भावी प्रगति और लोकप्रियता की मजबूरी
रेलमंत्री ममता बनर्जी द्वारा कई लोकप्रिय कदमों की घोषणा और वित्तीय स्तर पर प्रभावित भारतीय रेलों के कामकाज के दबाव में चालू वित्त वर्ष के दौरान किए जाने वाले निवेश पर भा.रे. की भावी प्रगति और क्रियाशीलता तय होने वाली है. यह बात निर्धारित आयूसीमा पार कर चुकी रेल संपत्तियों के बदलाव के लिए आवंटित राशि को देखने मात्र से समझ में आ जाती है. ऐसी संपत्तियों (असेट्स) के रिप्लेसमेंट हेतु चालू वर्ष 2009-10 के लिए डेप्रिसेशन रिजर्व फंड को 1675 करोड़ से बढ़ाकर 5325 करोड़ रु. किया गया जबकि यह पिछले वित्त वर्ष 2008-09 में 7000 करोड़ रु. का था. इसके अलावा कैपिटल फंड, जो कि भा. रे. के रिजर्व को बढ़ाता है, को भी चालू वित्त वर्ष के दौरान कुल 4322 करोड़ रु. से घटाकर मात्र 642 करोड़ रु. कर दिया गया है जबकि गत वित्त वर्ष 2008-09 में यह 4965 करोड़ रु. था.
तथापि केंद्र सरकार को दिए जाने वाले लाभांश को 768 करोड़ रु. से बढ़ाकर 5479 करोड़ रु. कर दिया गया है, जबकि 6वें वेतन आयोग को लागू किए जाने से भा.रे. भारी वित्तीय दबाव में है और दूसरी तरफ कैश सरप्लस में भी 3000 करोड़ रु. की कमी आई है. रेलवे के कैश सरप्लस में पिछले वर्ष 2008-09 के 17400 करोड़ रु. की अपेक्षा चालू वर्ष 2009-10 में घटकर 14201 करोड़ रु. होने का अनुमान लगाया गया है. इसके अलावा रेलवे का निवेश योग्य सरप्लस पिछले वर्ष 2008-09 के 13532 करोड़ रु. की अपेक्षा चालू वर्ष 2009-10 में 36 प्रतिशत गिरकर 8631 करोड़ रु. रह जाने की संभावना है.
सच्चाई यह है कि पिछले दो वर्षों में रेलवे की वित्तीय स्थिति काफी तेजी से खराब हुई है. मगर देश के सामने पूर्व रेलमंत्री द्वारा लोक लुभावन और बनावटी आंकड़े पेश करते हुए लगातार वाहवाही लूटी जाती रही तथा स्वयं का विश्व के सामने मैनेजमेंट गुरु (?) और भा. रे. के टर्नएराउंड के अविष्कर्ता के रुप में प्रस्तुत किया जाता रहा. वर्ष 2007-08 में जहां भा. रे. की परिचालन लागत (ऑपरेटिंग रेशियो) इसकी कुल रेवेन्यू अर्निंग्स की 75.9 प्रतिशत थी, वहीं ïवर्ष 2009-10 में यह 92.5 प्रतिशत रहने वाली है. हालांकि पिछले वर्ष इसके तथाकथित मैनेजमेंट गुरु और टर्नएराउंड आविष्कर्ता ने यह आंकड़ा फर्जी तौर पर 78 प्रतिशत बताकर देश को दिग्भ्रमित किया था जबकि गत वर्ष 2008-09 के लिए अब यह 88.3 प्रतिशत रहा बताया जा रहा है. हालांकि भा.रे. की इस खराब हालत के लिए 6 वें वेतन आयोग के लागू होने के कारण इसके बढ़े हुए वेतन बोझ को बताया जा रहा है.
रेलमंत्री ममता बनर्जी के अनुसार 6 वें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने के लिए वर्ष 2008-09 में रेलवे को अपने कर्मचारियों के वेतन मद में 13600 करोड़ रु. खर्च करने पड़े थे जबकि वर्ष 2009-10 में 14600 करोड़ रु. अभी उनके बचे हुए 60 प्रतिशत एरियर्स आदि को देने में खर्च होने वाले हैं. हालांकि 15800 करोड़ रु. के बढ़े हुए बजटरी सहयोग के कारण रेलवे ने अपने योजना खर्च में 10 प्रतिशत की वृद्धि करते हुए 40,745 करोड़ रु. से चालू वित्त वर्ष में नई लाइनों और गेज कन्वर्जन की महती योजना बनाई है. ममता बनर्जी ने बताया कि जब उन्हें ज्ञात हुआ कि 11वीं पंचवार्षीय योजना में प्रावधान के मुताबिक भा.रे. को कम बजटरी सहयोग मिला है, तो उन्होंने इस मामले को प्रधानमंत्री के स्तर पर उठाया जिन्होंने तुरंत अंतरिम रेल बजट में प्रस्तावित बजटरी सहयोग से 5000 करोड़ रु. अतिरिक्त दिए जाने की मंजूरी प्रदान कर दी.
खानपान आउटसोर्सिंग समाप्त करना-कभी लागू नहीं होगा
रेलमंत्री ममता बनर्जी ने रेलवे खानपान सेवाओं, खास तौर पर पैंट्री कारों, की आउटसोर्सिंग समाप्त करने की घोषणा की है, और कहा है कि पैंट्री कारों को निकालकर उनकी जगह गाडिय़ों में एक यात्री कोच लगाया जायेगा जिससे काफी संख्या में यात्रियों को कन्फर्म बर्थ मिल सकेगी. ममता का विचार तो बहुत अच्छा है और इससे निश्चित तौर पर कुछ हजार यात्रियों को राहत मिल सकती है. परंतु उन्हें यह कौन बतायेगा कि सिर के बाल मुंड़ा देने भर से मुर्दा हल्का नहीं हो जाता. जहां भा.रे. में प्रतिदिन यात्रा करने वाले करीब 1.80 करोड़ यात्रियों को आज भी पर्याप्त रुप से स्वच्छ और सुरक्षित भोजन-पानी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है, वहां गाडियों से 100-200 पैंट्री कारें निकाल दिए जाने से क्या यात्रियों की मुसीबत और नहीं बढ़ जायेगी? इसके अलावा जो सैंकड़ों करोड़ रुपया लाइसेंस फीस के रुप में निजी खानपान ठेकेदारों द्वारा भा.रे. को आज मिल रहा है, उसकी भरपाई कहां से की जायेगी?
'रेलवे समाचार' का मानना है कि भविष्य में होने वाली प्रगति और कई लोक-लुभावन घोषणाएं करके आम जनता को दिग्भ्रमित करना और इस तरह लोकप्रियता हासिल करने की प्रवृत्ति से मंत्रियों को बाज आना चाहिए, क्योंकि यदि इस तरह की लोकप्रियता से दीर्घाविध राजनीतिक लाभ मिलता तो इसी तरह विश्व स्तरीय लोकप्रियता हासिल करके भा.रे. के टर्नएराउंड का ढिंढोरा पीटकर तथाकथित मैनेजमेंट गुरू बनने वाले पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव का उनके गृह प्रदेश बिहार में पिछले लोकसभा चुनावों में सूपड़ा साफ नहीं होता और उनकी जोकर छाप नौटंकी बंद नहीं होती. ममता बनर्जी यदि रेलवे खानपान सेवा सुधारने के लिए कड़े कदम उठाने की बात करतीं तो शायद इसका एक सही संदेश जाता, मगर आउटसोर्सिंग का कोई विकल्प तय किए बिना इसे समाप्त किए जाने की उनकी घोषणा न सिर्फ हास्यास्पद साबित होगी, बल्कि इसे वास्तविक धरातल में वह अपने पांच साल के कार्यकाल, यदि पूरा किया तो, में भी नहीं उतार पायेंगी. यह तय है. जबकि इस दरम्यान वर्ष 2011 के मध्य में होने वाले प. बंगाल के विधानसभा चुनाव जीतकर वह वहां की मुख्यमंत्री बनने की तैयारी कर रही हैं.
रेल खानपान व्यवस्था की आउटसोर्सिंग समाप्त करने का मतलब होगा आईआरसीटीसी को समाप्त करना, जिसकी स्थापना ही इसीलिए की गई थी. इससे बेहतर यह होगा कि आईआरसीटीसी में गये रेलवे अधिकारियों की नकेल कसी जाये और वहां कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार अधिकारियों को नियुक्त किया जाये. जबकि अब तक स्थिति यह रही है कि यहां एकाध को छोड़कर अधिकांश अधिकारी भ्रष्ट और बेहद बेईमान किस्म के रहे हैं, या हैं. ऐसा होने के कारण ही इस क्षेत्र में स्थिति ज्यो कि त्यों है. बल्कि यह कहा जाये कि इन कुछ बेईमान अधिकारियों के कारण ही रेलवे की खानपान व्यवस्था की स्थिति और भी बद से बदतर हुई है, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.
———————————————-
मुझे चुनाव जीतने के लिए बजट की जरूरत नहीं-ममता
नयी दिल्ली : रेल बजट प्रस्तुत करने के बाद ट्रेनें के बजाय उसी दिन शाम 8-10 बजे की एयर इंडिया की उड़ान से कोलकाता जाने से पहले मीडिया से मुखातिब रेलमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि उन्हें प. बंगाल में विधान सभा चुनाव जीतने के लिए किसी बजट की जरूरत नहीं है. यह जबाब उन्होंने तब दिया जब मीडिया ने उनसे पूछा कि उन्होंने पं. बंगाल उन्मुख रेल बजट दिया है. उन्होंने कहा कि इसके लिए उन्हें कोई दोषी नहीं ठहरा सकता और न ऐसा कह सकता है. हमने कमोबेस सभी राज्यों और देश के सभी क्षेत्रों का अपने बजट में ख्याल रखा है. इसके साथ ही हमने प. बंगाल के लिए भी कुछ किया है. और कोई कारण नहीं है कि हम बंगाल को नजरअंदाज करते.
अच्छा बजट प्रस्तुत करने के लिए प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की तारीफ और वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा पीट थपथपाकर शाबाशी पाने वाली रेलमंत्री से जब यह पूछा गया कि इससे पहले भी उन्होंने दो बार रेल बजट प्रस्तुत किया था. उनसे उनका वर्तमान बजट किस प्रकार भिन्न है. इस पर उनका कहना था कि अब हम ज्यादा परिपक्व और अनुभवी हुई हैं. इस बार जो हमने 15 दिन में किया है. वही इससे पहले करने में ज्यादा समय लगता था. ममता से जब मीडिया कर्मियों ने यह कहा कि सीपीएम वालों का कहना है कि आपने यह बजट अपने चुनावी घोषणा पत्र के तौर पर प्रस्तुत किया है. इस पर आपका क्या कहना है, तो इस पर भड़कने के बजाय उन्होंने हंसते हुए कहा कि चुनाव का क्या है वह तो इसी साल 2009 में भी हो सकते हैं. इसके बाद अपनी हंसी को रोककर थोड़ा गंभीर होते हुए उन्होंने कहा कि बंगाल के लोग अब सीपीएम शासन से बुरी तरह ऊब चुके हैं और जब भी चुनाव होंगे वे उन्हें सत्ता से बाहर करने के लिए उतावले हो रहे हैं. ममता ने कहा कि उन्हें चुनाव जीतने के लिए रेल बजट की जरूरत नहीं है. ममता ने अपनी स्टाइल में कहा कि सीपीएम वालों को अब बोलना बंद करके आराम करना चाहिए और इसके लिए हम उन्हें रेस्ट हाउस उपलब्ध कराने के लिए तैयार हैं.
उनसे जब यह पूछा गया कि पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव भी उनके खिलाफ बोल रहे हैं, तो उन्होंने हाथ जोड़ते हुए कहा कि वह उनके बारे में कुछ भी नहीं कहना चाहती है. तत्पश्चात जब उनसे यह पूछा गया कि आपका बजट रेलवे को आर्थिक रुप से मजबूत बनाने के बजाय सामाजिक प्रतिबद्धता की तरफ ज्यादा से ज्यादा झुका नजर आ रहा है, ऐसे में यह कितना सार्थक हो पायेगा, इस बारे में आपका क्या कहना है. इस पर ममता बनर्जी का कहना था कि सामाजिक प्रतिबद्धता आॢथक विकास के आड़े नहीं आती. मेरा आधारभूत दर्शन मां, माटी और मानुष है और यह दर्शन आर्थिक विकास के खिलाफ नहीं है. उनका कहना था कि इसीलिए आप्टिक फाइबर प्रोजेक्ट के लिए उन्होंने सैम पित्रोदा को लिया है और पीपीपी मॉडेल पर विचार किया है तथा उद्योगों के विकास के लिए लैंड बैंक प्रोजेक्ट शुरू करने जा रही हैं. जिससे रेलवे के लिए पर्याप्त रेवेन्यू प्राप्त होगी.
उन्होंने आगे कहा कि फ्रेट कॉरिडोर प्रोजेक्ट को गति दी जा रही है जो कि विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों और बाजारों को जोड़ेगा. इसके लिए बजट से पहले फिक्की एवं सीआईआई के तमाम उद्योगपतियों/पदाधिकारियों ने मीटिंग में अपनी चिंताएं जाहिर की थीं. इसके अलावा कोल्ड स्टोरेज सुविधा उपलब्ध कराने का विचार भी आया है. उन्होंने कहा कि आज जब चौतरफा आर्थिक मंदी का दौर चल रहा है तब उन्होंने भी वही किया है जो वक्त की मांग के अनुसार विश्वभर में किया जा रहा है. ममता ने कहा कि आम आदमी के लिए 'इज्जत और मुश्किल आसान' जैसी सामान्य सुविधांए प्रदान करने से रेलवे पर किसी प्रकार का अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा.
———————————————-
उद्योंगों की विरोधी नहीं ममता
कोलकाता : अपने मां, माटी, मानुष के लोकप्रिय नारे पर सवार होकर करीब आठ साल बाद तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमों ममता बनर्जी ने रेल बजट के जरिए स्थापित उद्योग विरोधी अपनी छवि को बदलने का पूरा प्रयास किया है जिसमें वह काफी हद तक कामयाब भी रही हैं. प. बंगाल पर कई रेल परियोजनाओं और रेलगाडिय़ों की बौछार करते हुए उन्होंने अपने दिमाग में कहीं न कहीं वर्ष 2011 में होनेवाले प. बंगाल विधान सभा चुनावों को भी ध्यान में रखा है. उनका बजट भाषण नई ढ़ांचागत परियोजनाओं और औद्योगिक प्रस्तावों से भरा है तथा मजबूत प्रगति के प्रति आम आदमी को आश्वस्त कर रहा है, जोकि नंदीग्राम और सिंगूर में उद्योंगों के लिए जमीन अधिग्रहण के समय बनी ममता बनर्जी की उद्योग विरोधी छवि से एकदम अलग है.
संसद में रेलवे बजट प्रस्तुत करते समय ममता बनर्जी जो भी कह रही थीं, वह वास्तव में प. बंगाल में बुद्धदेव भट्टïाचार्य के विकल्प के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करने जैसा था. उन्होंने बजट भाषण में जमीन और उद्योगों सहित अतिरिक्त रेलवे जमीन पर ढ़ांचागत विकास के अलावा रेलवे को अतिरिक्त जमीन की पहचान और उसके दोहन के लिए लैंड बैंक की स्थापना आदि का उल्लेख किया. प. बंगाल के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उनकी नजर होने और अपनी उद्योग विरोधी पुरानी छवि से निजात पाने के लिए ममता के पास यह एक अच्छा अवसर था. इसके अलावा उन्होंने यह कहकर अपनी इस छवि में एक तड़का और लगा दिया कि डंकुनी तक प्रस्तावित फ्रेंट कारीडोर के लिए यदि जरूरत पड़ी तो और जमीन का अधिग्रहण किया जायेगा जिससे वहां अन्य औद्योगिक इकाईयों की स्थापना की जा सकेगी.
प. बंगाल में खराब विपणन एवं स्टोरेज नेटवर्क का उल्लेख अपने बजट भाषण में करते हुए ममता बनर्जी ने कुछ समय से लगातार चर्चा में रहे इस राजनीतिक मुद्दे को भी छेड़ दिया. जब मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टïाचार्य इस नेटवर्क की स्थापना के लिए निजी क्षेत्रों को बुलाने की तैयारी कर रहे थे, तब ममता द्वारा वहां जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं के लिए तापमान नियंत्रित कार्गो सेंटर्स और कोल्ड स्टोरेज की स्थापना किए जाने की घोषणा ने वर्तमान मुख्यमंत्री से एक महत्त्वपूर्ण स्थानीय मुद्दा छिनकर ममता के हाथों में चला गया है जिसने उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी के और नजदीक पहुंचा दिया है.
इस संबंध में सेंटर फॉर स्टडीज इन सोशल साइंसेस के डायरेक्टर सुगत मरजीत ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि कुल मिलाकर यह एक सकारात्मक रेल बजट है. रेलमंत्री ने बंगाल के लिए विभिन्न रेल परियोजनाओं की घोषणा की है, जिनके बारे में पहले से ही लोगों को पूरी उम्मीद थी. रेलमंत्री ने ढांचागत विकास और संरचनात्मक निर्माण को आगे बढ़ाने का भरपूर प्रयास किया है और इसका पूरा आश्वासन अपने बजट में दिया है. उन्होंने कहा कि परंतु मेरा मानना है कि ममता को अपने ये आश्वासन पूरा करने के लिए उनके पूर्ववर्ती लालू प्रसाद यादव अवश्य सरप्लस फंड उनके लिए छोड़ गये होंगे, क्योंकि बिना पर्याप्त सरप्लस के, और वह भी बिना माल एवं यात्री किराए बढ़ाए, यह तमाम प्रोजेक्ट पूरा कर पाना शायद संभव नहीं हो पायेगा.
रेलमंत्री ममता बनर्जी द्वारा कई लोकप्रिय कदमों की घोषणा और वित्तीय स्तर पर प्रभावित भारतीय रेलों के कामकाज के दबाव में चालू वित्त वर्ष के दौरान किए जाने वाले निवेश पर भा.रे. की भावी प्रगति और क्रियाशीलता तय होने वाली है. यह बात निर्धारित आयूसीमा पार कर चुकी रेल संपत्तियों के बदलाव के लिए आवंटित राशि को देखने मात्र से समझ में आ जाती है. ऐसी संपत्तियों (असेट्स) के रिप्लेसमेंट हेतु चालू वर्ष 2009-10 के लिए डेप्रिसेशन रिजर्व फंड को 1675 करोड़ से बढ़ाकर 5325 करोड़ रु. किया गया जबकि यह पिछले वित्त वर्ष 2008-09 में 7000 करोड़ रु. का था. इसके अलावा कैपिटल फंड, जो कि भा. रे. के रिजर्व को बढ़ाता है, को भी चालू वित्त वर्ष के दौरान कुल 4322 करोड़ रु. से घटाकर मात्र 642 करोड़ रु. कर दिया गया है जबकि गत वित्त वर्ष 2008-09 में यह 4965 करोड़ रु. था.
तथापि केंद्र सरकार को दिए जाने वाले लाभांश को 768 करोड़ रु. से बढ़ाकर 5479 करोड़ रु. कर दिया गया है, जबकि 6वें वेतन आयोग को लागू किए जाने से भा.रे. भारी वित्तीय दबाव में है और दूसरी तरफ कैश सरप्लस में भी 3000 करोड़ रु. की कमी आई है. रेलवे के कैश सरप्लस में पिछले वर्ष 2008-09 के 17400 करोड़ रु. की अपेक्षा चालू वर्ष 2009-10 में घटकर 14201 करोड़ रु. होने का अनुमान लगाया गया है. इसके अलावा रेलवे का निवेश योग्य सरप्लस पिछले वर्ष 2008-09 के 13532 करोड़ रु. की अपेक्षा चालू वर्ष 2009-10 में 36 प्रतिशत गिरकर 8631 करोड़ रु. रह जाने की संभावना है.
सच्चाई यह है कि पिछले दो वर्षों में रेलवे की वित्तीय स्थिति काफी तेजी से खराब हुई है. मगर देश के सामने पूर्व रेलमंत्री द्वारा लोक लुभावन और बनावटी आंकड़े पेश करते हुए लगातार वाहवाही लूटी जाती रही तथा स्वयं का विश्व के सामने मैनेजमेंट गुरु (?) और भा. रे. के टर्नएराउंड के अविष्कर्ता के रुप में प्रस्तुत किया जाता रहा. वर्ष 2007-08 में जहां भा. रे. की परिचालन लागत (ऑपरेटिंग रेशियो) इसकी कुल रेवेन्यू अर्निंग्स की 75.9 प्रतिशत थी, वहीं ïवर्ष 2009-10 में यह 92.5 प्रतिशत रहने वाली है. हालांकि पिछले वर्ष इसके तथाकथित मैनेजमेंट गुरु और टर्नएराउंड आविष्कर्ता ने यह आंकड़ा फर्जी तौर पर 78 प्रतिशत बताकर देश को दिग्भ्रमित किया था जबकि गत वर्ष 2008-09 के लिए अब यह 88.3 प्रतिशत रहा बताया जा रहा है. हालांकि भा.रे. की इस खराब हालत के लिए 6 वें वेतन आयोग के लागू होने के कारण इसके बढ़े हुए वेतन बोझ को बताया जा रहा है.
रेलमंत्री ममता बनर्जी के अनुसार 6 वें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने के लिए वर्ष 2008-09 में रेलवे को अपने कर्मचारियों के वेतन मद में 13600 करोड़ रु. खर्च करने पड़े थे जबकि वर्ष 2009-10 में 14600 करोड़ रु. अभी उनके बचे हुए 60 प्रतिशत एरियर्स आदि को देने में खर्च होने वाले हैं. हालांकि 15800 करोड़ रु. के बढ़े हुए बजटरी सहयोग के कारण रेलवे ने अपने योजना खर्च में 10 प्रतिशत की वृद्धि करते हुए 40,745 करोड़ रु. से चालू वित्त वर्ष में नई लाइनों और गेज कन्वर्जन की महती योजना बनाई है. ममता बनर्जी ने बताया कि जब उन्हें ज्ञात हुआ कि 11वीं पंचवार्षीय योजना में प्रावधान के मुताबिक भा.रे. को कम बजटरी सहयोग मिला है, तो उन्होंने इस मामले को प्रधानमंत्री के स्तर पर उठाया जिन्होंने तुरंत अंतरिम रेल बजट में प्रस्तावित बजटरी सहयोग से 5000 करोड़ रु. अतिरिक्त दिए जाने की मंजूरी प्रदान कर दी.
खानपान आउटसोर्सिंग समाप्त करना-कभी लागू नहीं होगा
रेलमंत्री ममता बनर्जी ने रेलवे खानपान सेवाओं, खास तौर पर पैंट्री कारों, की आउटसोर्सिंग समाप्त करने की घोषणा की है, और कहा है कि पैंट्री कारों को निकालकर उनकी जगह गाडिय़ों में एक यात्री कोच लगाया जायेगा जिससे काफी संख्या में यात्रियों को कन्फर्म बर्थ मिल सकेगी. ममता का विचार तो बहुत अच्छा है और इससे निश्चित तौर पर कुछ हजार यात्रियों को राहत मिल सकती है. परंतु उन्हें यह कौन बतायेगा कि सिर के बाल मुंड़ा देने भर से मुर्दा हल्का नहीं हो जाता. जहां भा.रे. में प्रतिदिन यात्रा करने वाले करीब 1.80 करोड़ यात्रियों को आज भी पर्याप्त रुप से स्वच्छ और सुरक्षित भोजन-पानी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है, वहां गाडियों से 100-200 पैंट्री कारें निकाल दिए जाने से क्या यात्रियों की मुसीबत और नहीं बढ़ जायेगी? इसके अलावा जो सैंकड़ों करोड़ रुपया लाइसेंस फीस के रुप में निजी खानपान ठेकेदारों द्वारा भा.रे. को आज मिल रहा है, उसकी भरपाई कहां से की जायेगी?
'रेलवे समाचार' का मानना है कि भविष्य में होने वाली प्रगति और कई लोक-लुभावन घोषणाएं करके आम जनता को दिग्भ्रमित करना और इस तरह लोकप्रियता हासिल करने की प्रवृत्ति से मंत्रियों को बाज आना चाहिए, क्योंकि यदि इस तरह की लोकप्रियता से दीर्घाविध राजनीतिक लाभ मिलता तो इसी तरह विश्व स्तरीय लोकप्रियता हासिल करके भा.रे. के टर्नएराउंड का ढिंढोरा पीटकर तथाकथित मैनेजमेंट गुरू बनने वाले पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव का उनके गृह प्रदेश बिहार में पिछले लोकसभा चुनावों में सूपड़ा साफ नहीं होता और उनकी जोकर छाप नौटंकी बंद नहीं होती. ममता बनर्जी यदि रेलवे खानपान सेवा सुधारने के लिए कड़े कदम उठाने की बात करतीं तो शायद इसका एक सही संदेश जाता, मगर आउटसोर्सिंग का कोई विकल्प तय किए बिना इसे समाप्त किए जाने की उनकी घोषणा न सिर्फ हास्यास्पद साबित होगी, बल्कि इसे वास्तविक धरातल में वह अपने पांच साल के कार्यकाल, यदि पूरा किया तो, में भी नहीं उतार पायेंगी. यह तय है. जबकि इस दरम्यान वर्ष 2011 के मध्य में होने वाले प. बंगाल के विधानसभा चुनाव जीतकर वह वहां की मुख्यमंत्री बनने की तैयारी कर रही हैं.
रेल खानपान व्यवस्था की आउटसोर्सिंग समाप्त करने का मतलब होगा आईआरसीटीसी को समाप्त करना, जिसकी स्थापना ही इसीलिए की गई थी. इससे बेहतर यह होगा कि आईआरसीटीसी में गये रेलवे अधिकारियों की नकेल कसी जाये और वहां कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार अधिकारियों को नियुक्त किया जाये. जबकि अब तक स्थिति यह रही है कि यहां एकाध को छोड़कर अधिकांश अधिकारी भ्रष्ट और बेहद बेईमान किस्म के रहे हैं, या हैं. ऐसा होने के कारण ही इस क्षेत्र में स्थिति ज्यो कि त्यों है. बल्कि यह कहा जाये कि इन कुछ बेईमान अधिकारियों के कारण ही रेलवे की खानपान व्यवस्था की स्थिति और भी बद से बदतर हुई है, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.
———————————————-
मुझे चुनाव जीतने के लिए बजट की जरूरत नहीं-ममता
नयी दिल्ली : रेल बजट प्रस्तुत करने के बाद ट्रेनें के बजाय उसी दिन शाम 8-10 बजे की एयर इंडिया की उड़ान से कोलकाता जाने से पहले मीडिया से मुखातिब रेलमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि उन्हें प. बंगाल में विधान सभा चुनाव जीतने के लिए किसी बजट की जरूरत नहीं है. यह जबाब उन्होंने तब दिया जब मीडिया ने उनसे पूछा कि उन्होंने पं. बंगाल उन्मुख रेल बजट दिया है. उन्होंने कहा कि इसके लिए उन्हें कोई दोषी नहीं ठहरा सकता और न ऐसा कह सकता है. हमने कमोबेस सभी राज्यों और देश के सभी क्षेत्रों का अपने बजट में ख्याल रखा है. इसके साथ ही हमने प. बंगाल के लिए भी कुछ किया है. और कोई कारण नहीं है कि हम बंगाल को नजरअंदाज करते.
अच्छा बजट प्रस्तुत करने के लिए प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की तारीफ और वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा पीट थपथपाकर शाबाशी पाने वाली रेलमंत्री से जब यह पूछा गया कि इससे पहले भी उन्होंने दो बार रेल बजट प्रस्तुत किया था. उनसे उनका वर्तमान बजट किस प्रकार भिन्न है. इस पर उनका कहना था कि अब हम ज्यादा परिपक्व और अनुभवी हुई हैं. इस बार जो हमने 15 दिन में किया है. वही इससे पहले करने में ज्यादा समय लगता था. ममता से जब मीडिया कर्मियों ने यह कहा कि सीपीएम वालों का कहना है कि आपने यह बजट अपने चुनावी घोषणा पत्र के तौर पर प्रस्तुत किया है. इस पर आपका क्या कहना है, तो इस पर भड़कने के बजाय उन्होंने हंसते हुए कहा कि चुनाव का क्या है वह तो इसी साल 2009 में भी हो सकते हैं. इसके बाद अपनी हंसी को रोककर थोड़ा गंभीर होते हुए उन्होंने कहा कि बंगाल के लोग अब सीपीएम शासन से बुरी तरह ऊब चुके हैं और जब भी चुनाव होंगे वे उन्हें सत्ता से बाहर करने के लिए उतावले हो रहे हैं. ममता ने कहा कि उन्हें चुनाव जीतने के लिए रेल बजट की जरूरत नहीं है. ममता ने अपनी स्टाइल में कहा कि सीपीएम वालों को अब बोलना बंद करके आराम करना चाहिए और इसके लिए हम उन्हें रेस्ट हाउस उपलब्ध कराने के लिए तैयार हैं.
उनसे जब यह पूछा गया कि पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव भी उनके खिलाफ बोल रहे हैं, तो उन्होंने हाथ जोड़ते हुए कहा कि वह उनके बारे में कुछ भी नहीं कहना चाहती है. तत्पश्चात जब उनसे यह पूछा गया कि आपका बजट रेलवे को आर्थिक रुप से मजबूत बनाने के बजाय सामाजिक प्रतिबद्धता की तरफ ज्यादा से ज्यादा झुका नजर आ रहा है, ऐसे में यह कितना सार्थक हो पायेगा, इस बारे में आपका क्या कहना है. इस पर ममता बनर्जी का कहना था कि सामाजिक प्रतिबद्धता आॢथक विकास के आड़े नहीं आती. मेरा आधारभूत दर्शन मां, माटी और मानुष है और यह दर्शन आर्थिक विकास के खिलाफ नहीं है. उनका कहना था कि इसीलिए आप्टिक फाइबर प्रोजेक्ट के लिए उन्होंने सैम पित्रोदा को लिया है और पीपीपी मॉडेल पर विचार किया है तथा उद्योगों के विकास के लिए लैंड बैंक प्रोजेक्ट शुरू करने जा रही हैं. जिससे रेलवे के लिए पर्याप्त रेवेन्यू प्राप्त होगी.
उन्होंने आगे कहा कि फ्रेट कॉरिडोर प्रोजेक्ट को गति दी जा रही है जो कि विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों और बाजारों को जोड़ेगा. इसके लिए बजट से पहले फिक्की एवं सीआईआई के तमाम उद्योगपतियों/पदाधिकारियों ने मीटिंग में अपनी चिंताएं जाहिर की थीं. इसके अलावा कोल्ड स्टोरेज सुविधा उपलब्ध कराने का विचार भी आया है. उन्होंने कहा कि आज जब चौतरफा आर्थिक मंदी का दौर चल रहा है तब उन्होंने भी वही किया है जो वक्त की मांग के अनुसार विश्वभर में किया जा रहा है. ममता ने कहा कि आम आदमी के लिए 'इज्जत और मुश्किल आसान' जैसी सामान्य सुविधांए प्रदान करने से रेलवे पर किसी प्रकार का अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा.
———————————————-
उद्योंगों की विरोधी नहीं ममता
कोलकाता : अपने मां, माटी, मानुष के लोकप्रिय नारे पर सवार होकर करीब आठ साल बाद तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमों ममता बनर्जी ने रेल बजट के जरिए स्थापित उद्योग विरोधी अपनी छवि को बदलने का पूरा प्रयास किया है जिसमें वह काफी हद तक कामयाब भी रही हैं. प. बंगाल पर कई रेल परियोजनाओं और रेलगाडिय़ों की बौछार करते हुए उन्होंने अपने दिमाग में कहीं न कहीं वर्ष 2011 में होनेवाले प. बंगाल विधान सभा चुनावों को भी ध्यान में रखा है. उनका बजट भाषण नई ढ़ांचागत परियोजनाओं और औद्योगिक प्रस्तावों से भरा है तथा मजबूत प्रगति के प्रति आम आदमी को आश्वस्त कर रहा है, जोकि नंदीग्राम और सिंगूर में उद्योंगों के लिए जमीन अधिग्रहण के समय बनी ममता बनर्जी की उद्योग विरोधी छवि से एकदम अलग है.
संसद में रेलवे बजट प्रस्तुत करते समय ममता बनर्जी जो भी कह रही थीं, वह वास्तव में प. बंगाल में बुद्धदेव भट्टïाचार्य के विकल्प के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करने जैसा था. उन्होंने बजट भाषण में जमीन और उद्योगों सहित अतिरिक्त रेलवे जमीन पर ढ़ांचागत विकास के अलावा रेलवे को अतिरिक्त जमीन की पहचान और उसके दोहन के लिए लैंड बैंक की स्थापना आदि का उल्लेख किया. प. बंगाल के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उनकी नजर होने और अपनी उद्योग विरोधी पुरानी छवि से निजात पाने के लिए ममता के पास यह एक अच्छा अवसर था. इसके अलावा उन्होंने यह कहकर अपनी इस छवि में एक तड़का और लगा दिया कि डंकुनी तक प्रस्तावित फ्रेंट कारीडोर के लिए यदि जरूरत पड़ी तो और जमीन का अधिग्रहण किया जायेगा जिससे वहां अन्य औद्योगिक इकाईयों की स्थापना की जा सकेगी.
प. बंगाल में खराब विपणन एवं स्टोरेज नेटवर्क का उल्लेख अपने बजट भाषण में करते हुए ममता बनर्जी ने कुछ समय से लगातार चर्चा में रहे इस राजनीतिक मुद्दे को भी छेड़ दिया. जब मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टïाचार्य इस नेटवर्क की स्थापना के लिए निजी क्षेत्रों को बुलाने की तैयारी कर रहे थे, तब ममता द्वारा वहां जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं के लिए तापमान नियंत्रित कार्गो सेंटर्स और कोल्ड स्टोरेज की स्थापना किए जाने की घोषणा ने वर्तमान मुख्यमंत्री से एक महत्त्वपूर्ण स्थानीय मुद्दा छिनकर ममता के हाथों में चला गया है जिसने उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी के और नजदीक पहुंचा दिया है.
इस संबंध में सेंटर फॉर स्टडीज इन सोशल साइंसेस के डायरेक्टर सुगत मरजीत ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि कुल मिलाकर यह एक सकारात्मक रेल बजट है. रेलमंत्री ने बंगाल के लिए विभिन्न रेल परियोजनाओं की घोषणा की है, जिनके बारे में पहले से ही लोगों को पूरी उम्मीद थी. रेलमंत्री ने ढांचागत विकास और संरचनात्मक निर्माण को आगे बढ़ाने का भरपूर प्रयास किया है और इसका पूरा आश्वासन अपने बजट में दिया है. उन्होंने कहा कि परंतु मेरा मानना है कि ममता को अपने ये आश्वासन पूरा करने के लिए उनके पूर्ववर्ती लालू प्रसाद यादव अवश्य सरप्लस फंड उनके लिए छोड़ गये होंगे, क्योंकि बिना पर्याप्त सरप्लस के, और वह भी बिना माल एवं यात्री किराए बढ़ाए, यह तमाम प्रोजेक्ट पूरा कर पाना शायद संभव नहीं हो पायेगा.
No comments:
Post a Comment