Saturday 6 February, 2010

'बिहारवाद' के बाद अब 'बंगालवाद'

भारी दहशत और दबाव में हैं
पूर्व एवं . पू. रे. के अधिकारी

1. दोनों रेलों के अधिकारियों पर मंत्री का स्टाफ हावी.
2. मनमानी और मुंहजबानी आदेशों का पालन करने को मजबूर हो रहे हैं अधिकारी.
3. जीएम, एजीएम, सीपीओ, सेक्रेटरी/जीएम को क्षणभर में बदला गया.
4. पूर्व रेलवे में आरआरसी की 6000 भर्तियां लगभग रद्द.
5. भर्तियों के मामले में पूर्व मंत्री के भी कान काट डाले वर्तमान मंत्री और उसके स्टाफ ने.
6. विसंगति : आरआरसी की भर्तियों में गड़बड़ी और अनियमितता करने वाले अधिकारी को आरआरबी, गुवाहाटी का चेयरमैन बनाया गया

कोलकाता : पूर्व रेलवे एवं दक्षिण पूर्व रेलवे के लगभग सभी रेल अधिकारियों को भारी दहशत एवं दबाव में रहकर काम करना पड़ रहा है, क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि वर्तमान रेलमंत्री ममता बनर्जी का स्वभाव एवं व्यवहार तो पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव से भी ज्यादा मनमानीपूर्ण और तानाशाही वाला है. इसके अलावा उनका कहना है कि ममता बनर्जी के व्यक्तिगत स्टाफ में शामिल लोगों का रवैया तो रेलमंत्री से भी अधिक स्वछंद हो रहा है, वह विभागीय अधिकारियों से इस तरह व्यवहार कर रहे हैं जैसे वे उनके जरखरीद गुलाम हों.
पूर्व रेलवे के कई उच्च विभागीय अधिकारियों ने अपना नाम उजागर करने की शर्त पर अत्यंत सहमें हुए लहजे में बताया कि रेलमंत्री का व्यवहार तो जैसे-तैसे ऊपरी स्तर पर ही रहता है, परंतु उनके ईडीपीजी जे. के. साहा की सबसे ज्यादा दहशत हो रही है, जो कि वास्तव में बतौर ओएसडी, ऐक्ट कर रहे हैं और कैमरों के हर फ्रेम में वह रेलमंत्री ममता बनर्जी का पल्लू पकड़कर ठीक उनके पीछे खड़े नजर आते हैं. इन अधिकारियों का कहना है कि रेलमंत्री के नाम पर तमाम उल्टे सीधे काम विभागीय अधिकारियों को करने का मुंहजबानी आदेश साहा द्वारा ही दिया जाता है. उन्होंने कहा कि उनके यह आदेश ज्यादातर किसी को फेवर करने अथवा भ्रष्टाचार से संबंधित होते हैं. उनका कहना था कि बतौर ईडीपीजी साहा का काम रेलवे बोर्ड में बैठकर जन शिकायतों का निवारण करना और करवाना है. मगर वह रेलमंत्री की पूंंछ पकड़कर हमेशा उनके पीछे-पीछे कुत्ते की तरह दुम हिलाते हुए कोलकाता में ही नजर आते हैं और इसी की आड़ में उन्होंने रेलमंत्री की भी छवि धूमिल करनी शुरू कर दी है.
अधिकारियों का कहना है कि हालांकि साहा की छवि पहले से ही भ्रष्टाचारपूर्ण रही है और जब ममता बनर्जी ने उन्हें अपना ईडीपीजी बनाया था, तभी यह स्पष्ट हो गया था कि पूर्व मंत्री की तरह ही ममता बनर्जी को भी अपना पार्टी फंड मजबूत करने के लिए मजबूत भ्रष्टों की टीम की आवश्यकता है, जो कि सेक्रेटरी/रे.बो., एमई, एमएल, और अब एमटी तथा चेयरमैन/एचपीसी की चौकड़ी बनाने से पूरी हो गई है. अधिकारियों ने यह भी बताया कि एमटी के चयन में विभिन्न स्रोतों से करीब 200 करोड़ रुपये का लेनदेन होने की अपुष्ट खबर भी चर्चा में हैं.
इन अधिकारियों का कहना है कि रेलमंत्री ममता बनर्जी के व्यवहार में आये परिवर्तन से भी इस बात की पुष्टि होती है, क्योंकि यह भी सर्वज्ञात है कि ममता और लालू एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते हैं और रेलमंत्री का पदभार ग्रहण करने के बाद उन्होंने जो कुछ कदम उठाये और बयान दिए थे, उनसे भी इसका संकेत मिलता है और इसी परिप्रेक्ष्य में श्वेत पत्र भी लाया गया है, जिसमें ममता ने लालू की तथाकथित भा.रे. के टर्नएराउन्ड की कलई खोली है. इस सबके बावजूद ममता ने अब तक भी लालू के सबसे खास विश्वासपात्र रहे के.बी.एल. मित्तल, सेक्रेटरी/रे.बो. श्रीप्रकाश, पूर्व एमटी एवं वर्तमान चेयरमैन/एचपीसी और विवेक सहाय वर्तमान एमटी, राकेश यादव, डायरेक्टर स्पोर्टस और लालू यादव के ही मीडिया सलाहकार (दलाल) एस. एम. तहसीन मुनव्वर आदि को सिर्फ अपने गले लगा रखा है बल्कि इन्हें प्रमोशन-पोस्टिंग देकर पुरस्कृत भी किया है. अधिकारियों का तो यह भी कहना है कि ममता को भ्रष्टाचारियों को पुरस्कृत करने की भ्रष्टाचारपूर्ण सलाह साहा और मित्तल द्वारा दी जाती है. दोनों सिर्फ एक ही कैडर के हैं बल्कि दोनों अपना अपना उल्लू सीधा करने के लिए रेलमंत्री को उल्लू बना रहे हैं.
पूर्व रेलवे के अधिकारियों ने बताया कि जुलाई अगस्त 2009 में यहां जो 6000 भर्तियां विभागीय रेलवे रिक्रूटमेंट सेल द्वारा की गई थीं अब उन पर ममता/साहा की वक्रदृष्टि पड़ गई है क्योंकि इन्हीं के चलते पहले सीपीओ ब्रम्हो को पूर्व रेलवे से हटाकर हुबली ..रे. भेज दिया गया और बाद में एजीएम के. के. श्री वास्तव को भी हटा दिया गया और अब सेक्रेटरी/जीएम दीपक झा सहित कई वेलफेयर इंस्पेक्टरों को जबरन छुट्टी पर भेजा गया है. सीपीओ में स्वामीनाथन को और एजीएम में .के. गुप्ता को हुबली से लाकर बैठाया गया है, जबकि सेक्रेटरी/जीएम में सीएलडब्ल्यू से विनोद पांडेय को लाये जाने की खबर है. अधिकारियों ने यह भी कहा कि इसमें सबसे बड़ी विसंगति यह है कि आरआरसी के माध्यम से हुई यह 6000 भर्तियां, जिनमें गड़बड़ी पाये जाने के आरोप में सीपीओ को हटाया गया, करने वाले तत्कालीन डिप्टी सीपीओ टी.के. मंडल को तो ममता ने आरआरबी/गुवाहाटी का चेयरमैन बना दिया है.
अधिकारी बताते हैं कि ममता ने सीपीओ ब्रम्हो से कहा था कि 'इन 6000 भर्तियों के लिए क्या उन्हें बंगाली नहीं मिले थे, जो अधिकांश बिहारी भर लिए हैं, इनको तुरंत निरस्त करो.' बताते हैं कि इस पर ब्रम्हो ने ममता को तत्काल यह बताया था कि इन पदों के लिए बकायदे विज्ञापन देकर आवेदन मंगाये गये थे और प्राप्त 2.50 लाख आवेदनों में से इन 6000 की भर्ती हुई है. इस पर ममता ने उनसे यह चयन तत्काल रद्द करने को कहा था. जिस पर ब्रम्हो ने स्पष्ट इंकार करते हुए उनसे इस बारे में बोर्ड से आदेश निकालने के लिए कहा था. इसी बात को लेकर ममता उनसे उसी प्रकार नाराज हो गईं जिस प्रकार पूर्व जीएम दीपक कृष्ण से हो गई थीं, जिन्होंने बताते हैं कि ममता के सगे वालों द्वारा दी हुई सूची को रेलवे में भर्ती करने में देरी कर रहे थे और पार्टी फंड एवं पार्टी कार्यकर्ताओं की आवश्यकताओं के अनुरूप काम नहीं करने में काफी देर कर रहे थे. इस प्रकार अब भारतीय रेल में 'बिहारीवाद' के बाद 'बंगालीवाद' शुरू हो गया है.
अधिकारियों ने आगे बताया कि आरआरसी की भर्तियों में गड़बड़ी और शिकायतों के चलते करीब 150 उम्मीदवारों ने कोर्ट की शरण ली थी और कोर्ट का निर्णय रेलवे के खिलाफ गया है, जिस पर रे. बो. ने आगे अपील नहीं करने का निर्णय लिया. अधिकारियों का कहना है कि इसी पर तो ब्रम्हो ने कहा था कि भर्तियां रद्द करने का आदेश भी उसी तरह रे. बो. से जारी किया जाये जिस तरह अपील करने का एकतरफा फैसला बिना जोनल प्रशासन को बताये रेलवे बोर्ड द्वारा लिया गया. इसी पर तो ममता उनसे नाराज हुईं. अधिकारियों का कहना है कि अब स्थिति यह है कि इन 6000 भर्तियों से संबंधित सभी फाइलें रे.बो. विजिलेंस उठा ले गया है. जबकि इससे पहले इनकी समीक्षा हेतु एक दो सदस्यीय कमेटी का भी गठन किया गया था. हालांकि अधिकारियों का कहना था कि इस कमेटी ने भर्तियों में गड़बडिय़ों की पुष्टि की है और करीब 40 मामलों में कमेटी ने इसके पुख्ता प्रमाण भी दिए हैं.
परंतु अधिकारियों का कहना है कि इस गड़बड़ी के लिए जो अधिकारी टी. के. मंडल वास्तव में जिम्मेदार है, उससे रेलमंत्री ने पुरस्कृत करते हुए और ज्यादा भ्रष्टाचार करने के लिए आरआरबी का चेयरमैन बना दिया है, उनका कहना है कि यदि ब्रम्हो को इसके लिए जिम्मेदार ठहराकर शीर्ष स्तर पर ही जिम्मेदारी तय करने की उनकी नीति है तो फिर नये एमटी के पदभार संभालने के बाद से लगातार चार बड़ी रेल दुर्घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें करीब 50 से ज्यादा लोगों की जानें गई हैं और सैकड़ों लोग घायल हुए हैं. तो एमटी और जीएम को भी इनके लिए जिम्मेदार ठहराकर उन्हें यदि बर्खास्त नहीं किया है तो कम से कम हटाया भी क्यों नहीं है? इसी तरह मुंबई .रे. में दो माह के
दरम्यान तमाम रेल दुर्घटनाएं हुईं और आज भी वहां स्थितियां सामान्य नहीं है तो आगरा एवं इलाहाबाद की तर्ज पर वहां के डीआरएम को भी क्यों नहीं हटाया गया यहीं नहीं इनके लिए .रे. एवं ..रे. के दोनों महाप्रबंधकों को भी जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया गया?
अधिकारियों ने इस बात की भी पुष्टि कर दी है कि ममता के कार्यकर्ता भी जे.के. साहा के नेतृत्व में जीएम कोटे की भर्तियां करने के लिए पूरी तरह सक्रिय हो उठे हैं. इसकी पुष्टि तब हुई जब मुंबई-कोलकाता मेल में अपनी निजी यात्रा में कैश टिकट लेकर बिना अपनी पहचान उजागर किए कोलकाता जा रहे एक रेल अधिकारी ने अपने सामने की बर्थ पर बैठे एक यात्री (रेलकर्मी) को मोबाइल पर किसी से भर्ती रेट पर मोल भाव करते सुना और उसे रिकार्ड कर लिया. वह रेलकर्मी ऊपर स्तर पर किसी से बात कर रहा था और दूसरी तरफ से उसे भर्ती की पूरी गारंटी दी जा रही थी. मगर इसके लिए पहले तीन लाख रुपये और बाद में बुलावा पत्र यानी भर्ती का प्रमाण मिलते ही 3 लाख और यानी कुल 6 लाख रुपये, प्रति कंडिडेट की मांग की जा रही थी. अधिकारियों का कहना है कि भा.रे. में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है.
यदि रेलमंत्री को अपनी छवि बचानी है तो उन्हें अपने व्यक्तिगत स्टाफ और पार्टी कार्यकर्ताओं सहित रेल अधिकारियों की गतिविधियों पर लगाम लगानी पड़ेगी. मगर यह तभी हो पाएगा जब पार्टी फंड के लालच से और कार्यकर्ताओं को उपकृत करने रेलमंत्री स्वयं को बचा पाएंगी.

No comments: