Saturday 6 February, 2010

प्रशासनिक लापरवाही का ठीकरा
आरपीएफ एसो. के पदाधिकारियों
के सिर फोडऩे की कोशिश

मुंबई : ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन (एआईआरपीएफए) की एजीएम 7, 8, 9 जनवरी को पुरी में थी. इसमें भाग लेने जाने के लिए मध्य एवं पश्चिम रेलवे आरपीएफ एसोसिएशन के पदाधिकारियों एवं नामित प्रतिनिधियों ने एक स्लीपर कोच पहले से बुक करवाया हुआ था और करीब 34 लोगों के पास एवं पीएनआर दिए हुए थे तथा बाकी अन्य लोग कल्याण, कर्जत, लोनावला, पुणे आदि स्टेशनों से इस कोच में सवार होंगे, ऐसा लिखित में दिया गया था. अंतत: इस कोच के लिए 70 पीएनआर हो गये थे. यह एक्स्ट्रा कोच 5 जनवरी को सीएसटी से छूटनेवाली कोणार्क एक्सप्रेस में लगाया जाना था परंतु जब मध्य एवं पश्चिम रेलवे के आरपीएफ पदाधिकारी गाड़ी छूटने से आधा घंटा पहले प्लेटफार्म पर पहुंचे तो उन्हें पता चला कि उनको एलॉट किए गये कोच में सामान्य यात्रियों को बर्थें एलॉट कर दी गई हैं.
इस जानकारी से वहां एकत्रित करीब 100 -150 आरपीएफ स्टाफ बौखला गया और उनके पदाधिकारियों ने इसकी सूचना प्रशासन को दी. अपनी गलती सुधारने और गाड़ी को समय पर रिलीज करने के बजाय प्रशासन ने एक अधकचरे एओएम को आरपीएफ वालों को समझाने भेज दिया. बताते हैं कि जब आरपीएफ वालों ने उसकी बात नहीं सुनी तब इस एओएस ने उन पर धौंस जमाते हुए कहा कि 'खड़े रहें यहीं पर, देखते हैं कि नया कोच तुम्हें कैसे मिलता है और गाड़ी कैसे जाती है.'
इस पर आरपीएफ वाले उसे पीटने ही जा रहे थे कि तब तक सीनियर डीसीएम श्री अतुल राणे ने वहां पहुंचकर स्थिति को संभाल लिया. श्री राणे ने आरपीएफ वालों की बात सुनी और जब उन्हें पता चला कि उक्त कोच में जाने वालों की संख्या 70 हो चुकी है तो उन्होंने भी प्रशासन को वस्तुस्थिति से अवगत कराया. तत्पश्चात नया एक्स्ट्रा कोच आरपीएफ स्टाफ को मुहैया कराया गया और तब करीब ढ़ाई घंटे विलंब से 5.30 बजे गाड़ी रवाना हो पाई थी.
मंडल प्रशासन की लापरवाही और प्रबंधन के 'कुप्रबंधन' का यह नायाब उदाहरण है. क्योंकि बोर्ड द्वारा जारी किए गये आदेश के अनुसार आरपीएफ स्टाफ/ एसोसिएशन को जो एक एक्स्ट्रा कोच आवंटित किया गया था, उसके अनुसार यह कोच सीएसटी से पुरी के लिए बुक था. इसकी सूचना भी पुरी के स्टेशन प्रबंधक को भेजी जा चुकी थी. मंडल प्रबंधन ने उक्त कोच में भुवनेश्वर के यात्रियों को बुक कर दिया था. इससे बड़ी नासमझी और लापरवाही का उदाहरण और क्या हो सकता है, जब इस एक्स्ट्रा कोच के आवंटन संबंधी सारी विभागीय कार्यवाही पूरी थी, तब लापरवाही किस स्तर पर हुई, यह देखने के बजाय प्रशासन द्वारा आरपीएफ वालों को दोष कैसे दिया गया. क्यों मीडिया को ऐसा संकेत दिया गया कि आरपीएफ वाले ही एक तरफ यात्रियों से वसूली करते हैं, दूसरी तरफ गाड़ी भी समय पर नहीं जाने दे रहे हैं?
जिस अधिकारी ने टाइम्स ऑफ इंडिया के रिपोर्टर को यह बयान दिया है कि 'स्पेशल कोच तभी दिया जाता है जब ट्रेन में बर्थें उपलब्ध हों, इस मामले में बर्थें उपलब्ध थीं और स्पेशल कोच दिए जाने का कोई औचित्य नहीं था, क्यों कि ट्रेन में बर्थें खाली थीं.' यह अधकचरा अधिकारी कौन है, क्या प्रशासन ने इस बारे में उसका पता लगाया है? ऐसा घटिया और अपनी 'समझदारी' झाडऩेवाला ऐसा बयान देकर क्या इस 'उल्लू के पट्ठे' अधिकारी ने मीडिया को आरपीएफ के खिलाफ भड़काने और उसका ध्यान प्रशासनिक लापरवाही की तरफ से हटाने वाला काम नहीं किया है? क्या यह अधिकारी यही बात मान्यताप्राप्त श्रम संगठनों को दिए जाने वाले विशेष कोचों के बारे में कहने की हिमाकत कर सकता है, जिन्हें सिर्फ 15-20 पीएनआर पर ही विशेष कोच उपलब्ध करा दिया जाता है?
इस अधिकारी ने रिपोर्टर से यह भी कहा कि 'आरपीएफ ने इसके लिए कोई भुगतान नहीं किया है जबकि फोर्स में होने के नाते उन्हें विशेष भत्ते मिलते हैं.' इसने यह भी कहा कि 'जो लोग यात्रियों की सुरक्षा के लिए तैनात हैं, वहीं कानून को तोड़ रहे हैं और इससे निश्चित रूप से पंक्चुअलिटी प्रभावित होगी.' यह अधिकारी, जो कोई भी है, सर्वप्रथम तो ऐसा लगता है कि इसका मानसिक संतुलन ठीक नहीं है. दूसरे इसे सिस्टम की कोई जानकारी नहीं हैं और तीसरे यह कतई निष्पक्ष नहीं है. यह या तो अपनी खुद की गलती छिपाने और अपनी गलती को आरपीएफ के ऊपर ढकेलने का प्रयास कर रहा है अथवा अपने विभागीय अधिकारियों की लापरवाही पर पर्दा डाल रहा था. सर्वप्रथम तो इसकी ही पहचान करके ऐसे बचकाना विचार जाहिर करने और जनता को मूर्ख समझने के लिए ही रेल प्रशासन को चाहिए कि इसे ही दंडित करे. क्योंकि जो वस्तुस्थिति है, उससे प्रशासनिक लापरवाही से कतई इंकार नहीं किया जा सकता.
इतना ही नहीं, इस गाड़ी को उस दिन रवाना करने में परिचालन विभाग और रेल प्रशासन ने सभी संरक्षा नियमों की भी अनदेखी की है. यह गाड़ी वास्तव में सिर्फ 20 कोच के लिए ही निर्धारित है. ज्यादा से ज्यादा इसमें दो कोच और अतिरिक्त जोडऩे का जोखिम लिया जा सकता है. परंतु परिचालन अधिकारियों ने उस दिन इसे 24 कोच की गाड़ी बनाकर रवाना किया. भीड़ को देखते हुए इसमें एक कोच पहले से ही अतिरिक्त लगाया जा रहा था, जबकि आरपीएफ एसोसिएशन का भी एक अतिरिक्त कोच इसमें आंवटित किया गया. जिसमें विभागीय और प्रशासनिक लापरवाही के चलते प्रतीक्षा सूची के यात्रियों को बुक कर दिया गया. इसकी जगह पर एक और अतिरिक्त कोच आरपीएफ के लिए जोड़ा गया. इसके बाद पुणे से इस गाड़ी में एक और कोच मिलिट्री के लिए भी जोड़ा गया था. इस प्रकार यह गाड़ी कुल 24 कोच की बनकर उस दिन गई थी. इसमें यात्री संरक्षा को भारी खतरा पैदा हुआ. इस लापरवाही के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाता है, अब यह देखना है. जबकि इस सारे प्रकरण में कोई भी अधिकारी अपना मुंह खोलने के लिए तैयार नहीं है.

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