सीआरपीओए के पदाधिकारी चुने गए
महासचिव के चुनाव में कुलश्रेष्ठ पराजित
मुंबई : सेंट्रल रेलवे प्रमोटी ऑफीसर्स एसोसिएशन (सीआरपीओए) के पदाधिकारियों का चुनाव 23 सितंबर को किया गया. इसमें एकमात्र महासचिव पद के लिए मतदान हुआ, बाकी पदों पर सर्वसम्मति से निर्णय लेकर उन पर पदाधिकारियों का चयन हो गया. इस बार महासचिव पद के लिए पूर्व अध्यक्ष श्री एस. के. कुलश्रेष्ठ ने श्री एल. वी. दूदम के समक्ष अपनी दावेदारी पेश की थी. परंतु अध्यक्ष के रूप में अपना जनाधार पहले ही खो चुके श्री
कुलश्रेष्ठ के महासचिव के पद पर मानने को ज्यादातर अधिकारीगणों को मंजूर नहीं था. इसलिए जब उन्होंने अपनी उम्मीदवारी वापस नहीं ली तो गोपनीय मतदान कराया गया. जिसमें कुल 20 वोटों में श्री कुलश्रेष्ठ को मात्र 6
वोट मिले जबकि श्री दूदम को 11 वोट प्राप्त हुए. तीन विभागीय प्रतिनिधिगण कार्यालयीन कार्य से बाहर होने के कारण मतदान में भाग नहीं ले सके, जबकि कोषाध्यक्ष पद पर श्री सी.एम. तिवारी के पर्चा वापस ले लेने पर श्री एस. जे. चौहान का निर्विरोध चयन हो गया. निर्वाचित पदाधिकारी इस प्रकार हैं.
अध्यक्ष : श्री आर. बी. दीक्षित (डीसीएम/मुंबई मंडल), उपाध्यक्ष : श्री एस. के. गर्ग, श्री एन. के. अग्रवाल, महासचिव - श्री एल. वी. दूदम (डीएफएम/मुंबई मंडल), कोषाध्यक्ष - श्री एस. जे. चौहान, संयुक्त सचिव - श्री आर. जे. सिंह, श्री सी. एम. तिवारी, संगठन सचिव - श्री महमूद अहमद, कार्यालय सचिव - श्री आर. आर. पोद्दार, श्री एस. वी. चारी.
उल्लेखनीय है कि श्री दूदम स्वयं इस बार महासचिव बनने के लिए इच्छुक नहीं थे. यह चाहते थे कि अब उनकी जगह कोई और ले ले. परंतु कोई भी अधिकारी इस पद पर आने के लिए तैयार नहीं हुआ. इसके अलावा अधिकांश विभागीय प्रतिनिधियों और सदस्य अधिकारियों का कहना था कि श्री दूदम को ही कंटीन्यू करना चाहिए. इसके अतिरिक्त नये अध्यक्ष का भी यह आग्रह था कि यदि श्री दूदम महासचिव पद पर बने रहते हैं तो ही वह अध्यक्ष बनने पर विचार करेंगे. हालांकि श्री दीक्षित एवं श्री दूदम दोनों को ही किसी पद पर रहने की इच्छा नहीं थी, क्योंकि डिवीज में पोस्टिंग होने के कारण उनके पास काम का भारी बोझ है. तथापि अधिकारियों के आग्रह को यह दोनों संभ्रांत अधिकारी टाल नहीं सके.
इसके बजाय श्री कुलश्रेष्ठ को दो आपरेटिंग, दो इंजीनियरिंग तथा दो मैकेनिकल प्रतिनिधियों सहित कुछ अधिकारियों को छोड़कर अधिकांश अधिकारी किसी भी पद पर रखे जाने के पक्ष में नहीं थे. तथापि कई प्रतिनिधियों ने उनसे उपाध्यक्ष अथवा कार्याध्यक्ष का पद स्वीकार करके कार्यकारिणी में बने रहने का आग्रह किया था. मगर उन्हें महासचिव पद से कम कुछ भी स्वीकार नहीं था, जबकि अध्यक्ष पद पर अपनी योग्यता न साबित कर पाने के कारण अध्यक्ष एवं महासचिव पद पर उनका रहना ज्यादातर सदस्य अधिकारियों को मंजूर नहीं था. शायद इसी कारण से वह स्वयं भी अध्यक्ष पद के लिए इस बार इच्छुक नहीं थे.
परंतु ऐसा लगता है कि ऑपरेटिंग, मैकेनिकल के प्रतिनिधियों ने महासचिव के लिए श्री कुलश्रेष्ठ को श्री दूदम के सामने खड़ा करके उनकी लुटिया डुबाने में अहम भूमिका अदा की है. क्योंकि जहां तक अन्य सदस्य पदाधिकारियों का मानना है, श्री कुलश्रेष्ठ ने पहले कभी महासचिव बनने के लिए अपनी इच्छा नहीं जताई थी. सदस्य अधिकारियों का कहना था कि तमाम सदस्यों, अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों का मूड देखकर ही श्री कुलश्रेष्ठ ने अध्यक्ष पद पर कंटीन्यू करने के प्रति अपनी अनिच्छा जता दी थी. बहरहाल जो हुआ वह नहीं होना चाहिए था, यही तमाम अधिकारियों का मानना है और शायद श्री कुलश्रेष्ठ का भी. क्योंकि मात्र 6 वोट पाकर उन्होंने यह अवश्य समझ लिया होगा कि कुछ लोगों के कहने में आकर उन्होंने गलत निर्णय लिया. मतदान एवं चुनाव डब्ल्यूआरपीओए के पूर्व महासचिव श्री एम. बी. दवे की देखरेख में संपन्न हुआ.
महासचिव के चुनाव में कुलश्रेष्ठ पराजित
मुंबई : सेंट्रल रेलवे प्रमोटी ऑफीसर्स एसोसिएशन (सीआरपीओए) के पदाधिकारियों का चुनाव 23 सितंबर को किया गया. इसमें एकमात्र महासचिव पद के लिए मतदान हुआ, बाकी पदों पर सर्वसम्मति से निर्णय लेकर उन पर पदाधिकारियों का चयन हो गया. इस बार महासचिव पद के लिए पूर्व अध्यक्ष श्री एस. के. कुलश्रेष्ठ ने श्री एल. वी. दूदम के समक्ष अपनी दावेदारी पेश की थी. परंतु अध्यक्ष के रूप में अपना जनाधार पहले ही खो चुके श्री
कुलश्रेष्ठ के महासचिव के पद पर मानने को ज्यादातर अधिकारीगणों को मंजूर नहीं था. इसलिए जब उन्होंने अपनी उम्मीदवारी वापस नहीं ली तो गोपनीय मतदान कराया गया. जिसमें कुल 20 वोटों में श्री कुलश्रेष्ठ को मात्र 6
वोट मिले जबकि श्री दूदम को 11 वोट प्राप्त हुए. तीन विभागीय प्रतिनिधिगण कार्यालयीन कार्य से बाहर होने के कारण मतदान में भाग नहीं ले सके, जबकि कोषाध्यक्ष पद पर श्री सी.एम. तिवारी के पर्चा वापस ले लेने पर श्री एस. जे. चौहान का निर्विरोध चयन हो गया. निर्वाचित पदाधिकारी इस प्रकार हैं.
अध्यक्ष : श्री आर. बी. दीक्षित (डीसीएम/मुंबई मंडल), उपाध्यक्ष : श्री एस. के. गर्ग, श्री एन. के. अग्रवाल, महासचिव - श्री एल. वी. दूदम (डीएफएम/मुंबई मंडल), कोषाध्यक्ष - श्री एस. जे. चौहान, संयुक्त सचिव - श्री आर. जे. सिंह, श्री सी. एम. तिवारी, संगठन सचिव - श्री महमूद अहमद, कार्यालय सचिव - श्री आर. आर. पोद्दार, श्री एस. वी. चारी.
उल्लेखनीय है कि श्री दूदम स्वयं इस बार महासचिव बनने के लिए इच्छुक नहीं थे. यह चाहते थे कि अब उनकी जगह कोई और ले ले. परंतु कोई भी अधिकारी इस पद पर आने के लिए तैयार नहीं हुआ. इसके अलावा अधिकांश विभागीय प्रतिनिधियों और सदस्य अधिकारियों का कहना था कि श्री दूदम को ही कंटीन्यू करना चाहिए. इसके अतिरिक्त नये अध्यक्ष का भी यह आग्रह था कि यदि श्री दूदम महासचिव पद पर बने रहते हैं तो ही वह अध्यक्ष बनने पर विचार करेंगे. हालांकि श्री दीक्षित एवं श्री दूदम दोनों को ही किसी पद पर रहने की इच्छा नहीं थी, क्योंकि डिवीज में पोस्टिंग होने के कारण उनके पास काम का भारी बोझ है. तथापि अधिकारियों के आग्रह को यह दोनों संभ्रांत अधिकारी टाल नहीं सके.
इसके बजाय श्री कुलश्रेष्ठ को दो आपरेटिंग, दो इंजीनियरिंग तथा दो मैकेनिकल प्रतिनिधियों सहित कुछ अधिकारियों को छोड़कर अधिकांश अधिकारी किसी भी पद पर रखे जाने के पक्ष में नहीं थे. तथापि कई प्रतिनिधियों ने उनसे उपाध्यक्ष अथवा कार्याध्यक्ष का पद स्वीकार करके कार्यकारिणी में बने रहने का आग्रह किया था. मगर उन्हें महासचिव पद से कम कुछ भी स्वीकार नहीं था, जबकि अध्यक्ष पद पर अपनी योग्यता न साबित कर पाने के कारण अध्यक्ष एवं महासचिव पद पर उनका रहना ज्यादातर सदस्य अधिकारियों को मंजूर नहीं था. शायद इसी कारण से वह स्वयं भी अध्यक्ष पद के लिए इस बार इच्छुक नहीं थे.
परंतु ऐसा लगता है कि ऑपरेटिंग, मैकेनिकल के प्रतिनिधियों ने महासचिव के लिए श्री कुलश्रेष्ठ को श्री दूदम के सामने खड़ा करके उनकी लुटिया डुबाने में अहम भूमिका अदा की है. क्योंकि जहां तक अन्य सदस्य पदाधिकारियों का मानना है, श्री कुलश्रेष्ठ ने पहले कभी महासचिव बनने के लिए अपनी इच्छा नहीं जताई थी. सदस्य अधिकारियों का कहना था कि तमाम सदस्यों, अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों का मूड देखकर ही श्री कुलश्रेष्ठ ने अध्यक्ष पद पर कंटीन्यू करने के प्रति अपनी अनिच्छा जता दी थी. बहरहाल जो हुआ वह नहीं होना चाहिए था, यही तमाम अधिकारियों का मानना है और शायद श्री कुलश्रेष्ठ का भी. क्योंकि मात्र 6 वोट पाकर उन्होंने यह अवश्य समझ लिया होगा कि कुछ लोगों के कहने में आकर उन्होंने गलत निर्णय लिया. मतदान एवं चुनाव डब्ल्यूआरपीओए के पूर्व महासचिव श्री एम. बी. दवे की देखरेख में संपन्न हुआ.
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