Monday 21 December, 2009

बिरादरी का खेल, सारे समीकरण फेल

विवेक सहाय के फेवर में श्रीप्रकाश आखिर पहुंचे 'बिरादरी' के खेमे में

नयी दिल्ली : रेलवे बोर्ड में 10 दिसंबर को अचानक तब सारे समीकरण बदल गए और पूरी भा. रे. में एक हड़कंप सा मच गया, जब अचानक मेंबर ट्रैफिक (एमटी) श्री श्रीप्रकाश ने शाम को अपना चार्ज छोड़ दिया और एमटी की पोस्ट वैकेंट करके नवगठित हाईपावर कमेटी के चेयरमैन का पदभार ग्रहण कर लिया. श्रीप्रकाश के इस तात्कालिक कदम से ट्रैफिक कैडर के वे समस्त अधिकारी आश्चर्यचकित रह गए, जिन्हें उनसे ऐसा कोई कदम उठाए जाने की कतई उम्मीद नहीं थी जो कि हमेशा उनके प्रतिद्वंद्वी रहे विवेक सहाय के पक्ष में जाता हो.

परंतु वास्तव में ऐसा हुआ जिसकी अपेक्षा कोई भी अधिकारी नहीं कर रहा था. इससे श्रीप्रकाश का भी वास्तविक चरित्र खुलकर सबके सामने गया, कि वह भी बिरादरी की मानसिकता से ऊपर नहीं उठ पाए हैं. बताते हैं कि गत सप्ताह दिल्ली में ट्रैंफिक कैडर के एक उच्च अधिकारी की बेटी की शादी के बहाने पूर्व और वर्तमान तमाम बिरादरी भाई वहां इकट्ठे हुए थे. इसी मुलाकात में श्रीप्रकाश पर 'बिरादरी (कौम) खतरे में है' का भारी दबाव डाला गया और बिरादरी के लिए विवेक सहाय के पक्ष में उनसे वीआरएस लेकर तुरंत अपना पद खाली करने का दबाव डाला गया. इसी के बाद बताते हैं कि हाई पावर कमेटी का गठन हुआ और बिरादरी का यह चक्र इतनी तेजी से घूमा कि 10 दिसंबर को 24 घंटों से भी कम समय में उनकी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) भी रेलमंत्री से मंजूर करा ली गई और उन्होंने एमटी का पद खाली करके (छोड़कर) हाई पावर कमेटी के चेयरमैन का पद भी ग्रहण कर लिया

बोर्ड सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार सभी बोर्ड मेंबरों में मेंबर ट्रैफिक रहे श्रीप्रकाश को बंगाली भाषा बोलने का सर्वाधिक फायदा मिला है और संसद के गलियारे में रेलवे संबंधी चर्चा के समय जहां कई मेंबर और सीआरबी मंत्री की सहायता हेतु उपस्थित रहते थे, वहां सिर्फ श्रीप्रकाश रहने लगे थे. मंत्री की इस नजदीकी का फायदा उन्हें मंत्री को अंधेरे में रखकर और उनसे सच्चाई छिपाकर अपने बिरादरी भाई विवेक सहाय, जिनसे वह हमेशा चिढऩे का दिखावा किया करते थे, को फेवर करने और स्वयं को एक हाईपावर कमेटी बनवाकर उसका चेयरमैन बनने के लिए मिला है.

श्रीप्रकाश द्वारा आनन-फानन में एमटी का चार्ज छोडऩे की यह घटना तब हुई जब 8 दिसंबर को विवेक सहाय का विजिलेंस क्लीयरेंस सीवीसी से गया. यही नहीं 20-22 दिन पहले उन्होंने चार्ज छोड़कर पोस्ट को वैकेंट ही इसीलिए किया कि जिससे विवेक सहाय को इसका फायदा मिल जाए. जैसा कि पिछले अंक में 'रेलवे समाचार' ने लिखा भी था कि रिटायरमेंट से पहले चार्ज छोडऩे को मनाने के लिए विवेक सहाय द्वारा हर दूसरे-तीसरे दिन एमटी के चेंबर में जाकर डेढ़-दो घंटे तक श्रीप्रकाश की पैधरणी की जा रही है. वह भी सही साबित हुई.

बिरादरी का फेवर किस तरह किया जाता है, यह बात इस तरह से समझने की जरूरत है कि जैसे ही रेलमंत्री ने महाप्रबंधक कोटे में गत पांच वर्षों के दौरान की गई भर्तियों की सीबीआई से जांच कराए जाने की घोषणा की, वैसे ही श्री सहाय के बिरादर सीवीसी प्रत्यूष सिन्हा सक्रिय हो गए और रे. बो. विजिलेंस के अधिकारियों को लेकर इलाहाबाद से श्री सहाय द्वारा की गई भर्तियों की कुल 299 (सही संख्या) फाइलें उठा लाए, जिससे कि यह फाइलें सीबीआई के हाथ लग सकें. इधर रेलमंत्री के व्यक्तिगत स्टाफ में शामिल उनके दो बिरादर ईडीपीजी और ओएसडी तो श्री सहाय की जेब में पहले से ही हैं. इसके परिणामस्वरूप 8 दिसंबर को सीवीसी प्रत्यूष सिन्हा ने श्री सहाय को विजिलेंस क्लीयरेंस दे दिया.

जैसे ही यह क्लीयरेंस आया, घटनाचक्र और भी तेजी से घूमा. दूसरे ही दिन पहले श्रीप्रकाश ने श्री सहाय को फायदा पहुंचाने के लिए एमटी का पद खाली कर दिया और उसके दूसरे दिन यानी शुक्रवार 11 दिसंबर को शाम 8.30 बजे एमटी पैनल की फाइल रेलमंत्री के हस्ताक्षर से कैबिनेट को भेज दी गई. सूत्रों का कहना है कि तमाम वास्तविकताओं को छिपाते हुए रेलमंत्री से श्री सहाय के नाम की बतौर अगला एमटी सिफारिश भी कराने में यह बिरादरी कामयाब हो गई.

जबकि सच्चाई यह है कि 'पूर्व महाप्रबंधक/..रे. श्री सहाय द्वारा किया गया अधिकार का दुरुपयोग और महाप्रबंधक कोटे में की गई सैकड़ों भर्तियों में भारी भ्रष्टाचार तथा सेलेक्टेड पैनल को अनाधिकार मॉडिफाई करने एवं ग्रुप 'बी' एलडीसीई में बिरादरी को फेवर किए जाने' संबंधी विषय पर दि. 7.8.09 की एक शिकायत श्री सहाय के खिलाफ सीवीसी के पास रजिस्टर्ड है. यही नहीं इससे पहले दि. 2.2.09 एवं 2.3.09 को सीवीसी को 'जीएम/ ..रे. द्वारा विभागीय चयन में भ्रष्टाचार और अधिकार का दुरुपयोग' विषय पर दो शिकायतें तथा 'ईमानदार एवं योग्य अधिकारियों को सुपरसीड करके एक महाभ्रष्ट और जूनियर मोस्ट अधिकार को सीआरबी बनाए जाने की कोशिश' विषय पर प्रधानमंत्री को दि. 20.1.09 को भेजी गई शिकायत के साथ ही 'मेंबर ट्रैफिक पैनल में विवेक सहाय को विजिलेंस क्लीयरेंस देकर मंत्री को गुमराह करने बाबत' एक पत्र दि. 26.11.09 को रेलमंत्री को लिखा गया है. इसके बावजूद उनके बिरादर श्री प्रत्यूष सिन्हा, सीवीसी और रे.बो. विजिलेंस ने अपनी आंखें बंद कर ली हैं.

ज्ञातव्य है कि उपरोक्त चारों शिकायतों में श्री सहाय द्वारा ग्रुप 'डी' की भर्तियों में किए गए भ्रष्टाचार सहित समय- समय पर उनके द्वारा किए गए तमाम मेनिपुलेशन का संपूर्ण ब्यौरा दिया गया है और यह सब सीवीसी एवं रे. बो. विजिलेंस के पास बाकायदे दर्ज हैं. तथापि उनके बिरादरी सीवीसी ने उन्हें विजिलेंस क्लीयरेंस दे दिया, जबकि श्री सहाय की एक फाइल (सं. सीवीसी/0083/रेलवे/94, दि. 12.01.2009) सीवीसी के पास जनवरी 2009 से पेंडिंग है और सीवीसी की ही गाइड लाइन (सीवीसी सर्कुलर नं. 004/वीजीएल/18, दि. 21.12.2005) के अनुसार किसी भी मामले की जांच तीन महीने में पूरी करके उसकी रिपोर्ट सौंप दी जानी चाहिए. इसमें किसी भी प्रकार की देरी 'विजिलेंस एंगल' पैदा कर सकती है. इसके बावजूद एक साल बीत रहा है, मगर उक्त पाइल के संबंध में किसी को भी यह पता नहीं है कि उसकी जांच पूरी हुई या नहीं. इस पर सीवीसी ने संबंधित अधिकारी के खिलाफ क्या कार्रवाई किए जाने की एडवाइस की है, जबकि इस संबंधित अधिकारी (विवेक सहाय) को आउट ऑफ वे जाकर विजिलेंस क्लीयरेंस देने में सीवीसी ने कोई देरी नहीं की है.

दूसरी तरफ श्री आशुतोष स्वामी, महाप्रबंधक/एनएफआर, जिन्होंने मात्र 47 भर्तियां ग्रुप 'डी' में की हैं, उन्हें सिर्फ 'एग्रीड लिस्ट' में डाला गया है बल्कि उन्हें जबरन छुट्टी पर भी भेजा गया है, जबकि श्री अशोक गुप्ता, पूर्व महाप्रबंधक /..रे., जिन्होंने ऐसी 147 भर्तियां की थीं और आईजी/सीएससी/आरपीएफ/..रे. श्री बी. एम. सिंहदेव मीणा, जिन्होंने नोडल अधिकारी होने के नाते 240 खानसामों (कुक्स) की भर्ती में भारी भ्रष्टाचार किया था. इन दोनों के खिलाफ रे.बो. ने सिर्फ सेक्शन 6- के तहत सीबीआई को एफआईआर दर्ज करने की अनुमति दी, बल्कि छापामारी में सीबीआई को पूरा सहयोग भी दिया. यही नहीं ..रे. के चार अन्य अधिकारियों के यहां भी सीबीआई को छापों की अनुमति बोर्ड ने प्रदान की. जबकि बोर्ड एवं सीवीसी ने श्री सहाय के खिलाफ पिछले एक साल में कोई
कार्रवाई नहीं की, जबकि उनके पास श्री सहाय के खिलाफ 4-5 मामले पेंडिंग थे. यही नहीं श्री सहाय ने श्री आशुतोष स्वामी, श्री अशोक गुप्ता एवं श्री सिंहदेव मीणा तीनों से भी ज्यादा भर्तियां (381) की हैं और प्रति उम्मीदवार 4-5 लाख रु. लेने तथा नकद होने पर उम्मीदवारों से नौकरी की एवज में उनका जमीन लिखा लिए जाने के पुख्ता सबूत पीएमओ एवं रेल मंत्रालय के पास मौजूद हैं. इस सबके बावजूद श्री सहाय को तो एग्रीड लिस्ट में डाला गया और ही उनके खिलाफ सीवीसी या रे.बो. विजिलेंस ने उपरोक्त तीनों अधिकारियों की तरह ही सेक्शन 6- की अनुमति प्रदान की, बल्कि उन्हें क्लीन चिट देते हुए विजिलेंस क्लीयरेंस प्रदान करके बिरादरी धर्म निभाया है. यह बात उपरोक्त तथ्यों से साफ साबित हो जाती है. रेलवे बोर्ड विजिलेंस की इस लापरवाही और सीवीसी के इस फेवर से रेलमंत्री, प्रधानमंत्री को अवगत कराने के साथ-साथ इस सारे मेनिपुलेशन को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दिए जाने की भी तैयारी की जा रही है.

सूत्रों का कहना है कि श्रीप्रकाश रे.बो. विजिलेंस और सीवीसी द्वारा मिलकर किए गए इस सारे मेनिपुलेशंस से श्री सहाय का एमटी का रास्ता साफ हो गया है और यदि वह अगले 10-15 दिन में एमटी बन जाते हैं तो फिर उन्हें मई
में वर्तमान सीआरबी के रिटायर होने पर सीआरबी बनने का भी अवसर मिल सकताहै. क्योंकि उस समय दो मेंबर को छोड़कर किसी का भी पर्याप्त कार्यकालनहीं बचा होगा. तब श्री वी. एन. त्रिपाठी एमटी पद के लिए मोस्ट एलिजिबल दावेदार बन जाएंगे. ऐसे में श्री कुलदीप चतुर्वेदी, जो कि एक निहायत ईमानदार और सज्जन अधिकारी होने के साथ ही एमटी पद के प्रबल और सर्वथा उचित दावेदार हैं, की दावेदारी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी. इस तरह 'रेलवे समाचार' द्वारा दो साल पहले 'वर्ष 2014 तक लगातार एक ही बिरादरी का होगा मेंबर ट्रैफिक' शीर्षक से प्रकाशित खबर सच साबित होती नजर रही है.

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