Thursday 18 February, 2010

रेल बजट से यात्रियों की अपेक्षा

वित्त वर्ष 2010-11 के लिए 22 फरवरी को रेलमंत्री ममता बनर्जी द्वारा संसद में रेल बजट प्रस्तुत किया जाने वाला है. हालांकि आम रेल यात्री को इस बात का बखूबी अहसास है कि अगले वर्ष . बंगाल विधानसभा के भावी चुनावों के मद्देनजर यह रेल बजट पूरी तरह बंगाल ओरिएंटेड ही रहने वाला है. तथापि सामान्य रेल यात्रियों की अपेक्षा बस इतनी सी ही है कि इस रेल बजट में नई ट्रेनें चलाने की कोई घोषणा की जाए. जो ट्रेनें चल रही हैं उन्हें सही समय पर रेगुलर किया जाए. उनमें यात्री सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित किया जाए. यात्री सुविधाओं के नाम पर जो करोड़ों रुपए सालाना फूंके जा रहे हैं और उन्हें आलतू-फालतू जगहों पर संगमरमर या ग्रेनाइट लगाने में खर्च किया जा रहा है, और इन पर यात्री फिसलकर गिर/मर रहे हैं, इसके बजाय ट्रेनों में उन्हें सुविधाजनक और आरामदेह यात्रा करने के लिए सीटों/बर्थों के कुशन/रेक्जीन की गुणवत्ता में सुधार हेतु खर्च किया जाए.

ट्रेनों में साफ पीने का पानी और साफ-सुथरे टायलेट के रखरखाव पर खर्च किया जाए. यात्रियों को ट्रेनों में सीट/बर्थ की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए. अति व्यस्त रेल रूटों पर गाडिय़ां बढ़ाई जाएं. साल-साल भर हमेशा 500-600-800 की प्रतिदिन प्रतीक्षा सूची वाली गाडिय़ों के स्थान पर उनकी डुप्लीकेट सहयोगी गाडिय़ां चलाई जाएं. यात्रियों की इतनी अपेक्षा है कि इस बजट में ढेर सारी नई गाडिय़ां चलाने की घोषणा करने के बजाय हमेशा अत्यधिक प्रतीक्षा सूची वाली गाडिय़ों की पहचान करके उनके साथ उनकी डुप्लीकेट/सहयोगी नई गाडिय़ां उनके आगे-पीछे चलाई जाएं तो उन्हें भारी राहत मिलेगी.

उन्होंने इसके लिए लखनऊ-सीएसटी के बीच चलने वाली 2533/2534 पुष्पक एक्सप्रेस का उदाहरण दिया है. उनका कहना है कि पुष्पक एक्स. में रोजाना औसतन 4-5 सौ वेटिंग रहती है. इसके सामान्य सीजन में स्लीपर क्लास में औसतन 300, थ्री एसी में 100 से ज्यादा, टू एसी में 40-50 की वेटिंग लिस्ट रोजाना होती है, जबकि पीक सीजन में इसकी कुल औसत दैनिक प्रतीक्षा सूची लगभग 8-9 सौ रहती है. इससे यात्री को कोई राहत नहीं मिल रही है. इसलिए वर्तमान पुष्पक एक्स. की तरह उसी समय के आसपास एक और पुष्पक एक्स. को अविलंब शुरू किया जाए. इसके अलावा उनका यह भी मानना है कि जब लखनऊ-सीएसटी रूट प्रतिघंटा 130 कि.मी. की गति के लिए अप्रूव्ड है तो पुष्पक एक्स. जैसी कथित सुपरपास्ट ट्रेन को 10-11 घंटे के बजाय 1440 किमी. की यात्रा में 24-26 घंटे का समय क्यों लग रहा है? जबकि इसकी औसत गति 60 कि.मी. प्रति घंटा है, तो क्या यह माना जाए कि जो ट्रैक 60-65 केएमपीएच के लिए ही सिर्फ फिट है, उसे फर्जी तौर पर 130 केएमपीएच घोषित किया गया है? उनकी अपेक्षा है कि या तो पुष्पक एक्स. को 10-11 घंटे में लखनऊ से सीएसटी पहुंचाया जाए या फिर इस ट्रेन सहित ऐसी सभी ट्रेनों का तथाकथित सुपरफास्ट दर्जा समाप्त करके उनसे सामान्य मेल/एक्स. का किराया लिया जाना चाहिए.

पुणे-लखनऊ रूट पर सप्ताह में सिर्फ एक ट्रेन है. यात्रियों की अपेक्षा है कि यदि इस रूट पर नई ट्रेन नहीं चला सकते हैं तो सभी ट्रेन को दैनिक कर दिया जाए. आज स्थिति यह है कि 90 दिन पूर्व भी आरक्षण खुलने के दिन ही यह ट्रेन फुल हो जाती है. इस ट्रेन के यात्रियों की यह भी अपेक्षा है कि इस ट्रेन का ठहराव अहमदनगर जैसे बड़े और महत्वपूर्ण स्टेशन पर भी दिया जाना चाहिए. यह कितनी बड़ी विसंगति है कि जिला स्तरीय स्टेशन पर इस गाड़ी का ठहराव नहीं दिया गया है. मुंबई एवं आसपास रहने वाले दक्षिण भारतीयों की अपेक्षा है कि पुणे से त्रिवेंद्रम के लिए वाया कल्याण-पनवेल एक दैनिक गाड़ी अविलंब चलाई जानी चाहिए. तथा तत्काल एवं वीआईपी कोटे को और सीमित किया जाना चाहिए. यात्रियों ने हाल ही में रेलमंत्री द्वारा कानपुर में घोषित की गई 19 ट्रेनों में से कम से कम दो ट्रेनों को और ज्यादा पैसेंजर फ्रेंडली बनाए जाने की जरूरत बताई है. उन्होंने लखनऊ और आगरा कैंट के बीच चलाई गई नई इंटरसिटी ट्रेन के समय में ऐसा फेरबदल करने की जरूरत बताई है. जिससे राजधानी में दिनभर अपना काम निपटाकर सामान्य आदमी शाम को वापस चला जाए. इसके अलावा लखनऊ-आगरा के बीच इतनी ज्यादा भीड़ भी नहीं है कि एक साथ दो-दो ट्रेनें चलाने की जरूरत थी.

यात्रियों की रेलमंत्री से यह भी अपेक्षा है कि स्टेशनों, प्लेटफार्मों और गाडिय़ों में साफ-सफाई एवं रखरखाव के लिए जो पीसमील कांट्रेक्ट शुरू किए गए हैं, उन पर कड़ाई से नजर रखने की जरूरत है क्योंकि इन कांट्रैक्ट्स को हथिया कर तमाम कांट्रैक्टर सिर्फ रेलवे को लूट रहे हैं और संबंधित रेल अधिकारी उनको इस लूट में भरपूर सहयोग दे रहे हंै, जबकि स्टेशनों, रेल कालोनियों, रेल परिसरों, प्लेटफार्मों और उन पर बने शौचालयों तथा चलती गाडिय़ों में सफाई नदारद है. कहीं भी ऐसा नहीं लगता है कि रेलवे द्वारा इन सब जगहों पर साफ-सफाई एवं रखरखाव के लिए सालाना करोड़ों रुपए खर्च किये जा रहे हैं बल्कि यात्रियों का अनुभव यह है कि जब से यह पीसमील कांट्रैक्ट व्यवस्था शुरू हुई है तब से साफ सफाई की गुणवत्ता में पर्याप्त गिरावट आई है. इससे यात्रियों की सुविधा बढऩे के बजाय कांट्रैक्टरों और उनसे मिलीभगत करके अपनी जेबें भर रहे संबंधित रेल अधिकारियों का ही ज्यादा भला हुआ है. जबकि पीसमील कांट्रैक्ट होने के बावजूद जीएम अथवा बोर्ड मेंबरों के निरीक्षण दौरे से पहले संबंधित स्टेशनों/रेल परिसरों की साफ-सफाई के लिए यहां वहां से एकत्रित करके रेलवे के ही कर्मचारियों से यह काम करवाया जाता है. तो फिर यह कांट्रैक्ट दिए जाने का क्या और किसका फायदा है. कमोबेश यही स्थिति इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिक, मैकेनिकल मेंटीनेंस वक्र्स की भी है. इस तरह रेलवे को सालाना करोड़ों का नुकसान हो रहा है. यात्रियों की अपेक्षा है कि इसके लिए संबंधित अधिकारियों की जवाबदेही अविलंब तय की जानी चाहिए.

यात्रियों की अपेक्षा है कि रेल बजट में हवाई अड्डों की तर्ज पर रेलवे स्टेशनों की सुरक्षा के इंतजाम किए जाने की जो महत्वाकांक्षी योजना रेल मंत्रालय ने अपने दो करोड़ दैनिक यात्रियों की सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर बनाई है उसको अमल में लाने की जिम्मेदारी और कार्यभार रेल अधिकारियों को सौंपकर भारतीय हवाई अड्डा प्राधिकरण (एएआई) जैसे किसी अनुभवी संस्थान को सौंपा जाना चाहिए. क्योंकि यात्रियों का मानना है कि एक तो रेल अधिकारियों को इस क्षेत्र का कोई अनुभव नहीं है, दूसरे वे अपनी सोच और बेईमानियों के चलते इस हेतु खरीदे जाने वाले तमाम महंगे सुरक्षा उपकरणों की गुणवत्ता से समझौता कर रहे हैं. यात्रियों का मानना है कि यदि रेल मंत्रालय वास्तव में उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहता है और इसमें किसी भ्रष्टाचार की कोई गुंजाइश नहीं छोडऩा चाहता है, तो उसे व्यापक सुरक्षा हित में यह कार्य एएआई जैसी किसी अनुभवी संस्था की निगरानी में ही सौंपना चाहिए. क्योंकि ऐसा देखने में आया है कि कुछ रेलों ने जो मेटल डिटेक्टर्स या लगेज स्कैनर मशीनें खरीदी हैं, वह मानक गुणवत्ता वाली नहीं हैं. और कबाड़ में पड़ी हैं. इनको नए के नाम पर पुराना कबाड़ भी खरीद लिए जाने की आशंका व्यक्त की गई है. इनका कोई उपयोग नहीं हो पा रहा है. यात्रियों का मानना है कि यदि इस तरह से उनकी सुरक्षा प्लान की जा रही है, तो बेहतर होगा कि जनता की गाढ़ी कमाई रेल अधिकारियों के भ्रष्टाचार के लिए ही खर्च की जाए तो अच्छा है.

उधर करीब 14 लाख रेल कर्मचारियों-अधिकारियों की इस रेल बजट से यह अपेक्षा है कि रेलवे का मेडिकल विभाग पूरी तरह बंद करके इसकी बेशकीमती चल-अचल संपत्ति का सही उपयोग किया जाए. उनकी अपेक्षा यह है कि प्रत्येक कर्मचारी-अधिकारी को उनके ओहदे के अनुसार किसी एक अथवा दो-चार बड़ी निजी बीमा कंपनियों की बेहतर मेडिक्लेम पॉलिसी दे दी जाएं. रेलवे के लिए यह बहुत सस्ता पड़ेगा और रेलकर्मियों को बेहतर एवं गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया होंगी और रेल राजस्व की भारी बचत भी हो जाएगी. जबकि रेलवे के इस सफेद हाथी (मेडिकल विभाग) को पूरी तरह निजी क्षेत्र को सौंपकर बेशकीमती इस परिसंपत्ति को देश भर में ढांचागत स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाए. इस संबंध में 'रेलवे समाचार' के एक सामान्य सर्वे में यह पाया गया कि प्रत्येक एक हजार रेलकर्मियों में से 870 से ज्यादा रेल कर्मी विभागीय स्वास्थ्य सुविधाओं से पूरी तरह असंतुष्ट थे. उनका कहना था कि रेलवे अस्पताल सिर्फ कुछ चुनिंदा उच्च अधिकारियों और यूनियन पदाधिकारियों के ही स्वास्थ्य का ख्याल करते हैं और उन्हीं की मर्जी से संचालित होते हैं. जबकि रेलवे के तमाम डॉक्टर अपनी मर्जी के मालिक हैं और इनमें से अधिकांश भ्रष्टाचार एवं लापरवाही में लिप्त रहते हैं. स्टाफ कार या निजी सवारी के रूप में रेलवे की एंबुलेंस का दुरुपयोग, गुणवत्ताविहीन दवाइयों और मेडिकल उपकरणों की खरीद में यहां भारी भ्रष्टाचार हो रहा है. निजी फार्मा कंपनियों के खर्च एवं कमीशन पर साल में 4-6 बार विदेश भ्रमण कर रहे रेलवे के डॉक्टर अपने पेशे के साथ बेईमानी और रेलकर्मियों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ एवं धोखाधड़ी कर रहे हैं.

अधिकांश रेल कर्मियों का यह भी मानना है कि मेडिकल के साथ-साथ रेलवे के एकाउंट्स एवं स्टोर विभाग को भी अलग कर दिया जाना चाहिए. उनका मानना है कि प्रत्येक डिपो के साथ एकाउंट्स एवं स्टोर को समाहित कर दिए जाने से कल-पुर्जों एवं वस्तुओं की थोक खरीद में गुणवत्ता बढ़ेगी तथा भ्रष्टाचार की गुंजाइश कम होगी. उनका यह भी मानना है कि रेलवे के ईडीपी सेंटर्स का कोई खास उपयोग नहीं है. इसे विकेंद्रित करके खत्म कर दिया जाना चाहिए. कार्मिक विभाग के बारे में भी उनका ऐसा ही मानना है और कहना है कि इस प्रकार बचे हुए राजस्व का उपयोग गाडिय़ां बढ़ाने, नई लाइनें बिछाने, यात्री सुविधाओं को उन्नत करने तथा बाकी रेल कर्मियों को बेहतर कार्य
वातावरण एवं वेतन-भत्ते देने में किया जा सकता है. इसके साथ ही देश की सरकारी एवं निजी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों एवं औद्योगिक घरानों की इस रेल बजट से अपेक्षा यह है कि रेक आवंटन में भेदभाव और भ्रष्टाचार का खत्म किया जाएगा, विभिन्न जिंसों की ढुलाई दरों में कमी लाई जाएगी, जिससे रेलवे को ज्यादा फायदा होगा और लोडि़ंग कंपनियों को भी रेलवे को वरीयता देते हुए सुगमता से अपना माल समय पर अपने गंतव्य तक पहुंचाने में आसानी होगी. उनका मानना है कि इससे देश की आर्थिक प्रगति में तेजी आएगी और अगले वर्ष में देश की जीडीपी 8 प्रतिशत से ज्यादा रखने में काफी मदद मिलेगी.

इन तमाम विचारों के मद्देनजर अब देखना यह है कि 22 फरवरी को ममता बनर्जी का पिटारा खुलने पर किसकी कितनी अपेक्षाएं पूरी हो पाती हैं: तथास्तु.

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