Saturday 13 February, 2010

डेढ़ करोड़ प्रतिदिन की अवैध वसूली...?

आयरन ओर लोडिंग में हो रहा था बड़ा घोटाला
अवैध रूप से साइडिंग्स बनाई गर्ईं
फाइलें उठाई गईं, मगर मामला दबा दिया गया

सुरेश त्रिपाठी

मुंबई : यह एक सनसनीखेज मामला 'रेलवे समाचार' के संज्ञान में आया है. इस मामले में वर्ष 2007-2008 के दौरान एक्सपोर्ट ओरियंटेड आयरन ओर लोडिंग में भारी घोटाला हो रहा था. प्राप्त जानकारी के अनुसार इन लोडिंग कंपनियों से ओवरलोडिंग एवं आउट ऑफ टर्न रेक एलॉटमेंट के लिए प्रतिदिन करीब डेढ़ करोड़ रुपए की अवैध वसूली हो रही था? अत्यंत विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि इस अवैध वसूली का बंटवारा तत्कालीन रेल मंत्री और उनके ओएसडी तथा रेलवे बोर्ड के तत्कालीन मेंबर ट्रैफिक (एमटी) एवं तत्कालीन चेयरमैन, रेलवे बोर्ड (सीआरबी) के बच हो रहा था...? सूत्रों का कहना है कि इस मामले (घोटाले) की भनक रेलवे बोर्ड विजिलेंस को भी लग गई थी और उसने इससे संबंधित कुछ फाइलें भी उठा ली थीं, मगर मंत्री और उसके ओएसडी के इसमें शामिल होने का पता चलते ही पूरे मामले को सिरे से तत्काल दबा दिया गया था.

सूत्रों का कहना है कि यह मामला वर्ष 2006-07 और 2007-08 का है जब चीन में आयरन ओर की मांग बहुत ज्यादा थी और आयरन ओर निर्यात के लिए भारतीय कंपनियों के बीच भारी होड़ मची हुई थी. सूत्रों ने बताया कि तब आयरन ओर एक्सपोर्ट में बहुत ज्यादा प्रॉफिट मार्जिन मिल रहा था. सूत्रों ने बताया कि उस समय रेल और रोड ट्रांसपोर्ट के लोडिंग रेट में करीब 800 से 1000 रु. प्रति मीट्रिक टन का भारी अंतर था. यानी रेलवे से लोडिंग और ढुलाई में कंपनियों को 800 से 1000 रु. रोड ट्रांसपोर्ट की अपेक्षा कम देने पड़ रहे थे और प्रति रेक उन्हें लगभग 40 से 50 लाख रुपए की बचत हो रही थी.

इसके अलावा सड़क मार्ग से सैकड़ों कि.मी. दूर और हजारों-लाखों मीट्रिक टन आयरन ओर की जरूरत की आपूर्ति भी संभव नहीं है. ज्ञातव्य है कि तमाम उद्योगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से रेलवे का सहयोग मिलता है. इसके अलावा भी रेलवे द्वारा भी कुछ खास उद्योगों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मदद की जाती है. इससे रेलवे को भी बड़़ी मात्रा में अपना माल लोडिंग ट्रैफिक बढ़ाने में मदद मिलती है और रेलवे का फायदा मिलता है. परंतु रेलवे की नीतियों में रेलवे बोर्ड की नौकरशाही ने जाने-अनजाने कुछ ऐसे सूक्ष्म छिद्र (लूप होल्स) रख छोड़े हैं जिनका फायदा न सिर्फ इन उद्योगों और इनसे जुड़ी कंपनियों/फर्मों का मिलता है, बल्कि इसी बिना पर रेलवे बोर्ड के कुछ महत्वपूर्ण पदों पर बैठे कुछ उच्च पदस्थ खास नौकरशाहों को भी इसका भारी लाभ प्राप्त होता है, बल्कि प्राप्त हो रहा है. इसीलिए तो मेंबर पद हासिल करने की होड़ लगी रहती है और विवेक सहाय जैसे चालबाज नौकरशाह अपनी तथाकथित सारी नैतिकता ताक पर रखकर तमाम जोड़-तोड़ करके मेंबर रे.बो. बन जाते हैं.

उल्लेखनीय है कि पूर्व रेलमंत्री ने कुछ खास रेल रूटों पर प्रति वैगन लोडि़ंग क्षमता बढ़ा दी थी. इसके तहत इन खास रूटों पर प्रति वैगन 4, 8, 10 मीट्रिक टन अतिरिक्त लोडिंग की घोषणा की गई थी. इसका कारण यह बताया गया था कि जो ओवर लोडिंग होती है. उसकी कमाई कुछ ऑपरेटिंग अधिकारियों की जेब में जाती है. यदि इसे रेगुलराइज (अधिकृत) कर दिया जाएगा तो इससे रेलवे की कमाई काफी ज्यादा बढ़ जाएगी. मगर हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि पूर्व रेलमंत्री की यह घोषणा और तत्कालीन कुछ निहितस्वार्थी नौकरशाहों की यह अवधारणा अन्य रेलों में भले ही लागू हुई हो, परंतु दक्षिण पूर्व रेलवे और पूर्व तट रेलवे तथा दक्षिण पश्चिम रेलवे में यह सिर्फ कागज पर ही थी, क्योंकि इन तीनों रेलों और खासतौर पर इनके तीन डिवीजनों क्रमश: चक्रधरपुर, खुर्दा रोड और हुबली में पूर्व रेलमंत्री की घोषणा या पॉलिसी मूर्त रूप से कभी लागू नहीं हुई थी? सूत्रों का कहना है कि इन तीनों रेलों और खासतौर पर इनके उक्त तीनों डिवीजनों से प्रतिदिन डेढ़ करोड़ रुपए की अवैध वसूली लोडिंग फर्मों/कंपनियों से हो रही थी और धड़ल्ले से उन्हें ओवरलोडिंग करने की इजाजत दी जा रही थी और उन्हें आउट आफ टर्न रेक एलाटमेंट करके अतिरिक्त मदद पहुंचाई गई थी.

सूत्रों का कहना है कि पूर्व रेलमंत्री की मेहरबानी से जहां कंपनियों का प्रति रेक लाखों रु. की बचत (प्रॉफिट) हो रही थी, वहीं निर्यात में प्रति रेक न्यूनतम इतनी ही प्रॉफिट उन्हें और मिल रही थी. सूत्रों का कहना है कि इस प्रकार लोडिंग कंपनियों को प्रति रेक लगभग 1 करोड़ रु. का प्रॉफिट मिल रहा था. इसे देखते हुए उन्हें 10-20 लाख रु. प्रतिदिन 'अंडरटेबल' देने से कोई गुरेज नहीं थी. सूत्रों ने बताया कि ऐसी कुछ खास बड़ी-बड़ी कंपनियों की पहचान कर ली गई थी और उन्हें आउट ऑफ टर्न रेक एलाटमेंट के जरिए खूब विभागीय मदद भी पहुंचाई गई थी.

सूत्रों का कहना है कि इसके अलावा इन कुछ खास कंपनियों को 'आउट ऑफ वे' जाकर इंडिविजुअल साइडिंग बनाने के लिए भी रेलवे की जमीन आवंटित करने सहित अन्य तमाम विभागीय मदद उन्हें मुहैया कराई गई थी. इसके लिए न सिर्फ तमाम स्थापित नियमों की अवहेलना की गई बल्कि 'फर्म' और 'माल' देखकर मंत्री के इशारे पर बोर्ड ने बार-बार अपनी नीतियां बदली थीं और विभागीय सहयोग तथा असीमित प्रॉफिट मार्जिन को देखते हुए तब कई फर्में और कई लोग इस बहती गंगी में स्नान करने के लिए एजेंट बन गए थे अथवा अपने नाम से बड़ी मात्रा में रेक एलॉटमेंट के लिए एडवांस में अपनी इंडेंट लगा रहे थे. सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि उस दौरान कई लोग तो सिर्फ अपनी इंडेंट ही दूसरों को बेच-बेचकर करोड़ों रुपए कमा लिए थे.

सूत्रों का कहना है कि इस तमाम घोटाले और इंडेंट एवं रेक एलॉटमेंट में हो रही घपलेबाजी की भनक लगते ही रेलवे बोर्ड विजिलेंस ने कुछ फाइलें भी उठाई थीं, मगर पूर्व मंत्री सहित उनके ओएसडी, एमटी, सीआरबी जैसे बड़े और उच्च पदस्थ नौकरशाहों के इसमें शामिल होने का सुराग लगते ही उसने पूरे मामले को ज्यों का त्यों दबा दिया था. सूत्रों ने बताया कि यह डेढ़ करोड़ रुपया प्रतिदिन जो वसूल होता था, वह तो सिर्फ उक्त चारों उच्च पदस्थों के लिए था, जबकि इसी औसत में उक्त तीनों रेलों के सीओएम एवं सीएफटीएम के हिस्सों की भी वसूली होती थी. इसके बाद उक्त मंडलों के सीनियर डीओएम और उनके दलालों का भी हिस्सा होता था.

इस प्रकार यह अवैध वसूली प्रतिदिन करीब दो करोड़ रु. तक की हो जाती है. उल्लेखनीय है कि इस महाघोटाले के संबंध में 'रेलवे समाचार' ने दि. 1-15 जून 2007 के अंक में 'ओएसडी/एमआर से आजिज आए रेल अधिकारी' और दि. 16-29 फरवरी 2008 के अंक में 'तिमर को रख लेने से निर्मल अग्रवाल का अंधकार समाप्त' तथा दि. 16-30 अपै्रल 2008 के अंक में 'रेक आवंटन में धांधली' आदि शीर्षकों से कई खबरे प्रकाशित करके इस घोटाले को कुछ हद तक एक्सपोज किया था. हमारे सूत्रों का कहना है कि इन्हीं खबरों के आधार पर तब रेलवे बोर्ड विजिलेंस ने कुछ फाइलें उठाई थीं, मगर फिर उपरोक्त कारणों से यह मामला दबा दिया गया था.

इसके अलावा इस मामले में साइडिंग निर्माण, लोडिंग, सीबीटी, डेस्टिनेशन चेंज पॉलिसी आदि-आदि में कुछ खास कंपनियों को ध्यान में रखकर बार-बार पॉलिसी बदली गई, जिससे प्रभावित कई कंपनियां अदालतों में गई हैं. इस मामले में 'रेलवे समाचार' ने विस्तृत जांच शुरू कर दी है. अगले अंकों में क्रमश: पढ़ें - किस तरह कुछ खास कंपनियों को फायदा पहुंचाया गया? जिस पोर्ट के पास प्रतिदिन सिर्फ 6 रेस हैंडल करने की क्षमता ती, वहां प्रतिदिन पचासों रेक भेज दिए गए, सीबीटी की पॉलिसी बदलकर किस तरह पचासों निजी कंपनियों को गारंटेड रेक का हकदार बनाकर सैकड़ों करोड़ रु. की अवैध वसूली की गई? डब्ल्यूआईएस की पॉलिसी बदल कर किस तरह कुछ खास कंपनियों को फायदा दिया गया? क्यों देश छोड़कर भागे हुए हैं कुछ बड़ी कंपनियों के मालिकान? सिर्फ मधु कोड़ा ने ही नहीं कमाए हजारों करोड़, लाखों करोड़ लूटकर क्यों बचे हैं लालू और कुछ रेल अधिकारी? क्रमश:

No comments: