Saturday 6 February, 2010

अनधिकृत रेलवे क्रासिंग्स का क्या करे रेलवे?

पटना : 22 दिसंबर 2009 को पूर्व मध्य रेलवे के समस्तीपुर मंडल में सुगौली-रक्सौल सेक्शन में एक तथाकथित अनमैंड रेलवे क्रासिंग पर एक बड़ी रेल दुर्घटना हुई थी. इस दुर्घटना में एक लाइट रेल इंजन से एक मार्सल जीप भिड़ गई थी, जिसमें जीप पर सवार उसके ड्राइवर सहित पांच लोगों की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई थी. रेलवे द्वारा हर प्रकार के कदम उठाने और मुहिम चलाने के बावजूद इस तरह की घटनाएं रुक नहीं पा रही हैं, बल्कि लगातार बढ़ते जा रहे सड़क वाहनों और अशिक्षित-अर्धशिक्षित इनके ड्राईवरों, जिनका सड़क संरक्षा ज्ञान लगभग शून्य होता है, के कारण ऐसी अस्वाभाविक घटनाएं लगातार बढ़ रही हं.
इस घटना के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस जगह यह दुर्घटना हुई, वहां कोई अन्मैंड लेवल क्रासिंग है ही नहीं, जैसा कि अधकचरी और अनभिज्ञ स्थानीय मीडिया ने प्रचारित किया था. सच्चाई यह है कि वह एक
अनधिकृत रोड क्रासिंग थी जो ग्रामीणों ने अपनी सुविधा के अनुसार स्वयं ही बना लिया था. जबकि इस अनधिकृत क्रासिंग को बंद करने के लिए रेलवे ने हरसंभव उपाय किए थे और बार-बार रेलवे लाइन के दोनों तरफ गहरी खाई खोद दी गई थी, बड़े-बड़े और मजबूत बैरियर्स दूर तक लगाए गए थे, जिससे किसी तरह इस अनधिकृत रोड क्रासिंग को खत्म करके वहां से सड़क वाहनों का निकलना रोका जा सके. परंतु स्थानीय लोगों ने रेलवे की इन तमाम कोशिशों को नाकाम कर दिया और खाई को पाटकर, बैरियर्स का उखाड़कर फेंक दिया. इससे रेलवे लाइनों के आसपास रहने वाले स्थानीय लोगों की मानसिकता को समझा जा सकता है, जो कि खुद ही अपनी सुरक्षा-संरक्षा के प्रति सचेत नहीं है. उन्हें सिर्फ अपनी तात्कालिक सुविधा ही नजर आती है.
हद तो तब हो गई जब अपनी गलती का अहसास और पश्चाताप करने के बजाय इन स्थानीय लोगों ने उक्त दुर्घटना के बाद रेल इंजन का आग लगा दी और करीब एक-डेढ़ किमी. तक रेल पटरी को उखाड़कर फेंक दिया. हालांकि एकाध अखबार और कुछ लोगों ने स्थानीय ग्रामीणों के इस कृत्य की निंदा की, मगर बिहार में 'सुशासन बाबू' बन चुके मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राज में चंपारण जिले, जहां से महात्मा गांधी ने देश की आजादी के लिए सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की थी, के लोगों का यह जंगलराज इस घटना के बाद उनके 'सुशासन' और उस जिले के लोगों की मानसिकता की कहानी स्वयं बयान करता है. हालांकि सच्चाई यह है कि जो भी हुआ वह स्वत:स्फूर्त था, उसके लिए 'सुशासन बाबू' को ज्यादा दोष नहीं दिया जाना चाहिए, मगर सच्चाई यह भी है कि जैसी करनी-वैसी भरनी. स्थानीय लोग जो कर रहे हैं, उसके मद्देनजर यह होना ही था. परंतु यदि यह लोग यथास्थिति बरकरार रखते हैं और कानून-व्यवस्था उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती है, तो ऐसी दुर्घटनाएं भविष्य में भी घटती रहेंगी, और उनका दोष भी रेलवे पर मढऩा जारी रहेगा. राज्यों की राजनीति अपनी वोट बैंक की खातिर लोगों को मरने से बचाने के बजाय उन्हें मरने देती रहेगी.

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