Monday 21 December, 2009

'विषधर' विवेक सहाय को रेलवे बोर्ड
का मेम्बर ट्रैफिक बनाने की कोशिश

पहले भी जब रेल मंत्रालय के नौकरशाहों ने तथ्यों को छिपाकर और अधूरे तथ्य प्रस्तुत करके पीएमओ से गलत आदेश लेकर भ्रष्ट रेल अधिकारियों को रेलवे बोर्ड में मेम्बर के पद पर बैठाने का प्रयास किया था तब कम से कम तीन मामलों में हमने समय रहते पीएमओ को सच्चाई से अवगत कराया था और पीएमओ ने जाँच में उन सभी तथ्यों के सही पाए जाने पर इन भ्रष्ट नौकरशाहों की ऐसी अनुचित कोशिशों को नाकाम कर दिया था और ऐसे सभी मामलों में पीएमओ ने सही और न्यायोचित निर्णय लेकर ईमानदार अफसरों को ही उच्च पदों पर बैठाया है.

परन्तु अब एक बार फिर ऐसा ही कुत्सित प्रयास मेम्बर टैफिक / रेलवे बोर्ड के पद पर चालाकी, चापलूसी और चमचागीरी प्रवृत्ति के एक अत्यंत महाभ्रष्ट कैटेगरी वाले रेल अधिकारी श्री विवेक सहाय को साम, दाम, दंड, भेद का
सहारा लेकर बैठाने का प्रयास किया जा रहा है. श्री सहाय वर्तमान में उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक हैं. आज आवश्यकता इस बात की है कि इस सम्बन्ध में यहाँ प्रस्तुत तथ्यों की तुरंत जाँच कराकर और न्यायोचित कार्रवाई
करते हुए इस भ्रष्ट लाबी के गठजोड़ को कामयाब होने से रोका जाये.

1. श्री सहाय उत्तर रेलवे से पहले इलाहबाद में उत्तर मध्य रेलवे के महाप्रबंधक थे, जहाँ पर इन्होंने चतुर्थ श्रेणी में 381 लोगों को घोर भ्रष्टाचार का सहारा लेकर और सभी नियमों को ताक़ पर रखकर रेलवे की नौकरी में भर्ती किया है. इसी के पुरस्कार स्वरुप पूर्व रेलमंत्री द्वारा नियमों के विरुद्ध जनवरी 2009 में इन्हें लेटरल ट्रान्सफर के तहत दिल्ली में उत्तर रेलवे का महाप्रबंधक बना दिया गया था क्योंकि उन्हीं के कहने पर उनके ही लोगों को श्री सहाय ने रेलवे में भर्ती किया था.

2. उक्त भर्तियों में प्रति उम्मीदवार 4 से 5 लाख रुपये लिए जाने का आरोप है और जिनके पास देने के लिए नकद पैसा नहीं था उनकी जमीन लिखा ली गयी थी. इस बात के पुख्ता सबूत गत वर्ष जनता दल (यू) के महासचिव श्री शिवानन्द तिवारी ने एक प्रतिनिधि मंडल के साथ पीएमओ में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को सौंपे थे. यह सारे सबूत आज भी पीएमओ और रेल मंत्रालय में मौजूद हैं.

3. श्री सहाय द्वारा की गयी इन 381 भर्तियों में 99.9 प्रतिशत लोग बिहार प्रदेश के हैं जबकि उत्तर मध्य रेलवे की सीमा कहीं से भी बिहार प्रदेश को नहीं छूती है.

4. रेलवे में महाप्रबंधक कोटे के तहत की जाने वाली इस तरह की भर्तियों में स्थानीय लोगों को तरजीह दी जाती है जो कि विभागीय मांग पर आवश्यकतानुसार संरक्षा कैटेगरी में इमरजेंसी में की जाती हैं. परन्तु इतनी बड़ी संख्या में एक ही प्रदेश के लोगों का भर्ती किया जाना अपने आपमें ही इस बात का एक पुख्ता सबूत है कि इन भर्तियों में सिर्फ भारी भ्रष्टाचार हुआ है बल्कि इनके पीछे की वास्तविकता क्या है.

5. अभी हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा 'जीरो टॉलरेंस टू करप्शन' की घोषणा के बाद रेलमंत्री सुश्री ममता बनर्जी ने भी यह घोषणा की थी कि पैसा लेकर की गयी इन सभी भर्तियों की जाँच सीबीआई से कराई जाएगी.

6. इसी प्रकार की भर्तियों के चलते उत्तर पश्चिम रेलवे, जयपुर के महाप्रबंधक रहे श्री अशोक गुप्ता को सीबीआई ने उनके रिटायर होने के मात्र 11 दिन बाद ही 11 सितंबर 2009 को छापा मारकर करीब 20 करोड़ की आय से अधिक संपत्ति बरामद करके गिरफ्तार किया था.

7. इसके अलावा इसी प्रकार की भर्तियों के चलते उत्तर पूर्व सीमांत रेलवे, गुवाहाटी के महाप्रबंधक श्री आशुतोष स्वामी को अभी 15-20 दिन पहले ही रेलमंत्री ने जबरन छुट्टी पर भेजा है क्योंकि उन्होंने भी ऐसी ही भर्तियों की दूकान खोल रखी थी.

8. ऐसे ही एक अन्य मामले में सीबीआई ने उत्तर मध्य रेलवे के आईजी/सीएससी/आरपीएफ श्री बी. एम. सिंहदेव मीणा के जयपुर और इलाहबाद स्थित ठिकानों पर छापा मारकर करीब 300 करोड़ रुपये से ज्यादा की आय से अधिक संपत्ति बरामद की है और उन्हें जेल भेजा है. श्री मीणा पर 240 कुकों (कुक्स) की भर्ती का 'नोडल भर्ती अधिकारी' होने नाते इस भर्ती में भारी भ्रष्टाचार करने का आरोप है.

यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि यदि सीबीआई द्वारा इन उपरोक्त महाभ्रष्टों के यहाँ छापा नहीं मारा जाता, तो ये सब साफ़ बच जाते, क्योंकि रेलवे बोर्ड विजिलेंस और सीवीसी के यहाँ इन लोगों के खिलाफ कोई भी मामला दर्ज नहीं था. चूँकि इस देश में भ्रष्टों के खिलाफ शिकायत करने की प्रथा नहीं है और रेलवे बोर्ड विजिलेंस ऐसे भ्रष्टों की तरफ से अपनी आँखें बंद रखता है तथा ईमानदार एवं ईमानदारों को फंसाने में साथ देने वाले अधिकारियों को ही परेशान करना इसका परम लक्ष्य होता है.

रेलमंत्री द्वारा सीबीआई जाँच की घोषणा के बाद सीवीसी ने श्री सहाय को बचाने को लिए 19 नवम्बर 2009 को उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय, इलाहबाद से श्री सहाय द्वारा की गई 381 भर्तियों से सम्बंधित सभी 299 फाइलें उठा ली हैं, जिससे कि यह फाइलें सीबीआई के हाथ लग सकें. इसलिए इस सारे मेनिपुलेशन के खिलाफ शीघ्र ही एक रिट पिटीशन अथवा जनहित याचिका (पीआईएल) दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल की जा रही है.

यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि उत्तर पश्चिम रेलवे, जयपुर के महाप्रबंधक रहे श्री अशोक गुप्ता द्वारा मात्र 147 और उत्तर पूर्व सीमांत रेलवे, गुवाहाटी के महाप्रबंधक श्री आशुतोष स्वामी द्वारा ऐसी मात्र 47 भर्तियाँ किये जाने पर सिर्फ इन दोनों को 'एग्रीड लिस्ट' में डाला गया बल्कि इनके खिलाफ रेलवे बोर्ड द्वारा सेक्शन 6 के तहत एफआईआर दर्ज करने और कार्रवाई का अप्रूवल भी दिया गया, मगर यही कार्रवाई श्री सहाय के खिलाफ नहीं की गई, जिन्होंने श्री गुप्ता और श्री स्वामी से कई गुना ज्यादा (381) भर्तियाँ की हैं. बजाय इसके सीवीसी ने सीबीआई से पहले श्री सहाय की सभी फाइलें जब्त करके उन्हें सिर्फ बचाया है बल्कि अब उन्हें विजिलेंस क्लियरेंस भी दे दिया है.

श्री सहाय द्वारा की गई इन समस्त भर्तियों की जानकारी जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत मांगी गई थी जो कि किसी भी जाँच के समय जाँच एजेंसी को मुहैया कराई जा सकती हैं.

इन तमाम तथ्यों के मद्देनजर कोई भी समझदार आदमी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि श्री विवेक सहाय इस करोड़ों के भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं हैं और इनका भी वही परिणाम होने वाला है जो उपरोक्त अधिकारियों का हुआ है तथा इस मामले में सीबीआई की कार्रवाई के बाद इनका भी जेल जाना लगभग तय है.

यहाँ एक बात पर और गंभीरतापूर्वक ध्यान देने की जरुरत है क्योंकि जाति-बिरादरी की राजनीति और फेवर करने का आरोप सिर्फ राजनीतिज्ञों पर ही नहीं है बल्कि इन सरकारी नौकरशाहों द्वारा भी इसका इस्तेमाल खूब किया जा
रहा है. जाति-बिरादरी की इसी भावना या मानसिकता के चलते 31 दिसंबर २००९ को रिटायर होने वाले मेम्बर ट्रैफिक श्री श्रीप्रकाश ने 10 दिसंबर को अचानक स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली, जिससे इसका फायदा उनके बिरादर श्री विवेक सहाय को मिल जाये. इसके लिए श्री श्रीप्रकाश पर पिछले 2 महीनों से श्री सहाय और उनकी बिरादरी के कुछ और नौकरशाहों द्वारा लगातार दबाव डाला जा रहा था.

ठीक ऐसा ही प्रयास श्री सहाय को इससे पहले चेयरमैन, रेलवे बोर्ड और मेम्बर स्टाफ बनाने के लिए भी इस 'बिरादरी लॉबी' द्वारा किया गया था. यही नहीं, मेम्बर स्टाफ के लिए मात्र 2 दिन बाद आर्डर जारी कराकर पद खाली
दिखाने का जो खेल श्री सहाय द्वारा खेला गया था, उससे भी अभी तक सभी रेल अधिकारी वाकिफ हैं. तब समय रहते जब मैंने पीएमओ को सूचित किया था तब प्रधानमंत्री ने इस रैकेट को तोड़कर न्यायोचित तरीके से सही अधिकारियों को उनका हक़ दिलाया था. ऐसे में जो अधिकारी (श्री विवेक सहाय) सिर्फ जातिवादी है बल्कि महाभ्रष्ट भी है, वह इतने उच्च पद पर पहुंचकर देश और समाज तथा समस्त व्यवस्था के लिए कितना घातक और खतरनाक साबित हो सकता है, इसका अंदाज आसानी से लगाया जा सकता है.

प्रधानमंत्री और कैबिनेट सेक्रेटरी के संज्ञान में हम जो तथ्य लाना चाहते हैं वह यह हैं कि उपरोक्त तमाम तथ्यों के बावजूद सच्चाई को छिपाकर और उपलब्ध जानकारी को जानबूझकर संज्ञान में लेकर तथा सीबीआई द्वारा की जा रही जाँच को अनदेखा करके खासतौर से सीवीसी ने 8-9 दिसंबर को श्री विवेक सहाय को विजिलेंस क्लियरेंस दे दिया है. और अब रेलवे बोर्ड में कार्यरत भ्रष्ट ब्यूरोक्रेटिक माफिया श्री सहाय का नाम मेम्बर ट्रैफिक के पैनल में डालकर रेलमंत्री सुश्री ममता बनर्जी की अनभिज्ञता का फायदा उठाकर प्रधानमंत्री के हस्ताक्षर हेतु फाइल शुक्रवार 11 दिसंबर की शाम 8.30 बजे कैबिनेट को भेज दी गई थी.

यहाँ हम प्रधानमंत्री को यह भी याद दिलाना चाहते हैं कि यह वही श्री विवेक सहाय हैं जिनको जनवरी 2009 में सीधे चेयरमैन, रेलवे बोर्ड बनाने का एक प्रस्ताव उनके पास भेजा गया था. उनके द्वारा वह प्रस्ताव नामंजूर कर दिए जाने के बाद फिर इन्हें मेम्बर स्टाफ बनाने का प्रस्ताव किया गया था. लेकिन दोनों ही बार उनको इस भ्रष्ट माफिया की सच्चाई समय पर पता चल जाने के कारण यह लोग उनके हाथों से गलत आदेश जारी कराने में नाकामयाब रहे थे.

अत: एक फिर प्रधानमंत्री से यही अपेक्षा है कि वे उपरोक्त तमाम तथ्यों को संज्ञान में लेते हुए अविलम्ब समुचित कार्रवाई करेंगे और इन महाभ्रष्टों के इस 'माफिया रैकेट' को एक बार फिर न्यायोचित निर्णय लेकर और उचित आदेश देकर विफल करेंगे. भ्रष्टाचार रहित व्यवस्था के हित में न्यायोचित निर्णय लिया जाना और सरकारी नौकरशाहों के जातिवादी एवं भ्रष्ट रैकेट को तोडऩा आज देश और समाज की सबसे बड़ी जरुरत है.

प्रस्तुति : सुरेश त्रिपाठी

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