Tuesday 7 July, 2009

आईआरसीटीसी की नौटंकी :

गलती आईआरसीटीसी की

निलंबित हुआ रेल कर्मचारी

मुंबई : उच्च रेल अधिकारियों के अहंकार का भी जवाब नहीं है. गलती वास्तव में किसकी है, किससे हुई है और क्यों हुई है, गलती का कारण क्या था और उक्त गलती किन परिस्थितियों में हुई....? पद के घमंड में चूर रहने वाले ये रेल अधिकारी इन तमाम बातों की मीमांसा किए बिना ही जिस प्रकार बचकाने निर्णय लेकर अपनी गलती को नीचे के कर्मचारी पर डालकर दंडित करते हैं, उससे इनके आचरण पर 'अपना कान टटोलने के बजाय कौवा कान ले गया, सुनते ही कौवे के पीछे दौड़ पडऩे वाली कहावत सटीक बैठती है.

यह उदाहरण है 9 जून को हजरत निजामुद्दीन-नयी दिल्ली से चली 2954 अगस्त क्रांति राजधानी एक्स. में यात्रियों के स्नेक्स और नास्ते का सामान न चढ़ पाने के कारण हुए हंगामे और आईआरसीटीसी द्वारा इसके लिए की गई लाखों रुपए कीमत वाली 'मैराथन नौटंकीÓ की घटना पर. इसमें गलती सरासर आईआरसीटीसी और उसके सप्लायर की थी. मगर इसके लिए गाड़ी अधीक्षक को निलंबित किया गया है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार जब गाड़ी चलने तक स्नेक्स की सप्लाई नहीं पहुंच पाई तो इसके लिए मथुरा जंक्शन पर प्रयास किया गया था. परंतु इसके लिए गाड़ी को वहां डिटेन करने की तरफ किसी का ध्यान नहीं गया. बताते हैं कि पैंट्री मैनेजर के कहने पर गार्ड ने पांच मिनट के लिए गाड़ी डिटेन भी की थी. परंतु तब भी मथुरा में स्नेक्स लेकर कोई नहीं पहुंचा. तत्पश्चात कोटा और रतलाम में भी कुछ नहीं किया जा सका. इसके बाद यह जिम्मेदारी अहमदाबाद के क्षेत्रीय प्रबंधक प्रवीण परमार को सौंपी गई. उन्हें यह संदेश शाम 7-7.30 बजे के करीब मिल गया था, तथापि उन्होंने इसकी सूचना अपने बॉस जीजीएम/मुंबई अथवा सीसीएम/प.रे. या सीसीएम/पीएस एवं ओएसडी/कैटरिंग/प.रे. को भी नहीं दी. बल्कि वह निर्देशानुसार यात्रियों को देने के लिए 'चाकलेट' का बंदोबस्त करने में लग गए.

बताते हैं कि 'सॉरी' लिखे हुए करीब पौने दो लाख रु. के 1200 चाकलेट पैकेट की व्यवस्था की गई थी. ज्ञातव्य है कि यह गाड़ी रात करीब 3.30 बजे वड़ोदरा पहुंचती है. इससे पहले श्री परमार 1200 चाकलेट पैकेट लेकर वड़ोदरा पहुंच चुके थे. वड़ोदरा में यह पैकेट गाड़ी में चढ़ाए गए और गाड़ी चलने के बाद जब इन्हें यात्रियों में वितरित करने की बारी आई तो श्री परमार ने गाड़ी अधीक्षक से इसकी घोषणा ट्रेन उद्घोषणा प्रणाली पर करने को कहा. बताते हैं कि गाड़ी अधीक्षक (टीएस) ने उन्हें बताया कि दोनों पैंट्री और टिकट चेकिंग स्टाफ ने सभी यात्रियों को समझा-बुझा दिया है और किसी भी यात्री की कोई लिखित शिकायत नहीं हुई है. अब सभी यात्री शांत और इस रात के समय वे सो रहे हैं. ऐसे समय में यात्रियों को जगाना उचित नहीं होगा, क्योंकि तब यात्री भड़क भी सकते हैं और यह भी कह सकते हैं कि चाकलेट देकर क्या उन्हें रेलवे भिखारी समझती है...?

उपरोक्त बातचीत से यह कहीं साबित नहीं होता कि टीएस ने श्री परमार को चाकलेट बांटने या उद्घोषणा करने से मना किया था. परंतु इस बीच श्री परमार ने दिल्ली में किसी दुग्गल नामक अधिकारी को मोबाइल लगाया और उसे कहा कि टीएस यात्रियों को चाकलेट देने और उद्घोषणा करने से मना कर रहा है. इस पर दुग्गल ने टीएस को बुरी तरह डांटा था. तत्पश्चात सुबह करीब 5 बजे से ही यात्रियों को चाकलेट बांटे गए और उन्हें पैकेट में लिखकर देने के साथ-साथ सामने भी सॉरी बोलने के साथ फोटो खिंचवाये गये. फोटोग्राफर को साथ लेकर श्री परमार खुद आये थे. इन फोटुओं के साथ परमार ने सुबह के अखबारों में खूब पब्लिसिटी और वाहवाही लूटी. परंतु जिस टीएस ने वास्तव में यात्रियों को शांत करने और समझाने-बुझाने में अहम भूमिका निभाई थी, उसे पहले 10-12 दिन के लिए बिना किसी लिखित आदेश के ही लाइन हाजिर कर दिया गया और बाद में 21 जून की शाम को उसे निलंबन का आदेश थमा दिया गया.

बताते हैं कि दुग्गल नामक अधिकारी ने इस मामले में एमटी/रे.बो. के कान भरे और एमटी ने जीएम/प.रे. को इस बारे में पूछा. जीएम ने सीसीएम एवं ओएसडी/कैटरिंग/प.रे. को पूछा. सीसीएम/प.रे. ने जीजीएम/मुंबई आईआरसीटीसी को पूछा. इनमें से किसी अधिकारी को उस दिन गाड़ी में स्नेक्स न चढ़ पाने की कोई जानकारी नहीं थी. बताते हैं कि उस दिन जीजीएम/मुंबई स्वयं दिल्ली में थे. जबकि इन अधिकारियों को सूचित करने की पहली जिम्मेदारी क्षेत्रीय प्रबंधक/अहमदाबाद श्री प्रवीण परमार अथवा आईआरसीटीसी मुख्यालय की थी.

परंतु बताते हैं कि इन अधिकारियों ने टीएस को यह आरोप लगाकर निलंबित किया है कि उसने उन्हें इस बारे में सूचित क्यों नहीं किया था. अब सवाल यह उठता है कि वह पहले स्थिति को संभालता कि उन्हें सूचित करता, जो कि उस स्थिति में उसकी कोई मदद नहीं कर सकते थे और अंतत: उससे ही स्थिति को संभालकर गाड़ी को सुरक्षित लाने के लिए कहते, जो कि उसने वैसे भी किया था. परंतु आईआरसीटीसी के लापरवाह और गैर जिम्मेदार अधिकारियों की खाल बचाने तथा सप्लायर को सुरक्षित करने के लिए टीएस को ही बलि का बकरा बना दिया गया है. यहां तक कि इस लापरवाही की कोई विभागीय जांच भी नहीं करवाई गई है और आईआरसीटीसी के किसी भी अधिकारी को इसके लिए जिम्मेदार ठहराकर उसके खिलाफ कोई कार्रवाई भी नहीं की गई है. यह है रेल अधिकारियों की समझदारी और उनका जंगली न्याय, जिसमें उनकी अहंमन्यता साफ स्पष्ट है..?

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