Wednesday 10 February, 2010

...मगर काम नहीं आई लीना इलेक्ट्रो की चालाकी

प्रतिबंधित करके वास्तव में बोर्ड ने लीना इलेक्ट्रो
की मदद की थी और अब स्पष्टीकरण भी दे दिया

मुंबई : 4 दिसंबर 2009 को एक आदेश जारी करके रेलवे बोर्ड ने लीना इलेक्ट्रो मेकेनिकल प्रा.लि. (पूर्व नाम लीना पावरटेक इंजीनियर्स प्रा.लि.) को तीन साल के लिए रेलवे एवं रेलवे से जुड़े अन्य सभी उपक्रमों में प्रतिबंधित कर दिया था और कुछ दिन पहले यह भी स्पष्ट कर दिया है कि कंपनी के वर्तमान कार्य जारी रहेंगे, परंतु कुछ लेखा अधिकारियों का मानना है कि इस तरह से रेलवे बोर्ड ने वास्तव में कंपनी की ही हर तरह से मदद की है और उसे बचाया गया है, जबकि इसमें भारी भ्रष्टाचार की गंध आ रही है.

इन लेखा अधिकारियों का कहना है कि इस कंपनी के चालबाज मालिक ने वास्त में रेलवे को मूर्ख बनाया है. उन्होंने बताया कि इस प्रतिबंध से कंपनी को इसलिये बचाया गया है क्योंकि इस तरह से कई रेल अधिकारियों को भी बचा लिया गया है. कंपनी के बेहद चालबाज मालिक की मॉडुस ऑपरेंडी का खुलासा करते हुए एक लेखा अधिकारी ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि यह व्यक्ति पूर्व कंपनी लीना पावरटेक इंजीनियर्स प्रा.लि. (एलपीटीई) में कार्यरत था, वहां से निकाले जाने के बाद इसने उससे मिलते जुलते नाम 'लीना इलेक्ट्रो मेकेनिकल प्रा.लि.' (एलईएम) से नई कंपनी का गठन कर डाला और रेलवे को सूचित कर दिया कि पुरानी कंपनी की सभी देनदारियां नई कंपनी ने टेकओवर कर ली हैं. और अब पुरानी कंपनी का कोई अस्तित्व नहीं है.

जबकि इस लेखा अधिकारी का कहना है कि इस चालाक व्यक्ति ने कभी भी रेलवे को पूर्व कंपनी के टेक ओवर संबंधी प्रामाणिक दस्तावेज नहीं उपलब्ध कराये है. परंतु अधिकारी के अनुसार यह व्यक्ति पुरानी कंपनी के नाम से ही उसकी क्रेडेंसियल का इस्तेमाल करते हुए टेंडर भरता था और जब टेंडर उसे एलॉट हो जाता था तो यह व्यक्ति रेलवे को लिखित रूप से सूचित करता था कि ''जिस कंपनी के नाम टेंडर एलॉट हुआ है, वह बंद हो गई है और अब उसका कोई अस्तित्व नहीं रह गया है, उसकी सारी देनदारियां नई कंपनी (एलईएम) ने ली हैं, इसलिए आवांटित टेंडर का एग्रीमेंट और बिल भुगतान नई कंपनी (एलईएम) के नाम से किया जाये.'' अधिकारी के अनुसार रेलवे ने बिना सोचे-समझे इस व्यक्ति पर भरोसा कर लिया और टेंडर एग्रीमेंट एवं भुगतान नई कंपनी के नाम से किया जाता रहा.

अधिकारी ने बताया कि हालांकि कानून विभाग ने इस पर यह क हकर अपनी आपत्ति जताई थी कि ''नई कंपनी (एलईएम) का मालिक और पता दोनों ही अलग हैं और इसका पुरानी कंपनी (एलपीटीई) के साथ कोई संबंध साबित नहीं हो रहा है, इसलिए नई कंपनी (एलईएम) को नई और अलग कंपनी ही माना जाना चाहिए.'' मगर म.रे. के तत्कालीन विद्युत अधिकारियों ने कानून विभाग की इस स्पष्ट राय को पूरी तरह अनदेखा कर दिया.
परिणामस्वरूप इस चालबाज व्यक्ति ने हर बार पुरानी कंपनी के नाम से और उसके क्रेडेंसियल पर टेंडर भरा तथा हर बार ''पुरानी कंपनी मर गई है अब उसका कोई अस्तित्व नहीं है, उसकी सभी देनदारियों का टेकओवर नई कंपनी ने कर लिया है'' समान इबारत लिखकर एक पत्र रेलवे को देता रहा और हर बार पुरानी कंपनी को जिंदा कर करके आवंटित टेंडर नई कंपनी के नाम ट्रांसफर करवाकर पुरानी कंपनी को बार बार मृत घोषित करता रहा.

अधिकारी के अनुसार इतना बड़ा फ्रड भी म.रे. के विद्युत अधिकारियों की समझ में नहीं आया, यह एक आश्चर्यजनक सत्य है. प्राप्त जानकारी के अनुसार हाल ही में डिप्टी एफए एंड सीएओ/ कंवर्जन, वाडीबंदर ने एफए एंड सीएओ को एक पत्र लिखकर उपरोक्त तमाम वास्तविक तथ्यों से अवगत कराते हुए कंपनी का भुगतान रोके जाने की सिफारिश की थी. परंतु सूत्रों का कहना है कि इतना बड़ा फ्रॉड होने की बात समझ में आते ही एफए एंड सीएओ ने उसी पत्र में अपनी टिप्पणी लिखते हुए पूछा है कि अब तक यह फ्रॉड उनकी पकड़ में क्यों नहीं आ पाया था और अब तक कंपनी को किस आधार पर भुगतान दिया जाता रहा है?

सूत्रों का कहना है कि कंपनी का चालबाज मालिक अब इस सारे मामले को किसी भी तरह दबाने की जुगाड़ में है. इसी सिलसिले में वह रेलवे बोर्ड के संबंधित अधिकारियों को भी पटाने भी गया था, जिन्होंने बताते हैं कि उसे
और उसकी कंपनी को बचा लेने का पूरा आश्वासन भी दिया था. सूत्रों का कहना है कि बोर्ड में संबंधित अधिकारियों (जिनके नाम बाद में समय आने पर उजागर किए जायेंगे) ने इसी 'सौदे' के बाद ही म.रे. द्वारा 4 दिसंबर के प्रतिबंध
आदेश पर मांगे गए स्पष्टीकरण पर फौरन जवाब दे दिया कि कंपनी के वर्तमान में जारी कार्य (ऑन गोइंग वक्र्स) यथावत जारी रहेंगे, उन पर यह 4 दिसंबर 09 का प्रतिबंध आदेश लागू नहीं होगा.

यानी सूत्रों का कहना है कि यह स्पष्टीकरण भी पूरी तरह पूर्व 'सेङ्क्षटग' के अनुसार ही आया है. उल्लेखनीय है कि एलईएम (पूर्व नाम एलपीटीई) को बोर्ड ने 4 दिसंबर 2009 के अपने आदेश में नये कार्य आवंटित किए जाने से
तीन साल के लिए प्रतिबंधित किया है. परंतु जब'रेलवे समाचार' ने एलईएम के चालू टेंडरों के ऐसे करीब 6-7 मामले उजागर कर दिए जो कि आगे 3-4 साल में भी पूरे होनेवाले नहीं है और जिनमें अब तक करीब एक साल के दरम्यान मात्र 15-20 प्रतिशत कार्य ही हो पाया है, तो ऐसे में बोर्ड का प्रतिबंध आदेश स्वयं ही बेमानी हो जाता है और इसका एलईएम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है.

इसी के बाद म.रे. विद्युत विभाग ने बोर्ड को पत्र लिखकर एलईएम के ऑन गोईंग वक्र्स के बारे में स्पष्टीकरण मांगा था. प्राप्त जानकारी के अनुसार अब जब इस मामले में तमाम अधिकारी फंसने वाले थे तो मध्य रेल प्रशासन ने बोर्ड के स्पष्टीकरण को भी दरकिनार करके एलईएम को ट्रांसफर किए गए अब तक के सभी टेंडरों को उनकी असली आवेदक एलपीटीई को पुन: वापस करने का निर्णय ले लिया है. यानी अब एलईएम को कोई चालाकी म.रे. प्रशासन को मंजूर नहीं हैं. बताते हैं कि तत्संबंधी पत्र भी एलईएस को थमा दिया गया है. सूत्रों का कहना है कि यदि एलपीटीई ने यह काम नहीं किए तो सभी टेंडर रद्द करके पुन: मंगाए जाएंगे.

सूत्रों का कहना है कि म.रे. विजिंलेस के साथ-साथ इस मामले की विस्तृत जांच रेलवे बोर्ड विजिंलेस ने भी की है. तथापि इन दोनों विजिंलेंस अथॉरिटीज की नजर से उपरोक्त भयानक और तथ्यात्मक फ्रॉड कैसे बचा रहा गया?
सूत्रों ने इस मामले में भी आशंका जताई है कि बोर्ड विजिंलेंस के एक बड़े अधिकारी को भी 'खरीद' लिया गया था? जिसका परिणाम कंपनी को बचाने वाले प्रतिबंध आदेश के रूप में सामने आया है. इस मामले में सभी संबंधित
दस्तावेज जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत मांगे जाने की तैयारी की जा रही है, तभी सारे तथ्य खुलकर सामने आयेंगे.

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