Thursday 18 February, 2010

..रे. एकाउंट्स में 'सीटों' का खेल
उमेश शर्मा
इलाहाबाद : ..रे. एकाउंट्स विभाग में लेखा सहायकों के बीच 'सीटों' का खेल जारी है. ज्ञातव्य है कि यहां एक्सपेंडिचर सेक्शन की 7 सीटों के हिसाब से प्रत्येक सीट का कार्य पूर्व निर्धारित है, तथापि कमाई वाली सीटों पर और कमाई वाले कार्यों को सेक्शन इंचार्ज द्वारा अपने हिसाब से इधर-उधर स्थानांतरित करने की मनमानी है. इसमें अफसरों का भी उन्हें सहयोग प्राप्त होता है क्योंकि प्रतिदिन की अवैध उगाही में उनका भी बराबर का हिस्सा होता है. एक्सपेंडिचर सेक्शन की यह रिवाइज ड्यूटी लिस्ट और प्रत्येक सीट के निर्धारित कार्यों के विवरण की एक प्रति 'रेलवे समाचार' के पास सुरक्षित है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार सीट नं. 1 में शशिभूषण हैं, जो .रे. पीएफ सेक्शन से यहां इसी सेक्शन में आये थे. सीट नं. 2 पर मो. नसीम 1997 में .रे. से यहां गजटेड स्टैब्लिशमेंट में, सीट नं. 3 पर मोहन कुमार मुंबई से यहां नॉन गजटेड स्टैब्लिशमेंट में, सीट नं. 4 पर बी. के. त्रिपाठी .रे. पीएफ सेक्शन से, सीट नं. 5 पर राजेश कुमार .रे. झांसी से यहां पेंशन सेक्शन में, सीट नं. 6 पर भोरेलाल .रे. से यहां डिस्पैच सेक्शन में और सीट नं 7 पर सुजीत उपाध्याय मुंबई से यहां एकाउंट्स स्टैब्लिशमेंट में आये थे. इस सेक्शन में अब एनईआर से आये . के. लाल और आर. के. पाल सेक्शन ऑफिसर की पोस्टों पर विराजमान हैं.

इसके अलावा एनईआर में टीआईए की अपनी सीनियरिटी गंवाकर एनसीआर में आये श्री पाल को यहां मात्र 10 दिन के अंदर एसओ में प्रमोट करके उनकी स्टोर फाइनेंस सेक्शन में पोस्टिंग कर दी गई थी, जो कि एक सेंसिटिव पोस्ट है. कुछ ही समय बाद श्री पाल को एक्सपेंडिचर सेक्शन में ले आया गया, यहां वे प्रशासनिक कार्य देखते हैं. सूत्रों का कहना है कि यह अनाधिकार लेखा सहायकों की पूर्व निर्धारित ड्यूटी लिस्ट भी रिवाइज कर देते हैं, जबकि
सीट नं. के हिसाब से पूर्व निर्धारित कामकाज की ड्यूटी लिस्ट पहले से तय है. यह सभी अत्यंत सेंसिटिव पोस्टें (सीटें) हैं और ड्यूटी लिस्ट रिवाइज करना प्रशासनिक तौर पर पॉलिसी मैटर है. स्टाफ का सवाल यह है कि जो पॉलिसी प्रशासन द्वारा पूर्व निर्धारित है क्या उसे रिवाइज करने अथवा उसमें फेरबदल करने का अधिकार किसी एसओ अथवा श्री पाल को है?

विभागीय सूत्रों का कहना है कि सीट नं. के हिसाब से पूर्व निर्धारित कार्यों को अक्सर दूसरी सीटों अथवा फेवरिट लोगों को स्थानांतिरत किया जाता है और ऐसा भी नहीं है कि यह कार्य कभी-कभी और अपरिहार्य कारणों से किया जाता है बल्कि ज्यादा लालच के चलते फेवरिट लोगों को 'प्रीक्वेंटली' किया जाता है. विभागीय सूत्रों का कहना है कि यदि किसी संबंधित सीट का लेखा सहायक उक्त कार्य को करने में सक्षम नहीं है तो नियमानुसार उसे ही उक्त सीट से हटाए जाने का प्रावधान है. उसको सीट पर बनाए रखकर और उसके कार्य को छीनकर अन्य सीट पर स्थानांतरित करने का तो कोई प्रावधान है और ही कोई परंपरा रही है. सूत्रों का कहना है कि वास्तविकता यह है कि ज्यादा फायदे वाले कार्य यानी जिनमें ज्यादा पैसा मिलता है, एसओ द्वारा अपने चहेते (फेवरिट) लेखा सहायक को अनावश्यक रूप से फ्रीक्वेंटली ट्रांसफर किये जाते रहते हैं, जिससे उसका हिस्सा उसे बराबर मिलता रहे.

सूत्रों के अनुसार सीट नं. 6 को छोड़कर बाकी सभी सीटों पर एक-एक विज्ञापन एजेंसी की बिलिंग है. सूत्रों ने बताया कि प्रत्येक विज्ञापन एजेंसी द्वारा ले.. (डीलिंग क्लर्क) को उसकी कुल बिलिंग पर 0.3 प्र.. कमीशन (रिश्वत) दिया जाता है, जबकि इतना ही कमीशन उनसे पीआरओ सेक्शन को भी मिलता है. सूत्रों ने बताया कि इस 0.3 प्र.. राशि में से 60 प्र.. राशि संबंधित सीट के डीलिंग क्लर्क की होती है और 20 प्र.. राशि संबंधित अधिकारी के नाम पर एसओ लेता है तथा बाकी 20 प्र.. राशि एएफए या सीनियर एएफए को जाती है.

इसी प्रकार सूत्रों ने बताया कि कांट्रैक्टर बिलों पर डीलिंग क्लर्कों को 1 प्र.. से 3 प्र.. कमीशन प्राप्त होता है. इसमें भी पैसे का बंटवारा उपरोक्त प्रतिशत के आधार पर ही होता है. जबकि इसके अलावा भी संबंधित अधिकारियों द्वारा सीधे कांट्रैक्टरों से जो डीलिंग की जाती है, वह अलग होती है. इसी तरह छोटे-मोटे बिलों जैसे धुलाई अथवा अन्य छुटपुट खर्चे आदि जो कि 500-1000 रु. के बीच होते हैं, उनमें यदि कोई कागजी खानापूरी अधूरी है, तो भी, और यदि सब कुछ ठीक-ठाक है, तो भी, न्यूनतम 100 रु. उसमें डीलिंग क्लर्क ले ही लेता है. इसमें से 50 रु. लेखा सहायक यानी संबंधित डीलिंग क्लर्क अपने पास रखकर बाकी 50 रु. एसओ को देता है. सूत्रों का कहना है कि इस 50 रु. में एसओ द्वारा ऊपर कितना देना है, या नहीं देना है, यह उसकी मर्जी पर निर्भर होता है.

सूत्रों का कहना है कि भाड़े पर ली जाने वाली छोटी गाडिय़ों के 10 से 15 हजार रु. के ट्रैवेलिंग बिलों पर 200 रु. और बड़ी गाडिय़ों (बसों) से 500 रु. प्रति वाहन संबंधित डीलिंग क्लर्क द्वारा वसूल किये जाते हैं. जबकि रेडियो के विज्ञापन बिलों पर 500 रु. फिक्स हैं. इसी प्रकार सूत्रों ने बताया कि बड़ी कंपनियों/सप्लायरों जैसे मे. इंडियन ह्यूम पाइप कं. लि., जो कि सीट नं. 4 पर निर्धारित है, की बिलिंग पर डीलिंग क्लर्क (ले..) को 1000 रु., एसओ को 2000 रु. और संबंधित अधिकारी को 5000 रु. से ऊपर का भुगतान होता है. सूत्रों का कहना है कि यह राशि मासिक रूप से तय होती है, जिससे पूरे महीने उनके बिलों की निकासी में कोई भी अड़चन नहीं आती है.

सूत्रों का कहना है कि इस सबके अतिरिक्त सिक्योरिटी डिपाजिट रिलीज करने के लिए उसकी राशि के हिसाब से कमीशन की राशि तत्काल तय की जाती है. सूत्रों ने बताया कि बाकी सभी प्रकार के कांट्रैक्टर बिलों पर उनकी भुगतान या चेक राशि के हिसाब से 1 से 3 प्रतिशत कमीशन लिया जाना निश्चित है. सूत्रों का कहना है कि जो लोग (कांट्रैक्टर/सप्लायर अथवा एजेेंंसी वाले) यह 'पर्सेंटेज' नहीं देते हैं, या नहीं देना चाहते हैं, उनके बिलों से कुछ कागज निकाल कर गायब कर दिए जाते हैं, ऐसा ही एक उदाहरण बताते हुए सूत्रों ने कहा कि सीट नं. 4 पर कुछ समय पहले संबंधित डीलिंग क्लर्क ने एक पार्टी का पे आर्डर ही गायब कर दिया था. जब इसकी शिकायत हुई और काफी विभागीय दबाव पड़ा तब नया पे आर्डर बनाया गया. परंतु जब संबंधित पार्टी निर्धारित तिथि को यह पे आर्डर लेने नहीं पहुंची तो उसका सीओ-7 भी गायब कर दिया गया. बाद में पुराना सीओ-7 रद्द करके उसका नया पे आर्डर बनाया गया परंतु संबंधित डीलिंग क्लर्क के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई.

अब ताजा स्थिति के अनुसार सीट नं. 4 पर बी. के. त्रिपाठी की जगह अमरनाथ आए हैं, जो कि एनईआर से आये थे और स्टोर फाइनेंस सेक्शन में थे. सूत्रों का कहना है कि एसओ आर. के. पाल एवं अमरनाथ के बीच यह मामला फिलहाल विचाराधीन है कि यह सेंसिटिव पोस्टें हैं या नहीं. हालांकि सूत्रों का कहना है कि स्थानीय प्रशासन स्टोर फाइनेंस सेक्शन को सेंसिटिव पोस्टिंग नहीं मानता है. इसी प्रकार सीट नं. 5 पर राजेश कुमार की जगह यहां .रे. से आये और सस्पेंस सेक्शन में कार्यरत रहे मुस्तकीम हाशमी और सीट नं. 6 पर भोरेलाल की जगह .रे. से आये और कारखाना समन्वय सेक्शन में कार्यरत रहे श्रीचंद की पोस्टिंग हुई है. सूत्रों का कहना है कि हालांकि इस पोस्टिंग को हुए 8-9 महीने बीत चुके हैं, तथापि सीट नं. 6 का पूर्व निर्धारित कामकाज अब तक श्रीचंद को नहीं सौंपा गया है. उन्हें बाहरी और अन्यों से संबंधित कार्य सौंप कर सेक्शन से बाहर ही रखा जा रहा है.

सूत्रों का कहना है कि सर्वाधिक अवैध अर्निंग सीट नं. 7 पर है क्योंकि इस सीट को सीट नं. 6 का भी सारा महत्वपूर्ण कार्य सौंपकर रखा गया है. सूत्रों का कहना है कि इसी सीट (नं. 7) के माध्यम से पूरे एक्सपेंडिचर सेक्शन में जमा होने वाली संपूर्ण अवैध कमाई का बंटवारा होता है. इसके अलावा सीटों के निर्धारण के बाद भी जो नए काम या कांट्रैक्ट के बिल आते हैं, वह इसी सीट नं. 7 को सौंपे जाते हैं और इसी सीट के माध्यम से पीने-पिलाने के इंतजाम भी किये जाते हंै. सूत्रों का कहना है कि जिन 6 सीटों पर 6 विज्ञापन एजेंसियां हैं, उनका कुल मासिक बिल भुगतान करीब 60 से 70 लाख के आसपास होता है, जिसमें 0.3 प्र.. तो निर्धारित ही है, बाकी सुविधाएं अलग से विज्ञापन एजेंसियों से प्राप्त होती हैं. सूत्रों का अनुमान है कि इन 6 सीटों पर प्रत्येक सीट को सिर्फ विज्ञापन एजेंसियों से ही प्रतिमाह प्रति एजेंसी लगभग 10 से 15 हजार रु. की अतिरिक्त आमदनी होती है. इतनी ही अतिरिक्त आय प्रति एजेंसी पीआरओ सेक्शन के भी संबंधित लोगों की होती है.

इस सबके अलावा सूत्रों ने एक चौंकाने वाली जानकारी यह भी दी है कि यहां अब तक पिछली विवादास्पद एलडीसीई का मामला नहीं सुरझ पाया है, वहीं फिर से हाल ही में ग्रुप 'बी' के लिए विभागीय सेलेक्शन का नोटिफिकेशन निकाला गया है और इसमें सेलेक्ट होने के लिए कई लेखा सहायकों ने अपने पीएफ से पैसा भी निकाल कर रख लिया है. इसी पर एक एसओ को एक कांट्रैक्टर से यह कहते सुना गया कि 'इस सीट पर दो-चार महीने का मेहमान हूं, फिर तो मैं अधिकारी बन जाऊंगा.' सूत्रों का कहना है कि गत विवादास्पद एलडीसीई में जानबूझकर फेल किए गए लेखा सहायक को शायद बोर्ड से पास करने के आदेश पारित हो गए हैं और इस प्रकार एफ एंड सीएओ श्रीमती वंदना सिंघल के अपराध पर पर्दा डालकर उन्हें विजिलेंस जांच से बचाए जाने का प्रयास बोर्ड द्वारा किया जा रहा है. अगले अंकों में पढ़ें ..रे. में 'वैट' की 'वाट' कैसे लगाई जा रही है? .प्र. एवं .प्र. जीआरपी द्वारा किस प्रकार धौंसबाजी करके वेतन भुगतान को लेकर रेलवे को करोड़ों का चूना लगाया जाता है? उत्तर मध्य रेलवे स्काउट्स एंड गाइड्स की आड़ में किस तरह अपने लोगों को पैसा ले-लेकर पीछे के दरवाजे से रेलवे में घुसाया जा रहा है...? क्रमश:

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