Thursday 18 February, 2010

पू. . रे. की हालत खराब

फंड होने से रेल परियोजनाएं अधर में

नोंचने-खसोटने में लगे हैं कुछ अधिकारी
लालू की रेल मानकर ममता बनर्जी का कोई ध्यान नहीं पू..रे. पर
पू..रे. में एमएसीपीएस लागू नहीं
स्थगित एलडीसीई के परिणाम जारी कराने की कोशिश
बेलास्ट की सप्लाई में प्रति रेक 2 लाख रु. का नुकसान
कर्मचारियों को अपने वेतन-भत्ते लेने के लिए भी देनी पड़ती है डीलिंग
क्लर्कों को रिश्वत


हाजीपुर : पू..रे. इंजीनियरिंग विभाग में अब तक कर्मचारियों के लिए माडर्न एसीपी स्कीम लागू नहीं की गई है, जबकि अन्य सभी रेलों में यह लागू कर दी गई. इससे यहां इंजी. विभाग के कर्मचारियों का कैरियर प्रभावित हो रहा है. उनका कहना है कि जिन रेलों से वे यहां ट्रांसफर होकर आए थे, वहां उनके साथी कर्मचारियों को इस स्कीम का लाभ काफी पहले ही मिल चुका है. परंतु पू..रे. में अब तक इस पर कोई विचार नहीं किया गया है, जिससे अन्य रेलों से यहां आए कर्मचारी काफी पीछे हो गए हैं. उनका यह भी कहना है कि उन्हें यहां तो स्कीम का अथवा अन्य कोई कैरियर प्रोग्रेशन का लाभ दिया जा रहा है और ही पुरानी रेलों में वापस जाने दिया जा रहा है. इस तरह सैकड़ों रेल कर्मियों का कैरियर यहां खराब हो गया है.

इंजी. कर्मचारियों का कहना है कि वर्तमान रेलमंत्री की कृपा से अब रेलवे में बिहारवाद का तो खात्मा हो गया, परंतु यहां चल रही तमाम रेल परियोजनाओं के लिए भी पर्याप्त फंड नहीं दिया गया है और जो फंड पिछले बजट में आवंटित भी हुआ था, वह भी अन्यत्र (. बंगाल) डायवर्ट कर दिए जाने से पू..रे. की लगभग सभी महत्वपूर्ण रेल परियोजनाएं अधर में लटक गई हैं. कई परियोजनाओं का तो सारा काम ही अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया है. ऐसे में कर्मचारियों का कहना है कि कोई काम होने से तमाम कर्मचारी भी इफरात हो गए हैं, तथापि उन्हें पुरानी रेलों में वापस जाने की अनुमति नहीं दी जा रही है. जबकि पूर्व रेलमंत्री के समय तमाम गधे-घोड़े, जो बिना किसी योग्यता के पीडब्ल्यूआई, आईओडब्ल्यू, पीडब्ल्यूएस आदि बना दिए गए थे, भी अब और ज्यादा उत्पात मचा रहे हैं तथा इनके जरिए संबंधित अधिकारीगण आज भी मौज कर रहे हैं.

इसी पद्धति के चलते कर्मचारियों का कहना है कि निर्माण विभाग में खूब अंधाधुंधी आज भी चल रही है और संबंधित अधिकारी रेलवे की खाल नोंचकर अपनी जेबें भरने में लगे हुए हैं. उन्होंने बताया कि पाकुर, बाकुड़ी एवं राजग्राम क्वैरियों से आने वाली गिट्टी (बेलास्ट) के रेक पहले सीधे सेक्शन में जाकर अनलोड होते थे, इससे रेलवे को कोई नुकसान नहीं बल्कि काफी बचत होती थी, परंतु पू.रे. के अंतर्गत पडऩे वाली क्वैरियों से लोड होकर अब इस गिट्टी के रेक सीधे गरारा यार्ड में भेजे जा रहे हैं. उनका कहना था कि अब यह रेक पहले गरारा यार्ड में अनलोड होते हैं, फिर वहां से अन्य रेकों में लोड होकर यह गिट्टी सेक्शन को भेजी जाती है.

कर्मचारियों का कहना है कि इससे रेलवे को करोड़ों का नुकसान हो रहा हैं. कर्मचारियों ने बताया कि प्रति रेक अनलोडिंग के लिए रेलवे को लगभग 55 से 60 हजार रु. खर्च करने पड़ते हैं. पुन: करीब इतनी राशि लोडिंग के लिए भी देनी पड़ती है. इसके बाद उसका स्टैक (चट्टा) लगाने का खर्च और उसमें होने वाली छीजन का नुकसान अलग से होता है. इस प्रकार गरारा यार्ड में गिट्टी की सप्लाई करने वाली एजेंसी और वहां लोडिंग-अनलोडिंग एवं स्टैक लगाने पुनर्लोडिंग करने वाली एजेंसी तथा संबंधित इंजी. अधिकारियों की मिलीभगत से रेलवे को करोड़ों का चूना लगाया जा रहा है, जबकि सप्लाई में कमी-बेसी तथा गुणवत्ता में समझौते से होने वाला नुकसान इस सबके अलावा है.

कर्मचारियों का कहना है कि इस सारी मिलीभगत से प्रति रेक करीब डेढ़ से दो लाख रु. का नुकसान रेलवे को हो रहा है. कर्मचारियों का मानना है कि रेलमंत्री ममता बनर्जी अभी भी पू..रे. को 'लालू की रेल' समझती हैं, अन्यथा पू..रे. के साथ पक्षपाथ नहीं होता और वह सीधे पू.रे. को आदेश देकर कह सकती हैं कि वहां से बेलास्ट रेक लोड होकर सीधे प्रोजेक्ट साइट्स/सेक्शन के लिए बुक किए जाएं. कर्मचारियों का कहना है कि मगर ऐसा लगता है कि ममता को तो अब बिहार की रेल परियोजनाओं से तो कोई मतलब रह गया है. और ही उन्हें यहां की रेल परियोजनाओं को पूरा करने में कोई रुचि है.

इंजी. कर्मचारियों का कहना है कि दो-दो एलड़ीसीई में बड़े पैमाने पर घपला करने वाले पीसाई को अब तक हटाए जाने तथा स्थगित परीक्षा परिणामों को बार-बार बड़ी राशि के लेन-देन से जारी करने के प्रयासों से यहां सभी कर्मचारियों में भारी हताशा का माहौल है. उन्होंने बताया कि गत दिनों स्थगित एलडीसीई परिणाम घोषित करवाने के लिए जीएम एवं एसडीजीएम के नाम पर करीब 7-8 लाख रु. इकट्ठा करवाया गया था. इसकी मध्यस्थता एक विभागीय डिप्टी सीई ही कर रहा था. परंतु जीएम/एसडीजीएम के संज्ञान में यह मामला ला दिए जाने से फिलहाल इस पर पुन: पर्दा पड़ गया है. उनका मानना है कि विजिलेंस की विलंबित कार्रवाई के चलते ऐसे प्रयास फिर से किए जा सकते हैं.

इसके अलावा कर्मचारियों ने बताया कि पू..रे. के लगभग सभी मंडलों में इंजी. कर्मचारियों को आपात स्थिति में अपना वेतन लेने के लिए भी संबंधित डीलिंग क्लर्कों को रिश्वत देनी पड़ती है. जबकि टीए बिल में 10 प्रतिशत, पीएफ निकालने के लिए 4 प्रतिशत राशि रिश्वत या कमीशन के रूप में डीलिंग क्लर्कों ने पहले से ही तय कर रखा है. उन्होंने बताया कि कांट्रैक्टर/सप्लायर बिलों में तो चेक राशि के अनुसार डीलिंग क्लकों द्वारा तय कमीशन वसूलना तो अब सर्वज्ञात ही हो चुका है. उनका कहना है कि कुछेक को छोड़कर लगभग प्रत्येक अधिकारी-कर्मचारी दीमक की तरह रेलवे की जड़ों को कुतर रहा है और यह स्थिति सिर्फ पूर्व मध्य रेलवे के इंजी. विभाग की नहीं बल्कि सभी विभागों सहित संपूर्ण भारतीय रेल की भी है.

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