आईआरपीओएफ की एजीएम में घमासान होने के आसार
मुंबई : इंडियन रेलवे प्रमोटी ऑफीसर्स फेडरेशन (आईआरपीओएफ) की चुनावी सर्वसाधारण वार्षिक बैठक (एजीएम) म.रे. मुंबई, में 16-17 जुलाई को होने जा रही है. इस बैठक का एजेंडा, संविधान संशोधन को पारित करना और आम सभा यदि चाहे तो चुनाव करवाये जा सकते हैं, ही सिर्फ है. जैसा कि बताया गया है उसके अनुसार संविधान संशोधन पर वाराणसी बैठक सहित उसके बाद हुई विभिन्न बैठकों में इस पर बहस या चर्चा पूरी हो चुकी है इस बैठक में सिर्फ उसे पारित किया जाना है. परंतु पदाधिकारियों, खासतौर पर वर्तमान महासचिव के कार्यकाल को लेकर अत्यंत उत्तेजना फैली हुई है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार पुराना संविधान संशोधन वर्ष 1995 में अप्रूव किया गया था जो कि अंतिम तौर पर वर्ष 1998-99 में पारित हुआ था. इस संशोधन के अनुसार फेडरेशन के पदाधिकारियों का कार्यकाल तीन टर्म या कुल 6 साल से ज्यादा नहीं होगा. पूर्व अध्यक्ष श्री एस. के. बंसल के अनुसार यह संशोधन तब पारित हुआ था, जब पूर्व महासचिव श्री के. हसन फेडरेशन के महासचिव थे. उस समय इसे दो टर्म यानी 4 साल के लिए प्रस्तावित किया गया था, जिसे श्री हसन के सुझाव पर तीन टर्म किया गया था. श्री बंसल ने बताया कि इस संशोधन से श्री हसन का कार्यकाल प्रभावित नहीं हुआ था. क्योंकि इसके पारित होने के दूसरे टर्म में ही श्री हसन सेवानिवृत्त हो गए थे. श्री बंसल के अनुसार तत्पश्चात के तीन टर्म बाद यह संशोधन लागू होता है.
इस संबंध में श्री हसन ने भी श्री बंसल की बात का समर्थन करते हुए कहा कि संविधान संशोधन तो तुरंत प्रभाव से लागू हो गया था, परंतु जब यह संशोधन पारित हुआ था, तब के बाद से उनके सिर्फ दो कार्यकाल ही हुए थे और वह रिटायर हो गए थे. संविधान लागू न होने के प्रति तो कोई आशंका ही नहीं है. श्री हसन वर्तमान महासचिव के पूर्व पदाधिकारियों के प्रति नजरिये से काफी आहत थे. उनका कहना था कि बुजुर्गों और फेडरेशन के पूर्व सम्मानित पदाधिकारियों के योगदान को कभी कोई नकार नहीं सकता. परंतु वर्तमान पदाधिकारियों और खास तौर पर महासचिव के बर्ताव से सभी पूर्व पदाधिकारी आहत महसूस कर रहे हैं.
इस संबंध में फेडरेशन के वर्तमान महासचिव श्री जितेंद्र सिंह का कहना है कि इस तथाकथित संविधान संशोधन को कुछ गिने-चुने लोग सिर्फ उन्हें ध्यान में रखकर उठा रहे हैं, जबकि इसकी कोई प्रामाणिकता (वैलीडिटी) नहीं है, क्योंकि इस पर किसी भी पदाधिकारी के हस्ताक्षर नहीं हैं. उन्होंने बताया कि यह संशोधन तुरंत प्रभाव से लागू माने जाने की बात की जा रही है तो फिर इसके अनुसार हसन साहब भी वर्ष 1998-99 में आगे के लिए पदाधिकारी (महासचिव) नहीं बन सकते थे क्योंकि तब तक उनके 10-11 साल लगातार इस पद पर हो चुके थे.
उन्होंने बताया कि वर्ष 1998-99 में हुए इस संशोधन की कोई सूचना रे.बो. को तत्काल नहीं दी गई थी. उन्होंने कहा कि बोर्ड को इसकी जानकारी वर्ष 2003 में हसन साहब ने अपने रिटायरमेंट से कुछ समय पहले दी थी. उनका कहना था कि फेडरेशन के संविधान में कई विसंगतियां हैं, जो कि वास्तव में कानून सम्मत नहीं हैं. उन्होंने बताया कि अब इस पर कानूनी विशेषज्ञों से सलाह-मशवरा करके पर्याप्त सुधार किया जा रहा है, जिससे न सिर्फ पिछली सारी विसंगतियां समाप्त हो जाएंगी बल्कि भविष्य के लिए कोई गलतफहमी भी नहीं रह जाएगी.
श्री जितेंद्र सिंह का कहना था कि रेलवे के अन्य किसी भी फेडरेशन में ऐसा कोई प्रतिबंध लागू नहीं है. उनका मानना है कि हसन साहब बेहतर ढंग से फेडरेशन का काम इसलिए कर सके थे क्योंकि वह लगातार 14 साल तक फेडरेशन के महासचिव पद पर रहे थे और इसी वजह से उनके गहरे संबंध और अच्छी समझबूझ बोर्ड के साथ बन पाई थी. उनका कहना था कि उन्हें चुनाव करवाने से कोई ऐतराज नहीं है. उन्होंने तो इस बैठक में भी यह निर्णय आम सभा पर डाला है. यही एजेंडा भी है. तो उनकी कार्यप्रणाली में विसंगति कहां है? ऐसा उनका सवाल है.
उन्होंने कहा कि प्रमोटी ऑफीसर्स फेडरेशन कोई ट्रेड यूनियन नहीं है. यह एक वेलफेयर आर्गेनाइजेशन है और इसकी मान्यता रेलवे बोर्ड पर निर्भर करती है. इसलिए इसका जो भी संविधान हो वह इसी के अनुरूप होना चाहिए. वह सिर्फ यही प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि इस संशोधन पर गठित एस.पी. सिंह समिति ने अपनी सिफारिश में इसे रद्द करने का सुझाव दिया था. उनका कहना था कि वह सिर्फ समिति की सिफारिश पर अमल करने जा रहे हैं, क्योंकि यह समिति सिर्फ उनके प्रस्ताव पर नहीं बनी थी.
उन्होंने बताया कि इस बार के संविधान संशोधन में फेडरेशन के कुल पदाधिकारी तो उतने ही रहेंगे मगर उपाध्यक्ष के पद समाप्त करके और संयुक्त सचिव के कुछ पद कम करके संगठन सचिवों के पद बढ़ाए जा रहे हैं, जिससे सभी रेलों को फेडरेशन में प्रतिनिधित्व दिया जा सकेगा. उनके अनुसार अब अध्यक्ष, कार्याध्यक्ष, महासचिव, वित्त सचिव और कार्यालय सचिव के एक-एक पद तथा संयुक्त सचिव के दो पद एवं संगठन सचिव के 17 पद होंगे. उन्होंने कहा कि सात नई रेलें बनाने के बाद बोर्ड ने डेलीगेट्स की संख्या प्रत्येक जोन से 5 से घटाकर 4 कर दी है. कुछ लोग इसका भी विरोध कर रहे हैं, जबकि उनका मानना है कि बोर्ड का निर्णय उचित है और एक डेलीगेट कम करने के बावजूद हमारे कुल डेलीगेट की संख्या तब भी बढ़ जाती है. उन्होंने बताया कि पहले 9 रेलों से 5 के हिसाब से कुल 45 डेलीगेट्स होते थे जो कि अब 4 के हिसाब से 64 हो रहे हैं. उनका कहना था कि बोर्ड तो यह संख्या 5 से घटाकर ध करने जा रहा था. यदि यह भी होता तब भी हमारे डेलीगेट्स की संख्या पहले की अपेक्षा 3 ज्यादा होती थी, मगर हमारे अनुरोध पर बोर्ड ने 3 के बजाय 4 डेलीगेट्स प्रति रेल मान लिया जबकि उत्पादन इकाइयों के डेलीगेट्स की संख्या में बोर्ड ने कोई कटौती नहीं की है. उनका साफ कहना था कि बोर्ड से किसी प्रकार का पंगा लेकर फेडरेशन का काम नहीं चल सकता. इस बात को फेडरेशन के सभी सदस्यों को ध्यान में रखना चाहिए.
उन्होंने बताया कि इस बार यह भी व्यवस्था की जा रही है कि एक विशेषाधिकार समिति (अपील कमेटी) बनाई जाएगी, जो कि किसी मत वैभिन्नता पर अपनी राय देगी. इसे स्पष्ट करते हुए उन्होंने आगे कहा कि जो भी सदस्य कार्यकारिणी अथवा आम सभा के निर्णयों से असहमत होगा, उसे सर्वप्रथम इस कमेटी में अपील करनी होगी. इसके निर्णय के बाद ही उक्त सदस्य कोर्ट में जाने अथवा अन्य कोई कानूनी कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र होगा. उनका कहना था कि पहले कमेटी के पास अपील किए बिना अन्य कोई भी कार्रवाई गैरकाूननी मानी जाएगी.
श्री सिंह का कहना था कि सभी रेलों को एजीएम का एजेंडा और संबंधित संविधान परिवर्तन प्रस्ताव पहले ही भेजे जा चुके हैं, जिन्हें नहीं मिले हैं, इसकी शिकायत मिलने पर उन्हें कूरियर से पुन: भेजे गए हैं. इसके अलावा ई-मेल भी किया गया है. उन्होंने बताया कि इस एजीएम में हम अपने सभी पूर्व पदाधिकारियों को बुलाने जा रहे हैं. इसके लिए हम उन्हें बकायदा पत्र लिख रहे हैं.
उन्होंने कहा कि टर्म संबंधी प्रस्ताव पर वाराणसी बैठक और उसके बाद की बैठकों में पर्याप्त चर्चाएं हो चुकी हैं. इसी बैठक में श्री शशिरंजन, वित्त सचिव, ने यह सुझाव दिया था कि संशोधन पत्र पर अध्यक्ष और महासचिव के हस्ताक्षर होने चाहिए. यदि यह हस्ताक्षर नहीं हैं तो वह संशोधन मान्य या लागू नहीं माना जा सकता है. इस लिए आगे ऐसी व्यवस्था की भी गई है.
उन्होंने कहा कि संविधान में यह कहीं नहीं लिखा है कि 1998-99 में हुआ संशोधन कब से लागू होगा या लागू माना जाएगा. तो जब यह उस समय लागू नहीं माना गया था तो अब क्यों इस पर बहस की जा रही है? यदि इसे तुरंत प्रभाव से लागू होने की बात कही जा रही है तो फिर हसन साहब को बाद में भी पद पर क्यों बनाये रखा गया था और इसकी जानकारी 4-5 साल बाद बोर्ड को क्यों दी गई थी? उनका कहना था कि यह कुछ लोग हैं जो उक्त तथाकथित संशोधन की बात उठाकर सिर्फ उन्हें टारगेट करना चाहते हैं. क्योंकि एक रेलवे विशेष के यह सिर्फ कुछ लोग हैं जो सिर्फ उनसे नाराज हैं, बाकी किसी रेलवे से विरोध की कोई बात नहीं है, क्योंकि सब इस परिवर्तन पर पूर्व बैठकों में शामिल रहे हैं और जो भी निर्णय लिया गया है, उसमें सबकी सहभागिता और सर्वानुमति रही है.
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