Saturday 8 August, 2009

चेयरमैन/आरसीटी मानने को तैयार नहीं रेलवे बोर्ड का आदेश

एमजे/आरसीटी को हो रहा है ज्यादा वेतन भुगतान,
ईडीपीजी द्वारा लिखने के बाद भी नहीं हो रही कटौती,
रेलवे को हो सकता है करोड़ों का नुकसान

विजय शंकर, गोरखपुर
गोरखपुर : जजों को मिले संवैधानिक संरक्षण और असीमित अधिकार अथवा उनके नूसेंस पॉवर को ध्यान में रखते हुए कोई भी सरकारी अधिकारी या सामान्य नागरिक बहुत सोच-समझकर ही उनसे संबंधित कोई बात कहने का साहस कर पाता है. तथापि कानून से ऊपर तो कोई भी नहीं हो सकता. यह तथ्यात्मक संवैधानिक सत्य है. परंतु भारतीय रेल के 19 रेल दावा अधिकरणों (आरसीटी और एक रेलवे रेट ट्रिब्यूनल (आरआरटी) कुल 20 रेल अधिकरणों के मेंबर जूडीशियल द्वारा रेलवे बोर्ड द्वारा जारी दिशा-निर्देश और गजट नोटिफिकेशन के बावजूद मनमानी ढंग से प्रतिमाह 30-35 हजार रु. का ज्यादा वेतन भुगतान लिया जा रहा है, मगर रेलवे बोर्ड एवं संबंधित ईडीपीजी इसके खिलाफ चुप्पी साधे बैठे हैं.
उल्लेखनीय है कि ईडीपीजी/रे.बो. के दि. 24.11.2008 को रजिस्ट्रार/आरसीटी, दिल्ली को लिखे गए पत्र क्र. 2008/टीसी/आरसीटी/1-4 के अनुसार 6वें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप आरसीटी के चेयरमैन, वाइस चेयरमैन और मेंबर्स के वेतनमान भी पुनर्निर्धारत कर दिए गए थे और तदनुरूप उनके द्वारा ली जा रही पेंशन अथवा संभावित पेंशन को उनके वेतन से काट लिए जाने का निर्देश भी इसी पत्र में दिया गया था. इसके अलावा ईडीपीजी ने इस पत्र के साथ रे.बो. द्वारा प्रकाशित गजट नोटिफिकेशन (जीएसआर नं. 797 (ई) दि. 18.11.2008) की प्रति भी संलग्न करके भेजी थी. इस पत्र की प्रतियां एडीएआई/रेलवेज, सभी जोनल रेलों के जीएम/पर्सनल और एफएएंडसीएओ, डीओपीटी, प्रिंसिपल/आरएससी, लोकसभा/राज्यसभा सेक्रेटिएट एवं डीएलए/कानून मंत्रालय को भी प्रेषित की गई थीं.
परंतु आश्चर्य की बात यह है कि न तो उपरोक्त पत्र को लिखने वाले ईडीपीजी ने और न ही उपरोक्त में से किसी अन्य अधिकारी या विभाग ने बाद में यह जानने की कोशिश की कि आरसीटी में उनके उपरोक्त आदेश लागू हुए भी हैं या नहीं. विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार ईडीपीजी का उक्त पत्र और गजट नोटिफिकेशन मिलने के बाद आरसीटी, प्रिंसिपल बेंच, नई दिल्ली के एफए एंड सीओए ने इस संबंध में एक नोट बनाकर चेयरमैन/आरसीटी को प्रस्तुत किया था. परंतु सूत्रों का कहना है कि चूंकि चेयरमैन भी मेंबर जूडिशियल (एमजे) हैं, इसलिए उन्होंने एफए एंड सीएओ के उक्त नोट को यह कहते हुए वापस कर दिया कि 'इसकी कोई जरूरत नहीं है. चूंकि जूडीशियरी स्टफ का वेतन संबंधी मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, उसका निणय आने के बाद ही इस पर कोई अमल किया जाएगा.'
ज्ञातव्य है कि आरसीटी में मेंबर जूडीशियल (एम-जे) और मेंबर टेक्निकल (एम-टी) दोनों का वेतनमान समान है. एम.जे. जूडिशियरी से अपनी सेवानिवृत्ति से पहले वीआरएस लेकर आरसीटी में आते हैं. ठीक इसी तरह एम-टी भी रेलवे से आरसीटी में जाते हैं. चूंकि एम-टी रेलवे से होते हैं इसलिए उनके वर्तमान वेतन से उनकी पेंशन राशि 6वें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार निधाररण के अनुरूप काट ली जा रही है परंतु एम-जे की पेंशन पांचवें वेतन आयोग के अनुरूप यानी पुरानी दर से ही कट रही है और चेयरमैन/आरसीटी रेलवे बोर्ड के आदेश एवं गजट नोटिफिकेशन को मान नहीं रहे हैं. परिणामस्वरूप प्रिंसिपल चेयरमैन एवं एम-जे सहित सभी 19 एम-जे को प्रतिमाह 30 से 35 हजार रु. का ज्यादा वेतन भुगतान हो रहा है. प्राप्त जानकारी के अनुसार जहां एम-जे की पेंशन मात्र 12157 रु. काटी जा रही है, वहीं एम-टी की पेंशन 37625 रु. कट रही है, जबकि दोनों समान ग्रेड 75500 में हैं और दोनों को समान अधिकार प्राप्त हैं.
हालांकि ईडीपीजी/रे.बो. द्वारा भेजे गए पत्र के बाद एडीशनल रजिस्ट्रार, प्रिंसिपल बेंच, नई दिल्ली ने अपने कवरिंग लेटर दि. 25.11.2008 (संदर्भ क्र. आरसीटी/डीएलआई/6सीपीसी/मेंबर्स) सभी बेंचों के एडीशनल रजिस्ट्रार को भेजनकर उनसे इन पर आवश्यक कदम उठाने के लिए कहा था. परंतु जब प्रिंसिपल बेंच के चेयरमैन ने ही रे.बो. को भेजे जाने वाले एफए एंड सीएओ के तत्संबंधी नोट को टर्नडाउन कर दिया, तब बाकी से इस पर कोई कदम उठाने की अपेक्षा कैसे की जा सकती है? आरसीटी सूत्रों का कहना है कि चेयरमैन को यह आशंका थी कि यदि उक्त नोट रेलवे बोर्ड को चला गया तो या तो वहां से कोई नीतिगत निर्देश जारी कर दिया जाएगा, तब उन्हें वह निर्देश मानने के लिए बाध्य होना पड़ेगा. इसलिए उन्होंने न सिर्फ उक्त नोट को ही दबा देना उचित समझा बल्कि इसके लिए एफए एंड सीएओ को झिड़की भी दे डाली थी.
जबकि दि. 24.11.2008 के ईडीपीजी के पत्र और गजट नोटिफिकेशन में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि आरसीटी के चेयरमैन/वाइस चेयरमैन/मेंबर्स की उनके पैरेंट डिपार्टमेंट द्वारा निर्धारित की गई और ली जा रही अथवा संभावित पेंशन को उनके वेतन से काट लिया जाए. (देखें रे.बो./ईडीजीपी का पत्र और गजट नोटिफिकेशन) इसे भी चेयरमैन/आरसीटी मानने के लिए बाध्य हैं. परंतु सूत्रों का कहना है कि अपनी मनमानी अथवा जूडिशियल रुतबे या नूसेंस पावर के चलते उन्होंने अब तक इसे नहीं माना है अथवा लागू नहीं होने दिया है.
सूत्रों का कहना है कि चेयरमैन (एम.जे.) का कहना है कि 'चूंकि जूडिशियरी में 6वें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू नहीं हुई हैं और उनका वेतन संबंधी मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, इसलिए वह 6वें वेतन आयोग के अनुरूप रिवाइज पेंशन नहीं कटवायेंगे. जब मामले का अंतिम निपटारा होगा और तब जो स्थितियां होंगी, तदनुरूप कदम उठाया जाएगा.Ó परंतु यहां सवाल यह उठता है कि यदि एम.जे. तदनुरूप पेंशन नहीं कटवायेंगे तो फिर वे 6वें वेतन आयोग के अनुरूप वेतन क्यों ले रहे हैं? इसके अलावा ईडीपीजी के पत्र एवं गजट नोटिफिकेशन में भी यह कहा गया है कि 6वें वेतन आयोग के अनुरूप जो रिवाइज पेंशन बनती है, उसके समकक्ष संभावित राशि की कटौती की जानी चाहिए. इसका मतलब यह है कि यदि कम कटौती होगी तो एम-जे से रिकवर होगी और ज्यादा होगी तो उन्हें इसकी भरपाई की जाएगी. परंतु सूत्रों का कहना है कि माननीय पूर्व जजों को यह मंजूर नहीं है, जबकि वास्तव में इसे उनकी मनमानी कहा जा रहा है.
हालांकि सूत्रों ने यह भी बताया कि एम-जे (चेयरमैन) का कहना है कि उन लोगों ने जो ज्यादा वेतन भुगतान लिया है, उसे वे 6वें वेतन आयोग के मिलने वाले बकाया 60 प्र.श. एरियर्स से कटवा देंगे. परंतु सच्चाई यह है कि अब तक उन्होंने (एम-जे) वर्तमान वेेतनमान के हिसाब से 1.1.2006 से जो एरियर पहले लिया है और 6वां वेतन आयोग लागू होने के बाद से वह बीसों लाख का जो अतिरिक्त वेतन ले चुके हैं, उस तमाम राशि की रिकवरी बकाया 60 प्र.श. एरियर्स में मिलने वाली राशि से नहीं हो पाएगी. तब क्या सरकार उनकी बुढ़ापे की लाठी (पेंशन) छीनकर अपनी रिकवरी करेगी? इस संबंध में 'रेलवे समाचार' द्वारा फाइनेंस कमिश्नर/रेलवेज और ईडीपीजी/रे.बो. से संपर्क करके उनकी प्रतिक्रिया लिए जाने के तमाम प्रयास विफल रहे.

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