टें सरेंडर हो गई हैं तो सेक्शंड स्ट्रेंथ भी घट गई है जबकि अब सेलेक्शन एवं नॉन सेलेक्शन पोस्टों को भी मर्ज कर दिया गया है. रिस्ट्रक्चरिंग की गलती को छिपाने के लिए शायद ऐसा किया गया है. अब जहां बाकी कैडर्स की पोस्टें मर्जर के बाद 50 प्रतिशत हो गई हैं, वहीं क्लर्कों की पोस्टें मात्र 10-12 प्रतिशत ही रह गई हैं. यदि इस प्रतिशत दर (पर्सेंटेज रेट) को माना जाता है तो संपूर्ण रेलवे पर एक कॉमन पर्सेंटेज बना पाना अत्यंत मुश्किल होगा क्योंकि अलग-अलग डिवीजनों की सेंक्शंड स्ट्रेंथ अलग-अलग है. यदि ऐसा होता है तो ज्यादा सेंक्शंड स्ट्रेंथ वाले डिवीजनों का ज्यादा फायदा होगा. इसी प्रकार कम सेंक्शंड स्ट्रेंथ वाले डिवीजनों को कम फायदा मिलेगा. यदि इस पर्सेंटेज रेट को और बढ़ाया जाता है तो इसका उल्टा होने की भी संभावना है. यह सब विसंगति इसलिए हुई है क्योंकि पहले से इस पर्सेंटेज को बनाए रखने (मेनटेन) के लिए अलग-अलग कैडर के लिए अलग-अलग नियम लागू किए जाते रहे हैं और ऐसा करके भारी पक्षपात किया जाता रहा है. यदि अब और पक्षपात किया गया अथवा यही स्थिति जारी रही तो अलग-अलग डिवीजनों के लिए अलग-अलग जेसीएम एवं एनॉमली कमेटी गठित करने की नौबत भी सकती है.

फिलहाल तो रेलवे बोर्ड ने कुछ सेलेक्शन एवं नॉन सेलेक्शन पोस्टों पर चयन एवं पदोन्नति पर रोक लगा रखी है. कर्मचारियों को इस बात की भी आशंका सता रही है कि एनॉमली कमेटी की रिपोर्ट भी शायद जल्दी नहीं आयेगी और यदि भी गई तो जल्दी लागू नहीं हो पाएगी, क्योंकि जहां चौथे और पांचवें वेतन आयोगों की विसंगतियों को आज तक दूर नहीं किया जा सका हो, वहां 6वें वेतन आयोग की ढेरों विसंगतियों को दूर करने में कितना समय या वर्ष लग जाएंगे. इसकी कल्पना मुश्किल है. इस आशंका का समाधान विसंगति समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही हो पाएगा. तथापि कर्मचारियों की उससे यह उम्मीद अवश्य है कि वह क्लर्कों के कैडर सहित निचले वर्गों की पोस्टों में पर्याप्त वृद्धि की सिफारिश करके रिस्ट्रक्चरिंग के जरिए उनके प्रमोशन के अवसरों को बढ़ाएगी.

चौथे वेतन आयोग से लेकर आज तक जो सबसे बड़ी विसंगति चली रही है और जिसका समाधान कोई विसंगति समिति नहीं करा पाई है, वह है रेलकर्मियों को मिलने वाले मुफ्त यात्रा पासों का श्रेणी निर्धारण हो पाना. इसी वजह से रेलों के दोनों लेबर फेडरेशन जेई ढ्ढ एवं जेई ढ्ढढ्ढ को फस्र्ट क्लास मुफ्त यात्रा पास मुहैया कराने में पूरी तरह विफल रहे हैं. जबकि उनसे निचले स्तर के कर्मचारियों को यह सुविधा पहले ही मिल रही है. अब तक यह सुविधा कर्मचारी की सेवा में नियुक्ति होने के समय और वह किस ग्रेड में नियुक्त हुआ है, इस पर निर्धारित होती थी. परंतु अब शायद यह नियम ग्रेड पे के अनुसार निर्धारित होगा..? वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के तुरंत बाद रेलवे बोर्ड ने नर्सों एवं टीचरों को 5300 ग्रेड पे लागू कर दी, जो कि एक एक्जीक्यूटिव ग्रेड के अधिकारी को दी गई ग्रेड पे से भी ज्यादा है. हमारा मानना है कि नर्सों/टीचरों को 5300 ग्रेड पे देने में कोई हर्ज नहीं है. परंतु उसी अनुपात में उनसे ऊपर और नीचे के कैडरों का भी ख्याल रखा जाना चाहिए था. बोर्ड में बैठे तथाकथित विशेषज्ञों को यदि इस मुंह चिढ़ाने वाली विसंगति को पैदा करने के लिए दंडित किया जाए तो आगे ऐसी विसंगति नहीं होगी. अब 5300 ग्रेड पे देने से नर्सों एवं टीचरों को या तो फस्र्ट- सफेद पास दिया जाना चाहिए या फिर समस्त पास नियमों को ही बदला जाना चाहिए. जबकि पांचवें वेतन आयोग द्वारा की गई सिफारिश और सरकार द्वारा उसकी स्वीकृति के बावजूद आज तक रेलकर्मियों को पीले पास (येलो पास) के दर्शन तक नहीं हो पाए हैं. यह भी अपने आप में एक बहुत बड़ी विसंगति है, जिसे दोनों लेबर फेडरेशन भी आज तक लागू नहीं करा पाए हैं.

तथापि केंद्र सरकार एवं रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) ने मिलकर सरकारी कर्मचारियों (पढ़ें रेल कर्मचारियों) को उनके एरियर्स की दूसरी किस्त के भुगतान से पहले ही उनके भविष्य और भावी कैरियर पर कुठाराघात करना शुरू कर दिया है. उम्मीद है कि यह विसंगति समिति सेलेक्शन तथा नॉन सेलेक्शन पोस्टों के मर्जर से पैदा हुई समस्या का कोई कोई मान्य समाधान अवश्य ही और शीघ्र ही खोज निकालेगी और कर्मचारियों की वरिष्ठता का भी नुकसान नहीं होने देगी. इसी प्रकार उनके सेलेक्शन और प्रमोशन पर चल रही पाबंदी को भी शीघ्रातिशीघ्र हटवाने का प्रयास किया जाएगा. और यदि आवश्यक हो तो 'वन टाइम लिबरल सेलेक्शनÓ की छूट सभी कैडरों को देकर इस विसंगति को तुरंत दूर किया जाना चाहिए तथा पिछले 20-22 वर्षों से चली रही पास संबंधी विसंगति को भी यथाशीघ्र और निश्चित रूप से खत्म कराने का प्रयास किया जाएगा.

सुरेश त्रिपाठी