Friday 18 December, 2009

'भटकू' यादव गिरफ्तार, नारको टेस्ट करवाया जाए

नहीं बच सके आईपीएफ अरविंद कुमार यादव उर्फ भटकू यादव सीबीआई के शिकंजे से
तमाम कोशिशों के बावजूद नहीं मिल पाई गिरफ्तारी पूर्व जमानत
आरपीएफ द्वारा कुर्ला टर्मिनस पर प्रतिदिन 1.58 लाख रु. की होती थी अवैध वसूली
सीबीआई ने इस अवैध वसूली का सालाना गणित 5.76 करोड़ का लगाया
अदालत में प्रस्तुत किया गया सारा आकलन
अरविंद कुमार उर्फ भटकू यादव की करोड़ों की चल-अचल संपत्ति का पता चला

मुंबई : म.रे. के आईजी/सीएससी/आरपीएफ बी. एस. सिद्धू के संरक्षण में पिछले करीब पांच साल से रेल यात्रियों को लुटवा रहे लगातार करीब तीन हफ्ते तक सीबीआई की गिरफ्तारी से बचकर फरार रहे इंस्पेक्टर आरपीएफ (आईपीएफ) अरविंद कुमार यादव उर्फ भटकू यादव अंतत: सीबीआई के चंगुल में फेस गए. 11 दिसंबर को हाईकोर्ट द्वारा उनकी गिरफ्तारी पूर्व जमानत याचिका नामंजूर कर दिए जाने के बाद सीबीआई एसीबी ने उन्हें कोर्ट परिसर से ही अपनी हिरासत में ले लिया. तत्पश्चात उन्हें स्पेशल सीबीआई जज ने 19 दिसंबर तक सीबीआई की हिरासत में भेज दिया.

यदि थोड़ी सी देर नहीं हो गई होती तो सीबीआई ने भटकू को 2 दिसंबर को ही अपनी हिरासत में ले लिया होता, क्योंकि जब यह प्रतिनिधि उस दिन नागपुर में आईपीएफ अतुल क्षीरसागर द्वारा दायर किए गए मामले को अटेंड कर रहा था, उसी समय इसे पता चला था कि भटकू सीएसटी/एडमिन पोस्ट, प्लेटफार्म नं. 1 सीएसटी में बैठा है और गिरफ्तारी पूर्व जमानत के लिए कोर्ट जाने वाला है. यह प्रतिनिधि जब तक यह सूचना सीबीआई वालों को मुंबई में देता और जब तक सीबीआई वाले कोर्ट पहुंचते, तब तक भटकू यादव अपनी याचिका दाखिल करवाकर
कोर्ट से कुछ ही समय पहले निकल चुका था. दूसरे दिन हुई सुनवाई में भटकू को 8 दिसंबर तक की राहत कोर्ट से मिल गई, परंतु जब वह अगले दिन कोर्ट में हाजिर नहीं हुआ तो जज ने उसके वकील को खूब लताड़ लगाई और 11 दिसंबर को उसे कोर्ट के समक्ष हाजिर करने का आदेश दिया.

बताते हैं कि सीबीआई ने भटकू को किसी भी तरह गिरफ्तार करने के लिए काफी तैयारी की हुई थी. परिणाम स्वरूप 11 दिसंबर को कोर्ट के समक्ष मामला आते ही उसकी जमानत नामंजूर कर दी गई और सीबीआई ने तत्काल उसे अपनी हिरासत में ले लिया. हालांकि आरपीएफ सूत्रों का कहना है कि आईजी/सीएससी और सीनियर डीएससी दोनों ने भटकू को उस दिन अदालत जाने से मना किया था, परंतु वकील के आश्वासन पर वह इन दोनों की बात को अनसुना करके कोर्ट गया था.

प्राप्त जानकारी के अनुसार 19 नवंबर को जब कुर्ला टर्मिनस पर सीबीआई वालों ने सामान्य यात्री बनकर ड्यूटी बंदोबस्त में आरपीएफ वालों को 100-100 रु. सामान्य यात्रियों से लेकर उन्हें सीट देते हुए रंगे हाथ पकड़ा था, तो उनमें से कांस्टे. योगेंद्र सिंह सुमन उन्हें धक्का देकर पार्सल हैंडलिंग एरिया में भाग गया था और एक पार्सल एजेंट मो. असलम शेख की पैंट और शर्ट जबरन उतरवाकर स्वयं पहन ली थी, मगर तब तक पीछे लगे सीबीआई वालों ने उसे धर दबोचा था. बाद में शिकायतकर्ता ने भी उसकी पहचान की थी. यह सारी स्थितियां सीबीआई ने अपने रिमांड अप्लीकेशन में बयान की हैं. गिरफ्तार सभी 9 लोगों को 25 नवंबर तक हिरासत में रखा गया था. परंतु हेड कांस्टे. आर. ए. यादव के अलावा बाकी की जमानत हो गई थी.

रिमांड अप्लीकेशन (सीबीआई केस नं. आरसी/बीए1/2009/ए0041-मुंबई) में सीबीआई एसीबी जांच अधिकारी इंस्पे. राजेश कुमार ने कुर्ला टर्मिनस में छापे के दौरान की समस्त स्थितियों और अवैध वसूली का बयान करते हुए कोर्ट को बताया है कि उत्तर भारत को जाने वाली सभी गाडिय़ों के सामान्य डिब्बों में आरपीएफ वाले यार्ड से ही कब्जा करके आते थे और प्रति यात्री 100 रु. लेकर उन्हें सीट बेचते थे. जो यात्री यह पैसा नहीं देता था उसे ये डिब्बे
में नहीं चढऩे देते थे. आप्लीकेशन में कहा गया है कि पकड़े गए आरपीए जवानों के निजी बक्सों की तलाशी लिए जाने पर हेड कांस्टे. आर. ए. यादव के बक्से से जो कागजात बरामद हुए हैं उनसे पता चलता है कि रात 8 बजे से सुबह 8 बजे तक की एक शिफ्ट में जो भी वसूली राशि जमा होती है, वह सबमें बांटी जाती है. उक्त कागजात की गहराई से छानबीन किए जाने पर पता चला कि आरोपियों द्वारा सिर्फ सामान्य यात्रियों से ही प्रतिदिन 1.58 लाख रु. की अवैध वसूली की जाती है और इसमें से 72,200 रु. 'साहब' को दिए जाते हैं.

अवैध वसूली का यह आंकड़ा सिर्फ एक शिफ्ट का है. इस प्रकार आकलन किए जाने पर पता चला कि पीक सीजन में इस अवैध वसूली की राशि करीब 50 लाख (सही गणना 47.40 लाख) प्रतिमाह और ऑफ सीजन में करीब इसकी आधी राशि वसूली होती है. इस प्रकार यह आंकड़ा सालाना करीब 6 करोड़ रुपए तक पहुंच जाता है. जबकि यह सिर्फ सामान्य कोच के यात्रियों से वसूल की जाने वाली राशि का आकलन हुआ है और इसमें टिकटों की ब्लैक मार्केटिंग, टिकट दलालों, आरक्षण, सामान चोरी, रेल संपत्ति की चोरी, कोचिंग पार्सल-गुड्स से होने वाली अवैध कमाई आदि का आकलन शामिल नहीं है.

रिमांड आवेदन में कहा गया है कि कुछ आरपीएफ वाले फरार हैं, मगर इस सारे रैकेट को उजागर करने के लिए उनकी गिरफ्तारी और उनसे पूछताछ जरूरी है क्योंकि इस अवैध वसूली और गैरकानूनी रूप से कमाई गई राशि में कुछ उच्च आरपीएफ अधिकारियों की भागीदारी की भूमिका की भी जांच की जानी है. इसके अलावा इस बात की भी जांच जरूरी है कि इस अवैध कमाई को इन लोगों ने कहां छिपाया अथवा निवेश किया है. इसके लिए इनकी संपत्ति की भी जांच आवश्यक है. इनके साथ इनके उच्चाधिकारियों की भूमिका की भी जांच जरूरी है क्योंकि इस
अवैध कमाई का एक बड़ा हिस्सा उन तक पहुंच रहा होने की खबर में काफी सच्चाई मालूम पड़ती है.

ज्ञातव्य है कि सीबीआई के इस छापे की भनक लगते ही आईपीएफ अरविंद यादव उर्फ भटकू ने मुलुंड स्थित अपने घर से रात को आनन-फानन में 4-5 बड़े-बड़े सूटकेसों-बक्सों में तमाम नकदी और गहना-गुरिया भरकर अपने खास सहयोगी कांस्टे. विनोद यादव के साथ फरार होने में कामयाब हो गए थे. सीबीआई को जब इसकी जानकारी मिली तो उसने टैक्सी ड्राइवर (टैक्सी नं. एमएच 03 एफ 4046) जो कि भटकू का कोई सगेवाला ही है, को भी धर दबोचा है. सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार अपनी और भटकू की ज्यादातर मालमत्ता, जिसमें कि करीब 80 लाख की नकदी बताई जाती है, लेकर विनोद यादव, जो कि गाजीपुर का रहने वाला है, अपने गांव अथवा अन्यत्र फरार हो गया है. हालांकि सीबीआई को अभी तक उसका सुराग नहीं लग पाया है, तथापि बताते हैं कि दो सूटकेस जो कि एक साथ एक टैक्सी में नहीं ले जाए जा सके थे, मुलुंड गणेश मंदिर के बगल वाली गली के खंदक में डाल कर छिपा दिए थे, उन्हें सीबीआई वालों ने एक खबरी की सुरागदेही पर बरामद कर लिया है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार सीबीआई को आईपीएफ अरविंद यादव के पास करोड़ों की नामी-बेनामी संपत्ति का पता चला है. इसके अनुसार मुलुंड आरपीएफ बैरक के सामने नई बनी इमारत में उनके भतीजे अमित यादव के नाम दो फ्लैट, विक्रोली पूर्व में एसआरए प्रोजेक्ट में 4-5 फ्लैट, मुलुंड में एक बियर बार, कल्याण पश्चिम खड़कपाड़ा में सिनेमैक्स के पीछे वाधवा ग्रुप की शिव आराधना बिल्डिंग में एक बड़ा फ्लैट, न्यू मुलुंड मालगोदाम और केलकर कालेज के बीच मुलुंड पूर्व में निर्माणाधीन एक इमारत में बीवी के नाम से 50 लाख का पेंथाउस, जिसका भुगतान फोर्ट स्थित एचएसबीसी बैंक के माध्यम से किया गया है, घाटकोपर में एक संयुक्त फ्लैट, जोकि आईजी एवं सीनियर डीएससी सहित इनके यार दोस्तों के लिए शराब और शबाब का मजा लूटने के काम आता था, भतीजी के नाम से 10 लाख की कीमत का एक फ्लैट, इसके अलावा बताते हैं कि अन्यत्र भी अभी काफी अचल संपत्ति है, जिसका पता लगाया जा रहा है. जबकि भटकू की 4-5 टैक्सियां भी बताई गई हैं.

सूत्रों के अनुसार सीबीआई की हिरासत में एक हफ्ते से लगातार भटकुआ रो रहा है. सूत्रों का कहना है कि वह पहले पूछताछ में सहयोग नहीं कर रहा था, मगर जब पुलिसिया स्टाइल में सीबीआई ने पूछताछ शुरू की तो सब उगल दिया है. सूत्रों का कहना है कि पहले वह हर बात से इंकार कर रहा था मगर जब उसकी संपत्ति की एकत्रित जानकारी का हवाला देकर उसे पूछा जाता है तो फिर कहता है कि 'हां, साहब, यह हमारा ही है, हम बताना भूल गए थे.' सूत्रों के अनुसार बीवी के नाम वाली मुलुंड की प्रॉपर्टी के बारे में भटकू यादव ने पूछे जाने पर कहा कि उसने वह अपनी कमाई से खरीदी है, जबकि सच्चाई यह है कि उसकी बीवी काम-धंधा नहीं करती है. मगर उसने यह कागज पर किसी बिल्डर के साथ जुड़े होने की फर्जी कार्यवाही कर रखी है. इसी के बाद से बताते हैं, उसकी बीवी भी फरार हो गई है.

इसके अलावा भटकू की काफी संपत्ति एक अन्य आईपीएफ के साथ संयुक्त रूप से भी बताई गई है. पता चला है कि इस बात को लेकर भटकू को रंज है कि सिर्फ उसकी ही जांच और गिरफ्तारी क्यों हो रही है, उसके पार्टनर की क्यों नहीं हो रही? कहीं इस पार्टनर ने ही तो उसकी तमाम संपत्ति की टिप सीबीआई वालों को तो नहीं दी है...? हालांकि सीबीआई वालों को इस बात की पुख्ता जानकारी है कि यह करोड़ों की वसूली बिना म.रे. आरपीएफ प्रमुख और अन्य उच्चाधिकारियों की जानकारी एवं भागीदारी के इतने लंबे अर्से से नहीं चल सकती थी. परंतु किसी कारणवश भटकू उनका नाम नहीं ले रहा है. जबकि उसे अंदर-बाहर दोनों तरफ से इस बात की गारंटी दी जा रही है कि वह इस रैकेट के प्रमुख संरक्षक आईजी/सीएससी को अपने गुनाह में शामिल होने की बात कबूल कर ले, तो उसे पूरे मामले में साफ बचा लिया जाएगा और वादा माफ गवाह बना लिया जाएगा. परंतु फिलहाल वह टस से मस नहीं हो रहा है.
जबकि म.रे. आरपीएफ के समस्त स्टाफ सहित उनका भी यह मानना है, जो कि आईजी/सीएससी के खासमखास हैं, कि यह सारा रैकेट उनकी मर्जी से और उनकी जानकारी में उनके द्वारा ही चलवाया जा रहा था. भटकू जैसे आईपीएफ तो सिर्फ मोहरे मात्र हैं. यदि इस संपूर्ण मामले को सिरे से हल करना है तो सर्वप्रथम सीबीआई को चाहिए कि वह अरविंद यादव का नारको टेस्ट करवाए.

तत्पश्चात आईजी/सीएससी के खासमखास एएससी एस.पी. सिंह, आईपीएफ संजय सिंह, दादर, अतुल क्षीरसागर, सीएसटी मेन, अजय संसारे, भायखला, रोहित सिंह, मनमाड़, बसंतलाल, दादर क्राइम (स्थाई पोस्टिंग आईजी के निवास पर उनके जूते साफ करने और वर्दी प्रेस करने), अनिल नायर, पनवेल, पांडव पुणे, संदीप खिरटकर, सीएसटी /एडमिन, सुदर्शन आचार्य, कसारा, एम. के. श्रीवास्तव, दौंड, ए. के. शर्मा, तुर्भे, गायकवाड़, परेल वर्कशॉप, कांस्टेबल विनोद यादव, हे. कांस्टेबर आर. ए. यादव, कांस्टे. नरेश चंद यादव आदि सभी आरपीएफ कर्मियों की सीबीआई न सिर्फ संपत्ति की जांच करे बल्कि इनमें से सभी को एक-एक करके बुलाकर यदि पुलिसिया स्टाइल में पूछताछ करे तो इनके आका आईजी/सीएससी की सारी कलई खुल जाएगी क्योंकि इनमें से कुछ खास लोग ही तो
उनका सारा माल पहुंचाने लखनऊ और पंजाब जाते रहते हैं...?

आरपीएफ स्टाफ का कहना है कि वर्तमान आईजी/सीएससी के कार्यकाल में कम से कम 6-7 बार सीबीआई ने आरपीएफ स्टाफ एवं इंस्पेक्टरों को रंगे हाथ पकड़ा है. क्योंकि इस आईजी ने भ्रष्टाचार करवाने की सारी हदें पार कर दी हैं. इसके अलावा 26/11 वाले मामले में भी इसी भ्रष्टाचार की बदौलत वह बच गये हैं. परंतु सोमवार 15 दिसंबर को बोर्ड पीओएम में पांचों फेडरेशनों ने इस आईजी के भ्रष्टाचार को लेकर रेल प्रशासन की खूब लानत-मलामत की है. परिणाम स्वरूप इसे दिल्ली तलब किया गया है और मंगलवार 16 दिसंबर से वहीं है. ऐसा लगता है कि म.रे. से अब इसका दाना-पानी उठ चुका है.
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सीनियर डीएससी के 5 लाख जल गए...?

मुंबई : म.रे. मुंबई मंडल आरपीएफ का सीनियर डीएससी कार्यालय आग लगने से पूरी तरह जल कर खाक हो गया. इस अग्निकांड में हालांकि आपरेटिंग का भी पूरा और कमर्शियल ब्रांच का भी थोड़ा सफाया हो गया. परंतु बताते हैं कि इस आग में सीनियर डीएससी के पांच लाख रुपए भी जल गए जो कि एक सूटकेस में भरकर उनके चेंबर में रखे हुए थे. आरपीएफ सूत्रों का कहना है कि यह पैसा अवैध वसूली का था और उसी शाम को आया था. मगर उसे ले जाना सीनियर डीएससी भूल गए थे. सूत्रों ने बताया कि खामखां हुए इस नुकसान को लेकर आजकल
सीनियर डीएससी का मूड बहुत खराब रहता है. बताते हैं कि इस बारे में अपने को सांत्वना देने के लिए उन्होंने कहा कि 'खामखां नुकसान हो गया' तब उन्हें उसने, जिससे उन्होंने यह बात शेयर की थी, कहा कि 'अच्छा ही हुआ सर, वरना सीबीआई वाले उठा ले जाते, उससे तो यह अच्छा हुआ.' सूत्रों का कहना है कि पोस्टिंग के बाद कुछ समय तो सीनियर डीएससी काफी सीधे शरीफ बने रहे. मगर अब उन्हें भी भ्रष्ट इंस्पेक्टरों और सीएससी की सारी आदतें लग
चुकी हैं. संगति का प्रभाव पड़ चुका है. अब पछताने से क्या होगा, 5 के बजाय 50 कमा लेंगे यह कहना है आरपीएफ स्टाफ का.

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