Saturday, 8 August 2009

जनता का, जनता के लिए, 'ममता' द्वारा
बनाया गया 'ममतामयी' रेल बजट

नयी दिल्ली : शुक्रवार, 3 जुलाई को रेलमंत्री ममता बनर्जी द्वारा संसद में पेश किया गया रेल बजट जहां प. बंगाल उन्मुख है, वहीं वर्ष 2011 के मध्य में वहां होने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर ममता द्वारा बनाया गया है. इसके अलावा तृणमूल कांग्रेस के साथ इसमें कांग्रेस पार्टी की भी सहमति दिखाई दे रही है, जैसा कि बजट से एक दिन पहले ममता ने कहा था कि उनका बजट जनता का बजट और सामान्य बजट होगा. वैसा ही वास्तव में 'जनता का, जनता के लिए ममता द्वारा बनाया गया ममतामयी बजट' है. इसी तरह इसमें सस्ते पास, गुणवत्तापूर्ण भोजन और साफ-सफाई की लोकप्रियता पाने वाली छौंक भी लगी है.

परंतु जब ममता ने इसे संसद में प्रस्तुत किया तो यह प. बंगाल उन्मुख बजट था. जैसा कि बजट से पहले अनुमान लगाया गया था, यह ठीक उसी के अनुरूप सामने आया है. इससे पहले जब एनडीए सरकार के समय ममता ने अपना रेल बजट प्रस्तुत किया था, तब विपक्षी कांग्रेस और अन्य विरोधी दलों ने उनकी खूब आलोचना की थी परंतु इस बार वह चूंकि कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार में शामिल हैं, इसलिए उन्हें ज्यादा विरोध का सामना नहीं करना पड़ा है.

रेलवे के सामने पूंजीगत कठिनाईयां मुंह बाये खड़ी हैं क्योंकि रेलवे की फ्रेट रेवेन्यू घटी है और वास्तविक सरप्लस अनुमान से भी बहुत कम आया है. ममता ने यात्री एवं मालभाड़े में वृद्धि को तनिक भी नहीं छुआ है. उन्होंने इसे 'इन्नोवेटिव' (खोजपूर्ण या प्रगतिशील) बजट बताते हुए रेलवे की वर्तमान स्थिति पर श्वेत पत्र लाने की भी घोषणा कर दी, जबकि उन्होंने उन रिफाम्र्स को भी ज्यादा नहीं छुआ जिनकी चर्चा मात्र एक दिन पहले ही आर्थिक सर्वेक्षण में की गई थी.

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने एक-दो रिफॉम्र्स को देखकर भले ही ममता को बेहतर बजट देने के लिए शाबाशी दे डाली है, इसका कारण शायद बजट में कुछ नई लाइनों और संरक्षा तथा पैसा बचाने वाले आधुनिकीकरण की चर्चा से रेलवे वित्त की व्यवस्थित व्यवस्था करने के लिए उनका दिल बाग-बाग हो उठा था. जबकि रेलवे पर बाजार कर्ज और अईआरएफसी के टैक्स फ्री बांड्स का 9170 करोड़ रु. का बोझ लदा हुआ है. इसके बावजूद लोकप्रियता हासिल करने के लिए इतनी बड़ी कीमत रेलवे को चुकानी पड़ रही है. तो इसके लिए सिर्फ ममता को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.

इसके अलावा कांग्रेस भी अब ममता के राजनीतिक प्लान में सहभागी हो गई है और इस तरह प. बंगाल में वामपंथियों को सत्ता से बाहर करने में अब शायद तृणमूल कांग्रेस कामयाब हो जाएगी. कांग्रेसी नेता भी शायद इस सच्चाई से वाकिफ हैं और इसलिए वे रेलवे की जमीनी सच्चाइयों से अपनी नजरें चुरा रहे हैं. दूसरी तरफ वामपंथियों और राजद अध्यक्ष पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव को निशाना बनाते समय ममता ने अपने बजट भाषण में कोई कसर बाकी नहीं रखी जबकि भाजपा सीटों की तरफ से उनके खिलाफ कोई खास प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की गई. हालांकि बजट की बड़े पैमाने पर आलोचना हो सकती थी, मगर थोक में घोषित नहीं ट्रेनों, नयी लाइनों, नये स्टेशनों, विश्वस्तरीय और आदर्श स्टेशनों तथा नये अस्पतालों की घोषणा के बीच इसकी आलोचना कहीं खो गई थी.

अन्य विपक्षी दलों ने तो ममता के बजट पर थोड़ी बहुत प्रतिक्रिया व्यक्त भी की परंतु इस मामले में भाजपा का मुंह लगभग बंद ही रहा. बाद में वामपंथियों ने यह अवश्य कहा कि बजट में रेल संपत्तियों के बदलाव (अपग्रेडेशन) के लिए पर्याप्त प्रावधान नहीं किया गया है. वामपंथियों का यह भी कहना था कि वर्ष 1970 से जो परियोजनाएं पास हैं, वह आज तक पूरी नहीं हो पाई हैं, जबकि रेलमंत्री ने अन्य और तमाम नई योजनाएं घोषित कर दी हैं. उन्होंने यह भी कहा कि बजट तो ठीक है परंतु बंगाल पैकेज के लिए पैसा कहां से आएगा?

प. बंगाल को वर्ष 2009-10 के रेल बजट में अधिकतम हिस्सा दिया गया है, फिर वह चाहे नई ट्रेनें हों, फैक्टरियां हों, नई लाइनों और स्टेशनों के विकास का सर्वेक्षण हो, रेलमंत्री ममता बनर्जी ने बंगाल का विकास करने के मामले में प. बंगाल से पूर्व रेलमंत्री एबीए गनी खान चौधरी को भी पीछे छोड़ दिया है. उनके बजट का बारीकी से अध्ययन करने पर पता चलता है कि वे उन क्षेत्रों के प्रति ज्यादा मेहरबान रही हैं जहां से उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस को लोकसभा चुनावों में सबसे ज्यादा बढ़त मिली है. इसके लिए उन्होंने अल्पसंख्यकों, युवाओं और समाज के कमजोर तबके का सहारा लेते हुए कोलकाता दक्षिण के अपने संसदीय क्षेत्र पर भी पर्याप्त रेल परियोजनाओं की बौछार की है. उन्होंने इसके साथ ही गठबंधन भागीदार कांग्रेस को भी खुश करने की भरपूर कोशिश की है. ममता के रेल बजट में अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा उत्तर बंगाल को सर्वाधिक लाभ मिला है.

इस संबंध में बोर्ड के एक अधिकारी का कहना था कि बजट में किए गए तमाम सुनहरे वादों के बावजूद सवाल यह है कि इन सबके लिए पैसा कहां से आएगा, क्योंकि बजट में इनके लिए पूंजी स्रोतों का कोई उल्लेख नहीं किया गया है. अधिकारी का कहना था कि इससे जाहिर होता है कि इस प्रकार तात्कालिक लोकप्रियता तो मिल सकती है परंतु दीर्घावधि में इन पारियोजनाओं का कोई जमीनी भविष्य नहीं है. अधिकारी ने कहा कि पूर्व रेलमंत्री की ऐसी ही लोक लुभावन घोषणाओं का हश्र वर्तमान में सबके सामने है, जिसके कारण ही वह आज संसद में 24 की संख्या से सिकुड़कर सिर्फ 4 में आ गए हैं।

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