ममता बनर्जी - विवेक सहाय द्वारा
की गई भर्तियों की जांच कराएं
रेलवे में पूर्व रेलमंत्री के कार्यकाल में महाप्रबंधक कोटे में हजारों लोगों की भर्तियां की गई हैं. यहां तक आवेदकों द्वारा 'जनरल मैनेजर/रेलवे बोर्ड' के नाम से आवेदन भेजे गए थे, जबकि ऐसा कोई पद भारतीय रेल में मौजूद नहीं है. तथापि पूर्व एमआर सेल ने यह आवेदन जोनल महाप्रबंधकों को रेफर करके ऐसे उम्मीदवारों की भर्ती करने के लिए कहा गया था. इनमें 99 फीसदी उम्मीदवार बिहार के थे, जिनमें से प्रत्येक से न सिर्फ 5-6 लाख रु. वसूल किए जाने का आरोप है बल्कि उनके पास नकद पैसा न होने पर उनकी जमीनें तक लिखा लिए जाने के आरोप भी लगे हैं. इस संबंध में जेडीयू के महासचिव श्री शिवानंद तिवारी ने एक प्रतिनिधि मंडल को लेकर प्रमाण सहित प्रधानमंत्री को ज्ञापन भी दिया था, जिसके पेपर्स 'रेलवे समाचार' के पास भी उपलब्ध हैं. हालांकि पूर्व रेलमंत्री के इशारे पर ऐसी भर्तियां विभिन्न जोनल रेलों में महाप्रबंधक कोटे में हुई हैं, परंतु ऐसी सर्वाधिक भर्तियां उत्तर मध्य रेलवे में हुई हैं जो कि श्री विवेक सहाय, वर्तमान महाप्रबंधक उत्तर रेलवे ने की थीं, जो तब पूर्व रेलमंत्री के सबसे बड़े चाटुकार और विश्वासपात्र बन गए थे. इसी की बदौलत पूर्व रेलमंत्री ने उन्हें उत्तर मध्य रेलवे, इलाहाबाद से शिफ्ट करके दिल्ली में उत्तर रेलवे का महाप्रबंधक बना दिया था. तत्पश्चात उन्हें सीधे सीअरबी बनाने की कोशिश की थी. उसमें असफल रहने के बाद उन्होंने उन्हें मेंबर स्टाफ का उम्मीदवार भी बनाया था, जिसमें पीएमओ की सजगता के कारण वे असफल रहे थे.
'रेलवे समाचार' द्वारा जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत मांगी गई जानकारी में उत्तर मध्य रेलवे ने बताया है कि पूर्व रेलमंत्री के पांच वर्षों के कार्यकाल में उ.म.रे. में महाप्रबंधक कोटे के अंतर्गत कुल 619 भर्तियां की गई हैं. इनमें से वर्ष 2005 में की गई 25 भर्तियों में से 22 भर्तियां श्री आईपीएस आनंद ने, 2 भर्तियां श्री बुधप्रकाश ने और 1 भर्ती श्री के. सी. जेना ने की है. वर्ष 2006 और 2007 में हुई क्रमश: ऐसी कुल 67 एवं 77 भर्तियां अकेले श्री बुधप्रकाश ने की थीं. तत्पश्चात वर्ष 2008 में हुई कुल 450 भर्तियों में से 72 भर्तियां श्री बुधप्रकाश ने कीं और बाकी 381 भर्तियां श्री विवेक सहाय, तत्कालीन महाप्रबंधक/उ.म.रे. और वर्तमान महाप्रबंधक/उ.रे. ने की हंै. श्री सहाय द्वारा की गई 381 और श्री बुधप्रकाश द्वारा की गई 218 भर्तियों (कुल 599) में से 99 प्रतिशत उम्मीदवार बिहार के हैं जबकि उ.म.रे. की सीमा कहीं से भी बिहार प्रदेश तक नहीं पहुंचती है.
इन सभी भर्तियों में महाभयानक भ्रष्टाचार हुआ है, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, इनमें से प्रत्येक उम्मीदवार से 5-6 लाख रु. वसूले गए हैं, नकदी न होने पर उनकी जमीनें किसी न किसी के नाम लिखा ली गई हैं. इस संबंध में दुर्भाग्यवश इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल की गई एक जनहित याचिका संबंधित याचिकाकर्ता के वकीलों की मिलीभगत और पूर्व रेलमंत्री के परिचित तथा प्रतिवादी के बिरादरी वाले माननीय जजों द्वारा गलत उदाहरणों के आधार पर रद्द कर दी गई. अब इसे सुप्रीम कोर्ट में पुन: चुनौती दिए जाने की तैयारी की जा रही है, जिसमें उपरोक्त कारणों सहित पावरफुल और पहुंच वाले लोगों द्वारा कानून को अपने पक्ष में इस्तेमाल करने तथा माननीय जजों द्वारा भेदभावपूर्ण एवं असंगत तरीके से न्याय की हत्या करने का मुद्दा भी उठाया जाएगा, क्योंकि यह मामला 'सर्विस मैटर्स' का नहीं है, जिसे आधार बनाकर गलत एवं दुर्भावनापूर्ण तरीके से इलाहाबाद हाईकोर्ट के माननीय जजों ने रद्द किया है. यह विशुद्ध रूप से भ्रष्टाचार का मामला है. इसमें प्रतिवादी (श्री विवेक सहाय) द्वारा अपने 'डिस्क्रीशनरी पॉवर' का अनाधिकार दुरुपयोग किए जाने का मुद्दा भी शामिल है.
इसके अलावा श्री विवेक सहाय ने उ.म.रे. का चार्ज छोडऩे से 2-4 दिन पहले कार्मिक विभाग के चतुर्थ श्रेणी से तृतीय श्रेणी के सेलेक्शन में 10 लोगों के एक सेलेक्टेड पैनल को अनाधिकार मॉडिफाई करके लिखित परीक्षा में फेल हुए अपने चहेते चार लोगों को शामिल करके उन्हें प्रमोट कर दिया था. जबकि बतौर महाप्रबंधक श्री सहाय को इसका कोई अधिकार नहीं था. श्री सहाय के इस पैनल मॉडिफिकेशन से जब संबंधित अधिकारी (सीपीओ) सहमत नहीं हुए तो उन्होंने संबंधित नोटिफिकेशन में दी गई शर्तों के खिलाफ नियमों की गलत व्याख्या करके अपने चार चहेतों को पास करके प्रमोट किया था. यह सेलेक्शन सितंबर-अक्टूबर 2008 में हुआ था. इसमें प्रत्येक से 2-2 लाख रुपए लिए जाने का भी आरोप उ.म.रे. के कर्मचारियों ने लगाया है. उनका यह भी दावा है कि श्री सहाय द्वारा किए गए पैनल मॉडिफिकेशन और नियमों की गलत व्याख्या के प्रमाण संबंधित फाइलों में मौजूद हैं और इनका कभी भी वेरीफिकेशन किया जा सकता है.
इसके अलावा भी श्री सहाय द्वारा उ.म.रे. में तमाम रेल अधिकारियों-कर्मचारियों का जिस तरह उत्पीडऩ किया गया था और अब जिस तरह उ.रे. में किया जा रहा है, उसका भी वेरीफिकेशन किया जा सकता है. हाल ही में उन्होंने राजनीतिक सहयोग की अपेक्षा में सीपीआरओ/उ.रे. की पोस्ट पर आईआरपीएस अधिकारी की मनमानी तरीके से नियुक्ति की है. जबकि प्रचलित परंपरानुसार यह पोस्ट ट्रैफिक कैडर की है. अपनी राजनीतिक पहुंच और धन-बल के बावजूद सीआरबी एवं एमएस बनने में विफल रहे श्री विवेक सहाय अब पुन: इन्हीं के बल पर मेंबर ट्रैफिक बनने की तैयारी कर रहे हैं. इन तमाम तथ्यों के मद्देजनर 'रेलवे समाचार' ने श्री विवेक सहाय की विभिन्न गतिविधियों के बारे में 21 जनवरी और 6 फरवरी 2009 को दो पत्र लिखकर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से इनकी गहन जांच कराने की मांग की थी. अब पुन: यही मांग रेलमंत्री ममता बनर्जी से दोहराई जा रही है कि वे श्री सहाय द्वारा पहले उ.म.रे. और बाद में उ.रे. में की गई उनकी तमाम भर्तियों की जांच करवाएं और इसमें उनकी जिम्मेदारी तय करके उनके खिलाफ कड़ी अनुशासनिक कार्रवाई की जाए तथा उन्हें महाप्रबंधक पद से हटाकर रेलवे स्टाफ कॉलेज अथवा रेलवे बोर्ड में भेजा जाना चाहिए, जहां के लिए वे वास्तव में फिट हैं.
की गई भर्तियों की जांच कराएं
रेलवे में पूर्व रेलमंत्री के कार्यकाल में महाप्रबंधक कोटे में हजारों लोगों की भर्तियां की गई हैं. यहां तक आवेदकों द्वारा 'जनरल मैनेजर/रेलवे बोर्ड' के नाम से आवेदन भेजे गए थे, जबकि ऐसा कोई पद भारतीय रेल में मौजूद नहीं है. तथापि पूर्व एमआर सेल ने यह आवेदन जोनल महाप्रबंधकों को रेफर करके ऐसे उम्मीदवारों की भर्ती करने के लिए कहा गया था. इनमें 99 फीसदी उम्मीदवार बिहार के थे, जिनमें से प्रत्येक से न सिर्फ 5-6 लाख रु. वसूल किए जाने का आरोप है बल्कि उनके पास नकद पैसा न होने पर उनकी जमीनें तक लिखा लिए जाने के आरोप भी लगे हैं. इस संबंध में जेडीयू के महासचिव श्री शिवानंद तिवारी ने एक प्रतिनिधि मंडल को लेकर प्रमाण सहित प्रधानमंत्री को ज्ञापन भी दिया था, जिसके पेपर्स 'रेलवे समाचार' के पास भी उपलब्ध हैं. हालांकि पूर्व रेलमंत्री के इशारे पर ऐसी भर्तियां विभिन्न जोनल रेलों में महाप्रबंधक कोटे में हुई हैं, परंतु ऐसी सर्वाधिक भर्तियां उत्तर मध्य रेलवे में हुई हैं जो कि श्री विवेक सहाय, वर्तमान महाप्रबंधक उत्तर रेलवे ने की थीं, जो तब पूर्व रेलमंत्री के सबसे बड़े चाटुकार और विश्वासपात्र बन गए थे. इसी की बदौलत पूर्व रेलमंत्री ने उन्हें उत्तर मध्य रेलवे, इलाहाबाद से शिफ्ट करके दिल्ली में उत्तर रेलवे का महाप्रबंधक बना दिया था. तत्पश्चात उन्हें सीधे सीअरबी बनाने की कोशिश की थी. उसमें असफल रहने के बाद उन्होंने उन्हें मेंबर स्टाफ का उम्मीदवार भी बनाया था, जिसमें पीएमओ की सजगता के कारण वे असफल रहे थे.
'रेलवे समाचार' द्वारा जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत मांगी गई जानकारी में उत्तर मध्य रेलवे ने बताया है कि पूर्व रेलमंत्री के पांच वर्षों के कार्यकाल में उ.म.रे. में महाप्रबंधक कोटे के अंतर्गत कुल 619 भर्तियां की गई हैं. इनमें से वर्ष 2005 में की गई 25 भर्तियों में से 22 भर्तियां श्री आईपीएस आनंद ने, 2 भर्तियां श्री बुधप्रकाश ने और 1 भर्ती श्री के. सी. जेना ने की है. वर्ष 2006 और 2007 में हुई क्रमश: ऐसी कुल 67 एवं 77 भर्तियां अकेले श्री बुधप्रकाश ने की थीं. तत्पश्चात वर्ष 2008 में हुई कुल 450 भर्तियों में से 72 भर्तियां श्री बुधप्रकाश ने कीं और बाकी 381 भर्तियां श्री विवेक सहाय, तत्कालीन महाप्रबंधक/उ.म.रे. और वर्तमान महाप्रबंधक/उ.रे. ने की हंै. श्री सहाय द्वारा की गई 381 और श्री बुधप्रकाश द्वारा की गई 218 भर्तियों (कुल 599) में से 99 प्रतिशत उम्मीदवार बिहार के हैं जबकि उ.म.रे. की सीमा कहीं से भी बिहार प्रदेश तक नहीं पहुंचती है.
इन सभी भर्तियों में महाभयानक भ्रष्टाचार हुआ है, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, इनमें से प्रत्येक उम्मीदवार से 5-6 लाख रु. वसूले गए हैं, नकदी न होने पर उनकी जमीनें किसी न किसी के नाम लिखा ली गई हैं. इस संबंध में दुर्भाग्यवश इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल की गई एक जनहित याचिका संबंधित याचिकाकर्ता के वकीलों की मिलीभगत और पूर्व रेलमंत्री के परिचित तथा प्रतिवादी के बिरादरी वाले माननीय जजों द्वारा गलत उदाहरणों के आधार पर रद्द कर दी गई. अब इसे सुप्रीम कोर्ट में पुन: चुनौती दिए जाने की तैयारी की जा रही है, जिसमें उपरोक्त कारणों सहित पावरफुल और पहुंच वाले लोगों द्वारा कानून को अपने पक्ष में इस्तेमाल करने तथा माननीय जजों द्वारा भेदभावपूर्ण एवं असंगत तरीके से न्याय की हत्या करने का मुद्दा भी उठाया जाएगा, क्योंकि यह मामला 'सर्विस मैटर्स' का नहीं है, जिसे आधार बनाकर गलत एवं दुर्भावनापूर्ण तरीके से इलाहाबाद हाईकोर्ट के माननीय जजों ने रद्द किया है. यह विशुद्ध रूप से भ्रष्टाचार का मामला है. इसमें प्रतिवादी (श्री विवेक सहाय) द्वारा अपने 'डिस्क्रीशनरी पॉवर' का अनाधिकार दुरुपयोग किए जाने का मुद्दा भी शामिल है.
इसके अलावा श्री विवेक सहाय ने उ.म.रे. का चार्ज छोडऩे से 2-4 दिन पहले कार्मिक विभाग के चतुर्थ श्रेणी से तृतीय श्रेणी के सेलेक्शन में 10 लोगों के एक सेलेक्टेड पैनल को अनाधिकार मॉडिफाई करके लिखित परीक्षा में फेल हुए अपने चहेते चार लोगों को शामिल करके उन्हें प्रमोट कर दिया था. जबकि बतौर महाप्रबंधक श्री सहाय को इसका कोई अधिकार नहीं था. श्री सहाय के इस पैनल मॉडिफिकेशन से जब संबंधित अधिकारी (सीपीओ) सहमत नहीं हुए तो उन्होंने संबंधित नोटिफिकेशन में दी गई शर्तों के खिलाफ नियमों की गलत व्याख्या करके अपने चार चहेतों को पास करके प्रमोट किया था. यह सेलेक्शन सितंबर-अक्टूबर 2008 में हुआ था. इसमें प्रत्येक से 2-2 लाख रुपए लिए जाने का भी आरोप उ.म.रे. के कर्मचारियों ने लगाया है. उनका यह भी दावा है कि श्री सहाय द्वारा किए गए पैनल मॉडिफिकेशन और नियमों की गलत व्याख्या के प्रमाण संबंधित फाइलों में मौजूद हैं और इनका कभी भी वेरीफिकेशन किया जा सकता है.
इसके अलावा भी श्री सहाय द्वारा उ.म.रे. में तमाम रेल अधिकारियों-कर्मचारियों का जिस तरह उत्पीडऩ किया गया था और अब जिस तरह उ.रे. में किया जा रहा है, उसका भी वेरीफिकेशन किया जा सकता है. हाल ही में उन्होंने राजनीतिक सहयोग की अपेक्षा में सीपीआरओ/उ.रे. की पोस्ट पर आईआरपीएस अधिकारी की मनमानी तरीके से नियुक्ति की है. जबकि प्रचलित परंपरानुसार यह पोस्ट ट्रैफिक कैडर की है. अपनी राजनीतिक पहुंच और धन-बल के बावजूद सीआरबी एवं एमएस बनने में विफल रहे श्री विवेक सहाय अब पुन: इन्हीं के बल पर मेंबर ट्रैफिक बनने की तैयारी कर रहे हैं. इन तमाम तथ्यों के मद्देजनर 'रेलवे समाचार' ने श्री विवेक सहाय की विभिन्न गतिविधियों के बारे में 21 जनवरी और 6 फरवरी 2009 को दो पत्र लिखकर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से इनकी गहन जांच कराने की मांग की थी. अब पुन: यही मांग रेलमंत्री ममता बनर्जी से दोहराई जा रही है कि वे श्री सहाय द्वारा पहले उ.म.रे. और बाद में उ.रे. में की गई उनकी तमाम भर्तियों की जांच करवाएं और इसमें उनकी जिम्मेदारी तय करके उनके खिलाफ कड़ी अनुशासनिक कार्रवाई की जाए तथा उन्हें महाप्रबंधक पद से हटाकर रेलवे स्टाफ कॉलेज अथवा रेलवे बोर्ड में भेजा जाना चाहिए, जहां के लिए वे वास्तव में फिट हैं.
2 comments:
SRI SAHAI created such difficult conditions for rahul srivastava his co-brother in law, whom he hates and jealous, that rahul srivastava mechanical engineer in safety dept. at railway bilaspur had to take VR
dear mitra, kindly send all details about vivek sahai's harrasment
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