Saturday 6 February, 2010

जनसुविधाओं पर पुनर्विचार

'इन्नोवेशन प्रमोशन ग्रुप' द्वारा दिए गए सुझाव दिए गए इस प्रकार हैं- ट्रेनों और रेलवे स्टेशनों पर जनसुविधाओं में बढ़ोत्तरी की जानी चाहिए. प्लेटफार्मों पर पीने के साफ पानी, शौचालय और पर्याप्त एवं गुणवत्तापूर्ण खाद्य पदार्थ न्यूनतम दरों पर उपलब्ध कराए जाने चाहिए. खानपान स्टाल रेलवे के नियंत्रण में होने चाहिए. चलती गाडिय़ों में बर्थों/सीटों की स्थिति अच्छी और गुणवत्तापूर्ण एवं आरामदेह होनी चाहिए तथा कोचों की बनावट एवं रखरखाव ऐसा हो जिससे यात्रियों को झटके लगें.
सभी एसी-नॉन एसी कोचों में पीने के पानी की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए. वर्तमान में स्लीपर बर्थों में लगाया जा रहा फॉम एवं रेक्जीन आरामदेह एवं गुणवत्तापूर्ण नहीं है, जिससे यात्रियों को इनमें लेटने के बाद बदन दर्द, पीठ का दर्द और गर्दन की अकडऩ जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
वर्तमान में एसी कोचों में दिए जा रहे बेड रोल्स की गुणवत्ता अच्छी नहीं है. इनकी धुलाई-सफाई में कोताही बरती जा रही है. अक्सर देखा गया है कि लंबी दूरी के यात्रियों के बनिस्बत कम दूरी की यात्रा करने वाले यात्रियों को यह लिनन उपलब्ध ही नहीं कराया जाता. यही नहीं बेडरोल के साथ यात्रियों को इसके साथ शामिल टॉवेल दी ही नहीं जाती है. कुछ यात्रियों को मांगने पर मिलती है, जबकि अधिकांश को मांगने पर भी कोई कोई बहाना बनाकर टाल दिया जाता है. राजधानी जैसी गाडिय़ों (मुंबई राजधानी) में थ्री एसी के यात्रियों के साथ भेदभाव होता है. उन्हें ट्रे में चाय का सारा सामान रखकर देने के बजाय एक-एक करके उनके हाथों में पकड़ा दिया जाता है, जबकि मंगला लक्ष्यद्वीप एक्सप्रेस जैसी कुछ गाडिय़ों के स्लीपर क्लास यात्रियों के साथ ही अपर क्लास यात्रियों को भी नास्ता, लंच-डिनर (दाल, सब्जी, रोटी, चावल आदि के पैकेट) यात्रियों के हाथों में अलग-अलग पकड़ा दिए जाते हैं.
एसी कोचों में निर्धारित तापमान बनाए रखने पर अमल नहीं किया जाता है. अक्सर देखा गया है कि गर्मी के दिनों में भी एसी कोचों के यात्री गरमी महसूस करते हैं, जबकि सर्दियों में भी इन कोचों में यात्रियों को कभी गर्मी तो कभी ज्यादा ठंड का एहसास होता है. इससे एसी कोचों में यात्रा करने का यात्रियों का उद्देश्य पूरा नहीं होता है. एसी यानी एयरकंडीशनिंग की सार्थकता तो तभी है कि गर्मी और सर्दी के मौसम में यात्रियों को अनुकूल तापमान में यात्रा का आनंद मिले. इस तरह इनका तापमान व्यवस्थित किया जाए.
स्टेशन पर खड़ी गाड़ी में पानी की उपलब्धता को देखा जाना अत्यंत महत्वपूर्ण है. अक्सर यह देखा जाता है कि गाड़ी में पानी नहीं है. इससे यात्रियों को नित्यकर्म आदि से निपटने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है. इसके लिए कभी समय की कमी तो कभी मैन पावर की अनुपलब्धता का कारण बताया जाता है. महज इसके कारण लंबी दूरी के यात्रियों की परेशानी को मद्देनजर रखते हुए इस तरह के कारण अमान्य होने चाहिए, जबकि चलती गाडिय़ों और स्टेशनों पर पानी भरने वाली पाइपों से हजारों-लाखों लीटर पानी बहता रहता है. उसको संरक्षित करने या रोकने के कोई पर्याप्त उपाय होते नजर नहीं आते हैं. इस सबके लिए पर्याप्त स्टाफ की भर्ती और नियुक्ति होनी चाहिए, जिससे लंबी दूरी की गाडिय़ों में इस तरह की कोई समस्या पैदा हो.
इसके अलावा सभी कोचों एसी-नॉन एसी में पेस्ट कंट्रोल की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए और इसमें जारी भ्रष्टाचार एवं लापरवाही की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि वर्तमान में दौड़ रही करीव 17000 यात्री गाडिय़ों का कोई भी कोच मक्खियों, काक्रोचों, चूहों, छिपकलियों, खटमलों आदि से मुक्त नहीं है. इससे यात्रियों को एलर्जी और अन्य प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. यह कीड़े उनके खाद्य पदार्थों को दूषित करने के साथ-साथ उनके बालों, कपड़ों, सामानों में घुसकर उनका आराम हराम कर रहे हैं. इसके नियंत्रण के लिए रेलों द्वारा दिए जा रहे वार्षिक अनुरक्षण ठेके दीर्घकालिक समाधान नहीं हो सकते हैं. इसके लिए रेलवे को स्वयं पर्याप्त कर्मचारियों की भर्ती-नियुक्ति करके समस्या को नियंत्रित करना होगा. रेलवे को 'यात्री उन्मुख' बनाए जाने के लिए भारतीय रेल द्वारा उपरोक्त सभी सुझावों पर अविलंब गौर करते हुए त्वरित कारगर उपाय किए जाने की आवश्यकता है.

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