Saturday 6 February, 2010

नए मेंबर ट्रैफिक का स्वागत

भारी जोड़-तोड़ और फेवर करके रेलमंत्री ने विवेक सहाय को नया मेंबर ट्रैफिक बनाया है. सिर मुंडाते ही ओले पड़े की तर्ज पर उनके नए मेंबर ट्रैफिक के पदभार ग्रहण करने के मात्र 15 दिन के अंदर ही कम से कम 4 बड़ी रेल दुर्घटनाएं हो चुकी हैं. 28 दिसंबर 09 की रात 8.30 बजे विवेक सहाय द्वारा पदभार ग्रहण करने के मात्र पांचवें दिन ही इटावा स्टेशन के पास लिच्छवी एक्सप्रेस से श्रमजीवी एक्सप्रेस की भिड़ंत और उसी दिन पनकी, कानपुर के पास प्रयागराज एक्सप्रेस से गोरखधाम एक्सप्रेस की भीषण टक्कर ने उनका स्वागत किया. इन दोनों दुर्घटनाओं में मारे गए करीब 30-35 यात्रियों एवं सैकड़ों घायलों ने नए मेंबर ट्रैफिक के स्वागत में स्वयं को कुरबान कर दिया. इसके बाद 4 जनवरी को इलाहाबाद के पास एक ट्रेन और ट्रैक्टर ट्राली की भिड़ंत हो गई और अब 16 जनवरी को टुंडला स्टेशन के पास पुन: श्रमजीवी एक्सप्रेस एवं कालिंदी एक्सप्रेस की टक्कर ने नए मेंबर ट्रैफिक (एसटी) का इस्तकबाल किया है. इसमें भी कई लोग मारे गए और पचासों घायल हुए हैं. एक मेनिपुलेटर और अत्यंत क्रूर अधिकारी की ताजपोशी के लिए सैकड़ों यात्रियों को अपनी कुरबानी देनी पड़ेगी, इसका अंदाज शायद किसी को नहीं था. जबकि रेलमंत्री ममता बनर्जी अपने राजनीतिक स्वार्थ में इतनी अँधी हो गई हैं कि उन्होंने लालू के इस खास विश्वासपात्र को अपना 'बगलबच्चा' बनाने में इतनी बड़ी जल्दबाजी की, कि एमटी पैनल की फाइल पीएमओ को भेजते समय उसमें यह टिप्पणी की थी कि 'मेंबर ट्रैफिक की पोस्ट भरा जाना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि ट्रेनों के सुचारु संचालन और सुपरविजन के मद्देनजर इस पद को खाली नहीं रखा जा सकता है'.

जबकि आज यह सर्वज्ञात है कि विवेक सहाय को तब तक स्पष्ट विजिलेंस क्लीयरेंस नहीं था. उनके खिलाफ आज भी रे.बो. विजिलेंस और सीवीसी में चार मामले लंबित हैं, लेकिन रे.बो. के बाबुओं और बिरादरी भाईयों ने कुछ ऐसी लॉबिंग की कि सारा गणित उलट गया और सारी व्यवस्था एवं निर्धारित स्थापनाओं की पूरी ऐसी-तैसी हो गई. पता चला है कि सीवीसी ने विवेक सहाय को थॉमस वर्गीस के मामले में मद्रास हाईकोर्ट द्वारा 11 नवंबर 2009 को दिए गए निर्णय की आड़ में विजिलेंस क्लीयरेंस दिया है. जिसमें मद्रास हाईकोर्ट ने ऐसा कुछ भी स्पष्ट रूप से नहीं कहा है कि उससे किसी को लाभ दिया जा सकता है. हाईकोर्ट ने सरकारी बाबुओं की तिकड़म और विसंगतिपूर्ण सरकारी नीतियों के सामने मजबूर होकर इस निर्णय में सुझाव दिया है कि जब तक नियमों में कोई परिवर्तन नहीं किया जाता तब तक एक जीएम पर सब्सिट्यूट की भर्ती की जिम्मेदारी छोड़कर इसके लिए कम से कम दो-तीन जीएम्स की कमेटी बनाई जानी चाहिए. इस बारे में सभी को पता है कि थामस वर्रीस के खिलाफ भर्तियों में भ्रष्टाचार का प्रथमदृष्ट्या मामला बनने और इसके लिए एफआईआर दर्ज करने हेतु सीबीआई ने रे.बो. से अनुमति मांगी थी. करीब दो साल तक यह अनुमति देकर अंतत: रे.बो. ने इसे देने से भी मना कर दिया था और वर्गीस को आरआरटी का मेंबर बनाकर पुरस्कृत कर दिया गया था. उधर बताते हैं कि इसके खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल करने वाले व्यक्ति को भी 'मैनेज' कर लिया गया था. फलस्वरूप उसने अपने ही दाखिल किय गए मामले की पैरवी करना लगभग बंद कर दिया था. इस परिदृश्य में मद्रास हाईकोर्ट को जो निर्णय आया है, उससे तो थॉमस वर्गीस को और ही रे.बो. की नीतियों को कोई क्लीन चिट नहीं मिल गई है.

मगर 'क्षणिकबुद्धि' ममता बनर्जी को रे.बो. की इस भ्रष्ट नौकरशाही ने इस निर्णय के उल्टे अर्थ समझाकर विवेक सहाय का फेवर करवा लिया है. यह भी सर्वज्ञात है कि मद्रास हाईकोर्ट का निर्णय सिर्फ जीएम कोटे की भर्तियों और उनमें हुए भ्रष्टाचार के बारे में ही है, जबकि विवेक सहाय के खिलाफ सिर्फ यही एक मामला सीवीसी या रे.बो. विजिलेंस के पास लंबित नहीं है बल्कि उनके खिलाफ गु्रप 'बी' एलडीसीई में बिरादरी को फेवर करने, चतुर्थ श्रेणी से तृतीय श्रेणी में प्रमोशन के एक फाइनल पैनल को अनाधिकार मॉडिफाई करने सहित तीन अन्य मामले जांच के अधीन हैं और जनसूचना अधिकार कानून के तहत सीवीसी ने इस बात को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि विवेक सहाय की एक फाइल (नं. 0083/रेलवे/९४ दि. 12.1.2009) 'अंडर एक्जामिनेशन' है. बाकी तीनों शिकायतों की भी सीवीसी ने कंप्लायंस दी हुई है और उनके बारे में अभी तक सीवीसी ने वर्तमान स्थिति स्पष्ट नहीं की है. तब सिर्फ एक मामले में मद्रास हाईकोर्ट के अस्पष्ट निर्णय के आधार पर विवेक सहाय को विजिलेंस क्लीयरेंस कैसे दिया गया, जबकि विजिलेंस के पास विचाराधीन एक भी मामला होने पर किसी भी सामान्य अधिकारी को रे.बो. विजिलेंस या सीवीसी द्वारा विजिलेंस क्लीयरेंस नहीं मिल पाता है?

उधर जब यही बात एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान मीडिया द्वारा रेलमंत्री ममता बनर्जी से पूछी जाती है कि जब वे लालू की थ्योरी को नकारती हैं और कहती हैं कि लालू की थ्योरी झूठ है, उनके समय में 90000 करोड़ का मुनाफा कोरी बकवास है, तो लालू को इस तरह हवा में उड़ाए रखने वाले उनके सबसे विश्वासपात्र रहे विवेक सहाय, के.बी.एल. मित्तल, राकेश यादव, एस. एम. तहसीन मुनव्वर आदि अधिकारियों को वे अब तक क्यों महत्वपूर्ण पदों पर बैठाए रखकर अपने गले लगाए हुए हैं? क्यों इन्हें प्रमोट करके पुरस्कृत कररही हैं? तो यह सच्चाई सुनकर ममता बनर्जी मीडिया पर बरस पड़ती हैं और कांफें्रस खत्म करके भाग खड़ी होती हैं. राजनीतिज्ञों की इन्हीं रणछोड़ नीतियों, राजनीतिक स्वार्थों और पार्टी फंडों केे लालच ने भारतीय रेल को बरबाद एवं खोखला करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.

इसी वजह से मैन, मटेरियल, मैनेजमेंट (- मानव संसाधन, आवश्यक गुणवत्तापूर्ण सामग्री एवं कुशल प्रबंधन) की गुणवत्ता लगातार घटी है. लालू ने उगाही सहित प्रत्येक क्षमता का आवश्यकता से अधिक उपयोग करके रेलवे की हालत को अंदर से और ज्यादा खोखला एवं जर्जर कर दिया. मैन, मटेरियल, मैनेजमेंट को चापलूसों की भीड़ में बदल दिया. अब उन्हीं के नक्शेकदम पर ममता बनर्जी भी चल पड़ी हैं. क्योंकि रेलवे की अति चालाक नौकरशाही और बिरादरी लॉबी अपनी अत्यंत नीचतापूर्ण चालाकियों की घुट्टी उन्हें भी पिलाने में कामयाब हो गई है. यदि नौकरशाही पर लगाम नहीं लगाई गई और इसी तरह श्रीप्रकाश, विवेक सहाय, राकेश यादव, के.बी.एल. मित्तल, जे. के. साहा जैसे महाभ्रष्टों एवं महामेनीपुलेटरों को प्रमुख-जिम्मेदार पदों पर तमाम जोड़-तोड़ करके बैठाया जाता रहा, तो एक दिन निश्चित ही भा.रे. के बिकने की नौैबत जाएगी, क्योंकि ऐसे ही लोग अपने व्यक्तिगत स्वार्थ में अंधे होकर और मंत्रियों को उल्टी-सीधी पट्टी पढ़ाकर गलत नीतियां, गलत निर्णय करवाकर देश और रेलवे को खोखला करके आराम से रिटायर होकर मौज कर रहे हैं. मगर इनकी क्रूरतापूर्ण चालाकियों और भ्रष्टाचार का खामियाजा पूरे देश और इसकी जनता को लंबे समय तक भुगतना पड़ रहा है.

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