उजागर हुआ लालू के 'गरीब रथों' का सच
नयी दिल्ली : नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने कहा है कि पूर्व रेल मंत्री द्वारा दो साल पहले खूब प्रचार-प्रसार के बाद शुरू की गई 'गरीब रथ' रेलगाडिय़ों में से कुछ में यात्रियों ने यात्रा करने में कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई और यह गाडिय़ां कुल मिलाकर घाटे में चल रही हैं.
वर्ष 2008-09 के लिए जारी की गई सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ गरीब रथ रेलगाडिय़ों में तो यात्रियों के सवार होने की दर सिर्फ आठ फीसदी रही. रिपोर्ट में सीएजी ने सुझाव दिया कि इस तरह की रेलगाडिय़ों को शुरू करने के पहले इसके मानक तय कर लेना चाहिए था कि इनमें कम से कम कितने यात्रियों के सवार होने की संख्या को एक मानक माना जाएगा. कोलकाता-पटना गरीब रथ का उदाहरण देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2007-08 के दौरान इस गाड़ी के चेयरकार में यात्रियों के सवार होने की दर मात्र आठ फीसदी रही और एयरकंडीशन थ्री टियर में सिर्फ 22 फीसदी यात्रियों ने यात्रा की.
रिपोर्ट में इसी तरह रायपुर-लखनऊ गरीब रथ के बारे में कहा गया है कि इस गाड़ी में भी यात्रियों के सवार होने की दर सिर्फ 32 फीसदी रही. सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 11 गरीब रथ गाडिय़ों में जिन आठ गाडिय़ों की समीक्षा की गई उनमें सब्सिडी पर आधारित एयरकंडीशन कोच से होने वाली आमदनी इस कोच पर आने वाले खर्च को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं थी. ज्ञातव्य है कि गरीब लोगों के लिए 'राजधानी एक्सप्रेस' के नाम से प्रचारित की गई गरीब रथ गाडिय़ों की एक शृंखला की शुरुआत पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने की थी. इन गाडिय़ों को शुरू करने के पीछे उनका मकसद था कि वह गरीब रेलयात्रियों को कम कीमत में एयर कंडीशन कोच में सफर की सुविधा मुहैया कराएं. रेलवे यह दावा करती रही है कि ये गाडिय़ां अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं. मगर यह सच नहीं था. यही वजह रही है कि इस साल के रेल बजट में इस तरह की किसी गाड़ी की शुरुआत नहीं की गई है.
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रेलवे के बेस किचनों से यात्रियों को खाना आपूर्ति का मामला
कैसे पूरा होगा रेलमंत्री ममता बनर्जी का सपना?
कोलकाता : राजधानी और शताब्दी एक्सप्रेस जैसी वीआईपी गाडिय़ों के यात्रियों को रेलवे के बेस किचन में बना खाना परोसने की रेलमंत्री ममता बनर्जी की योजना पर पानी फिरता नजर आ रहा है. यह मानकर कि रेलवे के पास पर्याप्त बेस किचन हैं, रेल बजट में तमाम यात्री गाडिय़ों से पैंट्री कारें हटाये जाने की योजना घोषित कर दी गई. लेकिन जब विस्तृत ब्यौरा तैयार किया गया तो रेलवे बोर्ड के अफसरों के पसीने छूट रहे हैं. न तो रेलवे के पास फिलहाल पर्याप्त संख्या में अपने बेस किचन हैं और न ही बजट में नए बेस किचन बनाने के लिए कोई योजना रखी गई है. उल्लेखनीय है कि एक अनुमान के अनुसार इसके लिए जरूरी ढांचागत सुविधाएं विकसित करने में कम से कम तीन सौ करोड़ रुपए लगेंगे लेकिन रेलवे बजट तैयार करते वक्त इस ओर ध्यान भी नहीं दिया गया. अब इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कारपोरेशन (आईआरसीटीसी) ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं और रेलवे बोर्ड अधिकारियों के पसीने छूट रहे हैं.
ज्ञातव्य है कि रेल बजट में ममता बनर्जी द्वारा घोषित योजना के तहत देश की सभी राजधानी और शताब्दी ट्रेनों में 1 जुलाई से रेलवे के बेस किचन से बना खाना परोसा जाना था. लेकिन कोलकाता, पटना और मुंबई रूट की राजधानी और अमृतसर शताब्दी को छोड़कर किसी भी रूट पर यह योजना शुरू नहीं की जा सकी, क्योंकि न तो रेलवे के पास ढांचागत सुविधाएं हैं और न ही पर्याप्त फंड.
सूत्रों के अनुसार कुल 32 राजधानी और शताब्दी ट्रेनें चलाई जा रही हैं. इन सबमें अगर बेस किचन का बना खाना परोसना हो तो कम से कम 35 रसोईघरों (बेस किचनों) की जरूरत होगी, लेकिन रेलवे के पास सिर्फ चार बेस किचन दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और पटना में हैं.
चारों जगहों के ये बेस किचन फिलहाल रेलवे के फूड प्लाजा को भोजन की आपूर्ति कर रहे हैं. रेलवे ने 10 साल पहले 600 ट्रेनों में भोजन आपूर्ति का काम निजी फर्मों को सौंपना शुरू कर दिया था. शुरू में रेलवे के इन बेस किचनों को बंद करने की योजना बनी थी, पर बाद में इन्हें चालू रखा गया, लेकिन धीरे-धीरे इनसे ट्रेनों में भोजन आपूर्ति की जगह रेलवे के कैंटीन, यात्री निवास और फूड प्लाजा का काम इनके जिम्मे आ गया. रेल मंत्री की घोषणा के अनुसार कोलकाता, पटना और मुंबई रूट में सिर्फ राजधानी ट्रेनों में इन बेस किचनों से भोजन की आपूर्ति शुरू करा दी गई है, लेकिन इसमें ढांचागत दिक्कतें आ रही हैं.
जबकि रेलवे को खाना सप्लाई करने वाली निजी फर्मों के पास सौ से ज्यादा बेस किचन हैं. ट्रेन की महत्ता के अनुसार भोजन की गुणवत्ता को लेकर अब तक रेल अधिकारी आंखें मूंदे रहते थे. लेकिन यात्रियों को अच्छे भोजन की आपूर्ति, वह भी रेलवे बेस किचन से, करने की बाध्यता पर अब ढांचागत जरूरतें गिनाई जा रही हैं.
आईआरसीटीसी द्वारा रेलवे बोर्ड को भेजे गए ब्यौरे के अनुसार, 32 वीआईपी ट्रेनों के लिए अभी उपलब्ध बेस किचन के अलावा फिलहाल कम से कम 35 और बेस किचन चाहिए. राजधानी और शताब्दी लायक भोजन के लिए ऐसा एक बेस किचन बनाने में कम से कम 10 करोड़ रुपए की लागत आएगी. इस हिसाब से एक छोटा-मोटा बेस किचन तीन करोड़ रुपए में बन पाता है. ऐसे में कम से कम तीन सौ करोड़ रु. की जरूरत होगी, जिसके बारे में सोचा भी नहीं गया. ऐसी स्थिति में रेल मंत्री ममता बनर्जी की घोषणा का क्या होगा और क्या उनका यह सपना कभी पूरा हो पाएगा, यह विचारणीय प्रश्न है.
नयी दिल्ली : नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने कहा है कि पूर्व रेल मंत्री द्वारा दो साल पहले खूब प्रचार-प्रसार के बाद शुरू की गई 'गरीब रथ' रेलगाडिय़ों में से कुछ में यात्रियों ने यात्रा करने में कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई और यह गाडिय़ां कुल मिलाकर घाटे में चल रही हैं.
वर्ष 2008-09 के लिए जारी की गई सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ गरीब रथ रेलगाडिय़ों में तो यात्रियों के सवार होने की दर सिर्फ आठ फीसदी रही. रिपोर्ट में सीएजी ने सुझाव दिया कि इस तरह की रेलगाडिय़ों को शुरू करने के पहले इसके मानक तय कर लेना चाहिए था कि इनमें कम से कम कितने यात्रियों के सवार होने की संख्या को एक मानक माना जाएगा. कोलकाता-पटना गरीब रथ का उदाहरण देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2007-08 के दौरान इस गाड़ी के चेयरकार में यात्रियों के सवार होने की दर मात्र आठ फीसदी रही और एयरकंडीशन थ्री टियर में सिर्फ 22 फीसदी यात्रियों ने यात्रा की.
रिपोर्ट में इसी तरह रायपुर-लखनऊ गरीब रथ के बारे में कहा गया है कि इस गाड़ी में भी यात्रियों के सवार होने की दर सिर्फ 32 फीसदी रही. सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 11 गरीब रथ गाडिय़ों में जिन आठ गाडिय़ों की समीक्षा की गई उनमें सब्सिडी पर आधारित एयरकंडीशन कोच से होने वाली आमदनी इस कोच पर आने वाले खर्च को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं थी. ज्ञातव्य है कि गरीब लोगों के लिए 'राजधानी एक्सप्रेस' के नाम से प्रचारित की गई गरीब रथ गाडिय़ों की एक शृंखला की शुरुआत पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने की थी. इन गाडिय़ों को शुरू करने के पीछे उनका मकसद था कि वह गरीब रेलयात्रियों को कम कीमत में एयर कंडीशन कोच में सफर की सुविधा मुहैया कराएं. रेलवे यह दावा करती रही है कि ये गाडिय़ां अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं. मगर यह सच नहीं था. यही वजह रही है कि इस साल के रेल बजट में इस तरह की किसी गाड़ी की शुरुआत नहीं की गई है.
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रेलवे के बेस किचनों से यात्रियों को खाना आपूर्ति का मामला
कैसे पूरा होगा रेलमंत्री ममता बनर्जी का सपना?
कोलकाता : राजधानी और शताब्दी एक्सप्रेस जैसी वीआईपी गाडिय़ों के यात्रियों को रेलवे के बेस किचन में बना खाना परोसने की रेलमंत्री ममता बनर्जी की योजना पर पानी फिरता नजर आ रहा है. यह मानकर कि रेलवे के पास पर्याप्त बेस किचन हैं, रेल बजट में तमाम यात्री गाडिय़ों से पैंट्री कारें हटाये जाने की योजना घोषित कर दी गई. लेकिन जब विस्तृत ब्यौरा तैयार किया गया तो रेलवे बोर्ड के अफसरों के पसीने छूट रहे हैं. न तो रेलवे के पास फिलहाल पर्याप्त संख्या में अपने बेस किचन हैं और न ही बजट में नए बेस किचन बनाने के लिए कोई योजना रखी गई है. उल्लेखनीय है कि एक अनुमान के अनुसार इसके लिए जरूरी ढांचागत सुविधाएं विकसित करने में कम से कम तीन सौ करोड़ रुपए लगेंगे लेकिन रेलवे बजट तैयार करते वक्त इस ओर ध्यान भी नहीं दिया गया. अब इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कारपोरेशन (आईआरसीटीसी) ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं और रेलवे बोर्ड अधिकारियों के पसीने छूट रहे हैं.
ज्ञातव्य है कि रेल बजट में ममता बनर्जी द्वारा घोषित योजना के तहत देश की सभी राजधानी और शताब्दी ट्रेनों में 1 जुलाई से रेलवे के बेस किचन से बना खाना परोसा जाना था. लेकिन कोलकाता, पटना और मुंबई रूट की राजधानी और अमृतसर शताब्दी को छोड़कर किसी भी रूट पर यह योजना शुरू नहीं की जा सकी, क्योंकि न तो रेलवे के पास ढांचागत सुविधाएं हैं और न ही पर्याप्त फंड.
सूत्रों के अनुसार कुल 32 राजधानी और शताब्दी ट्रेनें चलाई जा रही हैं. इन सबमें अगर बेस किचन का बना खाना परोसना हो तो कम से कम 35 रसोईघरों (बेस किचनों) की जरूरत होगी, लेकिन रेलवे के पास सिर्फ चार बेस किचन दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और पटना में हैं.
चारों जगहों के ये बेस किचन फिलहाल रेलवे के फूड प्लाजा को भोजन की आपूर्ति कर रहे हैं. रेलवे ने 10 साल पहले 600 ट्रेनों में भोजन आपूर्ति का काम निजी फर्मों को सौंपना शुरू कर दिया था. शुरू में रेलवे के इन बेस किचनों को बंद करने की योजना बनी थी, पर बाद में इन्हें चालू रखा गया, लेकिन धीरे-धीरे इनसे ट्रेनों में भोजन आपूर्ति की जगह रेलवे के कैंटीन, यात्री निवास और फूड प्लाजा का काम इनके जिम्मे आ गया. रेल मंत्री की घोषणा के अनुसार कोलकाता, पटना और मुंबई रूट में सिर्फ राजधानी ट्रेनों में इन बेस किचनों से भोजन की आपूर्ति शुरू करा दी गई है, लेकिन इसमें ढांचागत दिक्कतें आ रही हैं.
जबकि रेलवे को खाना सप्लाई करने वाली निजी फर्मों के पास सौ से ज्यादा बेस किचन हैं. ट्रेन की महत्ता के अनुसार भोजन की गुणवत्ता को लेकर अब तक रेल अधिकारी आंखें मूंदे रहते थे. लेकिन यात्रियों को अच्छे भोजन की आपूर्ति, वह भी रेलवे बेस किचन से, करने की बाध्यता पर अब ढांचागत जरूरतें गिनाई जा रही हैं.
आईआरसीटीसी द्वारा रेलवे बोर्ड को भेजे गए ब्यौरे के अनुसार, 32 वीआईपी ट्रेनों के लिए अभी उपलब्ध बेस किचन के अलावा फिलहाल कम से कम 35 और बेस किचन चाहिए. राजधानी और शताब्दी लायक भोजन के लिए ऐसा एक बेस किचन बनाने में कम से कम 10 करोड़ रुपए की लागत आएगी. इस हिसाब से एक छोटा-मोटा बेस किचन तीन करोड़ रुपए में बन पाता है. ऐसे में कम से कम तीन सौ करोड़ रु. की जरूरत होगी, जिसके बारे में सोचा भी नहीं गया. ऐसी स्थिति में रेल मंत्री ममता बनर्जी की घोषणा का क्या होगा और क्या उनका यह सपना कभी पूरा हो पाएगा, यह विचारणीय प्रश्न है.
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