Friday 4 September, 2009

चौराहे पर खड़े मजदूरों जैसी हो
जायेगी
रेलकर्मियों की हालत


कैडरों को मर्ज करके मल्टी स्किलिंग एवं
यूनिफाईड कैडर बनाने की छठवें वेतन
आयोग की सिफारिश

मुंबई : 6वें वेतन आयोग की पहली बरसी इसी महीने है क्योंकि गत वर्ष सितंबर 2008 में ही 6वें वेतन आयोग की सिफारिशें मानकर इन्हें लागू किए जाने की घोषणा तत्कालीन केंद्र सरकार ने अपने भावी राजनीतिक नफे- नुकसान को ध्यान में रखकर की थी। एक तरफ जहां सरकार इसकी फसल काटकर पुन: सत्ता में काबिज है, वहीं दूसरी तरफ सरकारी कर्मचारी और खासतौर पर रेलकर्मी इस आयोग की पहली बरसी मनाने जा रहे हैं. क्योंकि पूरा एक साल बीत जाने और अप्रैल 2009 में विसंगति समिति गठित हो जाने के 6 महीने बीत जाने के बाद आज भी तक इसकी सिफारिशें ठीक तरह से लागू नहीं हो पाई हैं. एक तरफ डीओपीटी ने इस बीच एसीपी स्कीम लागू की है तो दूसरी तरफ रेलवे बोर्ड ने मेडिकली डिकैटेगराइज्ड एवं सरप्लस स्टाफ को घर भेजने का फरमान जारी कर दिया है. अब यदि कुछ होना भी है तो निकट भविष्य में होने वाले 3-4 राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद ही होगा.

आयोग की सिफारिशों के मद्देनजर बहुत सारे ग्रेड मर्ज हो चुके हैं और कई अभी होने जा रहे हैं, जबकि रेल कर्मचारी अब तक भी पांचवें वेतन आयोग की विसंगतियों से ही नहीं उबर पाए हैं. इससे उनकी कार्यक्षमता में कमी आई है, जबकि आयोग की सिफारिशों के मद्देजनर अब डिसिप्लिनरी एंड अपील रूल्स (डीएआर) और ऐनुअल कांफिडेंशियल रिपोर्ट (एसीआर) के नियमों में भी शायद परिवर्तन करना पड़ेगा और इसी उलझन को दूर करने के लिए ही शायद एलॉमली कमेटी का गठन किया गया है.

आयोग ने अपनी रिपोर्ट के पैरा 7.36.95 (पेज नं. 535) में जो सबसे घातक सिफारिश की है, वह 9 कैटेगरी को मर्ज करके 'मल्टीस्किल्ड लेबर' तैयार करने की है. यह सिफारिश ज्यों की त्यों लागू होने पर इन नौ कैटेगरी के कर्मचारियों की स्थिति रोजाना सुबह चौराहे पर खड़े होने वाले दिहाड़ी मजदूरों जैसी हो जाएगी. जिनसे कोई भी काम करने के लिए कहा जाएगा. यह 9 कैटेगरी हैं 1. टेलीफोन ऑपरेटर्स एवं मोनोग्राम ऑपरेटर्स, 2. कैशियर्स/श्राफ, 3. फिंगर प्रिंट एक्जामिनर्स, 4. ईडीपी स्टाफ, 5. टाइपिस्ट एवं स्टेनोग्राफर्स 6. राजभाषा स्टाफ, 7. कैंटीन स्टाफ, 8. पैरामेडिकल स्टाफ, 9 मिनिस्टीरियल स्टाफ.

इसके पहले आयोग ने रिपोर्ट के पैरा 3.1.11 (पेज नं. 162) में एक प्रिंसिपल स्टाफ आफिसर की पोस्ट निर्माण करने तथा उपरोक्त 9 कैडरों को मर्ज करके उनके पदनाम तय करने की सिफारिश की है. इसके अलावा ऑफिस स्टाफ एवं स्टेनोग्राफर्स की पोस्ट को मर्ज करने के बाद उनके एक ही पदनाम हो जाने से उनसे कोई भी काम लिया जा सकेगा. इसके लिए आयोग ने यूनीफाइड डिजिग्नेशन देने की सिफारिश की है.

पैरा 31.12 (पेज नं. 162) की सिफारिश के अनुसार भविष्य में तो स्टेनोग्राफर रहेगा और ही उसका पदनाम रह जाएगा. इसके बारे में पैरा 3.1.10 में मल्टीस्किलिंग के जरिए स्टेनोग्राफर की पोस्ट का निर्मूलन करने की सिफारिश की गई है. इसमें कहा गया है कि जो लोग पांचवें वेतन आयोग के ग्रेड 6500-10500 में थे, उन्हें एक्जीक्यूटिव असिस्टेंट का दर्जा देकर और उनकी भर्ती के लिए कम से कम ग्रेजुएट की शैक्षिक योग्यता के साथ एक साल का कंप्यूटर डिप्लोमा भी होना चाहिए. जबकि उसके ग्रेड 4000-10500 में अब भर्ती बंद कर दी जानी चाहिए. इसके अलावा अन्य ग्रेड या स्केल में मर्ज होकर 6500-10500 का ग्रेड बनाने की सिफारिश की गई है और आगे जो भी वैकेंसी भरी जानी हैं उन्हें 6500-10500 के ग्रेड में ही रखने की बात कही गई है.

6वें वेतन आयोग की रिपोर्ट के पैरा 3.1.15 (पेज नं. 164) में मिनिस्ट्रीरियल स्टाफ एवं स्टेनोग्राफर कैडर में भर्ती को तुरंत बंद करने की सिफारिश की गई है और पांचवे वेतन आयोग के वेतनमान 6500-10500 की 50 प्रतिशत पोस्टों पर सीधी भर्ती करने के लिए कहा गया है. इसमें कहा गया है कि वर्षों से जो मिनिस्टीरियल एवं स्टेनोग्राफर पोस्टों पर कार्यरत हैं, उन्हें जब तक उनका प्रशासनिक मंत्रालय नई प्रक्रिया शुरू नहीं करता है और जब तक उन्हें सामान्य कैडर में परिवर्तित नहीं करता है तथा इसके लिए उनके प्रशिक्षण और कामकाज का तौर-तरीका तय नहीं किया जाता है तब तक उन्हें एक डिस्टिंक्ट कैडर में रखे जाने की सिफारिश की है. "The existing incumbents in the Ministerial and Stenographer caders shall continue as distinct cader till the time the Administrative Ministry concerned involves a procedure for the job enlargement , enrichment, retranching in one unified cader."

इस तरह एक तरफ 6वें वेतन आयोग ने कहीं ढेर सारे कैडरों को कॉमन मान लिया है तो कहीं मिनिस्टीरियल एवं स्टेनोग्राफर्स कैडर को मर्ज करके मल्टीस्किलिंग कैडर बनाने की बात कही है. इसका सीधा मतलब यह है कि हर तरह से मिनिस्टीरियल कैडर को ही निशाना बनाया जा रहा है. क्योंकि इस कैडर की न तो कोई निर्धारित ड्यूटी लिस्ट है और न ही कोई निर्धारित कार्यप्रणाली (ट्रेड) है. वरिष्ठ अधिकारी जो कहते हैं ये वही करते हैं और लंबे अर्से से वही करते आ रहे हैं. अब यदि इन तमाम कैडरों को कॉमन कैडर में परिवर्तित किया जाता है तो न सिर्फ इनके वेतनमान समान हो जाएंगे बल्कि इनके सभी कार्य-व्यवहार भी एक समान होंगे, क्योंकि इससे इन सभी कैडरों का प्रमोशन चैनल भी कॉमन हो जाएगा.

अब जब 6वें वेतन आयोग की सिफारिश के अनुसार यूनिफाइड कैडर और मल्टिस्किलिंग अमल में आ जाएगी, तब इन सभी कैडरों के सरकारी कर्मचारियों की स्थिति प्रतिदिन सुबह चौराहे पर खड़े होने वाले दिहाड़ी मजदूरों जैसी हो जाएगी, जिन्हें वक्त और जरूरत के अनुसार रोजाना काम बांटा जाएगा और जो काम दिया जाएगा, या करने को कहा जाएगा, वह उन्हें करना पड़ेगा. इनका न तो कोई विभाग होगा और ही इनकी कोई स्वतंत्र पहचान रह जाएगी. इससे आगे चलकर काम में विसंगति और कार्यस्थलों में रोजाना विवाद की स्थिति पैदा होने की आशंका बन जाएगी. इस संबंध में सरप्लस स्टाफ का सर्कुलर तो मार्च 2008 में ही जारी किया जा चुका है और एसीपी स्कीम के तहत पांचवे वेतन आयोग के वेतनमान 5000-8000 और 5500-9000 को मर्ज करके 6500-10500 में समाहित कर दिया गया है. इससे इसमें सीधी भर्ती का रास्ता भी साफ हो गया है.

'मॉडर्नाइज एसीपी स्कीम' क्या बला है, यह बात अब तक किसी कर्मचारी की समझ में नहीं आई है क्योंकि क्लर्क से लेकर एपीओ और जेई-2 से एईएन तक सब एक ही ग्रेड में आ गए हैं. इससे ऐसा लगता है कि अब इनकी वरिष्ठता सूची (सीनियरिटी लिस्ट) इनके पदनामों के अनुसार बनाई जाएगी. ऐसा ही कुछ शायद फस्र्ट क्लास पास के बारे में भी किया जाएगा. क्योंकि अब तक यह सुविधा कर्मचारी के भर्ती वर्ष और कार्यरत ग्रेड पर आधारित थी, जोकि अब शायद ग्रेड पे के अनुसार निर्धारित की जाएगी, जबकि ऐसे भी हजारों-लाखो कर्मचारी हैं जो 20-25 साल की सर्विस में उच्च ग्रेड अथवा सीनियर स्केल में कार्यरत होते हुए भी फस्र्ट क्लास पास की सुविधा से सर्वथा वंचित हैं.

पांचवे वेतन आयोग की यह एक सामान्य विसंगति जब अब तक दूर नहीं हो पाई है तो 6वें वेतन आयोग द्वारा पैदा की गई इससे ज्यादा बड़ी और तमाम विसंगतियां कब तक और कैसे दूर हो पाएंगी? यह सवाल लाखों रेल कर्मचारियों का बुरी तरह परेशान कर रहा है. कर्मचारियों ने इसकी एक बढिय़ा मिसाल दी है. उनका कहना है कि भाजपा ने जसवंत सिंह की किताब को रातों-रात पढ़कर उन्हें पार्टी से निकालने का निर्णय ले लिया जबकि केंद्र सरकार पिछले 15 साल में न तो पांचवे वेतन आयोग की रिपोर्ट को पढ़ पाई और न इसकी विसंगतियां दूर कर पाई और न ही 6वें वेतन आयोग को लागू होकर एक साल बीत जाने के बाद और इस पर विसंगति समिति का गठन करके 6 महीने बीत जाने पर भी सरकार इसकी कोई विसंगति दूर नहीं कर पाई है. तथापि लेबर फेडरेशनों ने 6वें वेतन आयोग को भी गले लगा लिया है.

ऐसी स्थिति में कर्मचारियों का मानना है कि जब आज से करीब 10-15 साल पहले पेंशन सहित 25-30 लाख रु. एकमुश्त देकर बैंक कर्मचारियों क सरकार ने घर भेज दिया था, तो आज की महंगाई और वर्तमान स्थितियों को मद्देनजर रखते हुए यदि 40-45 लाख रु. एकमुश्त देकर और पेंशन बहाल करते हुए उन्हें भी इसका मौका दिया जाए तो वह भी घर जाने के लिए तैयार है. इससे न तो सरकार को और न ही उसकी विसंगति समिति को और न ही लेबर फेडरेशनों को किसी प्रकार की मगजमारी करने की जरूरत पड़ेगी. इसके लिए वे रिटायरमेंट बाद अपनी पास सुविधा को भी छोडऩे को तैयार हैं.

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