Tuesday 7 July, 2009

भारतीय रेलवे मजदूर संघ की राष्ट्रीय

कार्यकारिणी की बैठक संपन्न

पटना : भारतीय रेलवे मजदूर संघ (बीआरएमएस) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक रेलवे इंस्टीट्यूट, दानापुर में 15-16 जून तथा सुप्रीम काउंसिल की बैठक 17-18 जून को संपन्न हुई. इस बैठक में भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री के. सी. मिश्रा, जीईएमसी के अध्यक्ष श्री दत्ताराव देव, भारतीय रेलवे मजदूर संघ के पूर्व अध्यक्ष श्री अमलदार सिंह के अतिरिक्त भारतीय रेलवे मजदूर संघ के अध्यक्ष श्री के. एन. शर्मा और महामंत्री श्री के. स्वयंभुवु सहित सभी क्षेत्रीय रेलों के अध्यक्ष/महामंत्री सहित 355 प्रतिनिधिगण उपस्थित थे.

बैठक में छठवें वेतन आयोग की सिफारिशों में असंख्य विसंगतियां, रेलवे के निजीकरण, रेल कारखानों, डिपुओं और कार्यालयीन कार्य की आउटसोर्सिंग, ठेकेदारी प्रथा में वृद्धि, रिक्त पदों को सरेंडर करना, रिक्त पदों को न भरना, रनिंग कोटियों के चालक वर्ग, गार्ड, टीटीई आदि की पदोन्नति रोकना उनकी वेतन निर्धारण में विसंगतियां तथा रेल कर्मचारियों के विभिन्न संवर्गों में कटौती, जेसीएम और आर्बिट्रेशन के निर्णय का पालन नहीं करना आदि अनेकानेक प्रश्नों/समस्याओं पर गंभीर चिंतन-मनन हुआ. उपरोक्त सभी विषयों में समायी समस्याओं के लिए आंदोलन करने तथा एनॉमली समिति में भारतीय रेलवे मजदूर संघ को प्रतिनिधित्व देने की मांग की गई.

भारतीय रेलवे मजदूर संघ की सुप्रीम काउंसिल की बैठक दि. 17-18 जून को हुई जिसमें सभी प्रतिनिधिगणों ने एमएसीपीएस पर भी क्षोभ व्यक्त किया और कर्मचारियों के लिए समयबद्ध पदोन्नति की मांग की तथा रेलकर्मियों की मांगों पर सक्रिय और सजीव विचार-विमर्श न करने पर आंदोलन की राह अपनाने का निर्णय किया गया.

भा.रे.म. संघ के सहायक महामंत्री श्री मंगेश एम. देशपांडे ने बताया कि बैठक में सर्वानुमति से 6वें वेतन आयोग के 60 प्र.श. एरियर के तत्काल भुगतान की मांग की गई. इसके साथ ही प्रतिनिधियों ने पुरजोर मांग की कि एनॉमली कमेटी में भारतीय रेलवे मजदूर संघ के प्रतिनिधि को भी रखा जाए, साथ ही यह मांग भी की गई कि अनामली समिति के निष्कर्ष एवं निर्णय मजदूर प्रतिनिधियों की स्वीकृति के समयबद्ध रूप से घोषित/लागू किए जाएं. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कौंसिल के सदस्यों ने यह मांग भी की कि मा. सुप्रीम कोर्ट के निर्णयानुसार प्रत्येक पांच वर्षों में यूनियनों की मान्यता के लिए चुनाव आवश्यक किए जाएं अन्यथा पुन: तीव्र आंदोलन किया जाएगा.

रेलवे स्कूल, कल्याण विवादों के घेरे में - 2

कल्याण : नियमानुसार छात्रों की फीस के लिए विभिन्न मदों में जमा की गई कुल राशि उसी दिन या अगले दिन स्कूल के बैंक खाते में जमा कराई जानी चाहिए. इस नियम का पूरी तरह से स्कूल प्रबंधन द्वारा उल्लंघन किया गया है. क्योंकि लाखों रुपए बैंक में आज तक जमा नहीं कराये गये हैं. ऐसा लिखित शिकायत में आरोप लगाया गया है. शिकायत में कहा गया है कि नियमानुसार 500 रुपए से ज्यादा का भुगतान क्रास चेक द्वारा किया जाना चाहिए परंतु बैंक स्टेटमेंट को देखने से पता चलता है कि बड़ी मात्र में काफी रुपया कैश (बेयरर) चेक द्वारा बैंक खाते से अत्यंत अव्यवस्थित तरीके से निकाला गया है, जो कि आपत्तिजनक और नियम के विरुद्ध है.

शिकायत में कहा गया है कि 'क्लस्टर मीट' के लिए अक्टूबर 2008 में जो खाने के कूपन छपवाये गये थेे उन्हें नवंबर 2008 में बाल दिवस के अवसर पर छात्रों को बेचा गया था. शिकायत के अनुसार यह कूपन बेचने से इका हुई हजारों की राशि भी बैंक खाते में जमा नहीं कराई गई, जबकि बाल दिवस के नाम पर 70 हजार रुपए बैंक खाते से निकाले गए. पीटीए सदस्यों द्वारा पूछे जाने पर इस राशि के खर्च का कोई विवरण उन्हें नहीं बताया गया. इसके बाद हुए हंगामें पर पुन: दि. 15.01.09 को एक शिकायत सीपीओ को दी गई थी. इसके बाद पीटीए सदस्यों द्वारा दि. 28.01.09 एवं दि. 20.02.09 को भी लिखित शिकायतें डीआरएम को भेजी गई थीं.

यही नहीं दि. 25.03.09 को स्कूल के तीन अध्यापकों ने डीआरएम को भेजी गई अपनी लिखित शिकायत में स्कूल प्रबंधन द्वारा बड़े पैमाने पर घपलेबाजी करने और स्टाफ का उत्पीडऩ किए जाने की लिखित शिकायत की थी. इस शिकायत में अध्यापकों ने लिखा है कि 1 अक्टूबर 2008 को डीआरएम के आदेशानुसार गठित की गई नई पीटीए को स्कूल प्रबंधन ने अपनी जेबी संस्था बनाकर गोपनीय तौर पर इसकी दो बैठकें 11.01.09 और दि. 23.03.09 को अपने कुछ खास लोगों को बुलाकर की थीं, जिसमें कुछ अध्यापकों के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग भी किया गया जबकि 23 मार्च 09 की बैठक किसी के न आने से नहीं हो सकी थी. 11 जनवरी की बैठक रविवार को की गई थी. अध्यापकों ने इस शिकायत में कहा है कि स्कूल प्रबंधन द्वारा गोपनीय ढंग से पीटीए की बैठकें बुलाने के पीछे अन्य सदस्यों से कुछ न कुछ छिपाने का उद्देश्य है.

शिकायत में कहा गया है कि प्रधानाध्यापक की अनुपस्थिति में रे.बो. के पत्र सं. ई(डब्ल्यू)2005/एससी2/10, दि. 25.03.09 के अनुसार सीनियर मोस्ट पोस्ट ग्रेजुएट टीचर (पीजीटी) को स्कूल की गतिविधियां चलाने के लिए नामांकित किया गया है. बोर्ड के इस दिशा-निर्देश का स्कूल में घोर उल्लंघन करके किसी निहित स्वार्थ के तहत अत्यंत गैर अनुशासित ढंग से स्कूल को चलाया जा रहा है. यहां तक कि स्कूल में उपस्थित रहने के बावजूद सीनियर मोस्ट पीजीटी सहित अन्य अध्यापकों को पीटीए मीटिंग की सूचना तक नहीं दी जाती है. शिकायत में कहा गया है कि पीटीए की मीटिंग में स्कूल और पीटीए का लेखा-जोखा भी वेरीफिकेशन के लिए सदस्यों के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जाता है. इससे यह आशंका पैदा होती है कि बैंक एकाउंट एवं अन्य मदों में भारी राशि का घोटाला हो रहा है.

शिकायत में अध्यापकों ने लिखा है कि बैंक खाते में लाखों रुपए जमा नहीं कराये जाने की शिकायत उन्होंने एसडीजीएम/सीवीओ को 7 जनवरी 2009 को सौंपी है. इस शिकायत पर विजिलेंस ने स्कूल से संबंधित तमाम फाइलें अपने कब्जे में जांच हेतु ली हैं. शिकायत में डीआरएम से वर्तमान पीटीए कमेटी को 30 सितंबर 2009 तक अथवा स्कूल में हुए घोटाले की जांच पूरी होने तक बनाए रखने की भी अपील की गई है, क्योंकि यह कमेटी स्कूल के खाते में विभिन्न मदों से जमा होने वाली राशि, जिसकी जांच विजिलेंस द्वारा की जा रही है, के लिए जिम्मेदार है. यदि इस कमेटी को किन्हीं कारणों से समय से पहले बर्खास्त किया जाता है तो इससे स्कूल को भारी नुकसान होने की पूरी संभावना है.

अध्यापकों ने इस बारे में रेल प्रशासन को चेतावनी भी दी थी कि यदि इन तमाम तथ्यों को जानने के बाद भी रेल प्रशासन अथवा स्कूल के प्रिंसिपल द्वारा पीटीए को बर्खास्त किया जाता है तो वे कानूनी कार्रवाई करने के लिए बाध्य होंगे. इसके पहले स्कूल में घोटाले को लेकर दो पीटीए सदस्यों ने महाप्रबंधक/म.रे. को 9 फरवरी 2009 को एक विस्तृत लिखित शिकायत भेजी थी. तत्पश्चात 1 जून 09 को सीवीसी को भी स्कूल में हुए घोटालों की विस्तार से जानकारी देते हुए एक शिकायत भेजी गई है.

उल्लेखनीय है कि जनसूचना अधिकार कानून के तहत मांगी गई जानकारी में प्रशासन ने बताया है कि जनवरी-दिसंबर 2008 के दौरान कुल 18,96,556 रु. स्कूल के बैंक खाते में जमा किए गए थे, जबकि इस दौरान खाते से कुल 14,72,840 रु. निकाले गए हैं. सूत्रों का कहना है कि स्कूल का सालाना कलेक्शन करीब 28 लाख रु. होता है. यदि आरटीआई के तहत मिली सूचना को ही सही माना जाए तो भी करीब 10-12 लाख रु. बैंक खाते में जनवरी-दिसंबर 2008 के दरम्यान कम जमा कराए गए. जबकि इन 10-12 लाख रु. का कोई हिसाब स्कूल प्रबंधन न तो पीटीए सदस्यों को बता रहा है और न ही इन्हें जाहिर कर रहा है.

'रेलवे समाचार' के पास उपलब्ध जुलाई-दिसंबर 2008 के स्कूल के बैंक खाते (खाता सं. 0230101024680) के स्टेटमेंट से साफ पता चलता है कि इन 6 महीनों के दौरान कुल 60 बार बेयरर (कैश) चेक से बैंक से पैसा निकाला गया, जिसकी कुल राशि 3,19,528 रु. है. सूत्रों का कहना है कि बैंक से कुल 75-80 बार कैश चेक से पैसा निकाला गया है. स्कूल सूत्रों ने यह भी आशंका जताई है कि एक 5 लाख की एफडी को शायद प्रबंधन द्वारा तोड़ दिया गया है. क्योंकि उसका ब्याज काफी दिनों से बैंक खाते में नहीं आ रहा है. सूत्रों ने बताया कि इस 5 लाख की एफडी से मिलने वाले तिमाही ब्याज से होनहार छात्रों को छात्रवृत्ति दिए जाने की व्यवस्था की गई थी, जिले लगता है कि प्रबंधन ने अन्यत्र कहीं डायवर्ट कर दिया है.

शेष घोटालों की जानकारी पढ़ें अगले अंक में...

क्रमश:...


ईसीसी बैंक चुनाव परिणाम

मुंबई : 18 जून को हुए ईसीसी बैंक के डेलीगेट्स के चुनाव में प्राप्त अंतिम परिणामों के अनुसार कुल 266 सीटों में से 159 सीटें एनआरएमयू ने लेकर अपनी बढ़त और बैंक पर अपना कब्जा बरकरार रखा है, जबकि सीआरएमएस एवं आरकेएस गठबंधन का 'परिवर्तन पैनल' इस बार भी कोई 'परिवर्तन' नहीं कर सका है। इस गठबंधन को कुल 99 सीटें मिली हैं, जो कि पिछली बार की 86 सीटों की अपेक्षा 13 सीटें ज्यादा हैं. बाकी सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार जीते हैं, जिन्हें दोनों पक्षों द्वारा अपने साथ गिना जा रहा है और इस प्रकार एनआरएमयू अपनी कुल 166 सीटें तथा गठबंधन पैनल अपने लिए 106 सीटें बता रहा है. प्राप्त जानकारी के अनुसार एनआरएमयू को कुल 60 प्र.श. और गठबंधन पैनल को कुल 30 प्र.श. वोट मिले हैं. मुंबई मंडल की कुल 77 सीटों में से एनआरएमयू को 52 और परिवर्तन पैनल को यहां कुल 18 सीटें ही मिल पाई हैं. कल्याण में एनआरएमयू को कुल 9 सीटें इसलिए मिल गईं क्योंकि यहां एसएसई/वक्र्स/कोलसेवाड़ी को हटाये जाने का फैक्टर उनके काम आया है, तथापि एनआरएमयू ने व्यक्तिगत स्तर पर जाकर जिस तरह कुछ लोगों के खिलाफ बैनरबाजी और प्रचार किया, वह उसकी स्थापित छवि से निम्न स्तर का था.


ईसीसी सोसायटी का चुनाव

सीआरएमएस को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना चाहिए

एशिया की सबसे बड़ी क्रेडिट को.-ऑप. सोसायटी सेंट्रल रेलवे इम्प्लाइज क्रेडिट को-ऑप. सोसायटी (ईसीसी बैंक) है, जिसका मुख्यालय मुंबई के भायखला में स्थित है, जिसमें रेलवे कर्मचारियों का करीब 800 करोड़ रुपया एकत्रित है, का चुनाव रेलवे वर्कर्स में किसी राष्ट्रीय चुनाव से कम हमत्वपूर्ण नहीं है. ईसीसी बैंक की स्थापना 1913 में हुई थी और 1993 तक करीब 111.5 करोड़, 2007 तक 700 करोड़ और वर्तमान में यह करीब 800 करोड़ की हैसियत पर है.

ईसीसी बैंक पर हमेशा से वामपंथी यूनियन (एनआरएमयू) का कब्जा रहा है. क्योंकि पूर्व में कांग्रेसी यूनियन (सीआरएमएस) ने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं ली. बाद में जब उन्हें होश आया तब तक लाल झंडा आर्थिक रूप से तथा वैचारिक रूप से इतना सुदृढ़ हो चुका था कि उसको हिलाने में सीआरएमएस के छक्के छूट रहे हैं. हालांकि सीआरएमएस क्रमश: इस पर अपना असर बढ़ा रही है. फिर भी अपनी ही गलतियों के कारण जिस तरह का लाभ इसे मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पाता है.

हमारी नजर में इसके कुछ बिंदु आते हैं-

सीआरएमएस के बारे में चतुर्थ श्रेणी रेल कर्मचारियों की धारणा है कि यह सिर्फ सुपरवाइजर्स तथा तृतीय श्रेणी के हितों के लिए ही है.

केवल चुनाव के मैदान में बाहें चढ़ाने भर से जीत संभव नहीं बल्कि सारे समय हर ब्रांच में एक व्यक्ति केवल ईसीसी सोसायटी के काम हेतु रखना होगा.

चतुर्थ श्रेणी कर्मी जो आज भी बड़ी तादाद में अशिक्षित है, तथा हर समय कर्ज में डूबा रहता है, की लोन फार्म भरने से लेकर लोन दिलाने तक की सहायता स्वयंसेवी की तरह करनी होगी, क्योंकि वह समझता है कि लोन केवल वर्तमान में काबिज यूनियन ही दिला सकती है या यही उन्हें उबार सकती है.

प्रत्येक हार के बाद सीआरएमएस के विचार-विमर्श में हर बार यह बात उठती है कि हमें चतुर्थ श्रेणी की इस क्षेत्र में सीधे सहायता करनी चाहिए. पर आज तक इस बात को अमल में नहीं लाया गया.

सीआरएमएस के मुखिया, जो चाटुकारों से कुछ ज्यादा ही प्रसन्न और घिरे रहते हैं, वे कभी यह नहीं सोचते कि जो लोग सारे दिन या प्रतिदिन उनकी सेवा में लगे रहते हैं वह फील्ड में कैसे काम कर सकते हैं? और जो फील्ड वर्कर हैं, जिनकी मेहनत से वास्तव में यूनियन चलती है, वह उनकी प्रतिदिन कैसे चाटुकारिता कर सकते हैं. इस तरफ से उन्हें अपने नजरिये में परिवर्तन लाना होगा.

अंतर्कलह में अपने चरम पर चल रही सीआरएमएस के पदाधिकारी, जो अपने ही साथी की गर्दन काटने में हिचकते नहीं, यह बात अधिकारी वर्ग भी जानता है, उनमें और उनकी सोच में परिवर्तन लाना होगा.

अपने आप को बेहद सिविलाइज्ड समझने वाले सीआरएमएस ऑफिस बियरर जो चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों से बात करने में या तो अपनी बेइज्जती समझते हैं या फिर उनसे सीधे मुंह बात नहीं करते, को अपने व्यवहार में 'परिवर्तन' लाना होगा.

आपसी तालमेल तथा आत्मीयता के सर्वथा अभाव में जूझ रही इस यूनियन के लोगों को अपने विचारों में भी 'परिवर्तनÓ लाना होगा.

सीआरएमएस के लिए, आर्थिक रूप से सुदृढ़ प्लानिंग में माहिर तीखे तेवर वाली तथा चतुर्थ श्रेणी में अपनी गहरी पैठ रखने वाली एनआरएमयू से निपटना तभी संभव हो सकता है, जब उसके स्तर पर रणनीति बनाई जाए. इसके लिए निम्नलिखित रणनीति हो सकती है.

क्रीमी लेकर के कर्मचारी इसके सदस्य भी कम हैं तथा वे वोटिंग भी पूरी तरह नहीं करते हैं.

चतुर्थ श्रेणी का लोन बिना गुजारा संभव नहीं अत: ये श्रेणी सोसायटी की शत प्रतिशत सदस्य है तथा वह मतदान हर हाल में करती है.

कर्ज की आदी चतुर्थ श्रेणी, अनपढ़ या कम पढ़ी-लिखी है, अत: जो इसका फार्म भरवाएगा तथा चेक लाकर देगा, वह निश्चित ही उसी का ऋणी होगा. अत: चतुर्थ श्रेणी से करीबी बनाए रखना इनकी आदत में शुमार है.

अब बात आती है हाल ही में हुए चुनाव की तो हम पीछे में नजर डालें तो पाएंगे कि जब तक कांग्रेस गठबंधन कर चुनाव लड़ती रही तब तक अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकी. पर जब स्वयं की इच्छा शक्ति जगाई तो रिजल्ट सबके सामने है. उसी तरह कमजोर आत्मबल तथा निगेटिव थिंकिंग के चलते कोई भी चुनाव आने के पूर्व सीआरएमएस ब्रांच स्तर से लेकर मुख्यालय स्तर तक केवल इसी में सारी शक्ति खर्च कर देती है कि हमारे से युति कौन करेगा? बैसाखी के सहारे कौन लंबी रेस लगा पाया है? हर बार युति यानी अलग विचारधारा को साथ जोडऩा यानी हर काम में समझौता, दूसरों की मर्जी के आगे झुकना, फिर अपना उद्देश्य या जो अपना एजेंडा होता है, उस पर पूरी तरह अमल कर सकेंगे, इसमें संदेह है. फिर जो अपनी विचारधारा से सहमत नहीं, ऐसे लोग अपने से अलग हो जाते हैं, जो सीआरएमएस से युति कर रहे हैं, चूंकि उन्हें अपने पैर इसके सहारे जमाना है, अत: वे अपने कैंडिडेट को तो वोट देते हैं पर वे सीआरएमएस के कैंडिडेट को वोट देंगे, ऐसा जरूरी नहीं होता.

अत: जो लाभ मिलना होता है, वह कम हो जाता है, जबकि दूसरा जो अस्तित्व में नहीं था, वह अपनी पहचान बना लेता है. छोटे-छोटे दल जो जाति-पाति या क्षेत्रीयता पर आधारित होते हैं, वह वोटिंग के समय में भी अपनी वही मानसिकता बरकरार रखते हैं, जिससे हमेशा फायदा नहीं होता है. वर्तमान चुनाव पर नजर डालें तो गठबंधन की मानसिकता काफी स्पष्ट हो जाएगी और इस एकतरफा मानसिकता के चलते पैनल वोट नहीं पड़ा तथा अनेक जगह प्रतिद्वंद्वी यूनियन के भी लोगों को वोट मिला और वह जीते हैं.

इस बार भी सहयोग लेने के बावजूद सीआरएमएस अल्पमत में है यानी वह वोटरों का सपना साकार कर सकेगी ऐसा संभव नहीं लगता. यदि सीआरएमएस के अध्यक्ष, निठल्ले और आपसी वैमनस्य रखने वाले तथा चाटुकार लोगों को उनकी असली जगह बताएं, तभी किसी चुनाव के मैदान में उतरें क्योंकि अक्सर कृपा पात्र भी किसी 'जौहरी' से कम नुकसानदेह नहीं होते हैं.

प्रस्तुति : एक सीआरएमएस कार्यकर्ता

मुंबई मंडल, मध्य रेलवे



पूर्व एसएसई/वक्र्स/कोलसेवाड़ी ने 9 लोगों को लपेटा

मुंबई : वक्र्स डिपो कोलसेवाड़ी, कल्याण के मातहत कर्मचारियों का उत्पीडऩ करने और भ्रष्टाचार के आरोपों में बोर्ड के आदेश पर भुसावल मंडल ट्रांसफर कर दिए गए पूर्व एसएसई/वक्र्स/कोलसेवाड़ी, कल्याण की शिकायत पर जेएमएफसी/कल्याण ने आर्डर नं. एमसीआर 02/09 के तहत एसीपी/जीआरपी को दिनेश तिवारी, भगवान खरात सहित 7 अन्य डिपो कर्मचारियों के खिलाफ जांच करने का आदेश दिया है. इस आदेश के पालन के लिए जीआरपी तुरंत तत्पर हो गई और उसी दिन शाम को एईएन कल्याण के कार्यालय में इनकी सूची लेकर पहुंचे जीआरपी के पीएसआई श्री जाधव ने सभी 9 लोगों को दूसरे दिन सुबह 10 बजे थाने में हाजिर रहने के लिए एईएन को सूचित कर दिया. इस प्रकार ट्रांसफर आर्डर का पालन किए बगैर इस एसएसई ने किसी न किसी बहाने प्रशासन एवं गैर जानकार कर्मचारियों को विभिन्न मामलों में लपेटकर रेल प्रशासन को नकेल डालने का अपना पुराना रवैया बरकरार रखा है. यह कहना है समस्त पीडि़त कर्मचारियों का.


सभी सलाहकार समितियां भंग

नयी दिल्ली : रेलवे बोर्ड के हमारे विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार रेलवे बोर्ड ने 9 जून को चुपचाप सभी जोनल रेलों की जेडआरयूसीसी, डीआरयूसीसी सहित एनआरयूसीसी यात्री सलाहकार समितियों को त्वरित प्रभाव से भंग करने का फरमान जारी किया है. सूत्रों का कहना है कि बोर्ड के इस निर्णय से ममता बनर्जी के खिलाफ अपने पूर्ववर्ती लालू यादव से बदले की राजनीतिक कार्रवाई का संकेत जा सकता है. जबकि बोर्ड का मानना है कि इस निर्णय से लोग खुश ही होंगे क्योंकि जोनल एवं नेशनल कंसल्टेटिव कमेटियों में लालू के ही अधिकांश लोग शामिल किए गए थे, जो सिर्फ दलाली करते रहे हैं. ऐसा सूत्रों का कहना है.

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