Sunday 27 December, 2009

"जब रेलमंत्री और प्रधानमन्त्री दोनों
तैयार
हैं तो आप क्यों परेशान हैं...?"

नई दिल्ली : इंडियन ब्यूरोक्रेसी के इतिहास में संभवतः यह पहला अवसर है जब पीएमओ से ऐसा आदेश जारी किया गया है कि मेम्बर, रेलवे बोर्ड जैसे उच्च पद पर नियुक्ति के लिए 'सुब्जेक्ट टू विजिलेंस क्लियरेंस' लिखकर इसके जरिये एक महाभ्रष्ट रेल अधिकारी का फेवर करते हुए इस उच्च पद पर बैठने के लिए उसे जोड़-तोड़ का खुला मौका दिया गया है.

डा. मनमोहन सिंह जैसे ईमानदार एवं नेक प्रधानमन्त्री से इस तरह का आदेश करवाने के लिए पीएमओ के बाबुओं ने 'विषधर' से इसकी कितनी कीमत वसूल की है, इसके डिटेल्स धीरे-धीरे बहार आने लगे हैं. इस सफलता से 'कौरव बिरादरी' का हौसला कुछ ज्यादा ही बुलंद हो गया है और वह आपस में यह कहते सुने जा रहे हैं कि 'यदि करोड़ों के बल पर पीएमओ को खरीदकर जीरो परसेंट भ्रष्टाचार वाले प्रधानमंत्री से जब ऐसा आर्डर जारी कराकर सबसे बड़ी अड़चन को दूर कर लिया है तो बाकी काम तो अनभिज्ञ रेलमंत्री और बिरादर सीवीसी से करा लेना उनके लिए बायें हाथ का खेल है, जो अपनी तरफ से पहले से ही खुद उनकी पूरी मदद कर रहे हैं.'

अब 'विषधर' की 'बिरादरी' की रणनीति यह है कि रेलमंत्री ममता बनर्जी के करीबी कुछ सांसदों और दूसरी पार्टियों के राजनीतिज्ञों, जिसमें एनसीपी के एक पधाधिकारी भी शामिल हैं, को करोड़ों कि 'भेंट' देकर ममता बनर्जी को 'बिरादरी' के कब्जे में लिया जायेगा. जबकि एमआर सेल और रेलमंत्री के व्यक्तिगत स्टाफ को तो 'विषधर' ने होटल मेरेडियन में ड्रिंक-डिनर एवं पर्याप्त ऐयासी करवाकर पहले से ही अपने कब्जे में लिया हुआ है, जिससे यह स्टाफ उनके प्रति पूरी तरह से समर्पित है. इसके बाद सीवीसी को मुंह मांगी कीमत देकर 5 जनवरी तक ज्वाइन करने का आदेश जारी करा लेने की योजना 'बिरादरी' ने बनाई है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार पैसे के इंतजाम के मामले में 'विषधर' एवं उनके रणनीतिकारों का कहना है कि रकम तो एमटी के मात्र एक महीने के कार्यकाल में ही वसूल हो जाएगी. इसी रणनीति के तहत पीएमओ से आई फ़ाइल को एमआर के अप्रूवल हेतु पहले ही कोलकाता भेज दिया गया है. फ़ाइल पर एक बार मंत्री का हस्ताक्षर हो जाने के बाद आगे सीवीसी को यह दलील दी जाएगी कि "जब रेलमंत्री और प्रधानमन्त्री राजी ( तैयार ) हैं तो आप क्यों परेशान हैं...?" परन्तु जब इनकी इस सारी 'रणनीति' को हाई कार्ट या सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका ( पीआईएल ) के माध्यम से चुनौती दी जाएगी तब रेलमंत्री और प्रधानमन्त्री दोनों स्वयं को बचाने के लिए सरकारी खर्चे पर बड़े-बड़े वकील करके खुद अपनी सफाई देते फिरेंगे, तब क्या होगा, यह बात शायद यह पूरी 'बिरादरी' भूल गई है.

सामान्य परंपरा के अनुसार आम तौर पर प्रक्रिया यह है कि पैनल में सिर्फ उन्हीं अधिकारियों का नाम डाला जाता है जो सर्वथा योग्य होते हैं और जिनका स्पष्ट विजिलेंस क्लियरेंस पेपर पर उपलब्ध होता है. परन्तु यहाँ एक बड़ा खेल खेलते हुए पीएमओ को एमटी की फ़ाइल भेजते समय मात्र प्रोविजनल विजिलेंस क्लियरेंस लेकर 'विषधर' का नाम पैनल में डाला गया और प्रधानमन्त्री से उनके फेवर में आर्डर लेने का प्रयास किया गया. लेकिन जब इस बीच मामले की संपूर्ण हकीकत प्रधानमन्त्री के संज्ञान में ला दी गई और पूरा मामला उछलकर बाहर गया तथा सीवीसी की मिलीभगत एवं 'विषधर' के घोर भ्रष्टाचार के तमाम कारनामे उजागर हो गए, तो 4-5 दिन बाद सीवीसी ने प्रोविजनली दी गई अपनी विजिलेंस क्लियरेंस रेल मंत्रालय को एक चिट्ठी लिखकर चुपचाप वापस ले ली थी. परन्तु इस सम्बन्ध में पीएमओ को कोई सूचना नहीं दी गई.

इसका कारण यह बताया गया है कि 'इस सूचना के अभाव में यह माना गया कि पीएमओ में अपना हितसाधन करने के लिए 'बिरादरी द्वारा फिट किये गए लोग प्रधानमन्त्री से प्रोविजनल विजिलेंस क्लियरेंस के आधार पर 'विषधर' के हक में आदेश जारी करा देंगे, तब यदि सीवीसी ने क्लियरेंस वापस भी ले लिया होता, तो भी पीएमओ से तो आदेश पारित हो जाता और रेलमंत्री एवं प्रधानमन्त्री की ईमानदारी पर भी कोई आंच नहीं आती, वह यथावत बनी रह जाती.

लेकिन जब 'विषधर' के तमाम भ्रष्टाचार और जोड़-तोड़ के मामले प्रधानमन्त्री के संज्ञान में ला दिए गए तो इनके द्वारा 'ख़रीदे' गए बाबुओं के पास "सब्जेक्ट टू विजिलेंस क्लियरेंस" का यह 'ऐतिहासिक' आदेश करवाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था. पीएमओ में 'बिरादरी' द्वारा फिट किये गए बाबुओं ने फ़ाइल यह कहकर वापस भेज दी कि 'पीएमओ से जितना हो सकता था, उतना करा दिया और जो भी दांव-पेंच खेले जा सकते थे तथा जितनी भी जोड़-तोड़की जा सकती थी, सब कर ली गई है, अब इससे ज्यादा यहाँ कुछ नहीं हो सकता, अब बाकी रेलवे के स्तर पर खुद ही करा लेना, वहां तो सब चलता है...!'

जबकि सच्चाई यह है कि 'विषधर' द्वारा किया गया अधिकार का दुरुपयोग और महाप्रबंधक कोटे में की गई सैकड़ों भर्तियों में भारी भ्रष्टाचार तथा सेलेक्टेड पैनल को अनाधिकार मॉडिफाई करने एवं ग्रुप 'बी' एलडीसीई में बिरादरी को फेवर किए जाने' संबंधी विषय पर दि. 7.8.09 की एक शिकायत 'विषधर' के खिलाफ सीवीसी के पास रजिस्टर्ड है. यही नहीं इससे पहले दि. 2.2.09 एवं 2.3.09 को सीवीसी को दो शिकायतें तथा पर प्रधानमंत्री को दि. 20.1.09 को भेजी गई शिकायत के साथ ही एक पत्र दि. 26.11.09 को रेलमंत्री को लिखा गया है. इसके बावजूद उनके बिरादर सीवीसी और रे. बो. विजिलेंस ने अपनी आंखें बंद कररखी हैं.

ज्ञातव्य है कि उपरोक्त चारों शिकायतों में 'विषधर' द्वारा ग्रुप 'डी' की भर्तियों में किए गए भ्रष्टाचार सहित समय- समय पर उनके द्वारा किए गए तमाम मेनिपुलेशन का संपूर्ण ब्यौरा दिया गया है और यह सब सीवीसी एवं रे. बो. विजिलेंस के पास बाकायदे दर्ज हैं. जबकि 'विषधर' की एक फाइल (सं. सीवीसी/0083/रेलवे/94, दि. 12.01.2009) सीवीसी के पास जनवरी 2009 से पेंडिंग है. इसके बावजूद एक साल बीत रहा है, मगर उक्त पाइल के संबंध में किसी को भी यह पता नहीं है. जबकि इस संबंधित अधिकारी ( 'विषधर' ) को विजिलेंस क्लीयरेंस देने में सीवीसी ने कोई देरी नहीं की. जबकि उनके पास 'विषधर' के खिलाफ 4-5 मामले पेंडिंग थे. इसके अलावा रविवार, 27 दिसंबर को उ. म. रे. इलाहबाद से एक एपीओ को जांच के लिए बोर्ड बुलाया गया है, जिससे 'विषधर' के मामले की जांच जल्दी से करके उन्हें विजिलेंस क्लियरेंस दिया जा सके.

यही नहीं 'विषधर' ने श्री आशुतोष स्वामी, श्री अशोक गुप्ता एवं श्री सिंहदेव मीणा तीनों से भी ज्यादा भर्तियां (381) की हैं और प्रति उम्मीदवार 4-5 लाख रु. लेने तथा नकद न होने पर उम्मीदवारों से नौकरी की एवज में उनकी जमीन लिखा लिए जाने के पुख्ता सबूत पीएमओ एवं रेल मंत्रालय के पास मौजूद हैं. इस सबके बावजूद 'विषधर' को न तो एग्रीड लिस्ट में डाला गया और न ही उनके खिलाफ सीवीसी या रे. बो. विजिलेंस ने उपरोक्त तीनों अधिकारियों की तरह ही सेक्शन 6-ए की अनुमति प्रदान की, बल्कि उन्हें क्लीन चिट देते हुए विजिलेंस क्लीयरेंस प्रदान करके बिरादरी धर्म निभाया है. यह सब रिकार्ड में है जिसे विषधर और उनके बिरादरी भी कभी गायब नहीं कर पाएंगे और तब यही सारा रकार्ड कोर्ट में इनकी तमाम जोड़-तोड़ की बखिया उधेड़ने के काम आएगा.

अब 'विषधर' और उनकी 'बिरादरी' कि अंडरस्टैंडिंग यह है कि 'फ़ाइल पर पहले रेलमंत्री का अप्रूवल ले लिया जाये, तो सीवीसी अपनी 'कीमत वसूलने के बाद आँखें बंद कर लेगा और खुद ही कुछ नहीं बोलेगा तथा आसानी से क्लियरेंस मिल जायेगा.' उधर रेलमंत्री को उनके कुछ सांसदों द्वारा खरीदने के लिए यहाँ भी वही चैनल इस्तेमाल किया जा रहा है जो की 5 करोड़ देकर पूर्व जीएम/एनऍफ़आर आशुतोष स्वामी के मामले में उपयोग किया जाना था. परन्तु वहां समय रहते रेलमंत्री को उसकी भनक लग गई थी और उन्होंने 'अपनों' के साथ-साथ श्री स्वामी को भी उनकी असली जगह दिखा दी थी. अब आगे-आगे देखते हैं होता है क्या...?

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