Saturday 13 February, 2010

रेलवे में 'एयरटेल' की लूट

मुंबई : 'क्लोज यूजर ग्रुप' के नाम पर सभी जोनल रेलों में अलग-अलग जोनल क्लोज यूजर ग्रुप बनाने के लिए रेलवे बोर्ड ने मोबाइल आपरेटर कंपनी 'एयरटेल' को अधिकृत ठेकेदार बनाकर खुली लूट की छूट दे रखी है. परिणामस्वरूप इस मोबाइल कंपनी ने रेलवे कारखानों, लोको शेडों, कार शेडों और जोनल एवं डिवीजनल मुख्यालयों के आसपास छतरी स्टाल्स लगा-लगाकर इस रेलवे सीयूजी प्लान (मासिक रेंटल 149 रु.) के नाम से लाखों-लाख रेल कर्मचारियों को यह कहकर, कि इसमें अपस में बातचीत मुफ्त है, बड़े पैमाने पर उल्लू बनाकर न सिर्फ अब तक धड़ल्ले से लाखों सिम कार्ड बेच डाले हैं बल्कि उन्हें धड़ल्ले से लूटा भी है और अभी-भी लूट रही है. यही नहीं कंपनी की इस उल्लू बनाओ योजना (प्लान) में सैकड़ों अधिकारी भी फंसे हैं, जिन्होंने इसी लालच में अपने परिवार वालों के लिए भी दो-चार सिम कार्ड अलग से खरीद लिए थे. इस प्रकार एयरटेल अपने इस 'उल्लू बनाओ प्लान' के अंतर्गत प्रतिमाह रेलवे से अधिकृत तौर पर कम से कम 12-15 करोड़ रु. और करीब इतने ही रुपए अनधिकृत तौर पर रेल कर्मचारियों से लूट रही है.

एयरटेल बिल प्लान 149 एमबी के तहत उपरोक्त कारणों एवं स्थितियों के मद्देनजर म.रे. के ड्राइवर श्री सुरेंद्र शर्मा ने भी सिम खरीद लिया था कि इससे उन्हें रेलवे स्टाफ एवं अधिकारियों से बातचीत करने में आसानी होगी. मगर जब उन्हें इसकी असलियत पता चली तथा लगातार वह ज्यादा बिलिंग की शिकायत करते रहे तब भी समस्या का कोई समाधान नहीं हुआ, तो उन्होंने अपना माथा पीट लिया. श्री शर्मा ने बताया कि करीब दो साल तक वह रेलवे सीयूजी प्लान के धोखे में इस प्लान का सिम इस्तेमाल करते रहे क्योंकि कंपनी ने उन्हें यही कहकर उक्त सिम कार्ड बेचा था कि इससे रेलवे सीयूजी में फ्री बातचीत होगी और इस प्लान (149 रु. मासिक) के तहत आने वाले सभी सिमकार्ड आपस में फ्री होंगे. इसके अलावा अन्य किसी भी नेटवर्क पर 50 पैसे प्रति मिनट, एसटीडी 1 रु. प्र.मि., लोकल लैंड लाइन 1 रु. प्र.मि., प्रति एसएमएस 30 पैसे लोकल और 1.50 रु. नेशनल का चार्ज होगा तथा टोटल बिल पर 35 प्र.श. फ्लैट डिस्काउंट दिया जाएगा.

दो साल पहले रेलकर्मियों को एयरटेल की यह दरियादिली प्लान खूब पसंद आया और हजारों-लाखों रेल कर्मचारियों ने अपने और अपने परिवार वालों के लिए 2-2, 4-4 की संख्या में सिम खरीद लिए. तब वास्तव में इनमें आपस में बातचीत फ्री हो रही थी. पर यह स्थिति सिर्फ 4-5 महीने तक रही. और अचानक श्री शर्मा जैसे हजारों रेल कर्मचारियों की समझ में आया कि जो सिम कार्ड इस प्लान के तहत रेलवे ने खरीदे थे, उनसे बातचीत करने पर उन्हें प्रति मिनट की दर से पैसा लगने लगा. उन्होंने बताया कि मेंने हर बिल के समय एयरटेल कस्टमर केयर को शिकायत दर्ज करवाई, मगर हर बार वहां से यही जवाब मिलता रहा कि अगली बार ऐसा नहीं होगा, परंतु कंपनी का यह 'अगली बार' कभी नहीं आया. उन्होंने कहा कि मैंने डेढ़ वर्ष में कम से कम 40 बार अपनी शिकायत कंपनी के पास दर्ज करवाई, मगर कुछ नहीं हुआ.

इन रेल कर्मचारियों का बिल सेक्शन, बिल कलेक्शन सेंटर, नोडल अधिकारी, अन्य अनेक अधिकारियों सहित मालाड स्थित कंपनी के मुख्य कार्यालय में जाकर यानी जहां-जहां बताया गया वहां-वहां जाकर अपनी शिकायत दर्ज करवाने के बाद भी कोई संतोषप्रद जवाब नहीं मिला, जबकि श्री सुरेंद्र शर्मा को करीब 10 माह बाद कंपनी द्वारा बताया गया कि रेलवे की सीयूजी आईडी 109.101489228 और चाइल्ड एकाउंट 4800 है जबकि जिन सिमकाड नंबरों पर बिल आता है उनकी आईडी 109.101739914 तथा चाइल्ड एकाउंट 731 है. इसलिए आपको यह बिल देना ही पड़ेगा. जब उन्होंने यह पूछा कि पहले ऐसा क्यों नहीं था और जो सुविधा मुझे पहले दी जा रही थी तथा जिसे बताकर मुझे कार्ड बेचा गया था, वही सुविधा जारी रखी जानी चाहिए, तो कंपनी ने पूर्व सुविधा जारी रखने से साफ मना कर दिया और अंतत: उनका मोबाइल (नं. 9987647602) बंद कर दिया.

एयरटेल मोबाइल कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि 'हम अधिकृत रूप से सिर्फ रेलवे को ही सीयूजी सिम देते हैं और ये सिम कार्ड रेलवे से बाहर अन्य किसी को नहीं दिए जाते हैं.' यदि कंपनी की यह बात सही है तो इस 149 प्लान के तहत वर्कशॉप्स, लोकोशेड, कारशेड, रनिंग रूम्स, लॉबी और जोनल एवं डिवीजनल मुख्यालयों के बाहर छतरी स्टाल लगाकर कंपनी के जो सिम कार्ड बेचे जा रहे हैं, वह सिम कार्ड किसके हैं? मगर एयरटेल कंपनी के अधिकारी यह बात मानने को तैयार नहीं हैं. जबकि वे इनकी अलग-अलग आईडो देकर लाखों रेलकर्मियों के बेवकूफ बना कर लूट रहे हैं. और ऐसे सभी सिम कार्डों के बिलों पर 'रेलवे प्लान 149 एमबी' लिखा आ रहा है. यह कंपनी की लूट की चरमसीमा नहीं तो क्या है?

इस समस्या को लेकर जब रेल अधिकारियों से बात की गई तो यह जानकर आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि वह भी एयरटेल की इस चालाकी से बुरी तरह त्रस्त हो चुके हैं. क्योंकि एक रेल अधिकारी को दो सिम कार्ड रेलवे सीयूजी प्लान में ही देने का कंपनी का ऑफर पाकर तमाम अधिकारियों ने दो-दो सिम कार्ड खरीद लिए. जिससे घरवाली और बाहरवाली से धड़ल्ले से घंटों मुफ्त बातचीत की जा सके. मगर कुछ ही दिनों में उन्हें भी कंपनी की इस चालाकी का पता लग गया और अधिकांश अधिकारियों ने यह सिम कचरे में फेंककर अन्य कंपनियों के सस्ते-सुलभ प्लान खरीद लिए हैं.

यही नहीं एयरटेल ने रेलवे सीयूजी के नाम पर रेलवे के हजारों कांट्रैक्टरों को भी लाखों सिम कार्ड यह कहकर बेच दिए हैं कि रेलवे सीयूजी नंबरों पर उनसे फ्री बातचीत होगी. इसी आधार पर कांट्रैक्टरों ने अपनी कंपनी में कार्यरत 50-100 लोगों के लिए इतनी ही संख्या में थोक में रेलवे प्लान 149 एमबी सीयूजी के यह सिम कार्ड खरीद डाले. अब उन्हें भी यह पता चल रहा है कि रेलवे सीयूजी में अधिकारियों से बात करने का उन्हें भी पैसा लग रहा है. कुछ कांट्रैक्टरों ने तो एयरटेल के ये कथित सीयूजी सिम कार्ड बंद कर दिए हैं. एक कांट्रैक्टर का तो यह तक कहना था कि उसने एक बार में 35 सिम कार्ड इस रेलवे प्लान मेंं खरीदा और जब उसे इसी में 4 सिम और लेने पड़े तो इन चार सिम से पहले के 35 सिम में बात करने के भी पैसे लगने लगे हैं. इस तरह कंपनी ने बहुतों को उल्लू बनाया है. इस कांट्रैक्टर ने भी कहा कि वह शीघ्र ही एयरटेल के ये सभी सिम कार्ड बंद करके टाटा डोकोमो में शिफ्ट करने जा रहा है जो कि ऑल इंडिया स्तर पर आपम में फ्री हो गया है. यही स्थिति रिलायंस मोबाइल एवं अन्य मोबाइल आपरेटरों की भी है.

रेलवे के आप्टिकल फाइबर का उपयोग करने वाली एयरटेल मोबाइल कंपनी संपूर्ण भारतीय रेल में अब तक करीब 10 लाख से भी ज्यादा सिम कार्ड अपने तथाकथित रेलवे सीयूजी प्लान के अंतर्गत बेच चुकी है और प्रतिमाह लगभग 12 से 15 करोड़ रु. सिर्फ रेलवे सीयूजी के तहत भारतीय रेल से कमा रही है. जबकि इतनी ही रकम इसके अतिरिक्त रेलकर्मचारियों-अधिकारियों और रेलवे के ठेकेदारों को यह सिम बेचकर कमा रही है. शायद इतनी बड़ी और एकमुश्त लूट इस मोबाइल कंपनी के अलावा अन्य कोई नहीं कर रहा होगा. आज जब टाटा डोकोमो मात्र 99 रु. के वन टाइम रिचार्ज पर एक साल में 5 लाख सेकेंड यानी प्रतिमाह करीब 12 घंटे तक लाखों ग्राहकों को अखिल भारतीय स्तर पर आपस में मुफ्त बात करने की सुविधा उपलब्ध करा रहा है तब एयरटेल सिर्फ इसी बातचीत के लिए, वह भी सिर्फ स्थानीय स्तर पर, प्रतिमाह 149 रु. यानी प्रतिवर्ष 1788 रु. रेंटल के रूप में यानी 100 गुना ज्यादा पैसा वसूल करके खुलेआम भारतीय रेल को लूट रही है, जबकि इसका यह दायरा अत्यंत सीमित है.

विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार एयरटेल को संपूर्ण भारतीय रेल में सीयूजी के तथाकथित प्लान का ठेका देने के लिए रेलवे बोर्ड के कुछ उच्च अधिकारियों सहित पूर्व रेलमंत्री को करोड़ों रुपए का व्यक्तिगत लाभ हासिल हुआ है. यह एक बहुत बड़ा घोटाला है और इस घोटाले की सीबीआई जांच की मांग हो रही है, क्योंकि जब बाजार में भारी प्रतिस्पर्धा के चलते दो साल पहले ही विभिन्न मोबाइल आपरेटर बाजार में अपने ग्राहकों को बांधे रखने के लिए एक से एक बेहद सस्ते प्लान दे रहे थे, तब एयरटेल को उसी दौरान इतनी महंगी दर पर यह ठेका देने की पहल क्यों की गई? क्यों नहीं रेलवे ने अपने असीमित आप्टिकल फाइबर नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए रेलवे फोन की तर्ज पर अपना खुद का मोबाइल नेटवर्क खड़ा किया?

विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि बाजार के बढ़ते दबाव और एयरटेल ने अपनी चालाकी पकड़े जाने के डर से अब एयरटेल ने डोकोमो और रिलायंस, एयरसेल आदि की तर्ज पर बेहद कम मासिक रेंटल पर अथवा इसके बिना कोई नया प्लान भा. रे. को सुझाने जा रही है. तथापि इससे कंपनी का अपराध कम नहीं हो जाएगा. अवश्य ही इस मामले में कोई बड़ा भारी गड़बड़ घोटाला हुआ है, वरना सारे रेल अधिकारी क्यों अपना मुंह बंद करके इस कंपनी की मनमानी सहे जा रहे हैं? इस लूट को क्यों सहन किया जा रहा है, यह समझ में नहीं आता. इसके पीछे सिर्फ एयरटेल की ही चालाकी है या फिर इस घोटाले में और भी रेल अधिकारी शामिल हैं? इसे तुरंत बंद करके इस लूट पर लगाम लगाई जानी चाहिए और पूरे मामले की सीबीआई से जांच करवाई जानी चाहिए.

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