गुमशुदा की तलाश - पापा जल्दी घर लौटें
व्यंग्य : रवींद्र कुमार
मेरे प्यारे पापा जी! पिछली सब बातें भूलकर फौरन घर लौटें. आपकी 'गुडिय़ा' टीटी ने चार दिन से कुछ खाया नहीं है. टीशी बुखार में तप रही है और टीटू स्कूल नहीं जा रहा है. कहता है जब तक ग्रांडपा स्कूल छोडऩे नहीं जाएंगे, मैं स्कूल नहीं जाऊंगा. मिनी ने तो जैसे किचन में जाना ही छोड़ दिया है. ताजी, सस्ती सब्जी तो दूर की बात है, कोई सब्जी लाने वाला ही नहीं है. हम आखिर कब तक होम डिलीवरी पिज्जा खा-खा के गुजारा करेंगे. मेरी भी रातों को अक्सर नींद कई बार खुल जाती है. घर में कोई चोर तो नहीं घुस आया. आप थे तो दरवाजे पर ही सोने से, खांसते रहने से और बार-बार उठ कर टॉयलेट जाने से कोई चोर हिम्मत नहीं करता था. आप तो कॉलोनी का हाल जानते हैं. दिन में ही चोरी हो जाती है. जब से यह स्मैक चली है, चोरों का भी कोई स्टैंडर्ड नहीं रहा है. धूप में बाहर सुखाने डाले गए कपड़े तक उठा ले जाते हैं.
मेरे अच्छे पापाजी! अब देखिए कि झगड़े किस घर में नहीं होते. चार बर्तन हैं तो आपस में टकराएंगे भी. मैं इतना पीछे भी नहीं पड़ता, मगर एक तो ये दो बेडरूम का मकान आपके नाम है, सो खटका-सा ही लगा रहता है कि वो नालायक आर. पी. (राम प्रसाद) कहीं आपको बहका कर न ले गया हो. कहने को तो मेरा बड़ा भाई है, पर सब जानते हैं कि वो कसाई है. मेरी पत्नी मिनी तो उसे एक नजर में ही पहचान गई थी. वह तो यही कहती है, ''तुम तो बड़े भोले हो जी. एक तुम्हारे भाई हैं..." अब जाने दीजिए.
माई पापा बेस्ट! जरा सोचिए, आप जैसे मैच्योर व्यक्ति को ये शोभा देता है? क्या हुआ अगर मिनी हफ्ते में एकाध बार आप से कपड़े धुलवा लेती है तो. आखिर आपकी बेटी-सी ही है न. क्या ऐसे रूठ जाते हैं. आप ही तो कहा करते हैं- हम सब को मेहनत करनी चाहिए. ये क्या? आप तो जरा-सी मेहनत से ही घबरा के भाग खड़े हुए. आपको पता भी है आपके जाने के बाद मिनी मुझे कैसे-कैसे ताने दे रही है.
माई पापा स्ट्रॉंगेस्ट! बुरा न मानिएगा, आपने तो मेरी नाक ही कटा दी. जरा मिनी के कपड़े धो देते तो क्या बिगड़ जाता आपका. आखिर मशीन से ही तो धोने थे. अब ये पचास हजार की मशीन भी आपके बिना पड़े-पड़े सड़ रही है. हमारी नहीं तो इस मशीन की खातिर ही लौटे आइये.
ओ मेरे स्वीट पापा! ये आप वाला जमाना नहीं है. आपको पता है न, नौकर कितने महंगे मिलते हैं. सबसे बड़ी बात- भरोसे के नहीं मिलते मेरे डार्लिंग पापा! अब लौट भी आइये. क्या अपने इस जिगर के टुकड़े को ऐसे ही मंझधार में छोंड़ देंगे. देखिए! देखिए! आप सचमुच बहुत खुदगर्ज हैं. अभी तक मिनी मुझसे यह कहती थी तो मुझे यकीन नहीं आता था. मैं उसकी इस बात को गंभीरता से नहीं लेता था. मगर अब जबकि आपको गए हुए महीना होने को आया मुझे भी शक पडऩे लगा है कि आप वो मेरे पहले वाले पापा नहीं रहे.
अब देखिए न! सब्जी लाना, गेहूं पिसाना, दूध लाना, घर की रखवाली, आप नहीं करेंगे तो क्या कोई बाहरवाला गैर करेगा. पूरा का पूरा घर आपका है और आप ही ने तो चलाना है. अब आपका घर, आप ही चलाएं, तो बुरा क्या है? क्या ऐसे भी कोई अपना ही घर छोड़ के जाता है. आपने तो हमें पाठ पढ़ाया था- आदमी को कभी भी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोडऩा चाहिए. कभी-भी मैदान छोड़कर नहीं भागना चाहिए. अब देखिए न डैड- आपनेे ये क्या किया. सच पूछो तो मैं कॉलोनी में कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहा. मिनी की सारी सहेलियां भी किटी पार्टी, कार्ड पार्टी, जिम, क्लब, कॉकटेल में इतना मजाक बनाती हैं कि सहा नहीं जाता.
माई सुपरमैन पापा! आपको बुढ़ापे में ये क्या सूझा? पापा जल्दी घर आ जाओ. घर सूना-सूना है. पता है महीने भर में ही घर के कोने-कोने में मकड़ी ने जाले बना लिए हैं. आप थे तो बांस लेकर आए दिन खिड़की पर, छज्जे पर चढ़े रहते थे. मजाल है आपके रहते एक भी मकड़ी जाला बना पाती.
आदरणीय पापाजी! आपके जाने के बाद कमरों की हालत मुझसे तो देखी नहीं जाती. आप थे तो कितने प्यार से रगड़-रगड़ कर फ्लोर साफ करते थे. मिनी तो मजाक में कह भी देती थी कि तुम्हारी फैमिली में पापा जैसा फर्श कोई भी साफ नहीं कर सकता. देखो पापा. एक हम हैं जो हर फोरम में आपकी तारीफ करते नहीं थकते. एक आप हैं कि इस बेरूखी से पेश आए हैं. अब देखिए न पापाजी. मम्मी जी जब तक जिन्दा थीं, तो कभी हमने आपको फर्श साफ करने को कहा? कभी नहीं न. याद है पापा. मम्मी कैसे खुद ही मिनी के सोकर उठने से पहले चौका-बरतन, झाड़ू-बुहारी कर लेती थीं. कुछ सीखिए मम्मी जी से! अपने घर के काम में शर्म कैसी. यूं तो जितने मुंह उतनी बातें.
मेरे श्रीयुत श्रद्धेय पापा जी की आयु ८० वर्ष है. आंखों से कम दिखता है. (चश्मा टूट गया था) हाथ कांपते हैं. मैला कुरता-पायजामा और टूटी चप्पल पहने हैं. सुराग देनेवाले अथवा पहुंचाने वाले को उचित इनाम दिया जाएगा. पूज्य पापा, आप जल्दी घर लौट आओ. पुरानी बातें सब भूल जाओ. आपको कोई कुछ नहीं कहेगा.
व्यंग्य : रवींद्र कुमार
मेरे प्यारे पापा जी! पिछली सब बातें भूलकर फौरन घर लौटें. आपकी 'गुडिय़ा' टीटी ने चार दिन से कुछ खाया नहीं है. टीशी बुखार में तप रही है और टीटू स्कूल नहीं जा रहा है. कहता है जब तक ग्रांडपा स्कूल छोडऩे नहीं जाएंगे, मैं स्कूल नहीं जाऊंगा. मिनी ने तो जैसे किचन में जाना ही छोड़ दिया है. ताजी, सस्ती सब्जी तो दूर की बात है, कोई सब्जी लाने वाला ही नहीं है. हम आखिर कब तक होम डिलीवरी पिज्जा खा-खा के गुजारा करेंगे. मेरी भी रातों को अक्सर नींद कई बार खुल जाती है. घर में कोई चोर तो नहीं घुस आया. आप थे तो दरवाजे पर ही सोने से, खांसते रहने से और बार-बार उठ कर टॉयलेट जाने से कोई चोर हिम्मत नहीं करता था. आप तो कॉलोनी का हाल जानते हैं. दिन में ही चोरी हो जाती है. जब से यह स्मैक चली है, चोरों का भी कोई स्टैंडर्ड नहीं रहा है. धूप में बाहर सुखाने डाले गए कपड़े तक उठा ले जाते हैं.
मेरे अच्छे पापाजी! अब देखिए कि झगड़े किस घर में नहीं होते. चार बर्तन हैं तो आपस में टकराएंगे भी. मैं इतना पीछे भी नहीं पड़ता, मगर एक तो ये दो बेडरूम का मकान आपके नाम है, सो खटका-सा ही लगा रहता है कि वो नालायक आर. पी. (राम प्रसाद) कहीं आपको बहका कर न ले गया हो. कहने को तो मेरा बड़ा भाई है, पर सब जानते हैं कि वो कसाई है. मेरी पत्नी मिनी तो उसे एक नजर में ही पहचान गई थी. वह तो यही कहती है, ''तुम तो बड़े भोले हो जी. एक तुम्हारे भाई हैं..." अब जाने दीजिए.
माई पापा बेस्ट! जरा सोचिए, आप जैसे मैच्योर व्यक्ति को ये शोभा देता है? क्या हुआ अगर मिनी हफ्ते में एकाध बार आप से कपड़े धुलवा लेती है तो. आखिर आपकी बेटी-सी ही है न. क्या ऐसे रूठ जाते हैं. आप ही तो कहा करते हैं- हम सब को मेहनत करनी चाहिए. ये क्या? आप तो जरा-सी मेहनत से ही घबरा के भाग खड़े हुए. आपको पता भी है आपके जाने के बाद मिनी मुझे कैसे-कैसे ताने दे रही है.
माई पापा स्ट्रॉंगेस्ट! बुरा न मानिएगा, आपने तो मेरी नाक ही कटा दी. जरा मिनी के कपड़े धो देते तो क्या बिगड़ जाता आपका. आखिर मशीन से ही तो धोने थे. अब ये पचास हजार की मशीन भी आपके बिना पड़े-पड़े सड़ रही है. हमारी नहीं तो इस मशीन की खातिर ही लौटे आइये.
ओ मेरे स्वीट पापा! ये आप वाला जमाना नहीं है. आपको पता है न, नौकर कितने महंगे मिलते हैं. सबसे बड़ी बात- भरोसे के नहीं मिलते मेरे डार्लिंग पापा! अब लौट भी आइये. क्या अपने इस जिगर के टुकड़े को ऐसे ही मंझधार में छोंड़ देंगे. देखिए! देखिए! आप सचमुच बहुत खुदगर्ज हैं. अभी तक मिनी मुझसे यह कहती थी तो मुझे यकीन नहीं आता था. मैं उसकी इस बात को गंभीरता से नहीं लेता था. मगर अब जबकि आपको गए हुए महीना होने को आया मुझे भी शक पडऩे लगा है कि आप वो मेरे पहले वाले पापा नहीं रहे.
अब देखिए न! सब्जी लाना, गेहूं पिसाना, दूध लाना, घर की रखवाली, आप नहीं करेंगे तो क्या कोई बाहरवाला गैर करेगा. पूरा का पूरा घर आपका है और आप ही ने तो चलाना है. अब आपका घर, आप ही चलाएं, तो बुरा क्या है? क्या ऐसे भी कोई अपना ही घर छोड़ के जाता है. आपने तो हमें पाठ पढ़ाया था- आदमी को कभी भी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोडऩा चाहिए. कभी-भी मैदान छोड़कर नहीं भागना चाहिए. अब देखिए न डैड- आपनेे ये क्या किया. सच पूछो तो मैं कॉलोनी में कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहा. मिनी की सारी सहेलियां भी किटी पार्टी, कार्ड पार्टी, जिम, क्लब, कॉकटेल में इतना मजाक बनाती हैं कि सहा नहीं जाता.
माई सुपरमैन पापा! आपको बुढ़ापे में ये क्या सूझा? पापा जल्दी घर आ जाओ. घर सूना-सूना है. पता है महीने भर में ही घर के कोने-कोने में मकड़ी ने जाले बना लिए हैं. आप थे तो बांस लेकर आए दिन खिड़की पर, छज्जे पर चढ़े रहते थे. मजाल है आपके रहते एक भी मकड़ी जाला बना पाती.
आदरणीय पापाजी! आपके जाने के बाद कमरों की हालत मुझसे तो देखी नहीं जाती. आप थे तो कितने प्यार से रगड़-रगड़ कर फ्लोर साफ करते थे. मिनी तो मजाक में कह भी देती थी कि तुम्हारी फैमिली में पापा जैसा फर्श कोई भी साफ नहीं कर सकता. देखो पापा. एक हम हैं जो हर फोरम में आपकी तारीफ करते नहीं थकते. एक आप हैं कि इस बेरूखी से पेश आए हैं. अब देखिए न पापाजी. मम्मी जी जब तक जिन्दा थीं, तो कभी हमने आपको फर्श साफ करने को कहा? कभी नहीं न. याद है पापा. मम्मी कैसे खुद ही मिनी के सोकर उठने से पहले चौका-बरतन, झाड़ू-बुहारी कर लेती थीं. कुछ सीखिए मम्मी जी से! अपने घर के काम में शर्म कैसी. यूं तो जितने मुंह उतनी बातें.
मेरे श्रीयुत श्रद्धेय पापा जी की आयु ८० वर्ष है. आंखों से कम दिखता है. (चश्मा टूट गया था) हाथ कांपते हैं. मैला कुरता-पायजामा और टूटी चप्पल पहने हैं. सुराग देनेवाले अथवा पहुंचाने वाले को उचित इनाम दिया जाएगा. पूज्य पापा, आप जल्दी घर लौट आओ. पुरानी बातें सब भूल जाओ. आपको कोई कुछ नहीं कहेगा.
No comments:
Post a Comment