Saturday 6 February, 2010

ठेकेदारी प्रथा की पक्षधर या विरोधी?

यूनियन स्पष्ट करे अपनी नीति

मुंबई : आजकल रेलवे से मान्यताप्राप्त एक रेल संगठन को रेल मजदूरों (कर्मियों) से ज्यादा ठेका मजदूरों की खैरख्वाही करने की चिंता कुछ ज्यादा ही सवार हो गई है. करीब 7-8 साल पहले जब इस कृत्य की शुरुआत संबंधित यूनियन द्वारा की जा रही थी तब भी रेलकर्मियों की आवाज बनकर 'रेलवे समाचार' ने यह आवाज उठाई थी कि संबंधित यूनियन को रेलकर्मियों से ज्यादा चिंता ठेका मजदूरों की होने लगी है. आज उसकी यह चिंता और ज्यादा बढ़ गई है. इसके लिए रेलवे द्वारा प्रदत्त सारी सुविधाओं का भी इस्तेमाल किया जाने लगा है और अब तो दादर स्टेशन के प्लेटफार्म नं. 5 पर सफाई मजदूरों को अपना सामान रखने के लिए दिए गए कमरे को इस यूनियन ने 'रेल ठेका मजदूर यूनियन' का बाकायदे बोर्ड लगाकर कार्यालय ही बना दिया है.
बताते हैं कि यह कमरा साफ-सफाई ठेकेदार को उसके मजदूरों का सामान रखने के लिए रेल प्रशासन ने दिया है. इस ठेकेदार के पास मुंबई मंडल के कई बड़े स्टेशनों की साफ-सफाई के ठेके हैं. जहां एक तरफ इस सफाई ठेकेदार को मंडल में बैठे एक 'सफाई एओएम' जैसे कुछ अधिकारी चूस रहे हैं, तो दूसरी तरफ इसे और इसके मजदूरों को इस यूनियन विशेष के लोग भी जमकर चूना लगा रहे हैं. ठेकेदार से वसूली और उसके मजदूरों से सदस्यता एवं संघर्ष शुल्क के रूप में अलग से वसूली इस 'चूने' में शामिल है.
ठेका मजदूर का रेलवे के ठेकेदारों की ही तरह रेलवे से कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि वह निजी ठेकेदारों का काम करते हैं, जिस तरह ठेकेदार को दिया गया निर्धारित काम समाप्त होने के बाद उसका रेलवे से कोई संबंध नहीं रह जाता या उस पर उसका कोई दावा नहीं रहता, उसी तरह उसका काम खत्म होने के बाद उसके मजदूरों का भी कोई रेलवे से संबंध नहीं रह जाता, जबकि इन ठेका मजदूरों का संबंध रेलवे से नहीं सिर्फ ठेकेदार से ही होता है. मगर इस यूनियन विशेष द्वारा इनका यही संबंध जोडऩे का प्रयास 'रेल' शब्द जोड़कर इनकी 'यूनियन' गठित करके किया जा रहा है. अब तो यह प्रयास रेलवे प्लेटफार्म पर इसका कार्यालय खोलकर और विभिन्न स्टेशनों पर इसके शुभकामना बोर्ड लगाकर पुख्ता हो रहा है. रेल कर्मचारियों का कहना है कि 'रेल ठेका मजदूर यूनियन' की आड़ में यूनियन द्वारा ठेका मजदूरों की भलाई के बजाय अपने कुछ उजड़े हुए लोगों का पुनर्वास करने का प्रयास ज्यादा नजर रहा है. उन्होंने बताया कि इस रेल ठेका मजदूर यूनियन का अध्यक्ष . आर. के. रेड्डी को बनाया गया है, जिन्हें मंडल का तमाम टिकट चेकिंग स्टाफ 'नकारा और निकम्मा' कहता है, जो इस यूनियन के नाम पर सेवानिवृत्ति तक एक ही स्टेशन (दादर) में नौकरी की, तब भी टिकट चेकिंग स्टाफ का कोई भला नहीं किया. टिकट चेकिंग स्टाफ का तो कहना है कि जो व्यक्ति मान्यताप्राप्त संगठन में रहते हुए भी अपने कैडर और सरकारी/ संगठित कर्मचारियों का कोई भला नहीं कर पाया, वह असंगठित क्षेत्र के ठेका मजदूरों का एक गैर मान्यताप्राप्त संगठन बनाकर क्या भला कर पाएगा?
रेलकर्मियों का कहना है कि एक तरफ यह यूनियन रेल कर्मचारियों के बच्चों को रेलवे में नौकरी दिए जाने की वकालत करती है, तो दूसरी तरफ ठेका मजदूरों के साथ 'रेलवे' शब्द जोड़कर भविष्य में उन्हें 'रेल मजदूर' बनाने पर आमादा है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रत्येक ठेका मजदूर से यूनियन द्वारा सदस्यता के नाम पर 200 रु. की वसूली की जाती है. बताते हैं कि यूनियन ने इसके लिए कुछ दलाल टाइप के मजदूरों को ही अपना एजेंट बना लिया है. जो विभिन्न ठेकेदारों की साइट्स तक पहुंचकर उसके मजदूरों को बरगलाते हैं तथा बाद में ठेकेदारों को ब्लैकमेल किया जाता है. कुछ रेलकर्मियों का कहना है कि इन ठेका मजदूरों को इस यूनियन द्वारा खाना खिलाने और उस दिन का वेतन ठेकेदार से दिलाने के नाम पर अपने धरनों-मोर्चों के लिए भी इस्तेमाल किया जा रहा है. इसक पुष्टि खुद कुछ ठेका मजदूरों और ठेकेदारों ने नाम छापने की शर्त पर की है. नाम उजागर करने की ही शर्त पर ठेकेदारों ने बताया कि यूनियन के इन 'एजेंटों' को इसलिए अलग से पैसा देना पड़ता है कि कहीं वे हमारे मजदूरों को ही भड़काकर काम बंद करा दें. उन्होंने बताया कि तमाम उल्टे-सीधे नियम बताकर इन लोगों द्वारा उन्हें दबाव में लेकर ब्लैकमेल किया जा रहा है. इन लोगों द्वारा काम रोकने की धमकी दी जाती है. क्योंकि इन्हें मालूम है कि काम रुक जाएगा और पूरा होने में देरी होगी तो प्रतिदिन के हिसाब से ठेकेदार पर रेलवे द्वारा जुर्माना लगाया जाएगा. इसी बात की धमकी या इशारा देकर इन लोगों द्वारा ठेकेदारों को दबाव में लिया जाता है.
ठेका मजदूरों के हितों के खिलाफ तो रेल कर्मचारी हैं और ही 'रेलवे समाचार' उनके हितों की खिलाफत कर रहा है. उन्हें उनका हक मिले, कानून द्वारा प्रदत्त सुविधाएं मिलें, यह सही है. परंतु यह प्रयास यूनियन को रेल परिसर से बाहर रहकर करना चाहिए अथवा इसके लिए उन्हें रेलवे द्वारा प्रदत्त सुविधाओं का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. इसके अलावा उसे यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि वह रेलकर्मियों के हित साधन कर रही हैं या ठेका मजदूरों का? इस यूनियन को यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि वह ठेकेदारी प्रथा के पक्ष में है या विरोध में, यदि ठेकेदारी प्रथा के पक्ष में है, जैसा कि साफ दिखाई दे रहा है, तो उसे अपने एजेंडे और पोस्टरों-बैनरों में यह लिखना बंद कर देना चाहिए कि 'ठेकेदारी प्रथा नहीं चलेगी' इसका नारा भी लगाना उसे तुरंत बंद कर देना चाहिए और यदि विरोध में है तो वैसा आचरण प्रस्तुत करना चाहिए. यह कहना है तमाम रेलकर्मियों का.
रेलकर्मियों का तो यह भी कहना है कि जब संबंधित यूनियन को यह कहा गया कि वह या तो हमारा नेतृत्व करे या ठेका मजदूरों का, तब उसने 'रेल ठेका मजदूर यूनियन' गठित करके जहां एक तरफ अपना निहितस्वार्थी अभियान जारी रखा, वहीं अपने बिरादरी भाईयों का पुनर्वास भी कर लिया है. रेलकर्मियों ने यह भी कहा कि जब पिछले दिनों एक अन्य मान्यताप्राप्त रेल संगठन ने अपने मुख्यालय एवं शाखा कार्यालयों के कार्यालय बोर्ड एक दैनिक अखबार के पास गिरवी रखकर अनैतिक कमाई और रेल परिसर के दुरुपयोग तथा चोरी छिपे उसे बेचने का एक नायाब उदाहरण पेश किया था, तब रेल प्रशासन ने उसके कार्यालय बोर्डों को बेचा हुआ हिस्सा ढंकने के लिए उक्त रेल संगठन को मजबूर कर दिया था. इस अनैतिकता का पर्दाफाश 'रेलवे समाचार' ने ही किया था. तब काफी अर्से से इस यूनियन द्वारा एक बाहरी संगठन की गतिविधियां और कार्यालय रेल परिसर में चलाने/स्थापित करने से रेल प्रशासन क्यों नहीं रोक रहा है?

स्टेशनों की सफाई में कोताही

मुंबई मंडल, .रे. के कई छोटे-बड़े रेलवे स्टेशनों की साफ-सफाई का ठेका एक फर्म विशेष को दिया गया है. ऐसी जानकारी प्राप्त हुई है कि इस फर्म में कुछ रिटायर्ड रेल अधिकारी भी शामिल हैं अथवा उनका निवेश लगा हुआ है. इसीलिए स्टेशन मास्टरों द्वारा इस फर्म के साथ नरमी बरती जाती है. इसके परिणामस्वरूप स्टेशनों के शौचालयों से दुर्गंध उठती रहती है. उनकी सफाई ठीक से नहीं की जाती है. जिससे यात्रियों को गाड़ी पकडऩे के लिए उनके आसपास खड़े रहना दूभर हो रहा है. तमाम यात्रियों ने इसकी लिखित शिकायतें की हैं, परंतु प्रशासन एवं स्टेशन मास्टरों पर इसका कोई प्रभाव पड़ता नजर नहीं आया है.
रेलकर्मियों से प्राप्त जानकारी के अनुसार स्टेशनों की साफ-सफाई करवाने का जिम्मा एक एओएम को सौंपा गया है जो कि सफाई ठेकेदारों के साथ सांठगांठ करके उनसे होने वाली वसूली की बंदरबांट करने में लगा हुआ है. कर्मचारियों के अनुसार यह एओएम पहले से ही काफी बदनाम रहा है. इसकी तो पोस्टिंग भी इस डिवीजन में नहीं होनी चाहिए थी. परंतु अधिकारियों को तो ऐसे ही चापलूसों और भ्रष्टों को अपने एजेंट के रूप में इस्तेमाल करने की लत लगी हुई है.
फलस्वरूप उसे यहां पदस्थ करके और उसे 'सफाई एओएम' बनाकर एक तरफ भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया जा रहा है, तो दूसरी तरफ स्टेशनों की सफाई में कोताही बरतकर यात्रियों के लिए परेशानी पैदा की जा रही है. सफाई फर्मों को भी बताते हैं कि कम सफाई मजदूरों के बदले ज्यादा मजदूरों के लिए भुगतान करवाकर रेलवे को चूना लगाया जा रहा है. पता चला है कि सफाई ठेका की शर्तों के अनुसार जितने सफाई मजदूर संबंधित सफाई ठेका फर्मों को स्टेशनों पर लगाना चाहिए, उतने मजदूर इन फर्मों ने नहीं लगाया है, जबकि इन्हें नियत मजदूरों के हिसाब से भुगतान किया जा रहा है.
रेल कर्मियों का कहना है कि पिछले दिनों जब दादर स्टेशन पर सीआरबी का दौरा होना था, तब उसके दो-तीन दिन पहले से कल्याण परिसर से रेलवे के करीब 40-50 सफाई कर्मचारियों को दादर में सफाई के लिए संबंधित हेल्थ इंस्पेक्टर द्वारा ले जाकर लगाया गया था, जबकि दादर स्टेशन की सफाई का ठेका दिया हुआ है. इससे यह बात साफ हो जाती है कि सफाई ठेकेदार फर्म ने तो निर्धारित सफाई मजदूर लगाए हैं और ही उससे निर्धारित काम करवाया जा रहा है, बल्कि उसे निर्धारित भुगतान करवाने में संबंधित एओएम सबसे आगे है. रेलकर्मियों का कहना है कि इस वसूली और भ्रष्टाचार में रेल ठेका मजदूर यूनियन तथा एक मान्यताप्राप्त यूनियन और कुछ अधिकारी विशेष रूप से शामिल हैं. इसीलिए यह अनैतिक कारोबार चल रहा है, जबकि मंडल प्रशासन सो रहा है.

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