Thursday 10 December, 2009

एमटी पैनल में विवेक सहाय को विजिलेंस

क्लीयरेंस देकर मंत्री को किया गया गुमराह

एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर रेल मंत्रालय के कुछ कटु सत्य रेलमंत्री के ध्यान में लाना जरूरी हो गया है, क्योंकि कई महत्वपुर्ण पहलुओं पर उनका ध्यान अब तक नहीं जा पाया है. इसलिए वह अपने विरोधियों को परास्त करने में विफल रही हैं. इसके अलावा ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ छवि होने के बावजूद पिछले छह महीनों में रेलवे का संपूर्ण कामकाज लगभग ठप्प सा हो गया है और कोई भी निर्णय समय पर नहीं हो पा रहा है. जिसके कारण पूरी व्यवस्था करीब-करीब बैठ चुकी है, इसके बावजूद उन्होंने जो दो-चार निर्णय लिए हैं, वह काफी हद तक ठीक कहे जा सकते हैं. हालांकि आरआरबी के सभी 20 चेयरमैंनों को एक साथ हटाकर रेलमंत्री जो एक गहन संदेश देना चाहती थीं, वह स्पष्ट रूप से नहीं दे सकीं. क्योंकि रेल मंत्रालय के बाबुओं ने इस मामले में काफी पहले 'रेलवे समाचार' द्वारा आगाह किए जाने के बावजूद उनको पूरी और सही वस्तुस्थिति से अवगत नहीं कराया था. इसलिए यह आवश्यक कदम रेलमंत्री द्वारा उठाया गया और जिन नए लोगों को इन 20 आरआरबी चेयरमैनों के पदों पर लाया गया है और ईडीई/आरआरबी के पद पर जिसे बैठाया गया है, इनमें से अधिकांश लोग भी बहुत अच्छे चरित्र के नहीं हैं.

ऊपर जिन कुछ कटु सत्यों की चर्चा की गई है, उन पर फौरन रेलमंत्री की तरफ से ध्यान दिया जाना और उचित कार्रवाई किया जाना नितांत आवश्यक है. वरना रेलवे बोर्ड के बाबू लोग उनकी भी छवि धूमिल करने से बाज नहीं आएंगे.

एक तो यह पता चला है कि मेंबर ट्रैफिक (एमटी) पद के लिए पैनल में जो चार नाम पीएमओ को भेजे गए हैं, उनमें से एक नाम श्री विवेक सहाय, जीएम/.रे., का भी है. यदि वास्तव में ऐसा है तो मंत्री को गुमराह करने के आरोप में रेलमंत्री को चाहिए कि सीआरबी एवं सेक्रेटरी/रे.बो. को तुरंत बर्खास्त करें या फिर उन्हें तत्काल लंबी छुट्टी पर भेजें. क्योंकि यह तो सर्वविदित है कि श्री सहाय ने जीएम/..रे. रहते हुए जीएम कोटे में सर्वाधिक भर्तियां की थीं. जिनमें से 99' उम्मीदवार सिर्फ एक प्रदेश विशेष के हैं. इनमें से प्रत्येक उम्मीदवार से 4 से 5 लाख रुपया लिया गया था और जिन उम्मीदवारों के पास देने के लिए कैश (नकद) नहीं था, उनसे उनकी जमीन लिखा ली गई थी. इस मामले के सारे पुख्ता सबूत रेलमंत्री के कार्यालय में उपलब्ध हैं और रेलमंत्री ने इस संबंध में सीबीआई जांच के आदेश भी दिए हैं.

इसी सिलसिले में सीवीसी/सीबीआई ने 19 नवंबर को ..रे. मुख्यालय, इलाहाबाद से सभी संबंधित फाइलों को मुहरबंद करके जब्त कर लिया है. इसके अलावा भी श्री सहाय के खिलाफ सीवीसी एवं रे. बो. विजिलेंस में एक फाइनल प्रमोशन पैनल को नियम विरुद्ध मॉडिफाई करने तथा सहायक वाणिज्य प्रबंधक (एसीएम) पैनल को रोककर अपने खास बिरादरी भाई को प्रमोट करने के दो मामले पहले से ही दर्ज हैं. जिन पर बोर्ड विजिलेंस जानबूझकर जांच में देरी कर रहा है, जिससे कि श्री सहाय को फायदा मिल जाए. परंतु अब देर सिर्फ इस बात की है कि सीबीआई कार्रवाई करके श्री सहाय पर मुकदमा दर्ज करे और इन्हें जेल भेजे. यानी जो श्री अशोक गुप्ता, श्री सिंहदेव मीणा और श्री आशुतोष स्वामी के साथ हुआ, उतना ही इस मामले में भी होने की देर है.

आश्चर्य इस बात का है कि रे.बो. विजिलेंस अब तक सो रहा है और इन सब तथ्यों के बावजूद श्री सहाय को 'मेंबर ट्रैफिक ' के लिए विजिलेंस क्लीयरेंस दी जा चुकी है. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि जो अधिकारी (श्री सहाय) करोड़ों रुपए कमा चुका है, उसके लिए सीबीआई जांच को दो-तीन महीने लटका कर मेंबर टै्रफिक बन जाना और उसके बाद सब कुछ रफा-दफा करवाकर आराम से रिटायर हो जाना कौन सी बड़ी बात होगी, जबकि रेलवे में तो यह सब बहुत सामान्य बात है, लेकिन इसके पीछे रेल अधिकारियों (बोर्ड के बाबुओं) की यह खुशफहमी है कि मंत्री तो गैर जानकार और मूर्ख होता है, रेल में होता वही है जो कागज (फाइल) पर बोर्ड के बाबू लोग (सीआरबी, सेक्रेटरी, मेंबर्स आदि) लिखते हैं . रेलवे की महाभ्रष्ट विजिलेंस व्यवस्था का एकमात्र कार्य भ्रष्ट उच्च रेल अधिकारियों को बचाना और उनका सुरक्षित रिटायरमेंट करवाना तथा उनके मामलों को लंबे समय तक इस तरह से दबाए रखना ताकि उनके प्रमोशन और रिटायरमेंट में किसी प्रकार की अड़चन आने पाए. यह तो सर्वज्ञात है कि कि श्री अशोक गुप्ता, पूर्व जीएम/..रे., जयपुर को रिटायरमेंट के मात्र 11 दिन बाद और आईजी/सीएससी/आरपीएफ/..रे. श्री सिंहदेव मीणा को सर्विस में रहते हुए करोड़ों के भ्रष्टाचार एवं आय से अधिक संपत्ति के लिए सीबीआई द्वारा पकड़ा गया है.

इन दोनों उच्चाधिकारियों के बारे में रे. बो. विजिलेंस या सीवीसी में एक भी मामला दर्ज नहीं था बल्कि श्री अशोक गुप्ता को रे. बो. विजिलेंस द्वारा रात 9.30 बजे विजिलेंस क्लीयरेंस देकर और सेक्रेटरी/रे.बो. की कृपा से करीब 72 लाख रुपए के रिटायरमेंट ड्यूज का भुगतान करके आराम से रिटायर कर दिया गया था.

रेलमंत्री को तो शायद इस बात का भी अंदाजा नहीं है और जैसी की चर्चा है कि जो लगभग 4 हजार फाइलें उनके कार्यालय में उनके निर्णय या हस्ताक्षर के लिए पड़ी हैं, उनसे भी व्यवस्था को चलाने वाले रे.बो. के बड़े बाबुओं के हौसले बुलंद हो रहे हैं. रे.बो. के बाबू लोग तो यही चाहते हैं कि वह अपनी राजनीति में ही व्यस्त रहें. यही वजह है कि भारतीय रेल और देश को करोड़ों रु. का नुकसान पहुंचाने और नाकाबिल एवं अयोग्य होने के बाद भी लोग बोर्ड के मेंबर बनने में कामयाब रहे हैं. बोर्ड के यह बाबू लोग यही चाहते हैं कि रेलमंत्री को रेल मंत्रालय में बैठने, रेलवे के कामकाज को देखने और समझने की फुर्सत मिले और इस दरम्यान वह मेंबर की हेसियत से पूरे मामले की लीपापोती करके सुरक्षित रिटायर होकर निकल जाएं.

यह सिर्फ ईश्वर की कृपा है कि समय-समय पर रेलमंत्री को एकाध ही सही, मगर कोई बड़ी टिप मिल जाती है, जिससे कुछ बड़े मगरमच्छ उनकी जानकारी में आकर उचित कार्रवाई की शिकार हो जाते हैं. जैसे कि उत्तर पूर्व सीमांत रेलवे (एन.एफ.रेलवे) के जीएम श्री आशुतोष स्वामी पर कार्रवाई करके उन्होंने एक बड़ा संदेश दिया है. तथापि इस मामले में हमारी जानकारी में एक अत्यंत चौंकाने वाला तथ्य आया है, जिसे जानने के बाद रेलमंत्री को अवश्य और ज्यादा सतर्क हो जाना चाहिए. यह तथ्य ये है कि श्री स्वामी के मामले को रफा-दफा करवाने के लिए रेलमंत्री की पार्टी के एक माननीय सांसद से पांच करोड़ रु. की डील की गई थी, जिसे सिलीगुड़ी के एक बड़े ठेकेदार श्री मित्तल अंजाम देने वाले थे और इसके बदले में रेलवे की सैकड़ों करोड़ रुपए की बेशकीमती जमीन जीएम/ एनएफआर और एफए एंड सीएओ मिलकर श्री मित्तल को देने की योजना बना चुके थे. लेकिन रेलमंत्री ने एकदम सही समय पर इस मामले में कार्रवाई करते हुए और श्री स्वामी को हटाकर उनकी ये सारी योजना विफल कर दी है. यदि इनकी यह योजना सफल हो जाती और जाने-अनजाने में रेलमंत्री की अपनी ही पार्टी के और उनके करीबी सांसद महोदय इस पांच करोड़ी डील के चक्कर में जाते तो रेलमंत्री की जीवन भर की ईमानदारी और मेहनत एकदम से धूल में मिल जाती.

यहां ध्यान देने की बात यह है कि बोर्ड विजिलेंस में मामले दर्ज होने और उनमें जांच चल रही होने के बाद भी श्री सहाय को विजिलेंस क्लीयरेंस दिए जाने की बात पर बोर्ड विजिलेंस के लोगों का नियमानुसार तर्क यह है कि अभी तक उन्हें चार्जशीट भी नहीं दी गई है और किसी मामले में जब तक दोषी नहीं ठहराया जाता तब तक उनका विजिलेंस क्लीयरेंस नहीं रोका जा सकता. यह नियम अपनी जगह सही है, परंतु यह नियम उन लोगों के लिए है जो घोषित भ्रष्ट अथवा चोर नहीं हैं, मगर यह नियम उन घोषित चोरों पर लागू नहीं किया जाना चाहिए जिनके बारे में सर्वज्ञात होता है. नियमों-कानूनों के बावजूद पीठासीन अधिकारियों को अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए भी निर्णय लेना होता है.

इस तर्क के आधार पर श्री सहाय को विजिलेंस क्लीयरेंस नहीं दिया जाना चाहिए था. ऐसा हमारा मानना है. दूसरा यह कि सेक्रेटरी रेलवे बोर्ड के पद पर अभी भी श्री के. बी. एल. मित्तल नामक एक महाभ्रष्ट और पूर्व रेलमंत्री का खास विश्वासपात्र अधिकारी विराजमान है, जिसे रेलमंत्री ने कहकर भी नहीं हटाया, बल्कि बोर्ड के बाबूओं द्वारा दिखाए गए कानूनी डर और सिफारिशों के चलते उन्हें एक्सटेंशन भी दे दिया. यह जानते हुए भी कि छपरा रेल कोच फैक्ट्री का 1000 करोड़ रु. से ज्यादा का टेंडर देने के लिए पूर्व रेलमंत्री ने अपने इन्हीं खास विश्वासपात्र श्री मित्तल को भेजा था और उसमें सैकड़ों करोड़ का भ्रष्टाचार हुआ था जिसका फायदा निश्चित रूप से श्री मित्तल और पूर्व रेलमंत्री को हुआ है. पूर्व रेलमंत्री ने श्री मित्तल के लिए सीएमई/.रे. की पोस्ट भी तीन महीने खाली रखी थी. इसी के पुरस्कार स्वरूप पूर्व रेलमंत्री ने श्री मित्तल को सेक्रेटरी/रे.बो. के पद पर उनसे कई सीनियर अधिकारियों को बायपास करके और यह सोच कर बैठा गए थे कि उनके जाने के बाद भी उनकी इच्छानुसार रेलवे के तमाम निर्णय/फैसले होते रहें. यही तो वास्तव में हो रहा है. क्योंकि रेलमंत्री को इस बात का अंदाजा ही नहीं है कि सेक्रेटरी/ रे.बो. का पद पूरे मंत्रालय को अपनी उंगलियों पर नचाने में पूरी तरह अधिकार संपन्न है. यही तो श्री मित्तल उनके ईडीपीजी के साथ मिलकर कर रहे हैं क्योंकि रेलमंत्री के पास रेलवे के जानकार और सही सलाहकारों का भारी अभाव है. खासतौर पर श्री मित्तल यह सब इसलिए भी कर पा रहे हैं क्योंकि वे खुद भी एक बहुत ही पहुंचे हुए और शातिर हैं, और बोर्ड के वर्तमान मेंबर्स नाकाबिल और नातजुर्बेगार हैं तथा बोर्ड का चेयरमैन एक नंबर का लालची और महाभ्रष्ट है, जो कि किसी को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी में मात्र का प्लॉट लेकर तथा 'बंटी और बबली' को खुश रखने वालों के हाथों में खेलते हुए पूरी रेलवे को ही बेचने और इसकी गरिमा को दांव पर लगाने को तैयार है. यह सारे तथ्य 'रेलवे समाचार' पहले भी रेल मंत्री को लिखकर भेज चुका है.

सौभाग्य से रेलमंत्री ने अपने पिछले दो-तीन निर्णयों से बोर्ड के बाबुओं की इस उपरोक्त गलतफहमी को करारा झटका दिया है. बावजूद इसके यदि इन बाबुओं (सीआरबी, सेक्रटरी) की इतनी हिम्मत हुई या हो रही है कि विजिलेंस क्लीयरेंस दिलाकर श्री सहाय का नाम एमटी पैनल में दूसरे नंबर पर डालकर और उनके हस्ताक्षर (संस्तुति) लेकर पीएमओ को भेज देने में कामयाब हो रहे हैं, तो यह इनका अक्षम्य अपराध है, जिसकी सजा इनकी तुरंत बर्खास्तगी से कम नहीं हो सकती. इसके लिए सीआरबी और सेक्रेटरी/रे.बो. खासतौर पर जिम्मेदार हैं. इसलिए इनके खिलाफ फौरन से पेश्तर 'ब्यूरोक्रेटिक एक्शन' लिया जाना चाहिए. क्योंकि यह विश्वासघात सिर्फ मंत्री के साथ ही नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था (सिस्टम) और देश एवं समाज के साथ भी किया गया है.

यहां हम रेलमंत्री को एक और महत्वपूर्ण तथ्य से आगाह कहना चाहेंगे कि श्री विवेक सहाय ने उनके कार्यालयीन स्टाफ के साथ अच्छी पटरी बैठा ली है और दिल्ली में वे उसे 'हर तरह की सुविधा' उपलब्ध करा रहे हैं जिससे उन्हें उनके भावी निर्णयों और योजनाओं की जानकारी पहले से ही मिल जाती है. इसलिए श्री विवेक सहाय को जीएम/ .रे. के पद से और दिल्ली से हटाया जाना अत्यंत जरूरी हो गया है. उन्हें जीएम/एनएफआर की खाली हुई जगह पर और श्री के. बी. एल. मित्तल को भी अन्यत्र कहीं दिल्ली से बाहर भेजा जाना चाहिए. अत: यदि रेलमंत्री अपनी भावी रणनीति एवं योजनाओं को अत्यंत गोपनीय रखने का प्रयास करें तो यह सिर्फ उनके लिए बल्कि रेल मंत्रालय के लिए भी हितकारी होगा.

प्रस्तुति
सुरेश त्रिपाठी
संपादक
'रेलवे समाचार'

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