Saturday 6 February, 2010

रक्षा क्षेत्र की तर्ज पर सुपरवाइजरों
को यूनियनों से बाहर करो

रिटायर्ड सुपरवाइजरों को यूनियन पदों से
बाहर किया जाए - एआईआरईएएफ की मांग

जबलपुर : ऑल इंडिया रेलवे इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईआरईएफ) के अध्यक्ष श्री आर. के. सिंह ने रेल मंत्री, सीआरबी और सभी जोनल जनरल मैनेजर्स को एक पत्र लिखकर रक्षा मंत्रालय एवं रक्षा क्षेत्र की तर्र्ज पर रेलवे में भी सभी विभागों की सुपरवाइजरी पोस्टों (जेई/एसई, एसएसई, एसओ/एसएसओ/ओएस-1/डिप्टी एसएस, एसएस, एसएम आदि) पर कार्यरत सुपरवाइजरी स्टाफ को ट्रेड यूनियनों और ट्रेड यूनियन गतिविधियों से बाहर किये जाने की मांग की है.
ज्ञातव्य है कि सांसद श्री तपन सेन और श्री गुरुदास दासगुप्ता ने इस संबंध में ट्रेड यूनियन एक्ट, 1926 की धारा 22 का हवाला देते हुए रक्षा मंत्रालय एवं रक्षा मंत्री से क्रमश: दि. 16.10.2007 एवं दि. 7.12.2007 को एक पत्र लिखकर रक्षा क्षेत्र में कार्यरत सुपरवाइजर, चार्जमैन एवं असि. फोरमैन स्तर के कर्मचारियों को यूनियनों की सदस्यता तथा यूनियन गतिविधियों से बाहर किए जाने की बात कही थी. इस संदर्भ में रक्षा मंत्री श्री ए. के. एंटोनी ने दोनों सांसदों को क्रमश: दि. 15.9.2009 एवं दि. 4.7.2009 को पत्र (सं. डीओ नं. 19(10)/2007/डी/(जेसीएम)/4679-एफ/आरएम/09एवं डीओ नं. 19 (9)/2007/डी/(जेसीएम)/3126-एफ/आरएम/09) लिखकर सूचित किया है कि रक्षा क्षेत्रों में चार्जमैन एवं असिस्टेंट फोरमैन आदि के पद सुपरवाइजरी कैटेगरी में आते हैं जो कि डिफेंस इन्स्टालेशंस में सुपरवाइजरी एवं वर्कमैन कंट्रोल के प्रति जिम्मेदार होते हैं. इन पदों पर कार्यरत कर्मचारियों को ट्रेड यूनियन गतिविधियों में हिस्सा लेने और ट्रेड यूनियनों के सदस्य बनने के लिए नियमों के तहत अनुमति नहीं है, इसके अलावा डिफेंस पीएसयू'ज द्वारा भी सामान्यत: चार्जमैनों एवं असिस्टेंट फोरमैनों को ट्रेड यूनियनों एवं उनकी गतिविधियों में हिस्सा लेने की अनुमति नहीं दी जाती है. श्री एंटोनी ने अपने जवाब में यह भी लिखा है कि ट्रेड यूनियन एक्ट, 1926 की धारा 22 के तहत और श्रम मंत्रालय द्वारा भी इस नियम को कम्फर्म किए जाने के अनुसार चार्जमैन/असि. फोरमैन जैसी सुपरवाइजरी पोस्टों से रिटायर हुए कर्मचारियों को भी ट्रेड यूनियन
गतिविधियों में हिस्सा लेने अथवा ट्रेड यूनियनों का पदाधिकारी बने रहने की अनुमति नहीं है.
इस संदर्भ में रक्षा मंत्रालय की डायरेक्टर/सीपी श्रीमती उमा नंदूरी ने भी एक पत्र (सं. 19(4)2007/डी/जेसीएम दि. 6.10.09) लिखकर रक्षा क्षेत्र के तीनों मान्यताप्राप्त श्रम संगठनों के महासचिव, ऑल इंडिया डिफेंस इम्प्लाइज फेडरेशन (एआईडीईएफ) श्री सी. श्रीकुमार, पुणे, महासचिव, इंडिय नेशनल डिफेंस वर्कर्स फेडरेशन (आईएनडीडब्ल्यूएफ) श्री आर. श्रीनिवासन, चेन्नई और महासचिव, भारतीय प्रतिरक्षा मजदूर संघ (बीपीएमएस) श्री साधू सिंह, कानपुर को सूचित किया है.
रक्षा मंत्रालय के इन्हीं निर्देशों को मुद्दा बनाते हुए एआईआरईएफ के अध्यक्ष श्री आर. के. सिंह ने भी रेल मंत्री, सीआरबी और सभी जोनल जनरल मैनेजर्स को दि. 5.1.10 को एक पत्र लिखकर कहा है कि भारतीय रेल में भी जेई, एसई, एसएसई, एसओ, एसएसओ, ओएस1, डिप्टी एसएस, एसएस, एसएम आदि विभिन्न विभागीय पद सुपरवाइजरी कैटेगरी में आते हैं. इसलिए ट्रेड यूनियन एक्ट 1926 की धारा 22 और रक्षा/श्रम मंत्रालय द्वारा अनुमोदित किए जाने के बाद रक्षा क्षेत्र में जिस तरह इन समकक्ष पदों पर कार्यरत कर्मचारियों को ट्रेड यूनियनों की सदस्यता एवं उनकी गतिविधियों से बाहर किया गया है. उसी तरह भा. रे. के भी उपरोक्त पदों पर कार्यरत सुपरवाइजरी कर्मचारियों को भी ट्रेड यूनियनों की सदस्यता एवं उनकी गतिविधियों में हिस्सा लेने तथा उनका पदाधिकारी बनने से रोका जाना चाहिए.
श्री सिंह ने 'रेलवे समाचार' से फोन पर बात करते हुए कहा कि कतिपय सुपरवाइजर (जेई/एसई/एसएसई) इन श्रम संगठनों के पदाधिकारी बनकर बीसों वर्षों से एक ही जगह कार्यरत हैं जिससे सिर्फ उनकी दादागीरी बढ़ गई है बल्कि वह रेल का कोई काम नहीं कर रहे हैं. उन्होंने बड़ी बेबाकी से यह भी स्वीकार किया कि इससे सिर्फ रेल का काम प्रभावित हो रहा हैं बल्कि भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा मिल रहा है और उनका फेडरेशन इसका पुरजोर विरोध करता है. उन्होंने कहा कि भले ही कुछ सुपरवाइजरों के निजी हितों को इससे चोट पहुंच सकती है परंतु व्यापक हित में एआईआरईएफ सभी सुपरवाइजरों को रेलवे के मान्यताप्राप्त श्रम संगठनों से अलग किए जाने की मांग पर अडिग है.
उन्होंने यह भी कहा कि वह कोई नई मांग नहीं कर रहे हैं, बल्कि वह तो सिर्फ निर्धारित कानून का पालन किए जाने की मांग सरकार और रेल मंत्रालय से कर रहे हैं. श्री सिंह ने यह भी कहा कि ट्रेड यूनियन एक्ट 1926 की धारा 22, जिसे श्रम मंत्रालय का भी अनुमोदन प्राप्त है, के तहत सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी ट्रेड यूनियनों का पदाधिकारी नहीं हो सकता है, तो फिर रेलवे के मान्यताप्राप्त संगठनों में वर्षों पहले रिटायर हो चुके कई लोग किस कानून के तहत जोनल एवं राष्ट्रीय पदाधिकारी बने बैठे हैं? उन्होंने कहा कि रेल मंत्रालय को भी अब रक्षा मंत्रायल की ही तर्ज पर कोई ठोस निर्णय लेना पड़ेगा, क्योंकि इसके भी जेई, एसई, एसएसई जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत सुपरवाइजर्स गाडिय़ों/यात्रियों की संरक्षा, सुरक्षा और समय पालन जैसी अति आवश्यक गतिविधियों के संचालन से जुड़े हुए हैं. इन्हें ट्रेड यूनियन गतिविधियों में भाग लेने तथा उसकी धौंस पर वर्षों एक ही जगह पदस्थ रहने की छूट नहीं दी जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि ऐसे 15-18 प्रतिशत पदों को ग्रुप 'बी' में राजपत्रित दर्जा दिए जाने का निर्णय वर्षों पहले रेलवे बोर्ड द्वारा लिया गया था परंतु रेलवे के दोनों मान्यताप्राप्त लेबर फेडरेशनों के विरोध के कारण उक्त निर्णय आज तक लागू नहीं किया जा सका है. उन्होंने कहा कि ऐसा इस लिए हो रहा है क्योंकि सुपरवाइजरों के हटते ही कोई भी कर्मचारी इन संगठनों को चंदा देने के लिए राजी नहीं होगा.
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'रेलवे समाचार' का भी यह मानना है कि कानून का पालन होना चाहिए और रक्षा मंत्रालय ने आज जो आदेश जारी किए हैं उनका रेलवे में लागू किए जाने की बात कई बार 'रेलवे समाचार' ने विगत में लिखी है, जिसके कारण दोनों ही लेबर फेडरेशन काफी लंबे अर्से से 'रेलवे समाचार' से अपनी दूरी बनाए हुए हैं. हालांकि 'रेलवे समाचार' ने तमाम बुजुर्ग और अनुभवी इन सेवानिवृत्त रेल कर्मचारियों का कभी असम्मान नहीं किया है. मगर प्रमुख पदों पर इनके विराजमान रहने का कार्यरत रेल कर्मियों की भावनाओं के अनुरूप विरोध अवश्य किया है और हमेशा यही कहा है कि इन बुजुर्गों का चाहिए कि वे सलाहकार की भूमिका में कहकर प्रमुख पदों की जिम्मेदारी कार्यरत रेलकर्मियों को सौंप दे. जो कि बदलते समय के अनुरूप अपने हितों के अनुसार निर्णय ले सकें. कानून भी यही कहता है. अब यह मुद्दा पुन: उठा है और रक्षा मंत्रालय का उदाहरण सामने है तो रेल मंत्रालय को भी कोई कोई उचित निर्णल लेना ही होगा.

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