Saturday 6 February, 2010

'विषधर' का पर्दाफाश करते रहें...

श्री त्रिपाठी जी, ऐसे भ्रष्टाचारियों का पर्दाफाश करके आप निश्चय ही एक सराहनीय कार्य कर रहे हैं. जहं-जहं पांव पड़े विषधर के... 'विषधर' के पैर रखते ही हो गया रेल का बंटाधार और एक सप्ताह के भीतर हो गए तीन एक्सीडेंट. जब विषधर ने जी. एम. के तौर पर .. रेलवे में कार्यभार संभाला था तब भी ऐसा ही हुआ था. आज इतिहास फिर से दोहराया जा रहा है. ऐसे भ्रष्ट व्यक्ति को एम. टी. बनाने का यही दुष्परिणाम होना था. आश्चर्य है कि श्रीमती ममता बनर्जी ने लालू के ऐसे बड़े पिट्ठू को जनता की आंख में धूल झोंकने में कैसे सहायता की. इतना बड़ा 'मेनिपुलेटर' भारतीय रेल में भविष्य में शायद ही कोई दूसरा पैदा होगा. जिस पर सीवीसी के केस चल रहे हों, उसको कैसे यह उच्च पद दिया गया, यह बड़े खेद का विषय है और रेल जैसे महत्त्वपूर्ण विभाग के लिए यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है.
'विषधर' ने अपनी पत्नी का केंद्रीय विद्यालय में एक अध्यापिका के रूप में दाखिला भी लगभग 1995-96 में तिकड़मबाजी से ही करवाया था. श्रीमती मंजू सहाय बतौर अध्यापिका की नियुक्ति के लिए सही उम्र से कहीं अधिक उम्र की थीं. मुंबई में नियुक्ति होने में असफल होने के बाद 'विषधर' ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अपनी पहुंच का इस्तेमाल किया और महाराष्ट्र के किसी गांव में ले जाकर रेलवे के सैलून में रहकर अपनी पत्नी की गांव के केंद्रीय विद्यालय में नियुक्ति कराई. किन नियमों के तहत यह भर्ती हुई, यह अज्ञात है. श्रीमती मंजू सहाय ने उस विद्यालय में सिर्फ एक सप्ताह के लिए पढ़ाया और फिर लम्बा अवकाश लेकर मुंबई में बैठ गईं. तत्पश्चात मेनिपुलेशंस से अवकाश की अवधि में इनका तबादला केंद्रीय विद्यालय 1, नेवीनगर, मुंबई में करा दिया गया.
आपसे निवेदन है कि आप 'रेलवे समाचार' के माध्यम से तथ्यों को उजागर करते रहें और इस 'विषधर' का पर्दाफाश करते हुए इसके और इसकी पत्नी के खिलाफ डीएआर कार्यवाही कराएं.
आपका शुभेच्छु
एक अधिकारी,
पश्चिम रेलवे, मुंबई.

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