Wednesday 20 May, 2009

खुल गई लालू की पोल

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले घमंड में डूबे लालू यादव की चुनाव में इतनी बुरी हालत होगी, यह लालू समर्थकों (यदि कोई बचा है) ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। पांच साल तक भारतीय रेल को 'चरागाह' समझकर रेलवे की ऐसी-तैसी करने पर तुले लालू यादव के रेल विभाग से जाने पर रेलवे से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हर व्यक्ति खुश है. चुनाव पूर्व चौथा मोर्चा बनाकर लालू, अमर, मुलायम व पासवान की चौकड़ी ने सोचा था कि देश की सत्ता की चाबी उनके हाथ में होगी परंतु हुआ एकदम उल्टा. सत्ता की चाबी तो दूर इन्हें सत्ता के महल के दरबान अथवा चपरासी लायक भी नहीं समझा गया. चुनाव पूर्व घमंड में जिस जनता को लालू यादव गाय-भैंस समझकर हांक रहे थे, उसी जनता ने लालू यादव को बता दिया है कि उनकी असली औकात क्या है....?
आइए, लालू यादव के रेलमंत्री के पहले दिन से शुरू करते हैं। रेल मंत्रालय का कार्यभार संभालते ही लालू यादव ने रेल को पटरी पर आगे बढ़ाने के बजाय पीछे ढकेलना शुरू कर दिया. पहला फरमान अब रेलवे पर pepsi नहीं बिकेगी. आदेश का तुरंत पालन रेलवे के आज्ञाकारी बड़े अधिकारियों ने किया. रेलवे के बड़े अधिकारियों को आज्ञाकारी इसलिए लिख रहा हूं, क्योंकि इनमें योग्यता और प्रायोगिकता कम और चापलूसी की pravritti अधिक होती है. दो दिन के अंदर platfarms से pepsi व ठंडे पेय गायब हो गए. सूत्रों का कहना है कि एक बड़ी डील के बाद यह आदेश कागजों में दब गया और पेह्रश्वसी कोला धड़ल्ले से टी स्टॉल की रानी बनकर लोगों के गले को तर करने लग गई. इसके बाद कभी इन ठंडे पेय पदार्थों के खिलाफ कोई बयान लालू का नहीं आया. आखिर क्यों? यह पहला सवाल लालू से है.
रेल मंत्री बनते ही लालू ने आदेश दिया कि अब चाय कुल्हड़ में मिलेगी. सभी टी स्टॉल धारकों ने महंगे-सस्ते खरीदकर कुल्हड़ को काउंटर पर सजाया. सिर्फ दिखाने के लिए चाय बेचने के लिए नहीं. कुल्हड़ नीति भी लालू की उसी तरह से विफल हो गई, जिस तरह पेह्रश्वसी की हुई थी. टी स्टॉलों पर sattu, छाछ, नीम की दातुन बेचने का दावा करने वाले लालू को बता दें कि जिन टी स्टॉल वालों ने अधिकारियों के दबाव में आकर sattu के कुछ पैकेट खरीदकर टी स्टॉल पर रखे थे, वे किसी यात्री ने खरीदे नहीं उल्टे टी स्टॉल वाले चूहों से परेशान हो गए. चुनाव परिणाम के बाद निश्चित ही लालू कल्पना कर रहे होंगे कि जिस तरह से रेल पटरी पर कुल्हड़ धड़ाम से टूट रहे हैं ठीक उसी प्रकार उनकी राजनैतिक महत्वाकांक्षा भी टूट गई हैं, बिखर रही है. सच है बुरे का अंत बुरा ही होता है.
फिर लालू ने जिस अमरसिंह का हाथ थामा था वो तो लोगों के सपने तोडऩे और घर फोडऩे के लिए जाना जाता है. आखिर उन्होंने ही तो अमर सिंह को नाम दिया था 'घरफोड़वा'. कमाल देखिए अमर सिंह ने उनके ही घर को फोड़ दिया. आखिर साधु यादव जैसा होनहार (?) उनका साला उनसे दूर चला गया.
आइए वापस आते हैं रेलवे के बेड़ा गर्क करने के विषय पर, क्योंकि 'रेलवे समाचार' का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं. 'रेलवे समाचार' तो सिर्फ रेल उद्योग और यात्रियों के हित की बात करता है. अपने आपको समाजवादी कहने वाले लालू ने हर मंच से कहा कि वे रेलवे के निजीकरण के खिलाफ हैं, परंतु यह भी उतना ही सच है कि रेलवे का जितना निजीकरण और बंटाधार लालू ने किया, उतना कभी नहीं हुआ था. सफाई व्यवस्था से लेकर प्रबंधन तंत्र को बेचने की लालू ने चाल चली. रेलवे के स्क्रैप, रेलवे की भूमि, स्टेशन परिसर की उपयोगी जगहों, खेलकूद के मैदानों तक की लालू यादव ने बोलियां लगा दीं. पूरा पैसा संपत्ति को बेचकर लाभ दिखा दिया. 'लाभ' की यह कैसी परिभाषा है, यह तो लालू ही जानते हैं. हां, इनकी खरीद-farokht में वे खुद और उनके दलाल जरूर मालामाल हुए. ठेकेदार मालामाल हुए, रिश्तेदार मालामाल हुए और रेलवे और रेलवे को समर्पित रेल कर्मचारी तथा रेल यात्री जरूर कंगाल हो गए.
लालू के टाईम में उनकी पार्टी के छोटे से छोटे, टटपूंजिए कार्यकर्ता को रेल अधिकारियों पर रौब झाड़ते देखा गया. मुनाफे में रेल को दिखाने का झूठा प्रचार किया गया. अपने 'मैनेज प्रचार तंत' के माध्यम से लोगों में एक झूठ प्रचारित किया कि रेल घाटे से निकलकर मुनाफे में आ गई है. वास्तव में रेल के मुनाफे का सच क्या है, वो हम जानते हैं. लालू ने अपने झूठे प्रचार तंत्र के माध्यम से प्रचारित किया कि रेल किराया कम कर दिया गया. सच जानने के इच्छुक लोग पांच साल पुराना और अब का दोनों टिकट उठाकर देखें पता चलेगा कि अप्रत्यक्ष रूप से कितना किराया बढ़ाया गया है. तत्काल सेवा के नाम पर लूट. आईआरसीटीसी के नाम पर लूट. ई-टिकट में लूट. पांच साल तक सिर्फ लूटखसोट रेलवे में चलती रही. अमीरों के लिए 'गरीब रथ' चले. गरीबों के शयनयान श्रेणी के टिकट तत्काल सेवा में बदलकर उनकी श्रेणी के टिकटों की संख्या कम कर दी गई. आम यात्री को मजबूरन डेढ़ सौ रुपए अधिक देकर तत्काल टिकट खरीदना पड़ रहा है. रेल कर्मचारियों की संख्या पर भरपूर कैंची चलाई.
हां, बिहारी लोगों द्वारा रेलवे परीक्षा पास कर रेलवे में भर्ती होने का मूलमंत्र या तो लालू जानते हैं या तो उनके दलाल। महाप्रबंधक कोटे में भर्ती का लालू ने जिस बेहतर ढंग से उपयोग किया और उस माध्यम से करोड़ों करोड़ रुपए कमाए उसका मंत्र भी इससे पहले शायद किसी रेल मंत्री कोनहीं मालूम था.
रेलवे का कोई एक कैडर ऐसा नहीं जो यह कहे कि पिछले पांच साल से उनके कैडर के हित में लालू ने कोई निर्णय लिया हो. हां, दलाल खुश हैं, क्योंकि अधिकतम काम उनके हित में किए गए. रेल मंत्री बनते ही 'कोयला लदान' की गाडिय़ों पर छापे मारे, कैटरिंग डिपार्टमेंट में छापे मारे, सह्रश्वलाई एजेंसी में लालू ने छापे मारे. उसके बाद सब बंद हो गया या यह मानें कि इनके ठेकेदारों द्वारा लालू का मुंह बंद कर दिया गया अथवा इसी मकसद से लालू ने यह नौटंकी की थी.
लालू के लिए प्रचार तंत्र बनकर काम कर रहे कुछ टीवी चैनलों के उनके भक्त रिपोर्टर व बड़ी न्यूज एजेंसी के वो पत्रकार जो लालू से उपकृत हुए थे, वे भले ही ये सच्चाई न समझ सकते हों या जानबूझकर नहीं समझते हों, 'रेलवे समाचार' सच्चाई जानता है और सच्चाई ही लिखता है. यही रेल उद्योग व यात्रियों के हित में भी है.

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