Saturday 3 October, 2009

समय से पहले नहीं जाएंगे श्रीप्रकाश
ममता .बंगाल में बिजी
बोर्ड में हजारों फाइलों का ढेर लगा


सुदेश कुमार को ही एम् एल बनाने की पुनः सिफारिश, मगर पीएमओ फ़िर भी यू सी डी श्रेणी के ही पक्ष में, दो के झगडे में किसी तीसरे का हो सकता है फायदा, महाप्रबंधकों की पोस्टिंग का प्रस्ताव डी पी टी ने जैसे का तैसा पीएमओ को फारवर्ड कियाके डी शर्मा को अडिशनल मेंबर / टेली और संजीव हांडा को अडिशनल मेंबर / मेकेनिकल बनाने का लंबे समय से अटका आर्डर पीएमओ से गया

नयी दिल्ली : वैसे तो समय से पहले कोई नहीं जाता है और किसी को तो जाना चाहिए और ही जाने की इजाजत है। परंतु भा.रे. में विभिन्न सर्विसेस के इतने सारे साइड घोसले बने हैं कि इसके अधिकारी समय से पहले यानी मुख्य सेवा से रिटायर होने से पहले साइड सेवा में जाकर वहां कुछ आराम कर लेते हैं और कुछ अतिरिक्त समय तक 'सिस्टम' में बने रहने का 'मुगालता' भी पाल लेते हैं.
लेकिन परिस्थितियां और मन:स्थिति यह बता रही है कि वर्तमान मेंबर ट्रेफिक (एमटी) श्री श्रीप्रकाश अपनी मुख्य सेवा छोड़कर समय से पहले तो किसी साइड घोसले में जाने वाले हैं ही 'बिरादरी' के नाम पर अपने बिरादरी भाई श्री विवेक सहाय के लिए एमटी की सीट खाली करने वाले हैं. रेलवे बोर्ड एवं तमाम जोनल अधिकारियों के बीच आजकल यह चर्चा काफी जोरों से चल रही है कि श्री श्रीप्रकाश समय से पहले जा रहे हैं या नहीं. परंतु फिर उन्हीं से यह संकेत भी मिल रहे हैं कि वे कहीं नहीं जा रहे हैं और ही श्री सहाय को एमटी बनने का कोई मौका देने जा रहे हैं.
अधिकारी गण इसकी दो वजहों की चर्चा कर रहे हैं. एक तो यह कि अभी कोलकाता हाईकोर्ट में पूर्व एडवाइजर और पूर्व सीएओएम/.रे. श्री एस. आर. ठाकुर द्वारा दायर याचिका के कारण अभी तक आरसीटी की नियुक्तियों पर कोई निर्णय नहीं हो पाया है और श्री श्रीप्रकाश ने इसके लिए अप्लाई भी नहीं किया है. दूसरे यह कि श्री श्रीप्रकाश की श्री विवेक सहाय से 'पटरी' भी नहीं बैठती है. अधिकारीगण इसका कारण यह बताते हैं कि जब श्री श्रीप्रकाश बोर्ड में
ईडी/ट्रैफिक हुआ करते थे तब श्री सहाय उन्हें बायपास करके सीधे तत्कालीन एमटी से अपने मनमाफिक आर्डर करा लिया करते थे और श्री श्रीप्रकाश को मुंह चिढ़ाया करते थे. अधिकारियों का कहना है कि इसी बात की ग्रंथि अब तक श्री सहाय के प्रति श्री श्रीप्रकाश के मन में बनी हुई है. इसीलिए वह श्री सहाय के हित में जाने वाला ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे, जिससे श्री सहाय को फायदा पहुंचे.
बहरहाल श्री श्रीप्रकाश की यह मन:स्थिति अथवा ग्रंथि भा.रे. के तमाम ट्रैफिक अधिकारियों और महाप्रबंधक /..रे. श्री कुलदीप चतुर्वेदी के पक्ष में जाती है, क्योंकि कोई ट्रैफिक अफसर दिल से यह नहीं चाहता कि श्री सहाय अगले मेंबर ट्रैफिक बने. इन ट्रैफिक अफसरों की आशंका है कि यदि श्री सहाय एमटी बनने हैं तो वे सबसे ज्यादा उन्हीं के लिए नुकसानदेह (भस्मासुर) साबित होंगे और आये दिन अपनी सैडिस्ट मानसिकता के चलते वह कोई कोई विवाद पैदा करे रहेंगे, जैसा कि ..रे. .रे. और अब .रे. के अधिकारियों को उनकी दिग्भ्रमित कार्यप्रणाली से पर्याप्त अनुभव मिल चुका है. बहरहाल, इससे अगले एमटी के तौर पर श्री कुलदीप चतुर्वेदी का रास्ता साफ हो जाता है और कोई भी अफसर उन्हें कम से कम 'हार्मफुल' तो नहीं मानता
है.
उधर मेंबर इलेक्ट्रिकल के पद पर अब तक किसी नियुक्ति का निर्णय नहीं हो पाया है. इसके साथ ही महाप्रबंधकों की पोस्टिंग भी अटकी पड़ी है. हालांकि इनकी पोस्टिंग का प्रस्ताव डीओपीटी में ही अब तक अटका पड़ा है, जबकि श्री पी. बी. मूर्ति, श्री के. के. सक्सेना, श्री सी. पी. वर्मा और श्रीमती पम्पा बब्बर ने अपने-अपने ज्ञापन देकर इस पोस्टिंग प्रस्ताव को अभी और अटकाने का प्रबंध कर लिया है. तथापि सूत्रों ने श्री वी. एन. त्रिपाठी का मेट्रो से ..रे. सिकंदराबाद और श्री एम.एस. जयंत का आईसीएफ से .रे. में लेटरल ट्रांसफर को सुनिश्चित बताया है. अब देखते हैं कि ऊंट किस करवट बैठता है. जबकि चर्चा यह भी है कि डीओपीटी से यह प्रस्ताव वापस आने वाला
है।
केंद्र सरकार को बने हुए तथा सुश्री ममता बनर्जी को रेलमंत्री बने हुए चार-पांच महीने बीत चुके हैं परंतु इस दरम्यान रेलवे का कोई भी काम आगे नहीं बढ़ पाया है. यहा तक कि जोनल महाप्रबंधकों और मेंबर इलेक्ट्रिकल,
रे.बो. की पोस्टिंग का भी निर्णय नहीं लिया जा सका है. बोर्ड के कई अधिकारियों और मान्यताप्राप्त रेल संगठनों के पदाधिकारियों का मानना है कि जब सब कुछ पूर्व की भांति ही चलना था तो रेल मंत्री स्तर पर परिवर्तन का क्या लाभ भा.रे. को मिला है? उनका कहना है कि पूर्व रेलमंत्री के कार्यकाल में भी महाप्रबंधकों और बोर्ड मेंबरों की पोस्टिंग 6-8 महीनों तक पेंडिंग रहती थी, वही अब भी हो रहा है. यहां तक कि 6वें वेतन आयोग की एक भी विसंगति अब तक दूर नहीं हो पाई है. फाइलों का अंबार रेल मंत्री सेल में लगा हुआ है. कोई महत्वपूर्ण निर्णय नहीं हो रहे हैं, जबकि रेलमंत्री को . बंगाल की अपनी राजनीति से फुर्सत नहीं है, अधिकारियों का कहना है कि यदि सब होना था तो ममता जी को रेल मंत्रालय खुद के बजाय अपने किसी अन्य सहयोगी सांसद को दिलवाना चाहिए था.

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