एक एसई ने दूसरे एसई को पिटवाया
मुंबई : एक महाभ्रष्ट और बेईमान सेक्शन इंजीनियर/वक्र्स (एसई/डब्ल्यू) ने एक ईमानदार और अपने जूनियर एसई/वक्र्स को सिर्फ इसलिए गुंडों से ऑन ड्यूटी पिटवा दिया क्योंकि वह उसकी बेईमानी में आड़े आता था. यह घटना 13 जून की है, जो कि परेल वर्कशॉप स्थित एसई/वक्र्स कार्यालय के पास घटी है. ज्ञातव्य है कि एसई/वक्र्स डिपो परेल में मनोज कुमार जैन और प्रशांत पुरोहित दो एसई/वक्र्स पदस्थ हैं. प्राप्त जानकारी के अनुसार श्री पुरोहित जब वर्कशॉप से अपने कार्यालय जा रहे थे, तभी उन पर 3-4 गुंडों ने क्रिकेट बैट से हमला किया. उनके साथ रहे एक अन्य कर्मचारी अरविंद सिंह को गुंडों ने पहले मारकर भगा दिया. उसके बाद गुंडों ने बैट से श्री पुरोहित को बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया. इस हमले में श्री पुरोहित को सिर में छोड़कर बाकी पूरे शरीर में चोटें लगीं. गुंडों के भाग जाने पर वर्कशॉप कर्मचारियों ने श्री पुरोहित को भायखला रेलवे अस्पताल में भर्ती कराया. जहां जांच करने पर उनके दोनों हाथों एवं पैरों में दो मेजर और तीन माइनर फ्रेक्चर पाए गए हैं. उनके दो ऑपरेशन किए गए हैं, बाकी ऑपरेशन अभी होने हैं. उन्हें पूरी तरह स्वस्थ होने में अभी करीब 3-4 महीने लग जाएंगे.
अज्ञात हमलावरों के खिलाफ इस घटना की एफआईआर भोईवाड़ा पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई गई है, जिसमें श्री पुरोहित द्वारा अपने सीनियर एसई/वक्र्स मनोज कुमार जैन पर उन पर यह हमला करवाने तथा जाने से मरवाने की सुपारी दिए जाने की आशंका व्यक्त की गई है. भायखला रेलवे अस्पताल में भर्ती श्री पुरोहित ने बताया कि यह हमला निश्चित तौर पर श्री जैन द्वारा ही उन पर करवाया गया है. इसका कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि परेल वर्कशॉप और कॉलोनी में चलने वाले कांट्रेक्ट वर्क को वह टेंडर शर्तों के अनुसार करने पर जोर देते थे, जो कि संबंधित कांट्रेक्टर सहित उसके साथ मिलीभगत के कारण श्री जैन को पसंद नहीं था. उन्होंने यह भी बताया कि श्री जैन इन्हीं कारणों से कई बार उनकी शिकायत उच्चाधिकारियों से करके उन्हें यहां से ट्रांसफर करवाना चाहते थे. मगर उच्चाधिकारियों ने उनकी बात नहीं मानी, तो वह कांट्रेक्टर के साथ मिलकर उन्हें जान से मरवा देने की सुपारी दे दी.
श्री पुरोहित की एफआईआर दर्ज होने की पुष्टि करते हुए भोईवाड़ा पुलिस स्ïटेशन के पीएसआई श्री अशोक नलावड़े ने बताया कि श्री पुरोहित ने उन पर हुए जानलेवा हमले के लिए अपने वरिष्ठ मनोज जैन की तरफ इशार किया है. उन्होंने कहा कि वे इस मामले में शीघ्र ही मनोज जैन से पूछताछ करने वाले हैं.
प्राप्त जानकारी के अनुसार श्री पुरोहित के साथ श्री जैन की यह 'टसल' पिछले करीब दो साल से, तब से चल रही थी, जबसे श्री पुरोहित को जेई से प्रमोट करके बतौर एसई/वक्र्स परेल वर्कशॉप डिपो में पदस्थ किया गया था. वर्कशॉप सूत्रों का कहना है कि श्री पुरोहित के आने से श्री जैन की मनमानियों, भ्रष्टाचार और अनियमितताओं पर काफी बाधा आ रही थी. सूत्रों ने बताया कि श्री जैन कभी भी दो घंटे से ज्यादा अपने कार्यालय में नहीं दिखाई देते हैं. ज्ञातव्य है कि परेल वर्कशॉप एसई/वक्र्स डिपो में पदस्थ होने से पहले श्री जैन चीफ विजिलेंस इंस्पेक्टर (सीवीआई) हुआ करते थे.
सूत्रों का कहना है कि सीवीआई होने की खुमारी अब तक भी श्री जैन के ऊपर से उतरी नहीं है. सूत्रों के अनुसार इसी बिना पर श्री जैन मंडल के दो इंजी. अधिकारियों पर अपना रुतबा बुलंद करते रहे हैं और उन्हें कई बार दबाव में लेते रहे हैं. इसीलिए श्री जैन इन अधिकारियों पर श्री पुरोहित को वहां से ट्रांसफर करने का दबाव डाल रहे थे. श्री जैन ïद्वारा उनके ट्रांसफर और शिकायत की पुष्टि करते हुए श्री पुरोहित का कहना है कि रोज-रोज की इन शिकायतों के चलते उन्होंने उनका ट्रांसफर अन्यत्र कर देने के लिए अपने संबंधित अधिकारियों से स्वयं अनुरोध किया था. सूत्रों का कहना है कि दोनों के बीच टसल का एक कारण दोनों का समान बैच का होना भी है. तथापि श्री पुरोहित का कहना है कि उनकी तरफ से टसल जैसी कोई बात नहीं थी. परंतु उनकी कार्यप्रणाली से श्री जैन और उनके चहेते कांट्रेक्टर को अवश्य कोई परेशानी हो रही होगी. उन्होंने कहा कि इसी वजह से श्री जैन द्वारा उन्हें जान से मरवा देने अथवा बुरी तरह उनके अंग-भंग करवा दिए जाने की आशंका हमेशा सताती रही है. जो कि वास्तविक रूप से आज सामने है.
परेल वर्कशॉप सूत्रों के अनुसार वर्कशॉप एवं कॉलोनी की पुरानी इमारतों की मरम्मत का ठेका आर.पी. इंटरप्राइजेस के पास है. इसके लिए इस फर्म को 70 लाख रु. का जोनल टेंडर दिया गया है. इसके अलावा अन्य कई कार्यों के इसके पास करीब 8-10 करोड़ के टेंडर हैं. सूत्रों का कहना है कि इस फर्म का मालिक म्हाडा का कोई एक्जीक्यूटिव इंजीनियर है. परंतु फर्म का समस्त कामकाज हाफिज नामक इसका मैनेजर संभालता है. सूत्रों का कहना है कि आर.पी. इंटरप्राइजेज द्वारा टेंडर शेड्यूल (शर्तों) के अनुसार कार्य नहीं किया जा रहा है. इसी के बारे में श्री पुरोहित ने कई बार फर्म के मैनेजर को चेतावनी दी थी और लिखित रूप से उच्चाधिकारियों को भी सूचित किया था. परंतु श्री जैन के दबाव में उच्चाधिकारियों ने कभी इस पर कोई ध्यान नहीं दिया.
सूत्रों का कहना है कि एक बार श्री पुरोहित को परेल से अन्यत्र ट्रांसफर करने की शिकायत पर इन अधिकारियों ने श्री जैन को जवाब देते हुए यह भी कहा था कि 'तुम तो न कोई काम करते हुए और न ही कार्यालय में कभी टिकते हो, ऐसे में पुरोहित को वहां से शिफ्ट कर देने पर काम कैसे होगा?' सूत्रों का कहना है कि अधिकारियों से ऐसा सुनने के बाद ही शायद श्री जैन ने श्री पुरोहित के हाथ-पैर तुड़वाकर उन्हें 5-6 महीने के लिए डिपो से बाहर रखने की योजना के तहत उन पर यह जानलेवा हमला करवाया होगा. क्योंकि इस बीच आर.पी. इंटरप्राइजेस के कई काम अंतिम तौर पर निपट चुके होंगे...?
करीब एक पखवाड़ा बीत जाने के बाद भी इस घटना को लेकर मंडल इंजी. मुख्यालय में किसी प्रकार की चिंता अथवा हलचल नहीं दिखाई दी है. जिस तरह पनवेल बेलास्ट डिपो में कांट्रेक्टर द्वारा एक पीडब्ल्यूएस को पीट दिए जाने की घटना पर संबंधित इंजी. अधिकारी नपुंसक बनकर बैठ गए, कुछ ऐसा ही माहौल इस प्राणघातक घटना को लेकर भी है, क्योंकि सभी इसे दोनों एसई की व्यक्तिगत लागडाट मानकर चल रहे हैं, जबकि सभी पूर्व घटनाक्रम से वाकिफ हैं, और यह हमला ऑन ड्यूटी हुआ है. यह एक सच्चाई है, परंतु इसके बावजूद अब तक इस घटना की विभागीय जांच शुरू नहीं की गई है, जबकि इस घटना से अन्य सभी एसई/एसएसई बुरी तरह आहत हैं और अपनी सुरक्षा के प्रति चिंतित भी. ऐसे में यदि यह सब एक दिन अचानक काम बंद करके बैठ जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. प्राप्त जानकारी के अनुसार मंडल इंजी. अधिकारी इस मामले में अब अपनी लापरवाही छिपाने और अपनी खाल बचाने के लिए श्री पुरोहित पर पुलिस को जैन संबंधी दिए गए बयान सहित पूरा मामला ही वापस लेने के लिए दबाव बना रहे हैं.
इस घटना के बारे में सूत्रों ने दो बातें ऐसी बताई हैं कि जो श्री जैन की इसमें सीधी संलिप्तता की ओर इशारा करती हैं. पहली बात यह कि घटना वाले दिन श्री जैन ने श्री पुरोहित से पूछा था कि वह घर कब जाएंगे और उस दिन वह शाम करीब 5 बजे तक वर्कशाप डिपो में रुके थे. जबकि सूत्रों का कहना है कि इससे पहले श्री जैन न तो कभी इतनी देर तक डिपो में रुके थे और न ही पुरोहित से उनके आने-जाने, यहां तक कि उनसे कोई बात भी नहीं करते थे. दूसरी बात यह कि घटना के तुरंत बाद श्री जैन ने डिपो के एक कर्मचारी को उसके मोबाइल पर फोन करके पूछा था कि क्या पुरोहित के साथ कोई घटना हो गई है..? यह दोनों कृत्य श्री जैन की गतिविधियों को संदिग्ध बनाते हैं. तथापि इस संबंध में श्री जैन से काफी प्रयासों के बाद भी कोई संपर्क नहीं हो सका.
सूत्रों के अनुसार 24 जून को एक स्थानीय अंग्रेजी दैनिक में यह खबर प्रमुखता से प्रकाशित होने के बाद जब मंडल प्रशासन को यह पता चला कि श्री पुरोहित ने उन पर हुए जानलेवा हमले के लिए सीधे अपने बैचमैट एवं वरिष्ठ श्री जैन को जिम्मेदार ठहराया है और पुलिस को भी यही बयान दिया है तो प्रशासन में हड़कंप मच गया. बताते हैं कि 24 जून को मंडल इंजी. मुख्यालय में बुलाकर श्री जैन से जवाब-तलब किए जाने पर उन्होंने इस घटना से अपना कोई संबंध होने से साफ इंकार किया है. तथापि श्री पुरोहित के इकबालिया बयान और अखबार में प्रकाशित खबर तथा सारी सच्चाई से वाकिफ होने के बावजूद प्रशासन इस मामले में कोई विभागीय जांच नहीं करवा रहा है. इस संबंध में एक इंजी. अधिकारी का कहना था कि विभागीय जांच में कुछ भी नहीं होना है. इसमें पुलिस जांच से ही जो होना होगा, होगा. जब प्रशासन का यह रवैया है तो सामान्य रेल कर्मचारी के जान-माल की सुरक्षा कैसे हो पाएगी. यह सवाल उठना स्वाभाविक है.
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कांट्रेक्टर को फेवर करने की कोशिश
मुंबई : मध्य रेलवे, मुंबई मंडल का इंजी. विभाग काम के बोझ से हमेशा दबा रहता है. इसमें कोई संदेह नहीं है. परंतु यहां इंजी. अधिकारियों के कुछ 'पालतू' कांट्रेक्टर भी हैं, जो कि यहीं इसी विभाग के पूर्व कर्मचारी रह चुके हैं. उन्हें 'फेवर' करने के लिए यह अधिकारी किसी भी हद तक जा सकते हैं. यहां तक कि बीमारी से उठकर और छुट्टïी पर होते हुए भी कार्यालय में आकर उसके हितों को सुरक्षित रखते हैं. यही नहीं दूसरे कांट्रेक्टर अपना टेंडर न डाल सकें और ज्यादा टेंडर न पड़ें, इसके लिए टेंडर बॉक्स को अधिकारी के चेंबर में रखवा दिया जाता है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार कुछ समय पहले भायखला थाना सेक्शन में ट्रेक साइड से मिट्टïी निकलवाने का टेंडर किया गया था. यह टेंडर बीएमसी की एक नई फर्म 'राहुल कंस्ट्रक्शन' को बतौर लोयेस्ट चला गया था. सूत्रों का कहना है कि राहुल कंस्ट्रक्शन को वास्तव में यह काम नहीं करना था और वह काम भी नहीं कर पायी. इसलिए अब उससे यह 'लिखा' लिया गया है कि वह काम नहीं करना चाहती. इस बिना पर अब 8 जुलाई को इसी काम का नया टेंडर निकाला जा रहा है.
परंतु इसके पीछे वास्तविकता कुछ और ही है. विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि वास्तव में यह टेंडर डी. के. सिंह कंस्ट्रक्शन को ही जाना था. क्योंकि उसने इस सेक्शन में मिट्टïी निकालने (?) का काम बिना टेंडर के ही किया था, जो कि करीब 15-20 लाख का था. सूत्रों का कहना है कि डी. के. सिंह कंस्ट्रक्शन को यह टेंडर देने के लिए संबंधित अधिकारियों और यह टेंडर लेने के लिए खुद डी. के. सिंह कंस्ट्रक्शन ने हर प्रकार की तैयारी की थी. सूत्रों ने बताया कि इसके लिए इसका टेंडर ड्रॉप बॉक्स एक सीनियर डीईएन के चेंबर के अंदर रखवाया गया था, जिससे न तो ज्यादा टेंडर पड़ सकें और न ही कोई बाहरी व्यक्ति अपना टेंडर डाल सके. जबकि डी. के. सिंह कंस्ट्रक्शन ने यह टेंडर उसे ही मिले, इसके लिए करीब 4-5 फर्मों से टेंडर फार्म साइन करवाकर और उसकी एवज में आपसी सहमति से तय राशि उन्हें देकर फार्म स्वयं डाले थे. ऐसा सूत्रों का कहना है. इसे इंजी. भाषा में 'रिंग' या 'कार्टेल' बनाना कहा जाता है. सूत्रों के अनुसार इस कार्टेल में राहुल कंस्ट्रक्शन भी शामिल थी. सूत्रों का कहना है कि डी.के. सिंह कंस्ट्रक्शन ने इस कार्टेल के टेंडर फार्म तो अधिकारी के चेंबर के अंदर रखे गए टेंडर बाक्स में डाल दिए. परंतु खुद का टेंडर फार्म डालना भूल गए अथवा जान-बूझकर नहीं डाला. जिससे बाद में अपने मनमाफिक रेट पर टेंडर लिया जा सके. अब यही प्रक्रिया चल रही है. सूत्रों का कहना था कि राहुल कंस्ट्रक्शन को तो वैसे भी काम नहीं करना था. उसे तो टेंडर डालने में भी कोई रुचि नहीं थी. परंतु बैठे-बिठाए सिर्फ एक साइन करके देने के लिए यदि टेंडर राशि का 2-3 प्र.श. मुफ्त में मिलता है तो किसी का क्या जाता है. इसी तर्ज पर वह डी. के. सिंह कंस्ट्रक्शन के कार्टेल में शामिल हुई थी, जो कि बिना टेंडर के ही पहले से 15-20 लाख का यह काम कर चुकी थी.
प्राप्त जानकारी के अनुसार डी. के. सिंह कंस्ट्रक्शन के मालिकान इसी मंडल में पूर्व रेल कर्मचारी (इंजी. विभाग) रहे हैं और वह मंडल के कुछ इंजी. अधिकारियों के भी बहुत करीबी हैं. सूत्रों का तो यहां तक दावा है कि मंडल में कार्यरत इन पूर्व रेल कर्मचारियों की फर्मों में कुछ इंजी. अधिकारियों का भी पैसा लगा हुआ है. इस मामले सहित ऐसे ही मिलीभगत वाले कुछ अन्य मामले विजिलेंस जांच के लिए सीवीसी को भेजे जा रहे हैं.
हालांकि इस मामले में नाम न छापने की शर्त पर मंडल के एक इंजी. अधिकारी ने बताया कि बात तो सही है, परंतु यदि लोयेस्ट एलॉटी ने खुद ही लिखकर दे दिया है(?) तब पुन: टेंडर तो किया ही जाएगा और इसमें फिलहाल कोई प्रक्रियागत खामी नजर नहीं आ रही है. अधिकारी का कहना था कि अब देखना यह होगा कि पहले किए गए काम का बिल किसके नाम पर बनता है? अधिकारी का कहना था कि डिसिल्टिंग वर्क में भी बीएमसी की ही करन बिल्डर्स नामक फर्म को टेंडर दिया गया था, वह भी इसी तरह आई हुई फर्म होगी क्योंकि वह भी प्रॉपर वर्क नहीं कर पाई है.
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