Wednesday, 20 May 2009

पेंशन पाने का अधिकार
नई पेंशन योजना (एनपीएस) 2004 के बाद नौकरी में आए सरकारी कर्मचारियों के लिए पहले से ही लागू थी, लेकिन अब इसे देश की बाकी आबादी के लिए भी खोल दिया गया है। जीवन भर राष्ट्रीय उत्पादन में योगदान करने वाले हर व्यक्ति के प्रति राष्ट्र का यह दायित्व बनता है कि वह उसके बुढ़ापे के लिए भी कुछ स्थायी नियमित आय की व्यवस्था करे. उम्मीद की जानी चाहिए कि एनपीएस देश के हर नागरिक को सुरक्षित निवेश का एक विकल्प देगी. सरकारी ट्रेड यूनियनों और वामपंथी दलों का पेंशन प्रबंधन में किसी भी किस्म के फेरबदल को लेकर किया जाने वाला विरोध इस तथ्य की अनदेखी पर टिका हुआ था कि पेंशन और पीएफ पर दिया जाने वाला ब्याज इस रकम के उत्पादक निवेश के अभाव में एक तरह के सरकारी अनुदान की शक्ल ले चुका है. एनपीएस का सबसे पहला मकसद ही यही है कि इस मद में जमा होने वाली राशि सिर्फ खातों की शोभा बढ़ाने के काम न आए, और लगातार उत्पादन प्रक्रिया का हिस्सा बनी रहे. इसमें शामिल होने वाले हर निवेशक को यह तय करने का अधिकार होगा कि सरकारी बांड, कॉरपोरेट बांड और शेयर बाजार के तीन विकल्पों में वह अपना कितना पैसा कहां लगाए. जहां तक सवाल सरकारी बांड और कॉरपोरेट बांड का है, इनमें लगाया गया पैसा कमोबेश फिक्स डिपॉजिट जैसा ही है. तीसरे, यानी शेयर वाले विकल्प के साथ ज्यादा मुनाफा और ज्यादा जोखिम वाली बात जुड़ी है. शेयर बाजार के उतार-चढ़ावों को ध्यान में रखते हुए इसमें निवेश पर 50 प्रतिशत की बंदिश रखी गई है, यानी कोई चाहे तो भी अपने पेंशन फंड का आधे से ज्यादा हिस्सा शेयर बाजार में लगाने को नहीं कह सकता. यह रकम भी किसी खास शेयर में नहीं बल्कि निफ्टी-फिफ्टी और बीएसई-30 जैसे इंडेक्स फंडों में ही लगाई जा सकती है, जिनके दायरे में सबसे ज्यादा भरोसेमंद और कमाऊ कंपनियों के शेयर आते हैं. एनपीएस एक नजर में किसी बैलेंस म्यूचुअल फंड जैसी मालूम पड़ती है, लेकिन एक मामले में यह उनसे बेहतर है. इसमें फंड मैनेजमेंट के लिए वसूली जाने वाली राशि काफी कम है. म्यूचुअल फंड इस काम के लिए निवेशित रकम का सवा दो प्रतिशत लेते हैं जबकि एनपीएस में यह राशि कुछ फिक्स चार्जेज को छोड़ कर एक प्रतिशत से भी कम पड़ेगी. पेंशन के लिए 500 रुपये महीने जैसी छोटी रकम लगाने वालों के लिए ये फिक्स चार्जेज काफी भारी पेड़ेंगे, लिहाजा यह सौदा उन्हें महंगा लग सकता है. इसके अलावा इस योजना की तीन और खामियां भी हैं. इसमें कोई टैक्स बेनिफिट नहीं है, 58 साल की उम्र होने से पहले इससे पैसा नहीं निकाला जा सकता, और इसे आधार बनाकर कोई लोन नहीं लिया जा सकता. इन खामियों पर ध्यान देकर अर्थव्यवस्था के लिए काफी काम की साबित होने वाली स्कीम को आम निवेशकों के लिए और ज्यादा आकर्षक बनाया जा सकता है.
सभी के लिए हुई नई पेंशन स्कीम लागू
नयी दिल्ली : देश में शुक्रवार 1 मई से नई पेंशन स्कीम (एनपीएस) शुरू हो गई है. वर्ष 2004 से नए सरकारी कर्मचारियों के लिए यह पहले से लागू थी. अब इसे सभी के लिए खोल दिया गया है. सरकार द्वारा यह सामाजिक सुरक्षा के लिए उठाया गया कदम है. यह पीएफ की तरह तयशुदा रिटर्न वाली स्कीम नहीं है. इसका पैसा शेयर, सरकारी बांड और कॉरपोरेट बांड में लगाया जाएगा. फंड मैनेज करने का काम छह कंपनियों को सौंपा गया है. पेंशन फंड एंड डेवलपेमेंट अथॉरिटी उन पर नजर रखेगी.
एनपीएस 58 साल की उम्र के बाद फायदा देगी. बीच में पैसा नहीं निकाला जा सकता. यह तय करने का हक निवेशक को है कि तीनों विकल्पों में से किसमें कितना पैसा लगे. यह काम फंड मैनेजर पर भी छोड़ा जा सकता है. तब शेयरों में 15' ही लगाया जाएगा. किसी भी हाल में शेयरों में 50' से ज्यादा नहीं लगाया जा सकता. इस योजना का सारा हिसाब-किताब नेशनल सिक्युरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (एनएसडीएल) रखेगा. वहां अकाउंट खुलवाने के लिए 50 रुपए देने होंगे. सालाना चार्ज 350 रुपए है. हर ट्रांजेक्शन की फीस 10 रुपए होगी. आसान पहुंच के लिए कुछ बैंकों को पॉइंट ऑफ प्रेजेंस बनाया गया है. उनकी ब्रांच में जाकर अकाउंट खुलवाया जा सकता है. इसका चार्ज 20 रुपए होगा. ट्रांजेक्शन फीस भी 20 रुपए है. म्युचुअल फंड में लगभग सवा दो प्रतिशत का एंट्री लोड और डेढ़ पर्सेंट का मैनेजमेंट चार्ज होता है. इसके मुकाबले एनपीएस में फीस 0.0009' ही बैठती है. लेकिन एकाउंट के चार्ज इसका मजा खराब कर रहे हैं. यह किफायती तभी होगा, जब ज्यादा पैसा लगाया जाए. गौरतलब यह भी है कि इस स्कीम में किसी भी स्टेज पर टैक्स छूट नहीं है. हालांकि पेंशन फंड एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ने सरकार से इसकी मांग की है.
इस बीच, देश के हर नागरिक के लिए 1 मई से उपलब्ध नई पेंशन प्रणाली को कर प्रोत्साहन के अभाव में धीमी प्रतिक्रिया मिलने की संभावना व्यक्त की गई है. पेंशन नियामक (पीएफआरडीए) के अध्यक्ष डी. स्वरूप ने मुंबई में कहा, हालांकि प्रतिक्रिया के बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन इसकी शुरुआत धीमी रहेगी. हमें नहीं लगता कि शुरुआत में भारी तादाद में लोग इस योजना को लेगें. उन्होंने कहा कि एनपीएस 2004 से केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य बना दी गई थी, जिसे पिछले साल 14.5 फीसदी अच्छा मुनाफा मिला था. लंबी अवधि में सभी नागरिकों को दी जानेवाली इस पेंशन प्रणाली का प्रदर्शन भी अच्छा रहेगा. उन्होंने कहा कि यह योजना धीमी गति से रफ्तार पकडग़ी, क्योंकि यह स्वैच्छिक है और इस पर कोई कर रियायत नहीं मिलेगी. श्री स्वरूप ने इससे पहले संकेत दिया था कि पेंशन फंड नियामक एवं विकास प्राधिकार (पीएफआरडीए) एनपीएस के मामले में कर छूट के मुददे को आम चुनाव के बाद बनी नई सरकार के पास ले जाएगा.

एनपीएस की विशेषताएं
1. यह योजना 18 से 55 वर्ष के बीच की आयुवर्ग के लोगों के लिए.
2. न्यूनतम निवेश 500 रुपए मासिक या 6,000 रुपए प्रति वर्ष.
3. रिस्क के आधार पर एनपीएस में दो इन्वेस्टमेंट ऑप्शन हैं. पहला है एक्टिव च्वॉइस (जिसमें इन्डीविजुअल फंड असेट क्लास ई सी और जी हैं) तथा दूसरा ऑप्शन ऑटो च्वॉयस है. ऑटो च्वॉयस में उम्र के हिसाब से अपने आप जोखिम निर्धारित होती है.
4. निवेशक अपनी पूंजी को इक्विटी (ई) क्रेडिट रिस्क बियरिंग इनकम इंस्टू्रमेंट (सी) और गवर्मेंट सिक्यूरिटी (जी)में बांट कर निवेश कर सकता है.
5. निवेशक 6 फंड मैनेजर में से किसी को भी चुन सकते हैं.
6. 60 वर्ष की उम्र में आपको कम से कम अपनी सेविंग का 40 प्रतिशत किसी इंश्योंरेंस कंपनी की एन्यूटी खरीदने में लगाना होगा.
7. 60 वर्ष के होने से पहले भी आप कुल सेविंग में से 20 प्रतिशत तक की निकासी कर सकते हैं लेकिन फिर आपको बची हुई 80 प्रतिशत की एन्यूटी खरीदनी होगी.
धीरे - धीरे दिखाई देगा जोश
नई पेंशन योजना (एनपीएस) में को लेकर धीरे-धीरे लोगों को उत्साह दिखाई देने लगा है. निवेशक निवेश सलाहकारों की राय जान रहे हैं तो आम कर्मचारी वर्ग इसके नफे-नुकसान का गणित आपसी विचार-विमर्श से समझ रहे हैं. जहां कुछ वित्त विशेषज्ञ अपने क्लाइंट्स को इस स्कीम में निवेश के लिए कुछ समय रुकने की सलाह दे रहे हैं, वहीं कुछ वित्त विशेषज्ञों का मानना है कि चूंकि इस स्कीम में फंड मैनेजमेंट चार्जेज व अन्य खर्चे न्यूनतम हैं, इसलिए जिन्हें सिर्फ पेंशन में ही निवेश करना है उनके लिए यह स्कीम बेहतर है.
स्कीम के बारे में कुछ वित्तीय जानकारों का मानना है कि शेयरों में निवेश की 50 प्रतिशत की बंदिश आकर्षक नहीं है. इसका मतलब यदि कोई एक हजार रुपया निवेश करता है तो 500 रुपए तो उसके डेट इंस्ट्रूमेंट में ही निवेश हो जाएंगे. और यहां रिटर्न भी तय नहीं है. ऐसे में जब आपके पास पीपीएफ और ईपीएफ जैसे विकल्प हों, जो कि आपको 8 प्रतिशत रिटर्न की गारंटी देते हैं, तो ऐसे में क्या फायदा है इस स्कीम में सी और जी ऑप्शन में निवेश करने से. गौरतलब है कि सी मतलब मीडियम रिस्क और रिटर्न वहीं जी कम रिटर्न और कम रिस्क प्रदान करता है. कई वित्तीय सलाहकारों का इस बाबत कहना है, चूंकि स्कीम में चार्जेज बहुत कम हैं इसलिए इसका रिटर्न अन्य पेंशन प्लान के मुकाबले कहीं ज्यादा है.
उदाहरण के लिए यदि कोई 30 वर्षीय व्यक्ति हर तिमाही दस हजार रुपए स्कीम में 30 वर्ष तक निवेश करता है और माना जाए कि हर वर्ष 10 प्रतिशत रिटर्न मिलेगा तो अंत में उसके अकाउंट में 69 लाख रुपए इकठ्ठा होंगे. वहीं ठीक ऐसा ही इनवेस्टमेंट इंश्योरेंस कंपनियों द्वारा ऑफर प्लान में किया जाए तो अधिकतम 56 लाख और न्यूनतम 12 लाख रुपए इकठ्ठा होंगे. इस डिफरेंस के बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी वजह एनपीएस का फंड मैनेजमेंट चार्जेज अन्य के मुकाबले कम होना है. लोग इसका मुकाबला पीएफ से कर रहे हैं लेकिन पीएफ और पेंशन दोनों के बिल्कुल अलग-अलग फायदे हैं. पीएफ शॉर्ट टर्म को ध्यान में रखकर की गई बचत है जहां एक समय ही पैसा निकाल सकते हैं जबकि पेंशन जब तक आप जिंदा हैं, तब तक मिलती है.
हालांकि कुछ वित्तीय विशेषज्ञ इसके टैक्स ट्रीटमेंट को लेकर काफी नाखूश हैं. उनका कहना है कि यदि आप किसी इक्विटी स्कीम में एक साल से ज्यादा के लिए निवेश करते हैं तो आपको किसी तरह का कैपिटल गैन टैक्स नहीं देना होगा तथा पीपीएफ में भी परिपक्वता के वक्त किसी तरह का टैक्स नहीं है. लेकिन एनपीएस में निवेश करने पर यदि आप टैक्स से बचना चाहते हैं तो आपको अपना कारपस एन्यूटी खरीदने में भी लगाना होगा. उनका मानना है कि इससे बेहतर है कि आप किसी इंडेक्स फंड में ही निवेश कर लें. ताकि आपको फ्लेक्सीबिलिटी और कारपस को लेकर पूरी स्वतंत्रता मिल जाए. जो कि नई पेंशन स्कीम में नहीं है. और जबकि वहां भी सिर्फ इंडेक्स स्कीम में ही निवेश किया जाएगा. हालांकि एनपीएस की अन्य पेंशन स्कीम से तुलना जारी है लेकिन जब बात न्यूनतम खर्च और इसे कुछ ही महीनों में मिलने वाले स्पेशियल टैक्स ट्रीटमेंट के अंदेशे की होने लगती है तो नई पेंशन योजना बाजी मार ले जाती है.


आशा की नई किरण
जीवन के सुनहरे दौर में हाथ में नियमित आमदनी नहीं आने की वजह से पैसे के लिए मोहताज हो, न जाने कितने ही उम्र दराज लोगों की आंखें मौत के अंतहीन इंतजार में लगी रहती हैं. परिवार में बोझ के बनने की पीड़ा का एहसास आज भारत के करोड़ों परिवारों पर वृद्धावस्था से गुजर रहे लोग रोजाना भोग रहे हैं. दरअसल इसकी वजह है वृद्धावस्था में नियमित रूप से दो पैसा हाथ में आता रहे, इसकी व्यवस्था का न होना. स्व-रोजगार में रहे लोगों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था पहले थी ही नहीं. लेकिन अब सरकार ने भारत की उस विशाल आबादी को उनके सेवानिवृत्त जीवनकाल में नियमित आमदनी द्वारा सुरक्षा प्रदान करने के लिए नई पेंशन योजना का विकल्प प्रदान किया है.
तो क्या इसके पहले प्रभावी पेंशन योजनाएं हमारे देश में नहीं थीं? ऐसी कोई बात नहीं है, पहले से विभिन्न इंश्योरेंस कंपनियों व म्यूचुअल फंडों की पेंशन योजनाएं बाजार में उपलब्ध हैं और खुद सरकार द्वारा पीएफ, पीपीएफ जैसी बड़ी व आकर्षक स्कीमें मौजूद हैं लेकिन यह नई स्कीम अन्य से इस मायने में अलग है कि यहां न्यूनतम निवेश 6 हजार रुपए सालाना या हर महीने 500 रुपए है. जबकि अभी बाजार में उपलब्ध अन्य इंश्योरेंस आदि का पेंशन के लिए न्यूनतम निवेश 25 से 30 हजार रुपए सालाना है. इसलिए एक बहुत बड़ी आबादी पेंशन में इन्वेस्ट करने से छूट रही थी. आम जनता के लिए यह एक अच्छी निवेश योजना है.
लेकिन अभी तक आम लोगों में इस योजना को लेकर ज्यादा उत्साह क्यों दिखाई नहीं दे रहा? हालांकि नहीं ऐसा नही कहा जा सकता क्योंकि यह नया कंसेप्ट है, इसलिए इसे लोकप्रिय होने में 1 से 3 वर्ष का समय लगेगा. चूंकि इसके लिए डिस्ट्रीब्यूटर्स जैसे ब्रोकर्स व एजेंट्स वाला ईको सिस्टम नहीं है, जो कि बाजार में इस प्रोडक्ट के लिए उत्साह पैदा करे. यहां यह रोल पीएफआरडीए और पीओपी (जो कि बैंक हैं) में विभाजित है, इसका डिजाइन थोड़ा अलग है. यहां कस्टमर खुद चलकर आएं और पीओपी से बात करें.
क्या हमारे देश में इतनी जागरुकता है कि आम आदमी चलकर पीओपी के पास आएगा? इसका जवाब यह हो सकता है कि वैसे भी हमारे देश में वित्तीय जागरुकता बहुत कम है और पेंशन के लिए सेविंग तो प्राथमिकता की सूची में सबसे अंतिम स्थान पर है. ऐसे में इस प्रभावी योजना के लिए पीओपी को खुद प्रशिक्षित करना होगा. लेकिन इसके लिए सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे. निजी बीमा कंपनियां तो पहले ही पेंशन योजनाओं को लेकर तेजी से जागरुकता फैला रही हैं. कस्टमर के एकाउंट पीओपी के पास खुलेंगे. वे अपनी ब्रांच में पोस्टर आदि द्वारा जागरुकता फैला सकते हैं.
ऐसा कहा जा रहा है कि यदि इस योजना में पीएफ और पीपीएफ की तरह स्पेशल टैक्स बेनिफिट्स प्रदान किया जाए जिसमें परिपक्वता के वक्त जो राशि हो वह टैक्स फ्री हो. तो यह स्कीम तेजी से जोर पकड़ेगी. लेकिन क्या आम आदमी इनवेस्टमेंट के लिए उपलब्ध विभिन्न असेट क्लास की रिस्क को समझ कर चुनाव कर पाएगा?
इस पर यह कहा जा रहा है कि नई पेंशन योजना में निवेश के लिए दो च्वॉइस रखी गई है. एक्टिव च्वॉइस व ऑटो च्वॉइस. ऑटो च्वॉइस उन लोगों के लिए एक बेहतरीन व्यवस्था है जो एक्टिव च्वॉइस में उपलब्ध इक्विटी क्रेडिट रिस्क वाले इनकम इंस्टमेंट और सरकारी प्रतिभूतियों में जानकारी के अभाव में अपने निर्णय द्वारा निवेश नहीं कर सकते. ऐसे में ऑटोफीचर का चुनाव उनके लिए बेहतरीन है. जहां व्यक्ति की, उम्र के हिसाब से उसका पैसा रेग्यूलेट होता है. यदि व्यक्ति की उम्र 25 वर्ष है तो कुल निवेश का 55 प्रतिशत इक्विटी में और यदि व्यक्ति 55 वर्ष का है तो 10 प्रतिशत इक्विटी में निवेशित होगा.
सरकार इसे इतनी देरी से क्यों लाई? इसका जवाब यह है कि बचत व जोखिम कवर करना भारतीयों की फितरत में नहीं है. इसलिए इस प्रोडक्ट को भी खुला छोड़ देंगे तो रेस्पांस नहीं आएगा क्योंकि यहां प्रोडक्ट फंड मैनेजमेंट की बेहतर क्वालिटी व कम चार्जेज होने के बावजूद बेचने के लिए किसी एजेंट को कमीशन नहीं मिलेगा. इसलिए जागरूकता के लिए काफी कोशिशें करनी होंगी.
इस स्कीम में मॉर्टेलिटी चार्जेज, पहली बार में प्रीमियम लोकेशन चार्जेज नहीं हैं, और अग्रणी छह फंड मैनेजर्स न्यूनतम फंड मैनेजमेंट चार्जेज में इसे मैनेज करेंगे तो ज्यादा पैसा लोकेट होगा और ज्यादा पैसा सेविंग में जाएगा. इससे कारपस (पूंजी) ज्यादा इकठ्ठा होगी और चार्जेज कम होने व निपुणता के चलते मार्केट में अच्छी डील मिलेगी और ज्यादा रिटर्न मिलने से नागरिकों को फायदा होगा.