Thursday 28 August, 2008

डबल ऍफ़ एस आई मिली, MD/MRVC को इसका सारा श्रेय

मुंबई रेल विकास कारपोरेशन (एम्आरवीसी) के प्रबंध निदेशक डा. पी. सी. सहगल के अथक प्रयासों से बांद्रा स्टेशन से लगे कीमती प्लाट की ऍफ़एसआई महाराष्ट्र सरकार ने बढाकर डबल यानि ४ कर दी है।
ज्ञातव्य है की यह मामला पिछले करीब दो सालों से अटका पड़ा था। कई अटकलें लगाईजा रही थीं क्योंकि फालोअप आरएलडीऐ द्वारा किया जा रहा था। डा. सहगल की इस महत्त्वपूर्ण उपलब्धि से एमयुटीपी II प्रोजेक्ट को गति मिल जायेगी। एमयुटीपी II के अंतर्गत डी सी / ऐ सी कन्वर्जन और कुर्ला-ठाणे के बीच की दो लाइनें और झोपडियों का पुनर्वसन आदि का काम होना है। इसकी कुल लागत ५,३०० करोड़ रुपये है। इसमें २००० करोड़ रुपये का कर्ज विश्व बैंक से मिलने की उम्मीद है। बाकि रकम बांद्रा के इस प्लाट का कमर्शियल विकास करके जुटाई जायेगी।
रेलवे ने बांद्रा के इस प्लाट के कमर्शियल विकास को पहले ही क्लीयर कर दिया है। महाराष्ट्र सरकार ने डबल ऍफ़ एस आई इसी शर्त पर दिया है की इसके कमर्शियल विकास से जुताई जाने वाली राशि मुंबई की रेल परियोजनाओं का विकास किया जाएगा।
डा. सहगल का कहना है की रेलवे ने महाराष्ट्र सरकार को आश्वस्त किया है की इस प्लाट की बिक्री से मिलने वाली अधिकतम राशि को मुंबई की रेल परियोजनाओं के लिए ही खर्च किया जाएगा जिससे एम यु टी पी II की फंडिंग में कोई समस्या नहीं आएगी। उन्होंने कहा की विश्व बैंक से २००० करोड़ रुपये का कर्ज लेने की योजना है और बाकी रकम इस प्लाट के कमर्शियल विकास से जुताई जायेगी। यदि फ़िर भी रकम कम पड़ती है तो उसे रेलवे और राज्य सरकार मिलकर पूरा करेंगे।

IRPS के लिए डीआरएम् पोस्टें इयरमार्क करने में रेलवे बोर्ड विफल

एम्एस, ऐएम्/एस और चेयरमैन/आरआरबी की
पोस्टों पर सिर्फ़ आईआरपीएस की ही पोस्टिंग हो
रेलवे बोर्ड की अंदरूनी राजनीती से नैन मिल पाता कईयों को उनका हक
रेलवे में वर्ष १९८५ से शुरू हुई इंडियन रेलवे पर्सनल सर्विस (आईआरपीएस) के अधिकारी अब तक के सबसे दबे - कुचले रेल अफसर बन कर रह गए हैं। इन्हें न तो प्रिंसिपल सीपीओ, आरआरबी चेयरमैन, मेंबर स्टाफ, एडिशनल मेंबर स्टाफ की पोस्टें, जो इनके हक़ की हैं, दी जा सकी हैं और न ही अब तक ऐडीआरएम्, डीआरएम् और जीएम् आदि पोस्टों को इनके लिए इयरमार्क किया जा सका है। ऐसा न हो पाने के कारण इस कादर के अधिकारियों को ऊपर की पोस्टों के लायक ही माना जा रहा है। जिससे यह अधिकारी बुरी तरह हीनभावना का शिकार हो रहे हैं। इसके परिणाम स्वरुप रेलवे पर अदालती मामलों की भरमार हो रही है और जो मामले डिपो, ब्रांच, मंडल या मुख्यालय तक ही हो जाने चाहिए ऐसे सामान्य मामले में भी रेल कर्मचारियों और अधिकारियों को न्याय पाने के लिए अदालत का सहारा लेना पड़ रहा है।
niyam के अनुसार डीआरएम् के लिए दो प्रतिशत पोस्टें आईआरपीएस के लिए भी इयरमार्क होनी चाहिए मगर रेलवे बोर्ड ऐसा जानबूझकर नहीं कर रहा है, यह कहना है कई आईआरपीएस अधिकारियों का। उनका कहना था की कई आईआरपीएस इस बार योग्यता में थे फ़िर भी उन्हें मौका नहीं दिया गया।
आईआरपीएस अधिकारियों का कहना है की जब तक Zonal PHOD, चेयरमैन/आरआरबीऔर एम्एस, ऐएम्/एस की पोस्टों पर आईआरपीएस अधिकारियों को नहीं पोस्ट किया जाएगा तब तक रेलवे में कार्मिक मामलों की विसंगतियां दूर नहीं होंगी, उनका कहना था की उन्हें ऐडीआरएम्, डीआरएम् और जीएम् नहीं बनाये जाने से बोर्ड मेंबर की पोस्टें नहीं मिल पाती है, इसके अलावा कुछ कादर विशेष के अधिकारी पर्सनल की महत्वापूर्ण पोस्टों को छोड़ना नहीं चाहते हैं।
हालाँकि कुछ आईआरपीएस अधिकारियों का यह भी कहना था की कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है। उनका तात्पर्य यह था की कादर एडजस्टमेंट और मन पसंद पोस्टिंग का मोह आई आर पी एस अधिकारियों को छोड़ना पड़ेगा।

Tuesday 26 August, 2008

SDGM/WCR द्वारा पद का दुरुपयोग

पश्चिम मध्य रेलवे (WCR) जबलपुर के SDGM/CVO ने न सिर्फ़ अपने पद का दुरुपयोग करते हुए रेलवे को अब तक करोड़ों का चूना लगाया है बल्कि अपने कुछ बिरादरी भाइयों को सिर्फ़ काउंसिलिंग करके भी बख्शा है, जिनको वास्तव में मेजेर चार्जशीट मिलनी चाहिए थी। जबकि इसके अन्य काडेर्स के अधिकारियों और ख़ास तौर पर ट्रेफिक के अधिकारियों को अपना ख़ास निशाना बनाया है। अपनी ख़ुद की फाइल दबाकर न सिर्फ़ स्वयं को बचाने का प्रयास किया है, बल्कि अपने जैसे कुछ अन्य भ्रष्ट अफसरों को भी अपने साथ अभयदान दिया है। पता चला है की कोटा, सवाई माधोपुर और भोपाल स्टेशनों के सफाई कोन्त्रक्ट की फाइलें दबाने के आरोप में SDGM/WCR के ख़िलाफ़ CVC की जांच शुरू हो गई है।

सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्तमान एस डीजी एम् /रे श्री पूनिया जब ऐ डी आर एम् / कोटा हुआ करते थे तब कोटा एवं सवाई माधोपुर स्टेशन का सफाई ठेका हुआ था। यह टेंडर तत्कालीन सीनियर डी सी एम् /कोटा श्री वी के शुक्ला ने किया था। परन्तु इसमें बोर्ड की गाइड लाइन और सुधीर चंद्र कमिटी की सिफारिशों को पूरी तरह नजर अंदाज किया गया था। गाइड लाइन के अनुसार यह टेंडर दो पैकेट सिस्टम के अनुसार होना चाहिए था। बताते हैं की उक्त टेंडर में यह व्यवस्था अपनाई ही नहीं गई थी। बल्कि व्यवस्था के अनुसार इसका अप्रूवल सी सी एम् और जी एम् से लिया ही नहीं गया था। सीनियर डी सी एम् ने सीधे ऐ डी आर एम् (पूनिया) से ही इसका अप्रूवल लेकर टेंडर जारी कर दिया था।

इसके अलावा बताते हैं की लोएस्ट पार्टी को भी जानबूझकर कुछ निहित स्वार्थों के चलते बायपास किया गया था। सूत्रों का कहना है की लोएस्ट पार्टी से यह कहा गया था की उसे रेलवे के सफाई कर्मियों को भी रखना होगा और आधी टेंडर राशि ऐ डी आर एम् और सीनियर डी सी एम् को बांटनी होगी। सूत्रों का कहना है की इस पर जब लोएस्ट पार्टी तैयार नहीं हुई तो उसे बायपास कर दिया और यह टेंडर सेकंड लोएस्ट पार्टी को दे दिया गया था। क्योंकि उसने उपरोक्त शर्त मंजूर कर ली थी।

बताते हैं की इसके बाद सेकंड पार्टी को कोटा एवं सवाई माधोपुर स्टेशनों के सभी सफाई कर्मचारी दे दिए गए थे और वह बिना अपने आदमी लगाए ही दोनों स्टेशनों की tathakathit सफाई रेलवे के सफाई कर्मियों से ही कराने लगी। पता चला है की तब कोटा स्टेशन पर करीब १५ और सवाई माधोपुर स्टेशन पर लगभग १० रेलवे सफाई कर्मचारी थे। इन सब को बोर्ड की गाइड लाइन के अनुसार group 'सी' एवं 'डी' स्टेशनों पर सफाई के लिए भेजा जाना था। परन्तु कोन्त्रक्टोर को इन्हें देकर उसे भारी लाभ पहुंचाया गया। सूत्रों का कहना है की यह सब तत्कालीन ऐ डी आर एम् श्री पूनिया की शेह पर हुआ था।

प म रे विजिलेंस ने इसकी शिकायत होने पर जांच शुरू की थी और अपनी प्राथमिक जांच में विजिलेंस ने श्री पूनिया और शुक्ला को दोषी पाया था। यह जांच अभी पुरी भी नहीं माधोपुर पायी थी की श्री पूनिया का ऐ डी आर एम् / कोटा का कार्यकाल ख़त्म हो गया और वे पुरी जुगाड़ लगाकर एस डी जी एम् / प म रे की पोस्ट पर काबिज होने में सफल हो गए। बताते हैं की इस पोस्ट पर आते ही श्री पूनिया ने सर्वप्रथम कोटा एवं सवाई माधोपुर स्टेशनों के सफाई ठेके से सम्बंधित फाइल को अपने पास माँगा कर रख लिया और उस पर आगे की साड़ी कार्यवाही को स्थगित कर दिया।


इसी बीच भोपाल मंडल के ऐसे ही एक अन्य सफाई ठेके की लिखित शिकायत सीनियर दी सी एम् / भोपाल श्री वी के अवस्थी के ख़िलाफ़ विजिलेंस को मिली। इस शिकायत को भी श्री पूनिया ने इसलिए खास तौर पर दबा दिया क्योंकि यदि वह भोपाल मंडल के इस सफाई ठेके की जांच की अनुमति देते तो फ़िर कोटा और सवाई माधोपुर के सफाई ठेके की जांच, जो स्वयं उनके ही ख़िलाफ़ थी और जिसे वह दबाये एवं स्थगित किए बैठे थे, की भी जांच और चर्चा रेलकर्मियों और अधिकारियों में जोर शोर से शुरू हो जाती। इसलिए श्री पूनिया ने भोपाल मंडल के भी सफाई ठेके की शिकायत को भी दबा दिया।


यही नहीं, सूत्रों का कहना है की कोटा एवं सवाई माधोपुर स्टेशनों का सफाई त्जेका समाप्त होने पर बिना किसी अप्रूवल के ही उसे और दो साल का एक्सटेंसन भी श्री पूनिया की शेह पर दे दिया गया? इस तरह श्री पूनिया ने रेल सफाई कर्मियों के वेतन के रूप में रेलवे को करीब ६५ लाख का चूना लगाया? जो की इसके दो साल के एक्सटेंसन और भोपाल मंडल के साथ मिलकर करोड़ों का हो गया है? इसके अलावा उन्होंने इंजीनियरिंग के कई अधिकारयों को सिर्फ़ काउंसिलिंग करके छोड़ दिया है जबकि उन्हें मजेर चार्जशीट मिल सकती थी।


पता चला है की रेलवे बोर्ड ने इन दोनों मामलों की जांच शुरू कर दी है और यह जांच रेलवे बोर्ड के डायरेक्टर श्री संजय कुमार (आईपीएस) को सौंपी गई है जिनके मार्गदर्शन में पिछले दिनों आरपीएफ के लोगों ने मामलों से सम्बंधित सभी फाइलें जप्त कर ली हैं। परन्तु आश्चर्य इस बात का व्यक्त किया जा रहा है की अब तक श्री पूनिया का उनकी पोस्ट से हटाया क्यों नहीं गया है? क्योंकि इससे रेल कर्मचारियों और अधिकारियों में एक ग़लत संदेश जा रहा है।

Sunday 24 August, 2008

डी एल डबल्यू में ३७५ करोड़ का कमीशन घोटाला

सीबीआई ने शुरू की DLW कमीशन ghotaale की jaanch
रेलवे बोर्ड में ruke कई बड़े tender
NEI/जयपुर में HADKAMP
सीबीआई, CVC, PMO, CBDT, CBEC, RBI ALERT
SURESH TRIPATHI

मुंबई : डीजल लोकोमोटिव वर्क्स (डी एल डबल्यू ) वाराणसी भारतीय रेल की एक महत्वपूर्ण डीजल रेल इंजन निर्माण ईकाई है। यहाँ भा. रे. के लिए उच्चगुणवत्ता के डीजल इंजनों का निर्माण किया जाता है। सन १९९९ में रेलवे बोर्ड ने हाई हार्स पावर डीजल इंजनों के निर्माण हेतु अमेरिका की बहुराष्ट्रीय कंपनी EMD/USA के साथ एक समझौता किया था जिसके tahat EMD/USA से हाई हार्स पावर के १० डीजल इंजनों का आयात और उनकी निर्माण तकनीक का ट्रांसफर (टी ओ टी ) का समझौता हुआ था।
वर्ष १९९५ से पहले यानी EMD/USA के साथ टीओटी ट्रांसफर एग्रीमेंट होने से पहले DLW ३५०० हार्स पावर के डीजल इंजनों का निर्माण किया जा रहा था जिनकी लागत ५-६ करोड़ रुपये प्रति इंजन आ रही थी जबकि मात्र ४००० हार्स पावर के इंजन बनाने के लिए EMD/USA के साथ जो समझौता हुआ उससे इस इंजन की लागत बढ़कर सीधे १२ से १५ करोड़ पहुँच गई। सिर्फ़ ५०० हार्स पावर ज्यादा के लिए प्रति इंजन गुना से ज्यादा कीमत देना कहाँ की समझदारी कही जायेगी?
क्या यह अक्लमंदी का सौदा था? शायद नहीं, मगर भा. रे. के तत्कालीन कर्णधारों ने अपनी इस अक्लमंदी के चलते को सिर्फ़ इस एक डील के जरिये ही कई सौ करोड़ का चुना लगा दिया। कमाल यह है की यह संदिग्ध डील किसी भी भारतीय जांच एजेंसी की नजर में आज तक नहीं आ पाई है, जबकि बोफोर्स कमीशन काण्ड के मात्र ६४ करोड़ के घोटाले के कारण देश की सरकार तक पलट गई थी।
वर्ष १९९५ में इ एम् डी के साथ हुई टी ओ टी डील में उसके भारतीय एजेंट 'एनइआई/जयपुर' को जो ५% का कमीशन दिया जाना तय हुआ था वह अब तक बदस्तूर जारी है, जबकि यह कमीशन EMD/USA से आयातित सिर्फ़ १० इंजनों तक सीमित था, मगर एनइआई को यह कमीशन डीएलडबल्यू द्वारा EMD/USA से आयातित प्रत्येक आयात पर आजतक दिया जा रहा है, इसी को 'अंधेर नगरी चौपट राजा' कहा जाता है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार DLW में सालाना करीब १२०० करोड़ की मशीनरी और कल पुर्जों का आयात विभिन्न विदेशी कंपनियों से किया जाता है, जिसमें ५०० करोड़ से भी ज्यादा का सालाना आयात सिर्फ़ EMD/USA से होता है। EMD/USA से यह आयात १९९४-९५ से हो रहा है। इसके लिए EMD/USA को ९५% का भुगतान बैंकों के माध्यम से होता है जबकि ५% (कमीशन) का भुगतान एनइआई/जयपुर को किया जाता रहा है। जोकि सालाना औसतन २५ करोड़ रुपये होता है। इस प्रकार पिछले १५ वर्षों के दौरान एनइआई/जयपुर को बिना कुछ किए धरे ही करीब ३७५ करोड़ रुपये का कथित कमीशन भुगतान किया गया है। जबकि DLW सूत्रों का कहना है की यह ५% कमीशन कुल लगाई गई कीमत के अलावा दिया गया है। इससे यह अंदाज लगाया जा सकता है की घपला किस गहराई तक है?
परन्तु सूत्रों का कहना है की इस ५% कमीशन को कोटेड टेंडर वैल्यू का ही हिस्सा माना गया। रेलवे बोर्ड के लेटर न. ९८/ आरएसऍफ़ /४६६/१/पीएल (जीपी १२९) दिनांक २०.०१.१९९९ के अनुसार पहली बार DLW के एक रेट कांट्रेक्ट में बोर्ड ने EMD/USA दी से १० डीजल इंजनों के आयात के समय यह इंतजाम किया था। परन्तु यह कमीशन इसके बाद DLW में बनने वाले हाई हार्स पावर लोकोमोटिव और उनके मेंटिनेंस के लिए EMD/USA से होने वाली प्रत्येक खरीद/आयात पर एनइआई/जयपुर को दिया जाने लगा। जबकि उनमें इसका कोई प्रावधान नहीं था।

इस पूरे कमीशन घोटाले को देखने पर यह साफ़ हो जाता है की EMD/USA के भारतीय एजेंट एनइआई/जयपुर ने DLW को अपनी कोई भी सेवाएं नहीं दी हैं और न ही EMD/USA ने उसके माध्यम से आपूर्ति आर्डर पाकर कोई भी सामान दी एल डबल्यू को भेजा है। इसलिए एनइआई/जयपुर को आजतक दिया गया करोड़ों रुपये का सारा कमीशन संदिग्ध है।

इस सम्बन्ध में वित्त मंत्रालय द्वारा जारी OM No. F/23(1)EII(A/89) Dated 31.01.1989 को अग्रसारित करते हुए रेलवे बोर्ड ने अपने लेटर न. ८९ आरएस (जी)/७७९/६, दिनांक २०.०४.१९८९ में कोई दिशा निर्देश न देते हुए एजेंसी कमीशन के बारे में सिर्फ़ इतना ही कहा है की सामानों के आयात के लिए दिए जाने एजेंसी कमीशन के सम्बन्ध में वित्त मंत्रालय के एन्फोर्समेंट डायरेक्टोरेट को सूचित किया जाए।

DLW के बिड document में मांगी गई १६ प्रकार की जानकारी tenderer/manufacturer/principal और उनके भारतीय agent/associats को aavashyak रूप से देनी पड़ती है। मगर in mein से कोई भी जानकारी EMD/USA या NEI/JP में से किसी ने भी नहीं दी है।
नियम के हिसाब से भारतीय एजेंट का पंजीकरण डायरेक्टर जनरल / सप्लाईज एंड डिस्पोजल के पास होना अनिवार्य है। यहाँ तक की EMD/USA और उसके भारतीय एजेंट NEI/JP के बीच कोई लिखित अग्रीमेंट भी नहीं था। यह मांगे जाने पर हाल ही में बना कर दिया गया है। इस अग्रीमेंट में भी जो लिखा गया है उससे भी यह साफ़ जाहिर है की NEI/JP को कोई कमीशन नहीं मिलना चाहिए था। अग्रीमेंट का सम्बंधित पैरा निम्न लिखित है-
"Subject to the terms and conditions hereof, EMD hereby appoints Representative as a sales representative to act, and Representative hereby agrees to act, in promoting the sales by EMD to purchagers in India, of complete diesel locomotives and partially knocked down locomotives manufactured by EMD for use exclusively in India, (here in after reffered to as "products")and of spare parts and components on or in connection with such products, (here in after reffered to as "parts")."
EMD/USA और NEI/JP के बीच हड़बड़ी में बनाकर दी एल डबल्यू को सौंपे गए अग्रीमेंट के उपरोक्त प्रमुख पैरा को देखने से साफ़ जाहिर होता है की उनका यह अग्रीमेंट EMD/USA द्वारा निर्मित लोकोमोतिव्स और उनमें लगाने वाले स्पेयर पार्ट्स की सप्लाई तक ही सीमित है। यानी DLW द्वारा जो पार्ट्स और सब-असेम्बलीज का आयात स्वयं EMD/USA से किया जाता है, वह इस अग्रीमेंट में शामिल नहीं है। इस वस्तुस्थिति को देखते हुए साफ़ जाहिर है की EMD/USA के सभी कान्त्रेक्ट्स में बोर्ड द्वारा NEI/JP को १५ वर्षों से दिया जा रहा ५% का एजेंसी कमीशन पूरी तरह संदिग्ध और फर्जी है।
सूत्रों का कहना है की उपरोक्त तमाम सन्दर्भों में DLW द्वारा मांगे गए स्पष्टीकरण में बोर्ड ने ताका सा जवाब देते हुए अपने समसंख्यक पत्र दिनांक १२.०६.२००८ में कहा है की DLW को यह मामला रेलवे बोर्ड को रेफर करने से पहले अपने लीगल डिपार्टमेंट की सल्लाह लेनी चाहिए थी और इसी के साथ फ़िर से बोर्ड ने वित्त मंत्रालय के उपरोक्त कार्यालय ज्ञापन दिनांक ३१.०१.१९८९ की एक कॉपी वित्त मंत्रालय की वेब साईट से डाउन लोड करके पुनः दी एल डबल्यू को दे मारा है।
तत्पश्चात DLW के असिस्टेंट ला ऑफिसर (ALO) ने दिनांक १९.०६.२००८ को और उससे पहले डिप्टी FA/DLW ने दिनांक २७.०५.२००८ को EMD/USA और NEI/JP के बीच हुए एवं उनके द्वारा DLW को प्रस्तुत किए गए अग्रीमेंट पर अपनी 'ओपीनियन' देते हुए लिखा है की -
"From the above, it may be seen that agency commission was/is payble only with respect to purchases of all CKD/PKD locomotives manufactured by EMD for exclusive use in India and purchases of all spare parts and components in connection with such locomotives only and not for any other purchases..."
इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है की NEI/JP को पिछले १५ वर्षों से एजेंसी कमीशन के नाम पर यह भारी भरकम कमीशन बिना किसी वाजिब कारण और बिना किसी काम के ही दिया जा रहा था? जबकि वित्त मंत्रालय की guideline के अनुसार किसी videshi कंपनी के भारतीय एजेंट को उसकी after sales सर्विस या instalation/commissioning या waranty replacement के लिए ही दिया जा सकता है। जबकि NEI/JP द्वारा उपरोक्त में से कोई भी काम DLW के लिए नहीं किया जा रहा था। ऐसे में यह सवाल पैदा होता है की फ़िर किस बात के लिए NEI/JP को ५% का भारी-भरकम कमीशन दिया गया...?
पता चला है की COS/DLW द्वारा मांगे जाने पर १५ साल में pahli बार यह अग्रीमेंट NEI/JP ने turant banakar लाकर प्रस्तुत किया है। इस में यह kahin नहीं लिखा है की जो स्पेयर पार्ट्स एवं components आदि DLW द्वारा EMD/USA से सीधे और स्वयं mangaaye जायेंगे और उन spares से ख़ुद DLW द्वारा injan बनाये जायेंगे, उन पर भी उसे कमीशन दिया जाएगा या उन पर भी यह अग्रीमेंट lagoo होगा। इससे भी यह स्पष्ट है की abtak जो कमीशन NEI/JP को दिया गया, वह ग़लत है और इस तरह janta की gaadhi कमाई को saajishpurna tarike से hadpaa जा रहा है।
पता चला है की यही कमीशन देने से इनकार करने पर COS/DLW का transfer करते दिया गया जो की यहाँ सिर्फ़ ६-७ महीने पहले ही जयपुर से transfer होकर आए थे। इसी तरह COS का साथ देने वाले FA&CAO को भी shift करते दिया गया जिससे DLW के सभी karmchariyon और adhikariyon में संदेश गया की इतने बड़े मामले को dabaya जा रहा है। पता चला है की इस uchcha stariya ghotale में DLW और रेलवे बोर्ड के कुछ uchcha adhikari शामिल हैं, जिनको न सिर्फ़ इसका hissa मिलता रहा है बल्कि एन इ आई द्वारा उनके videsh भ्रमण का भी intajaam किया जाता रहा है।
इसके alaawa पता चला है की यही एन इ आई kareeb १५० करोड़ रुपये के एक और बड़े ghotale में sanlipt है जिसे CVC और MR द्वारा लिखित रूप से kaarrawaai करने का aadesh दिए जाने के baavjood रेलवे बोर्ड ने इसे दबा दिया है?
'रेलवे समाचार' इस sampoorna कमीशन ghotale को सीबीआई, CVC, PMO, CBDT, CBEC और RBI सहित Newyork स्थित इंडियन Highcommission एवं भारत स्थित Amerikan Highcommission को bheja जा रहा है जिससे इसकी gahraai से jaanch हो सके और doshiyon की pahchaan की जा सके।
with co-operation Vijay Shankar, Beaurou Chief/NER, Gorakhpur.