सीनियर डीओएम के खाते से निकाले गए 6 लाख
नागपुर : द.पू.म.रे. नागपुर मंडल के सीनियर डीओएम श्री मनोज कुमार सिंह के बैंक खाते से करीब 6 लाख से ज्यादा की रकम उनके फर्जी हस्ताक्षर करके निकाली गई है. इस घटना का खुलासा तब हुआ जब श्री सिंह अपनी पास बुक अपडेट कराने 24 जुलाई को बैंक में गए थे. उन्होंने फोन पर बताया कि जब उनकी पासबुक अपडेट होकर मिली तो पता चला कि 13 अप्रैल 09 को किसी ने उनके इस खाते से 6 लाख से ज्यादा की रकम निकाल ली है. उन्होंने बताया कि इस संबंध में बैंक और पुलिस को लिखित रूप से सूचित किया गया है. पुलिस की प्रारंभिक जांच पूरी होने के बाद एफआईआर दर्ज की जाएगी.
प्राप्त जानकारी के अनुसार उनके इस खाते की जानकारी वैद्य नामक स्टेनो को थी. इस बात की पुष्टि करते हुए श्री सिंह ने कहा कि वैद्य पुलिस के शक के दायरे में है क्योंकि जब मैं यहां 10 महीने पहले सीनियर डीसीएम के पद पर था, तब वैद्य ही मेरी चेक बुक लाता था और खाते में पैसा डालने-निकालने का काम करता था. श्री सिंह ने यह भी बताया कि उन्होंने मकान लेने के लिए यह पैसा लोन लेकर अपने खाते में रखा हुआ था. क्योंकि विभागीय क्लीयरेंस नहीं प्राप्त होने से मकान का भुगतान रुका हुआ था. जब क्लीयरेंस आया तब बैंक में पास बुक अपडेट कराने गया था. तब इस फ्रॉड का पता चला. उन्होंने कहा कि राशि छोटी हो या बड़ी, हम उसे कतई नहीं छोड़ेंगे, जिसने हमारे साथ यह धोखाधड़ी की है.
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एनसीआर : एलडीसीई में एफए एंड सीएओ की मनमानी
उमेश शर्मा
इलाहाबाद : अपने किसी मातहत के प्रति कोई खुन्नस निकालनी हो, अथवा अपने किसी चहेते विशेष को किसी लालचवश पुरस्कृत करना हो, तो इसका सबसे बढिय़ा उदाहरण यही हो सकता है जो कि एफए एंड सीएओ उ.म.रे. श्रीमती वंदना सिंघल ने किया है. श्रीमती सिंघल ने एलडीसीई (30 प्र.श.) में न सिर्फ कुल सात पदों के लिए मात्र दो उम्मीदवारों को पास किया बल्कि उन्होंने दूसरे पास उम्मीदवार की सीआर भी साक्षात्कार से एक दिन पहले अनधिकृत रूप से डाउनग्रेड कर डालीं. इसकी सूचना भी उम्मीदवार को नहीं दी. यही नहीं पूर्व निर्धारित तारीख से एक दिन पहले ही साक्षात्कार लेकर उन्होंने न सिर्फ नियमों का उल्लंघन किया बल्कि अपने त्रियाचरित्र की सारी हदें पार कर डालीं.
प्राप्त जानकारी के अनुसार एएफए की कुल सात पोस्टों (जनरल-5, एससी/एसटी-2) के लिए ली गई एलडीसीई में 80 से ज्यादा स्टाफ ने लिखित परीक्षा में भाग लिया था. परंतु इनमें से मात्र दो उम्मीदवारों, सीनियर एमओ श्री आर. आई. शर्मा एवं श्री आर. पी. उपाध्याय, को ही पास किया गया. 4 जून को यह परिणाम घोषित करने के साथ ही साक्षात्कार के लिए 10 जून 09 की तारीख भी तय कर दी गई थी. परंतु एफए एंड सीएओ श्रीमती सिंघल ने यह साक्षात्कार एक दिन पहले 9 जून को ही ले लिया.
बताते हैं कि इस दरम्यान लीव एन्कैशमेंट की छुट्टी पर श्री शर्मा मुख्यालय से बाहर थे, तभी उन्हें 9 जून को ही साक्षात्कार लिए जाने की खबर अपने लोगों से मिली. बताते हैं कि श्रीमती सिंघल ने उनके छुट्टी पर शहर से बाहर होने की जानकारी होने के बावजूद जान बूझकर निर्धारित तारीख से एक दिन पहले साक्षात्कार लेना तय किया था. परंतु जब इसकी अनधिकृत सूचना मिलने पर श्री शर्मा साक्षात्कार के लिए हाजिर हो गए तो श्रीमती सिंघल ने अपनी मनमानी की इंतिहा करते हुए साक्षात्कार में उन्हें 25 में से मात्र 6 अंक देकर फेल कर दिया, जबकि लिखित परीक्षा में श्री शर्मा को 182.5 अंक और सीआर के लिए 25 में से 19 अंक मिले थे.
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार श्री शर्मा को किसी भी तरह प्रमोट न होने देने के लिए श्रीमती सिंघल ने पुनर्निर्धारित साक्षात्कार की तारीख (9 जून) से एक दिन पहले यानी 8 जून को श्री शर्मा की सभी पांचों सीआर मंगाकर उन्हें आल्टर करते हुए वेरी गुड और आउट स्टैंडिंग से डाउन करके गुड-गुड में बदल दिया था. श्रीमती सिंघल का यह 'कु-कृत्य' न सिर्फ भयानक त्रियाचरित्र है बल्कि गैरकानूनी और अनाधिकार चेष्टा की हद पार कर जाने वाली मनमानी भी है, जबकि सर्वप्रथम तो इस तरह आनन-फानन और खड़े पैर ऐसा कतई नहीं किया जा सकता. दूसरे सुप्रीम कोर्ट की एक रूलिंग के अनुसार यदि सीआर को किसी भी तरह से डाउनग्रेड किया जाता है तो इसकी सूचना तुरंत संबंधित स्टाफ को दी जानी चाहिए. ऐसा न तो किया गया और न ऐसा करने का कोई उद्देश्य था, बल्कि ऐसा करने के लिए श्रीमती सिंघल के पास समय भी नहीं था.
यही नहीं पांच साल की जरूरी सीआर में से श्री शर्मा की वर्ष 2004-05 की आउट स्टैंडिंग सीआर को गायब करके उसके स्थान पर वर्ष 2003-04 की वेरी गुड वाली सीआर को लिया गया और उसे भी श्रीमती सिंघल ने 'वेरी गुड' से 'गुड' में बदल दिया था. हालांकि बताते हैं कि श्रीमती सिंघल की इन तमाम कुचेष्टाओं के बावजूद सीआर में श्री शर्मा को 25 में 19 अंक प्राप्त हो गए थे, जिसे श्रीमती सिंघल ने उन्हें लिखित परीक्षा में फेल करने के लिए परीक्षक को दिए गए कथित मौखिक आदेश और सीआर को डाउनग्रेड करने की अपनी तमाम दुष्ट हरकतों के बावजूद नहीं रोक पाईं. अंतत: उन्होंने अपनी सारी कुचेष्टाओं को निष्फल होते देखकर श्री शर्मा को साक्षात्कार में धराशायी (फेल) कर दिया.
बताते हैं कि आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी में बताया गया है कि लिखित परीक्षा में एक सवाल के जवाब में श्री शर्मा को शून्य अंक दिया गया. तथापि लिखित (182.5) और सीआर (19) तथा साक्षात्कार (6) कुल मिलाकर श्री शर्मा को 207.5 अंक मिले हैं. इसी से उन्हें सीआर में फेरबदल किए जाने की जानकारी भी मिली है. विभागीय सूत्रों का कहना है कि अब श्री शर्मा एफए श्रीमती सिंघल की इस मनमानी के खिलाफ महाप्रबंधक को अपील करने की तैयारी कर रहे हैं. ताज्जुब इस बात का है कि उ.म.रे. विजिलेंस से एफए एंड सीएओ की इतनी भयानक मनमानी अब तक छिपी कैसे रह गई है? बहरहाल चाहे जो भी स्थिति हो, इस मामले की गहराई से छानबीन और जांच होनी चाहिए तथा यदि उपरोक्त तमाम तथ्य सही पाये जाते हैं तो एफए एंड सीएओ श्रीमती वंदना सिंघल के खिलाफ बर्खास्तगी जैसी सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए, जिससे इस प्रकार की मनमानी करके भविष्य में अन्य कोई पीएचओडी अपने मातहतों का भावी कैरियर चौपट करने की कुचेष्टा न कर सके.
नागपुर : द.पू.म.रे. नागपुर मंडल के सीनियर डीओएम श्री मनोज कुमार सिंह के बैंक खाते से करीब 6 लाख से ज्यादा की रकम उनके फर्जी हस्ताक्षर करके निकाली गई है. इस घटना का खुलासा तब हुआ जब श्री सिंह अपनी पास बुक अपडेट कराने 24 जुलाई को बैंक में गए थे. उन्होंने फोन पर बताया कि जब उनकी पासबुक अपडेट होकर मिली तो पता चला कि 13 अप्रैल 09 को किसी ने उनके इस खाते से 6 लाख से ज्यादा की रकम निकाल ली है. उन्होंने बताया कि इस संबंध में बैंक और पुलिस को लिखित रूप से सूचित किया गया है. पुलिस की प्रारंभिक जांच पूरी होने के बाद एफआईआर दर्ज की जाएगी.
प्राप्त जानकारी के अनुसार उनके इस खाते की जानकारी वैद्य नामक स्टेनो को थी. इस बात की पुष्टि करते हुए श्री सिंह ने कहा कि वैद्य पुलिस के शक के दायरे में है क्योंकि जब मैं यहां 10 महीने पहले सीनियर डीसीएम के पद पर था, तब वैद्य ही मेरी चेक बुक लाता था और खाते में पैसा डालने-निकालने का काम करता था. श्री सिंह ने यह भी बताया कि उन्होंने मकान लेने के लिए यह पैसा लोन लेकर अपने खाते में रखा हुआ था. क्योंकि विभागीय क्लीयरेंस नहीं प्राप्त होने से मकान का भुगतान रुका हुआ था. जब क्लीयरेंस आया तब बैंक में पास बुक अपडेट कराने गया था. तब इस फ्रॉड का पता चला. उन्होंने कहा कि राशि छोटी हो या बड़ी, हम उसे कतई नहीं छोड़ेंगे, जिसने हमारे साथ यह धोखाधड़ी की है.
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एनसीआर : एलडीसीई में एफए एंड सीएओ की मनमानी
उमेश शर्मा
इलाहाबाद : अपने किसी मातहत के प्रति कोई खुन्नस निकालनी हो, अथवा अपने किसी चहेते विशेष को किसी लालचवश पुरस्कृत करना हो, तो इसका सबसे बढिय़ा उदाहरण यही हो सकता है जो कि एफए एंड सीएओ उ.म.रे. श्रीमती वंदना सिंघल ने किया है. श्रीमती सिंघल ने एलडीसीई (30 प्र.श.) में न सिर्फ कुल सात पदों के लिए मात्र दो उम्मीदवारों को पास किया बल्कि उन्होंने दूसरे पास उम्मीदवार की सीआर भी साक्षात्कार से एक दिन पहले अनधिकृत रूप से डाउनग्रेड कर डालीं. इसकी सूचना भी उम्मीदवार को नहीं दी. यही नहीं पूर्व निर्धारित तारीख से एक दिन पहले ही साक्षात्कार लेकर उन्होंने न सिर्फ नियमों का उल्लंघन किया बल्कि अपने त्रियाचरित्र की सारी हदें पार कर डालीं.
प्राप्त जानकारी के अनुसार एएफए की कुल सात पोस्टों (जनरल-5, एससी/एसटी-2) के लिए ली गई एलडीसीई में 80 से ज्यादा स्टाफ ने लिखित परीक्षा में भाग लिया था. परंतु इनमें से मात्र दो उम्मीदवारों, सीनियर एमओ श्री आर. आई. शर्मा एवं श्री आर. पी. उपाध्याय, को ही पास किया गया. 4 जून को यह परिणाम घोषित करने के साथ ही साक्षात्कार के लिए 10 जून 09 की तारीख भी तय कर दी गई थी. परंतु एफए एंड सीएओ श्रीमती सिंघल ने यह साक्षात्कार एक दिन पहले 9 जून को ही ले लिया.
बताते हैं कि इस दरम्यान लीव एन्कैशमेंट की छुट्टी पर श्री शर्मा मुख्यालय से बाहर थे, तभी उन्हें 9 जून को ही साक्षात्कार लिए जाने की खबर अपने लोगों से मिली. बताते हैं कि श्रीमती सिंघल ने उनके छुट्टी पर शहर से बाहर होने की जानकारी होने के बावजूद जान बूझकर निर्धारित तारीख से एक दिन पहले साक्षात्कार लेना तय किया था. परंतु जब इसकी अनधिकृत सूचना मिलने पर श्री शर्मा साक्षात्कार के लिए हाजिर हो गए तो श्रीमती सिंघल ने अपनी मनमानी की इंतिहा करते हुए साक्षात्कार में उन्हें 25 में से मात्र 6 अंक देकर फेल कर दिया, जबकि लिखित परीक्षा में श्री शर्मा को 182.5 अंक और सीआर के लिए 25 में से 19 अंक मिले थे.
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार श्री शर्मा को किसी भी तरह प्रमोट न होने देने के लिए श्रीमती सिंघल ने पुनर्निर्धारित साक्षात्कार की तारीख (9 जून) से एक दिन पहले यानी 8 जून को श्री शर्मा की सभी पांचों सीआर मंगाकर उन्हें आल्टर करते हुए वेरी गुड और आउट स्टैंडिंग से डाउन करके गुड-गुड में बदल दिया था. श्रीमती सिंघल का यह 'कु-कृत्य' न सिर्फ भयानक त्रियाचरित्र है बल्कि गैरकानूनी और अनाधिकार चेष्टा की हद पार कर जाने वाली मनमानी भी है, जबकि सर्वप्रथम तो इस तरह आनन-फानन और खड़े पैर ऐसा कतई नहीं किया जा सकता. दूसरे सुप्रीम कोर्ट की एक रूलिंग के अनुसार यदि सीआर को किसी भी तरह से डाउनग्रेड किया जाता है तो इसकी सूचना तुरंत संबंधित स्टाफ को दी जानी चाहिए. ऐसा न तो किया गया और न ऐसा करने का कोई उद्देश्य था, बल्कि ऐसा करने के लिए श्रीमती सिंघल के पास समय भी नहीं था.
यही नहीं पांच साल की जरूरी सीआर में से श्री शर्मा की वर्ष 2004-05 की आउट स्टैंडिंग सीआर को गायब करके उसके स्थान पर वर्ष 2003-04 की वेरी गुड वाली सीआर को लिया गया और उसे भी श्रीमती सिंघल ने 'वेरी गुड' से 'गुड' में बदल दिया था. हालांकि बताते हैं कि श्रीमती सिंघल की इन तमाम कुचेष्टाओं के बावजूद सीआर में श्री शर्मा को 25 में 19 अंक प्राप्त हो गए थे, जिसे श्रीमती सिंघल ने उन्हें लिखित परीक्षा में फेल करने के लिए परीक्षक को दिए गए कथित मौखिक आदेश और सीआर को डाउनग्रेड करने की अपनी तमाम दुष्ट हरकतों के बावजूद नहीं रोक पाईं. अंतत: उन्होंने अपनी सारी कुचेष्टाओं को निष्फल होते देखकर श्री शर्मा को साक्षात्कार में धराशायी (फेल) कर दिया.
बताते हैं कि आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी में बताया गया है कि लिखित परीक्षा में एक सवाल के जवाब में श्री शर्मा को शून्य अंक दिया गया. तथापि लिखित (182.5) और सीआर (19) तथा साक्षात्कार (6) कुल मिलाकर श्री शर्मा को 207.5 अंक मिले हैं. इसी से उन्हें सीआर में फेरबदल किए जाने की जानकारी भी मिली है. विभागीय सूत्रों का कहना है कि अब श्री शर्मा एफए श्रीमती सिंघल की इस मनमानी के खिलाफ महाप्रबंधक को अपील करने की तैयारी कर रहे हैं. ताज्जुब इस बात का है कि उ.म.रे. विजिलेंस से एफए एंड सीएओ की इतनी भयानक मनमानी अब तक छिपी कैसे रह गई है? बहरहाल चाहे जो भी स्थिति हो, इस मामले की गहराई से छानबीन और जांच होनी चाहिए तथा यदि उपरोक्त तमाम तथ्य सही पाये जाते हैं तो एफए एंड सीएओ श्रीमती वंदना सिंघल के खिलाफ बर्खास्तगी जैसी सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए, जिससे इस प्रकार की मनमानी करके भविष्य में अन्य कोई पीएचओडी अपने मातहतों का भावी कैरियर चौपट करने की कुचेष्टा न कर सके.
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