Saturday, 8 August 2009

ममतामयी रेल बजट
ममता ने लालू के 'सरप्लस' गुब्बारे में चुभा दी पिन
रेलमंत्री ममता बनर्जी का रेल बजट भले ही 'बंगाल उन्मुख बजट' हो मगर इसमें समाज के छोटे से छोटे तबके का ख्याल रखने की कोशिश की गई है. साथ ही बिहार को थोड़ा-सा झटका देने के अलावा देश के लगभग हर कोने को भी इस बजट में छूने का प्रयास किया गया है. इसके अलावा पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव के 'सरप्लस' गुब्बारे में पिन चुभा दी गई है. 'तत्काल' बुकिंग को 5 दिन से कम करके 2 दिन और गंतव्य आधारित किराया तथा 150 रु. से घटाकर 100 रु. प्रीमियम करने, 14 नॉन-स्टाप ट्रेनें, डबल डेकर ऐसी कोच, मान्यताप्राप्त पत्रकारों को किराये में 50 प्रतिशत छूट सहित साल में एक बार इस छूट पर अपनी पत्नी को भी ले जाने की बढ़ी हुई सुविधा, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई में महिला विशेष उपनगरीय गाडिय़ां, डाकघरों एवं मोबाइल वैनों से रेल टिकट जारी करने, क्षेत्रीय जनता खाना, 1500 रु. मासिक आय वाले समाज के कमजोर तबकों को 100 कि.मी. तक की यात्रा के लिए मात्र 25 रु. में मासिक रेल पास, कम किराये वाली सिर्फ बैठने की सुविधा के साथ युवा ट्रेनें, जो मुख्य शहरों के बीच चलेंगी और युवा आबादी में लोकप्रिय होंगी, 50 विश्व स्तरीय स्टेशन और 375 मॅडल स्टेशन बनाए जाने की घोषणा, कई नई लाइनों सर्वेक्षणों और गेज कन्वर्जन योजनाओं की घोषणा से उद्योगों को प्रोत्साहन यानी आम जनता को ममता ने बहुत कुछ दिया है. परंतु यह सब लंबे समय की भावी प्रगति के बल पर तात्कालिक लोकप्रियता पाने का प्रयास कहा जा सकता है. परंतु इसमें भारतीय रेल को शायद कुछ नहीं मिल पाया है.

तत्काल बुकिंग में आम आदमी को थोड़ी तत्काल राहत मिल सकती है. इसका प्रीमियम घटाने का लाभ भी उसे मिलेगा. मगर 14 नॉन स्टाप गाडिय़ां, युवा गाडिय़ां, डबल डेकर एसी कोचों वाली गाडिय़ां और विश्व स्तरीय एवं मॉडल स्टेशन, काचरापाड़ा में प्रस्तावित नई फैक्टरी, बजट में घोषित नई रेल परियोजनाएं आदि दीर्घावधि की योजनाएं हैं. इन्हें मूर्त रूप देने में समय लगेगा. हां कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई में उपनगरीय महिला विशेष गाडिय़ां भी जल्दी चलाई जा सकती है क्योंकि इसके लिए वहां सिर्फ किसी एक लोकल ट्रेन में 'महिला विशेष' का स्टीकर ही लगाना होगा. मगर 14 नॉन स्टाप ट्रेनों की प्लानिंग, कोचिंग, पाथ, समय, मेंटीनेंस आदि की व्यवस्था करके इन्हें तुरंत शुरू कर पाना थोड़ा मुश्किल होगा. हालांकि नान स्टाप ट्रेनों की अपेक्षा युवा ट्रेनें चलाना काफी सरल होगा. क्योंकि अनारक्षित ट्रेनों के रूप में पीक सीजन के दौरान इनके ट्रायल/परीक्षण हो चुके हैं और युवा जनता के लिए ये जनता ट्रेनें 'नई बोतल में पुरानी शराब' की तर्ज पर रेलवे के चालाक बाबुओं ने 'आम आदमी' के सामने परोस दी हैं.

कुछ डाकघरों से रेल टिकट बेचने की व्यवस्था पहले से ही कार्यरत है. हां इनका विस्तार हो सकता है. इस विस्तार में मोबाइल वैनों से घूम-घूमकर रेल टिकट बेचना भी शामिल है. यह एकदम बचकाना आइडिया रेलवे के बाबुओं का ही हो सकता है. मंत्री को यह समझना चाहिए कि जब रेलवे में कन्फर्म सीटों की मांग में और उपलब्धता में जमीन-आसमान का अंतर है, वहां सिर्फ टिकट देने की सुविधा बढ़ा देने भर से क्या होने वाला है? इससे गाडिय़ों की प्रतीक्षा सूची और प्लेटफार्मों पर भीड़ बढ़ाने के अलावा और क्या हासिल होगा? डाकघरों में रेल टिकट बेचने की व्यवस्था से तो रेलवे डाक कर्मियों की रोजी और डाकघरों को बचाने में डाक विभाग की मदद कर रहा है जो कि मोबाइल, इंटरनेट, ईमेल और कूरियर क्रांति के चलते लगभग वीरान होते जा रहे हैं. मगर मोबाइल वैन से टिकट बेचना तो निहायत बचकाना विचार है क्योंकि जहां बुकिंग कार्यालयों में रेलवे के पास पर्याप्त बुकिंग क्लर्क नहीं हैं, वहां इन मोबाइल वैनों के लिए स्टाफ की अतिरिक्त व्यवस्था रेलवे कहां से करेगा? इसका मतलब यह है कि अनारक्षित टिकटिंग को जिस तरह निजी क्षेत्रों को दिया गया है और दिया जा रहा है, उसी तरह इन मोबाइल वैनों के लिए भी निजी क्षेत्रों को बुलाया जाएगा.

डबल डेकर एसी कोच वाली गाडिय़ां चलाने का विचार नया और अच्छा है परंतु एक तो इन कोचों के निर्माण और सप्लाई में समय लगेगा क्योंकि देश में पहले से स्थापित वैगन/कोच निर्माण इकाइयों के पास अभी ऐसे कोच निर्माण का ढांचा मौजूद नहीं है. निजी क्षेत्र की वैगन निर्माण कंपनियों को भी इसमें कुछ साल का समय लग जाएगा. तो डबल डेकर एसी कोचों वाली ट्रेनें दौडऩे में अभी काफी वक्त लग सकता है. इसके अलावा यह डबल डेकर ट्रेनें फिलहाल उन क्षेत्रों में ही चल पाएंगी, जो विद्युतीकृत नहीं हैं अथवा ओएचई को ऊपर उठाना पड़ेगा जो कि अत्यंत खर्चीला और फिलहाल नामुमकिन है. यही नहीं गैर विद्युतीकृत क्षेत्र में भी सुरंगों और पुराने जर्जर रेल पुलों की समस्या भी इस डबल डेकर योजना के आड़े आने वाली है और कोच की ऊंचाई बढ़ाए बिना वर्तमान स्टैंडर्ड कोच की ऊंचाई में ही डबल डेकर कोच बना पाना शायद मुमकिन नहीं हो पाएगा. इस बारे में भा.रे. के होशियार बाबू लोग आगे क्या करते हैं, यह तो समय आने पर ही पता चलेगा.

अच्छा हुआ कि ममता जी ने गरीब आदमी की न्यूनतम 'इज्जत' 1500 रु. आंकी है जबकि पदभार संभालते ही उन्होंने शुरुआत में 500 रु. मासिक आमदनी वाले लोगों को 20 रु. मासिक रेल पास दिए जाने की घोषणा की थी. अब 1500 रु. मासिक आय वालों को 100 कि.मी. तक की यात्रा के लिए मात्र 25 रु. में यह पास बिना किसी अन्य अधिभार के दिए जाने की बजट में घोषणा करके ममता जी ने समाज के निचले तबके की 'इज्जत' रख ली है. इससे यह तबका शहरों में ही रहने का आशियाना तलाशने के बजाय दिन भर अपना काम करके अपने मूल निवासों को वापस जा सकेगा. इससे बड़े शहरों की आबादी के संतुलन में भी निश्चित रूप से प्रभाव पड़ेगा. बल्कि 'रेलवे समाचार' का तो यह सुझाव है कि वे अपने अगले बजट में इस सुविधा का 1500 से 5000 रु. प्रतिमाह कमाने वाले तबके तक विस्तार करें और इसकी दूरी 100 कि.मी. से दो-ढ़ाई सौ कि.मी. तक बढ़ाएं तथा इस पास की कीमत यदि 25, 50, 75 और 100 रु. मासिक की श्रेणी में बांट दें तो इससे न सिर्फ शहरों की बढ़ती आबादी को संतुलित करने में मदद मिलेगी बल्कि समाज के इस तबके को शहरों में अपना आशियाना बनाने की सोचने से भी निजात मिल जाएगी. अब आती है बात 1500 रु. मासिक आय के प्रमाणीकरण की, तो इसमें भारी भ्रष्टाचार की भी संभावना है और इसके चलते इस सुविधा का इसके वास्तविक हकदारों तक न पहुंच पाने की संभावना है. जिस तरह सरकार के 100 रु. में से मात्र 10 रु. ही वास्तविक जरूरतमंद तबके तक पहुंच पाते हैं और जिस तरह आरक्षण का लाभ आज तक वास्तविक तबके तक नहीं पहुंच पाया है और इसका फायदा इसके द्वारा मजबूत से मजबूत होते गए तबके तक ही सीमित होकर रह गया है. वैसे में इस योजना का फायदा इसके वास्तविक हकदारों तक पहुंचे, इसका ध्यान रखना भी व्यवस्था की जिम्मेदारी है.

अब रही बात मान्यताप्राप्त पत्रकारों को रेल किराये में 50 प्रतिशत की छूट देने की, तो यह एकदम गैर जरूरी है. क्योंकि कोई भी मान्यताप्राप्त पत्रकार न तो गरीब है और न ही अंधा-लूला-लंगड़ा अथवा मूक-बधिर है. बल्कि इन्हें आज ऊंचे दर्जे की सुविधाएं और मोटी तनख्वाहें मिल रही हैं. इसके अलावा समाज एवं व्यवस्था के अन्य क्षेत्रों की तरह इस क्षेत्र में भी भ्रष्टाचार और प्रशासनिक एवं राजनीतिक दलाली के गुण-दोष पर्याप्त मात्रा में आ गये हैं. इस क्षेत्र और अब इस सुविधा का विस्तार उनकी पत्नियों तक भी कर दिया गया है. यदि पत्रकारों को सरकार ऐसी कोई सुविधा देकर अपनी अनावश्यक आलोचना से बचना चाहती है और उसके लिए यह प्रलोभन है तो ठीक है, वरना उसे बड़े मीडिया हाउसों के पत्रकारों के बजाए क्षेत्रीय एवं भाषाई अखबारों के लगभग सभी सरकारी सुविधाओं से वंचित पत्रकारों को यह सुविधा देनी चाहिए. क्योंकि बड़े मीडिया हाउसों अथवा बड़े और राष्ट्रीय अखबारों के पत्रकारों को आने-जाने सहित अन्य सभी प्रकार के खर्चों का वहन उनके मीडिया समूहों द्वारा किया जाता है. ऊपर से उन्हें अतिरिक्त सरकारी सुविधाएं दिए जाने की कोई तुक नहीं है. इसके अलावा पत्रकारों को मान्यता प्रदान करने की सरकारी प्रक्रिया में भी बदलाव करना होगा. क्योंकि यह मान्यता स्थापित बड़े मीडिया समूहों और राष्ट्रीय अखबारों के पत्रकारों तक ही लगभग सीमित रहती है अथवा सरकार के पक्षधर या सरकारी भाटगीरी रने वालों को ही आसानी मिलती है, जबकि क्षेत्रीय एवं छोटे भाषाई अखबारों के पत्रकारों को यह मान्यता देने में राज्य सरकारों द्वारा गठित तत्संबंधी समितियां न सिर्फ आनाकानी करती हैं बल्कि उन्हें मान्यता देने में भेदभाव और अड़चनें पैदा की जाती हैं.
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ममता की तारीफ-ए-काबिल पहल

नयी दिल्ली : रेलवे भर्तियों में क्षेत्रीय/स्थानीय लोगों को 50 प्र.श. कोटा देने की घोषणा करके ममता बनर्जी ने एक साहसिक और तारीफ-ए-काबिल पहल की है. पिछले काफी समय से रेलवे भर्ती बोर्डों (आरआरबी) की परीक्षाओं में जगह-जगह विवाद और मारपीट की घटनाएं हुई हैं. महाराष्ट्र, उड़ीसा, कर्नाटक, आसाम, बिहार, प. बंगाल, राजस्थान आदि राज्यों में बाहरी परीक्षार्थियों-उम्मीदवारों के साथ बड़े पैमाने पर मारपीट की घटनाएं हुईं और इन घटनाओं का इस्तेमाल क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों द्वारा राजनीतिक लाभ उठाने में किया गया है. परंतु अब ममता बनर्जी की इस नायाब पहल से स्थानीय स्तर पर पनपने वाले सामाजिक असंतोष का पर्याप्त समाधान हो जाएगा. इसके अलावा इस प्रकार आबादी या कर्मचारियों को भी दूर-दराज जाकर नये सिरे से स्थापित होने से निजात मिलेगी तथा स्थानीय रहकर वे अपने परिवारों की भी देखभाल कर सकेंगे. हालांकि इसके अपने खतरे हैं, सो अलग.

रेल मंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि रेलवे की भर्तियों में स्थानीय लोगों के लिए 50 प्रतिशत कोटा रखा जाएगा. उन्होंने आरआरबी की कार्यप्रणाली और कामकाज के तौरतरीकों की समीक्षा किए जाने की भी घोषणा की है. लोकसभा में रेल बजट में दो दिन चली चर्चा का जवाब देते हुए रेलमंत्री ने यह घोषणाएं की हैं. उन्होंने रेलवे की खानपान व्यवस्था की आउटसोर्सिंग को भी समाप्त किए जाने की घोषणा की है. रेल मंत्री ने सांसदों की मांग पर अपने बजट प्रस्तावों में कुछ संशोधन करते हुए विश्वस्तरीय एवं आदर्श स्टेशनों, बहुउद्देश्यीय परिसरों वाले स्टेशनों तथा दुरंतो ट्रेनों की सूची में नये स्टेशन एवं ट्रेनें भी जोड़ी हैं. अब उन्होंने दुरंतो ट्रेनों की संख्या 12 से बढ़ाकर 14 कर दी है. अब दिल्ली-सिकंदराबाद और दिल्ली-नागपुर के लिए भी नॉन स्टाप दुरंतो ट्रेनें चलाई जाएंगी. रेलमंत्री ने कम से कम दो ऐसी ट्रेनें महीने भर के अंदर शुरू कर दिए जाने की बात भी कही है.

इसके साथ ही रेल मंत्री ने इंडियन पुलिस पदक पाने वालों, कलाकारों, चित्रकारों एवं सांस्कृतिक क्षेत्र के लोगों को भी यात्री किराये एवं राजधानी शताब्दी ट्रेनों में यात्रा के लिए 50 प्रतिशत छूट दिए जाने की घोषणा की है. संसद के दोनों सदनों में चली बहस का अलग-अलग जवाब देते हुए रेलमंत्री ने रेलवे की भावी कारोबारी योजना तैयार करने के लिए फिक्की के महासचिव श्री अमित मित्रा की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति गठित करने की भी घोषणा की है.

रेलमंत्री ममता बनर्जी ने स्थानीय लोगों की भावनाओं और आरआरबी परीक्षाओं में अक्सर होने वाले उपद्रवों को ध्यान में रखते हुए रेलवे भर्ती में स्थानीय लोगों को 50 प्रतिशत प्रतिनिधित्व दिए जाने की पुरजोर वकालत की है. ज्ञातव्य है कि हाल ही में कर्नाटक के बंगलोर एवं मैसूर में आरआरबी की परीक्षाओं के दौरान मारपीट की गई थी और बाहरी राज्यों से आये उम्मीदवारों का विरोध किया गया था. इससे पहले महाराष्ट्र, असम और राजस्थान में भी इस पर काफी हंगामा हो चुका है. जहां तमाम उम्मीदवारों की पिटाई की गई थी और इस विवाद ने राजनीतिक स्वरूप अख्तियार कर लिया था. इसे ही ध्यान में रखते हुए रेलमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि वैसे तो किसी भी अखिल भारतीय सेवा में स्थानीय कोटा का कोई प्रावधान नहीं है. देश भर में स्थित आरआरबी अपने दायरे में आने वाली रेलों के लिए परीक्षाएं आयोजित करते हैं, परंतु जब बाहरी उम्मीदवार परीक्षा देने पहुंचते हैं तो स्थानीय लोग हंगामा करते हैं. इसके नतीजे काफी खराब रहे हैं और स्थानीय नेता इसका राजनीतिक फायदा उठाते हैं.

उन्होंने कहा कि इसके निराकरण का यही उपाय हो सकता है कि या तो आरआरबी की परीक्षाएं एक खास दायरे में आयोजित करना बंद किया जाए और दूसरी अखिल भारतीय सेवाओं की तरह इनके परीक्षा केंद्र देश भर में हों अथवा इसका सबसे बेहतर तरीका यह हो सकता है कि रेलवे भर्तियों में स्थानीय लोगों को 50 प्र.श. कोटा दे दिया जाए. उन्होंने कहा कि इसीलिए हमने कोटा दिए जाने के उपाय को ज्यादा व्यावहारिक पाया है क्योंकि इससे रेल सेवाओं में प्रांतीय पक्षपात किए जाने का स्थानीय विवाद हमेशा के लिए खत्म हो सकता है.

पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव के 90 हजार करोड़ रु. के सरप्लस पर सांसदों द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देते हुए रेल मंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि रेलवे के तमाम खर्चों और लाभांश का आवंटन करने के बाद उनके पास कुल 8360 करोड़ रु. ही बचे हैं. भाजपा सांसद अनंत कुमार के इस अनुरोध पर कि रेलवे के पिछले पांच वर्षों के कार्यकाल पर श्वेतपत्र को संसद के शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन सदन में पेश किया जाए, ममता बनर्जी ने कहा कि श्वेत पत्र वह जल्दी से जल्दी पेश करने की कोशिश करेंगी.

उल्लेखनीय है कि 'रेलवे समाचार' ने लालू यादव के भारतीय रेल के तथाकथित टर्न एराउंड एवं लाभ (सरप्लस) के आंकड़ों को हर बार दिग्भ्रमित करने और बढ़ा-चढ़ाकर बताये जाने के बारे में लगातार आवाज उठाई थी. अब ममता बनर्जी के रेल बजट ने उसकी पोल खोल दी है तथा बाकी रही-सही कसर श्वेत पत्र में खुल जाएगी. ज्ञातव्य है कि श्वेत पत्र लाए जाने की बात पर लालू यादव बुरी तरह से हड़बड़ाए हुए हैं और लगातार अपनी सफाई में बयान जारी कर रहे हैं.

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