Monday 21 December, 2009

रेलवे में एक ही यूनिफाईड फ़ोर्स होनी चाहिए

ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन द्वारा 'रेल यात्रियों, उनके सामान
और रेल संपत्ति की सुरक्षा' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

नयी दिल्ली : ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन ने महासचिव श्री यू. एस. झा के नेतृत्व में एक अभिनव शुरुआत की है. एसोसिएशन द्वारा 'रेल यात्रियों, उनके सामान और रेल संपत्ति की सुरक्षा' विषय पर 7-8 दिसंबर को एसोसिएशन के मुख्यालय, 2 इस्टेट एंट्री रोड, नयी दिल्ली में राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया. इस अवसर पर रेल राज्यमंत्री श्री . अहमद, सीआरबी श्री एस. एस. खुराना, महाप्रबंधक/.रे., श्री विवेक सहाय, डीआरएम /दिल्ली श्री प्रदीप कुमार, सीएससी/.रे. श्री मेहता, एआईआरएफ के महासचिव श्री शिवगोपाल मिश्रा, एनएफआईआर के महासचिव श्री एम. राघवैया, आईआरपीओएफ के महासचिव श्री जितेंद्र सिंह, पूर्व महासचिव श्री के. हसन, केंद्रीय श्रमराज्य मंत्री श्री हरीश रावत, दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेवानिवृत्त रजिस्ट्रार श्री अवेश अहमद, पूर्व गृह राज्यमंत्री श्री स्वामी चिन्मयानंद, प्रो. हसन असकरी, जेएनयू स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज एंड लॉ के रिसर्च स्कालर डॉ. मोहित सहित मुंबई रेल प्रवासी संघ के अध्यक्ष श्री मधु कोटियन (मुंबई), पश्चिम बंगाल रेलयात्री समिति के संयुक्त सचिव श्री स्वपन कुमार भारती एवं बर्धमान रेलवे पैसेंजर्स वेलफेयर एसोसिएसन के सचिव श्री अमल साहा तथा उपाध्यक्ष डॉ. अनुपम बनर्जी (कोलकाता) उपस्थित थे.

समारोह की अध्यक्षता आरपीएफ एसोसिएसन के अध्यक्ष श्री के. कलईअरसन ने की और दीप प्रज्ज्वलित करके सीआरबी श्री खुराना ने समारोह का उद्घाटन किया. कार्यक्रम में आए सभी गणमान्य अतिथियों/वक्ताओं का स्वागत शाल, पुष्प गुच्छ और स्मृति चिन्ह देकर एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष श्री धरमवीर सिंह और उनके साथियों श्री . पी. सिंह, श्री बिश्नोई एवं अन्य कार्यकर्ताओं की टीम ने किया. कार्यक्रम का संचालन करते हुए सर्वप्रथम श्री यू.एस. झा ने संगोष्ठी के विषय एवं उद्देश्य पर गहराई से प्रकाश डाला और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ऐसी संगोष्ठियों के आयोजन की आवश्यकता बताई. श्री झा ने अपनी बात को तत्काल सही साबित करते हुए उपरोक्त सभी गणमान्य एवं उच्चाधिकारियों की उपस्थिति में सबसे पहले मुंबई से आए मुंबई रेल प्रवासी संघ नामक यात्री संगठन के अध्यक्ष श्री मधु कोटियन को पहले वक्तव्य के लिए मंच पर आमंत्रित कर लिया.

श्री कोटियन ने दो टूक शब्दों में कहा कि रेलवे से दोहरी सुरक्षा व्यवस्था को तत्काल खत्म किया जाना चाहिए और किसी एक फोर्स को ही इसकी जबावदेही सौंपी जानी चाहिए. क्योंकि इस दोहरी व्यवस्था के चलते सामान्य रेल यात्रियों में भ्रम की स्थिति बनी रहती है. वह यह पहचान नहीं कर पाते हैं कि आरपीएफ और जीआरपी में क्या अंतर है. उन्होंने कहा कि जब कोई यात्री किसी घटना के संबंध में अपनी शिकायत लेकर जीआरपी के पास जाता है
तो वह उसे आरपीएफ के पास जाने के लिए कहते हैं. यही काम आरपीएफ द्वारा भी किया जाता है. श्री कोटियन का कहना था कि सामान्य यात्री को यह नहीं मालूम होता है कि जीआरपी एवं आरपीएफ के क्या अधिकार हैं और किसकी क्या जिम्मेदारी है. ऐसे में वह दोनों फोर्सों के बीच भटकता रहता है और यह दोनों फोर्सें एक-दूसरे पर जिम्मेदारी एवं जवाबदेही ढकेलती रहती हैं.

उन्होंने कहा कि ऐसी विसंगतिपूर्ण व्यवस्था से अब यात्री परेशान हो चुके हैं. तथापि दो-दो फोर्सें होने के बावजूद यात्रियों के साथ होने वाली जहरखुरानी, चोरी. डकैती, छीना-झपटी और यहां तक कि चलती गाडिय़ों में बलात्कार एवं हत्या जैसी घटनाओं पर कोई रोक नहीं लग पा रही है, बल्कि इन जघन्य घटनाओं में लगातार बढ़ोत्तरी होती जा रही है. श्री कोटियन ने सीएसटी पर 26/11 के आतंकवादी हमले के समय .रे. के आईजी/आरपीएफ की नामर्दगी और यात्रियों की सुरक्षा के प्रति बरती गई उनकी घोर लापरवाही पर लानत भेजते हुए कहा कि उस दिन दोनों ही सुरक्षा बलों में से एक भी सिपाही ऐसा नहीं था जो मात्र दो आतंकवादियों का सामना करता. उन्होंने कहा कि इस
दोहरी सुरक्षा व्यवस्था के कारण ही उस दिन सीएसटी पर 58 निर्दोष यात्रियों की जान चली गई और करीब 200 यात्री बुरी तरह जख्मी हो गए थे.

उन्होंने यह भी कहा कि सिर्फ वर्दी पर ही निर्भर रहकर देश के प्रत्येक नागरिक को बिना वर्दी के ही पुलिस और रक्षक की भूमिका निभानी होगी, तभी ऐसे हमलों को रोका जा सकेगा. अंत में उन्होंने फिर एक बार पुरजोर ढंग से
इस बात को दोहराया कि रेलवे में एक ही सुरक्षा एजेंसी होनी चाहिए.

ऐसी लगा कि श्री कोटियन ने आरपीएफ और खासतौर पर श्री यू. एस. झा के मर्म को छेड़ दिया क्योंकि उनके संबोधन के बाद श्री झा ने उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा कि जो परेशानी सामान्य यात्री को होती ही, वही उन्हें भी होती
है. उन्होंने बताया कि यह केंद्र सरकार यानी रेलवे की जिम्मेदारी है कि वह टिकटधारी यात्री और बुक्ड कन्साइनमेंट्स को सुरक्षित उनके गंतव्य तक पहुंचाए. उन्होंने बताया कि केंद्रीय सूची के तहत आने और होने वाले
अपराधों की जांच पड़ताल की जिम्मेदारी राज्यों की नहीं बल्कि केंद्र सरकार की है. उन्होंने कानून-व्यवस्था को हमेशा राज्य का विषय बताए जाने पर सर्वसामान्य को गुमराह किए जाने की बात कहते हुए इस मामले को गलत तरह से जनता और मीडिया के सामने राजनेताओं द्वारा प्रस्तुत किए जाने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि केंद्र के दायरे में होने वाले अपराधों की रोकथाम और कार्रवाई का अधिकार केंद्र को है. श्री झा ने साफ शब्दों में सभी उच्चाधिकारियों की उपस्थिति में इस बात को रेखांकित किया कि सरकारें अपने राज्यों के दायरे में घटित अपराधों और अपराधियों को रेलवे के दायरे में धकेल कर केंद्र सरकार को मूर्ख बना रही हैं. उन्होंने यह भी कहा कि इसके लिए वह किसी पुलिस अधिकारी अथवा जीआरपी को जिम्मेदार या दोषी नहीं ठहरा रहे हैं, बल्कि वे इसके लिए इस दोहरी व्यवस्था को ही दोषी मानते हैं, जिसका उल्लेख यात्रियों के प्रतिनिधि श्री मधु कोटियन ने यहां किया है.

श्री कोटियन ने जो कहा, वह पूरे सेमिनार में सभी वक्ताओं के लिए एक गाइड लाइन बन गया, क्योंकि उनके बाद आए सीआरबी श्री खुराना के आरपीएफ की मजबूती और उसे सबल बनाए जाने तथा उसके द्वारा अपराधों की रोकथाम के आंकड़े प्रस्तुत करते हुए अपने लिखित भाषण के बाहर जाकर यह माना कि दोहरी सुरक्षा व्यवस्था को समाप्त करने के बारे में गंभीरतापूर्वक विचार किए जाने की जरूरत है. एनएफआई के महासचिव श्री एम. राघवैया, एआईआरएफ के महासचिव कॉ. शिवगोपाल मिश्रा और आईआरपीओएफ के महासचिव श्री जितेंद्र सिंह ने भी अपने वक्तव्यों में इस बात को पुरजोर ढंग से रेखांकित किया कि रेलवे में ङ्क्षसगल कमांड और एक ही यूनिफाइड फोर्स होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि जब यह व्यवस्था सभी जगह लागू है तो फिर रेलवे में क्यों सिर्फ उसकी जिम्मेदारी तय होगी बल्कि वह तमाम चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होगी.

उन्होंने यह भी कहा कि आरपीएफ को भी सीधे सीआरबी, जीएम और डीआरएम के मातहत लाया जाना चाहिए, तभी इसके उच्चाधिकारियों की मनमानी को कुछ हद तक रोका जा सकेगा. इन कर्मचारी नेताओं ने यह भा माना कि आरपीएप की जिम्मेदारी और ड्यूटी को देखते हुए 6वें वेतन आयोग ने उनके साथ वेतन आदि में न्याय नहीं किया है. उन्होंने कहा कि रेल की संरक्षा-सुरक्षा को सिर्फ सरकार के भरोसे पर ही नहीं छोड़ा जाना चाहिए. इसे एक जनांदोलन बनाने का निर्णय सभी फेडरेशनों ने मिलकर लिया है. कर्मचारी नेताओं ने कहा कि रेलकर्मी से बेहतर और सक्षम अन्य कोई सरकारी कर्मचारी नहीं है. इसलिए सरकार को रेल बजट की तरह रेलकर्मियों के लिए भी अलग से सोचना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि तमाम अभावों के बावजूद उपलब्ध संसाधनों में ही हम रेल को बेहतर ढंग से चला रहे हैं. यह हमारी काबिलियत है. उन्होंने कहा कि जब भी दो लोगों को किसी काम की जिम्मेदारी सौंपी गई है वहीं वह काम कभी ठीक ढंग से नहीं हुआ है. इसलिए रेलवे में भी दोहरी सुरक्षा प्रणाली को समाप्त करके एकीकृत सुरक्षा प्रणाली सुनिश्चित की जानी चाहिए.

रेल राज्यमंत्री श्री . अहमद ने भी आरपीएफ के कामकाज की तारीफ करते हुए रेलवे में एकीकृत सुरक्षा प्रणाली की आवश्यकता को दोहराया. श्री झा ने पूर्व वक्ताओं द्वारा दिए गए वक्तव्यों से मंत्री महोदय को अवगत कराया. आईआरपीओएफ के पूर्व महासचिव और ऑल इंडियन आरपीएफ एसोसिएशन के सलाहकार श्री के. हसन ने अपने वक्तव्य में श्री मधु कोटियन के विचारों से पूरी तरह सहमति दर्शाते हुए कहा कि मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूं कि रेलवे में दोहरी सुरक्षा व्यवस्था नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि जब किसी घर की व्यवस्था दो लोगों के भरोसे नहीं चल पाती है और यह तभी चलती है जब एक अकेली गृहस्वामिनी या गृहस्वामी चलाता है, तब देश या रेल की इतनी विशाल व्यवस्था दो सुरक्षा एजेंसियों के भरोसे कैसे चल सकती है. उन्होंने कहा कि जहां यह सारी व्यवस्था एक राष्ट्रपति, एक प्रधानमंत्री और राज्यों में एक राज्यपाल एक मुख्यमंत्री के भरोसे चल रही है, वहां उसी तर्ज पर रेल में एक सीआरबी के मातहत चलती है तो यही एकहरी व्यवस्था रेल की सुरक्षा के मामले में क्यों नहीं है, जबकि किसी भी देश की रेलवे में ऐसी व्यवस्था नहीं, तो भारतीय रेल में ही यह क्यों है?

श्री हसन ने कहा कि मगर एकीकृत व्यवस्था और ज्यादा अधिकार मिलेंगे तो इनका दुरुपयोग भी होगा. यह रोकने की जिम्मेदारी जनता पर है. उन्होंने इसके लिए मधु कोड़ा का उदाहरण दिया, जिन्होंने बहुत कम समय में बतौर
मुख्यमंत्री हजारों करोड़ रु. कमा लिए और अब जनता और देश की अदालत के सामने हैं. उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था (प्रकृति) किसी को माफ नहीं करती है. हम जब तक अपने दायरे में रहकर काम करेंगे तभी तक ठीक रहेंगे, वरना आज जिस तरह जीआरपी पर उंगलियां उठ रही हैं उसी तरह कल हम (आरपीएफ) पर भी उठेंगी.

उन्होंने इस बात से भी सहमति जताई कि देश के प्रत्येक नागरिक को पुलिस मैन बनाए जाने की जरूरत है. जब तक ऐसा नहीं होगा या जब तक ऐसा नहीं समझा जाएगा, तब तक इस देश पर कुछ सिरफिरे लोग 26/11 जैसे अत्याचार करते रहेंगे. उन्होंने 26/11 पर अब तक हुई चर्चा तथा श्री कोटियन के बयान के मद्देनजर .रे. के आईजी /सीएससी/आरपीएफ की संदिग्ध भूमिका पर अपना रोष जाहिर करते हुए कहा कि 'हमें ऐसा नामर्द आईजी नहीं चाहिए जो स्वयं 5-10 कमांडो के घेरे में चलता हो और सैकड़ों निरीह यात्रियों को मात्र दो सिरफिरे
आतंकवादियों की गोलियों का निशान बना देता हो. उन्होंने कहा कि .रे. के आरपीएफ के ऐसे नपुंसक/नामर्द आईजी को सिर्फ तुरंत हटाया जाना चाहिए बल्कि उसे ड्यूटी में लापरवाही के लिए पुलिस सेवा से भी बर्खास्त किया जाना चाहिए. श्री हसन ने कहा कि भ्रष्टाचार सिर्फ रेलवे में ही नहीं है, बाकी जगह पर भी है और जब तक अन्य विभागों से इसे समाप्त नहीं किया जाएगा, तब तक रेलवे से भी भ्रष्टाचार को खत्म करना मुश्किल है.

उन्होंने रोषपूर्ण शब्दों में कहा कि जब तक नौकरशाह नहीं सुधरेंगे तब तक अपने थोड़े से स्वार्थ के लिए अपनी बहन -बेटी के साथ-साथ वे इस देश का भी सौदा करने नहीं चूकेंगे. उन्होंने उपस्थित हजारों आरपीएफ जवानों को संबोधित करते हुए कहा कि यदि हमारी बहन बेटियों को बचाना है तो सबसे पहले अपनी बहन-बेटियों को बचाना सीखना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि जहां बड़े-बड़े नेता चोर हो जाएं, बड़े-बड़े नौकरशाह चोर हो जाएं, वहां सामान्य आदमी की कोई जगह नहीं बचती है. क्योंकि इस प्रजातंत्र में व्यक्ति नहीं सिर गिने जाते हैं.

उन्होंने कहा कि यहां सिर्फ चार-पांच फेडरेशनों की एकजुटता की ही बात नहीं है क्योंकि आरपीएफ फेडरेशन स्वयं में एक बहुत मजबूत संगठन है. यह फोर्स का संगठन है जो सिर्फ जवानों के हक की बात करता है बल्कि उन्हें
अपने दायरे में रहकर नियमानुसार अनुशासित होकर अपने कर्तव्य को निभाने की भी बात करता है. यहां मुंबई-कोलकाता के यात्री संगठनों के जो लोग आए हैं वह सिरफिरे लोग नहीं हैं. उन्होंने इस संगठन और फोर्स के साथ अपनी एकजुटता दिखाई है. जब रेल से प्रतिदिन सफर करने वाले दो करोड़ रेल यात्री जिस संगठन के साथ हो जाएं उससे बड़ा और मजबूत संगठन और कौन हो सकता है. इसलिए यहां से उठने के बाद यह सेमिनार एक जनांदोलन की तरह देश भर में फैलना चाहिए. ऐसी ही विचार संगोष्ठियां देश के सभी बड़े शहरों में यात्री संगठनों को साथ लेकर की जानी चाहिए.

उन्होंने कहा कि यदि सही फैसले लेकर जनता के बीच जाएंगे तो अपने रक्षक के तौर पर यही दो करोड़ रेल यात्री आरपीएफ की भी सुरक्षा में हरदम उसके साथ खड़े हुए मिलेंगे. जब आरपीएफ उनकी सुरक्षा में हमेशा रहेगा तो वह भी आरपीएफ के समर्थन में हरदम खड़े मिलेंगे. उन्होंने मिसाल के तौर पर कहा कि उन बूढ़े मां-बाप से उनका दर्द पूछो जिनका बेटा मुंबई-कोलकाता से कमाकर गांव के लिए निकलता है और रास्ते में जहरखुरानों-चोरों द्वारा लूट
लिया जाता है. सोचो यदि आपने किसी की जान बचा ली, किसी बहन-बेटी की इज्जत बचाकर उसे सुरक्षित उसके घर पहुंचा दिया. किसी जरूरतमंद को तुरंत इलाज मुहैया करा दिया. तो उनकी दुआएं आपको और आपके साथ आपके पूरे परिवार को मिलती हैं. उन्होंने कहा कि यहां जो लोग बैठे हैं. यह फैसला उन्हीं को करना है, क्योंकि यहां तो बहुत बड़े-बड़े लोग आकर भाषण देंगे, तथापि इसका फैसला तो आखिर यहां बैठे अथवा सर्वसामान्य व्यक्ति को ही करना है.

तत्पश्चात आरपीएफ के संघर्ष के साथ वर्षों से जुड़े केंद्रीय श्रम राज्यमंत्री श्री हरीश रावत, श्री अवेश अहमद, प्रो. हसन असकरी, पूर्व गृह राज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद, रिसर्च स्कालर डॉ. मोहित, भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के राष्ट्रीय महामंत्री श्री विजय प्रकाश जैन आदि गणमान्य वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए तथा आरपीएफ एसोसिएशन के इस महती प्रयास के लिए उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा भी की. दो दिन तक लगातार चले इस मैराथन
सेमिनार के मजमून और वक्ताओं के विचारों से सरकार को भी अवगत कराया जाएगा. दिल्ली यूनिवर्सिटी के विद्वानों इस अभिनव प्रयास में श्री यू. एस. झा के इस आंदोलन को विश्वव्यापी बनाने में अपना सक्रिय योगदान दे रहे हैं.

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