कहाँ गया रिकार्ड....?
मुंबई : म.रे. मुंबई मंडल के इंजीनियरिंग विभाग से जब कोई जानकारी जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत मांगी जाती है तो यह कहकर टाल दिया जाता है कि रिकार्ड उपलब्ध नहीं है, जबकि किए गये कार्यों का रिकार्ड कम से कम 10 साल तक और कर्मचारियों की सर्विस रिकार्ड 45 साल तक रखे जाने की नियामानुसार बाध्यता है. मगर मुंबई मंडल. म.रे. के इंजी. विभाग में न कोई रिकार्ड उपलब्ध है और न ही वह आरटीआई एक्ट के तहत मांगी गई जानकारी में दिया जा रहा है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार इंजी. विभाग. मुंबई मंडल म.रे. के मंडल कार्यालय (डीआरएम/वक्र्स ऑफिस) का कुछ इस तरह से आधुनिकीकरण किया गया या कराया गया, जिससे वहां कांट्रेक्टरों और कर्मचारियों का तमाम रिकार्ड रखने की जगह ही नहीं बनाई गई है. इस तथाकथित मॉडर्न ऑफिस की रिमॉडलिंग और माडर्नाइजेशन में करोड़ों रुपए खर्च किए गये हैं. परंतु रिकार्ड रखने की कोई जगह नहीं बनाई गई है.
बताते हैं कि वाड़ीबंदर की एक कोठरी में यह रिकार्ड रखने भेजा जाता है अथवा वहां फेंक दिया जाता है, जहां उसे देखने और व्यवस्थित रखने वाला कोई नहीं है जो कि उक्त समस्त महवपूर्ण रिकार्ड को दीमकों और सीलन से बचाने के लिए कोई उपाय कर सकें.
कानूनन और रेलवे के नियमानुसार भी आउट साइड पार्टी के भुगतान संबंधी समस्त वाउचर्स अगले 20 वर्षों तक संभाल कर सुरक्षित रखे जाने की बाध्यता/अनिवार्यता है और यह जिम्मेदारी संबंधित अधिकारियों की है न कि बाबू लोगों की. परंतु प्रत्यक्ष में हो यह रहा है कि अधिकारी तो 2-3 साल में आता-जाता रहता है, तो यह रिकार्ड कीपिंग की जिम्मेदारी बाबू लोगों पर आ गई है, जिसके लिए उन्हें चार्जशीट दी गई हैं. मगर जब बाबुओं को रिकार्ड रूम अथवा रिकार्ड रखने की जगह ही नहीं उपलब्ध कराई जायेगी तो वे रिकार्ड को रखेंगे कहां...?
क्या इस मामले से डीआरएम और महाप्रबंधक दोनों साथ-साथ डीआरएम/वक्र्स कार्यालय, मुंबई मंडल का निरीक्षण करके देखेंगे कि वास्तव में सच्चाई या है और क्यों कार्यालय के अधुनिकीकरण के चक्कर में रिकार्ड कीपिंग की जगह नहीं उपलब्ध कराई गई...?
आशंका तो इस बात की भी है कि उक्त कार्यालय के तथाकथित आधुनिकीकरण की लागत, कांट्रेक्टर को किया गया भुगतान, सामान कहां से खरीदा गया, और यह कांट्रेक्ट किसने किया, किसने इस तथाकथित माडर्न ऑफिस की डिजाइन बनाया, आदि की जानकारी भी यदि आरटीआई में मांगी जाये, तो शायद यह भी वहां उपलब्ध नहीं होगी. इसलिए बाबुओं की मांग है कि यहां रिकार्ड कीपिंग की व्यवस्था की जाए.
बताया जाता है कि अधिकारी वास्तव में कोई रिकार्ड रखना ही नहीं चाहते हैं क्योंकि इससे उन्हें ही समस्या होती है. इसीलिए उन्होंने रिकार्ड रखने की सुविधा ही कार्यालय में उपलब्ध नहीं कराई है. बताते हैं कि अधिकारी यह मानकर चलते है कि रिकार्ड रखने की जिम्मेदारी बाबू की है. परंतु बाबू को रिकार्ड रखने की सुविधा/जगह उपलब्ध न कराकर उसे ही बलि का बकरा बनाया जा रहा है. जहां तक आपराधिक मामलों, जमीन संबंधी मामलों आदि के रिकार्ड की बात है तो इनके रिकार्ड वर्षों-वर्षों तक रखे जाते हैं जब तककि संबंधित मामलों में अंतिम निर्णय न आ जाये और उसमें अपील की सारी गुंजाइश हीखत्म न हो जाये.
अत: रिकार्ड कीपिंग एवं मेंटीनेंस के लिए प्रत्येक विभाग में एक अलग रिकार्ड रूमबनाया जाना अनिवार्य है. सिर्फ यही नहीं रिकार्ड कीपिंग स्टाफ भी जरूरी है जो कि समस्तरिकार्ड को दीमकों एवं सीलन से नष्ट न होने दे और जरूरत पडऩे पर संबंधित रिकार्डतुरंत मुहैया भी कराये. परंतु ऐसी व्यवस्था न होने और समस्त रिकार्ड कथित रूप सेउपलब्ध न होने के कारण आरटीआई एक्ट का सारा उद्देश्य चौपट हो रहा है.
ज्ञातव्य है कि संपादक 'रेलवे समाचार' ने व्यक्तिश: इंजी. विभाग, मुंबई मंडल, म.रे. सेकरीब पांच संदर्भों में महत्वपूर्ण जानकारी आरटीआई एक्ट के तहत मांगी है परंतु पिछलेकरीब पांच महीनों से यहां के अधिकारियों के सहित पीआईओ एवं अपीलीय अधिकारी भी उक्त जानकारी मुहैया कराने से यह कहकर बच रहे हैं कि 10 साल का रिकार्ड उपलब्ध नहीं है अथवा मांगे गये फार्मेट में नहीं है. अपील दर अपील करने के बाद भी आधी-अधूरी भी जानकारी नहीं दी जा रही है.
इससे तो ऐसा लगता है कि इन अधिकारियों के मन में कानून का कोई डर नहीं है अथवा वह यह जानते हैं कि जब तक सीआईसी का निर्णय आयेगा या सीआईसी तक मामले जा ही नहीं पायेंगे तब तक वह कहीं और जाकर बैठ चुके होंगे. इंजी. विभाग मुंबई मंडल, म.रे. और यहां के पीआईओ तथा अपीलीय अधिकारी के इस रवैये ने आरटीआई एट के उद्देश्यों को चौपट करते हुए समस्त कानून का मजाक बना डाला है.
अत: इनके खिलाफ सीआईसी में शिकायत करने तथा इनके द्वारा किए गये और किए जा रहे कार्यों में कमियां एवं भ्रष्टाचार को उजागर करने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा है. ऐसे मामलों की क्रमिक शुरुआत 'रेलवे समाचार' के अगले अंकों में किए जाने की तैयारी भी अब पूरी हो चुकी है. क्योंकि जब तक विजिंलेस, सीबीआई एवं अन्य भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसियों के माध्यम से इनकी गर्दन नहीं पकड़ी जायेगी, तब तक इनके होश ठिकाने नहीं आयेंगे और ये जानकारी चाहने/मांगनेवालों को मूर्ख समझते रहेंगे.
प्राप्त जानकारी के अनुसार इंजी. विभाग. मुंबई मंडल म.रे. के मंडल कार्यालय (डीआरएम/वक्र्स ऑफिस) का कुछ इस तरह से आधुनिकीकरण किया गया या कराया गया, जिससे वहां कांट्रेक्टरों और कर्मचारियों का तमाम रिकार्ड रखने की जगह ही नहीं बनाई गई है. इस तथाकथित मॉडर्न ऑफिस की रिमॉडलिंग और माडर्नाइजेशन में करोड़ों रुपए खर्च किए गये हैं. परंतु रिकार्ड रखने की कोई जगह नहीं बनाई गई है.
बताते हैं कि वाड़ीबंदर की एक कोठरी में यह रिकार्ड रखने भेजा जाता है अथवा वहां फेंक दिया जाता है, जहां उसे देखने और व्यवस्थित रखने वाला कोई नहीं है जो कि उक्त समस्त महवपूर्ण रिकार्ड को दीमकों और सीलन से बचाने के लिए कोई उपाय कर सकें.
कानूनन और रेलवे के नियमानुसार भी आउट साइड पार्टी के भुगतान संबंधी समस्त वाउचर्स अगले 20 वर्षों तक संभाल कर सुरक्षित रखे जाने की बाध्यता/अनिवार्यता है और यह जिम्मेदारी संबंधित अधिकारियों की है न कि बाबू लोगों की. परंतु प्रत्यक्ष में हो यह रहा है कि अधिकारी तो 2-3 साल में आता-जाता रहता है, तो यह रिकार्ड कीपिंग की जिम्मेदारी बाबू लोगों पर आ गई है, जिसके लिए उन्हें चार्जशीट दी गई हैं. मगर जब बाबुओं को रिकार्ड रूम अथवा रिकार्ड रखने की जगह ही नहीं उपलब्ध कराई जायेगी तो वे रिकार्ड को रखेंगे कहां...?
क्या इस मामले से डीआरएम और महाप्रबंधक दोनों साथ-साथ डीआरएम/वक्र्स कार्यालय, मुंबई मंडल का निरीक्षण करके देखेंगे कि वास्तव में सच्चाई या है और क्यों कार्यालय के अधुनिकीकरण के चक्कर में रिकार्ड कीपिंग की जगह नहीं उपलब्ध कराई गई...?
आशंका तो इस बात की भी है कि उक्त कार्यालय के तथाकथित आधुनिकीकरण की लागत, कांट्रेक्टर को किया गया भुगतान, सामान कहां से खरीदा गया, और यह कांट्रेक्ट किसने किया, किसने इस तथाकथित माडर्न ऑफिस की डिजाइन बनाया, आदि की जानकारी भी यदि आरटीआई में मांगी जाये, तो शायद यह भी वहां उपलब्ध नहीं होगी. इसलिए बाबुओं की मांग है कि यहां रिकार्ड कीपिंग की व्यवस्था की जाए.
बताया जाता है कि अधिकारी वास्तव में कोई रिकार्ड रखना ही नहीं चाहते हैं क्योंकि इससे उन्हें ही समस्या होती है. इसीलिए उन्होंने रिकार्ड रखने की सुविधा ही कार्यालय में उपलब्ध नहीं कराई है. बताते हैं कि अधिकारी यह मानकर चलते है कि रिकार्ड रखने की जिम्मेदारी बाबू की है. परंतु बाबू को रिकार्ड रखने की सुविधा/जगह उपलब्ध न कराकर उसे ही बलि का बकरा बनाया जा रहा है. जहां तक आपराधिक मामलों, जमीन संबंधी मामलों आदि के रिकार्ड की बात है तो इनके रिकार्ड वर्षों-वर्षों तक रखे जाते हैं जब तककि संबंधित मामलों में अंतिम निर्णय न आ जाये और उसमें अपील की सारी गुंजाइश हीखत्म न हो जाये.
अत: रिकार्ड कीपिंग एवं मेंटीनेंस के लिए प्रत्येक विभाग में एक अलग रिकार्ड रूमबनाया जाना अनिवार्य है. सिर्फ यही नहीं रिकार्ड कीपिंग स्टाफ भी जरूरी है जो कि समस्तरिकार्ड को दीमकों एवं सीलन से नष्ट न होने दे और जरूरत पडऩे पर संबंधित रिकार्डतुरंत मुहैया भी कराये. परंतु ऐसी व्यवस्था न होने और समस्त रिकार्ड कथित रूप सेउपलब्ध न होने के कारण आरटीआई एक्ट का सारा उद्देश्य चौपट हो रहा है.
ज्ञातव्य है कि संपादक 'रेलवे समाचार' ने व्यक्तिश: इंजी. विभाग, मुंबई मंडल, म.रे. सेकरीब पांच संदर्भों में महत्वपूर्ण जानकारी आरटीआई एक्ट के तहत मांगी है परंतु पिछलेकरीब पांच महीनों से यहां के अधिकारियों के सहित पीआईओ एवं अपीलीय अधिकारी भी उक्त जानकारी मुहैया कराने से यह कहकर बच रहे हैं कि 10 साल का रिकार्ड उपलब्ध नहीं है अथवा मांगे गये फार्मेट में नहीं है. अपील दर अपील करने के बाद भी आधी-अधूरी भी जानकारी नहीं दी जा रही है.
इससे तो ऐसा लगता है कि इन अधिकारियों के मन में कानून का कोई डर नहीं है अथवा वह यह जानते हैं कि जब तक सीआईसी का निर्णय आयेगा या सीआईसी तक मामले जा ही नहीं पायेंगे तब तक वह कहीं और जाकर बैठ चुके होंगे. इंजी. विभाग मुंबई मंडल, म.रे. और यहां के पीआईओ तथा अपीलीय अधिकारी के इस रवैये ने आरटीआई एट के उद्देश्यों को चौपट करते हुए समस्त कानून का मजाक बना डाला है.
अत: इनके खिलाफ सीआईसी में शिकायत करने तथा इनके द्वारा किए गये और किए जा रहे कार्यों में कमियां एवं भ्रष्टाचार को उजागर करने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा है. ऐसे मामलों की क्रमिक शुरुआत 'रेलवे समाचार' के अगले अंकों में किए जाने की तैयारी भी अब पूरी हो चुकी है. क्योंकि जब तक विजिंलेस, सीबीआई एवं अन्य भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसियों के माध्यम से इनकी गर्दन नहीं पकड़ी जायेगी, तब तक इनके होश ठिकाने नहीं आयेंगे और ये जानकारी चाहने/मांगनेवालों को मूर्ख समझते रहेंगे.
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