Tuesday, 7 April 2009

महाप्रबंधक के निरीक्षण के बाद सब कुछ पूर्ववत

मुंबई : 8 मार्च को म।रे. के महाप्रबंधक बी. बी मोदगिल का निराक्षण ठाणे से कल्याणके बीच हुआ. इससे पहले करीब दो महीनोंसे लगातार रात-दिन रेल लाइनों के आसपास से कचरा हटाने और दीवारों को चमकानेसहित रेलवे स्टेशनों की साफ-सफाई आदि मेंसैकड़ों कर्मचारियों एवं ठेकेदारों को लगाकर खूब काम होता हुआ दिखाई दिया. इसमें हालांकि चालू वित्त् वर्ष के फंड का इस्तेमाल करना भी था और इस तरह सैकड़ों करोड़रुपये भी खर्च किए गए. काम भी काफी हुआऔर यात्री भी खुश हुए. मगर महाप्रबंधक कानिरीक्षण खत्म होते ही सारे अधिकारी औरकर्मचारी पुन: सो गये हैं और सारी स्थिति पूर्ववत हो चुकी है.हालांकि कुछ अपवाद भी होते हैं जैसे सीनियर डीईएन/साउथ (सीएसटी से कल्याण) का अपवाद है. भले ही बाकी सारे अधिकारी सो गये, मगर सीनियर डीईएन/साउथ का काम पूर्ववत युद्ध स्तर पर जारी है. उनके काम को देखने से ऐसा लगता है कि इस बार बरसात के समय सीएसटी से कल्याण के बीच रेल लाइनों पर पहले की तरह पानी नहीं भरेगा और लोकल गाडिय़ों का आवागमन सुचारु रूप से जारी रह सकेगा. योंकि ट्रेक और साइड गटरों सहित डिपॉजिट वर्क के अंतर्गत नालों से मिट्टïी एवं कचरा बड़ी मात्रा में निकाला जा रहा है. परंतु इस डिपॉजिट वर्क में ही सबसे ज्यादा घपला भी है. महाप्रबंधक को यह भी देखने की जरूरत है कि बीएमसी, टीएमसी और केडीएमसी आदि महानगर पालिकाओं से जो करोड़ों रुपये डिसल्टिंग वर्क के लिए हर साल रेलवे को मिलता है उसके अंतर्गत वास्तव में कितना कार्य होता है?ज्ञात हुआ है कि इस डिपॉजिट (डिसिल्टिंग) वर्क में कांट्रेक्टर्स और पीडल्यूआई/आईओडब्ल्यू की मिलीभगत से लगभग सारा काम कागज पर ही होता है. कांट्रेटर के कागज पर 200 मजदूर दिखाये जाते हैं, मगर यह वास्तव में 20-25 ही काम पर लगे होते हैं, जबकि यह मजदूर साइड गटर एवं नालों से कचरा-मिट्टïी निकाल कर ट्रेक के पास ही डाल देते हैं, जिसे टेंडर की शर्तों के अनुसार कांट्रेटर को ही उठाकर दूर कहीं फेंकना होता है. ऐसा न होने से यह मित्ति व कचरा बरसात में पुन: नालियों में भर जाता है. यही नहीं तथाकथित निकाली गई और उठाकर फेंकी गई मिट्टी का आकलन भी गलत तरीके से ज्यादा दर्शाया जाता है और कांट्रेक्टर का फेवर हर स्तर पर करके निचले स्तर के कर्मचारियों द्वारा रेलवे को नुकसान पहुंचाया जाता है. इसमें एईएन स्तर के अधिकारियों की भी मिलीभगत से इंकार नहीं किया जा सकता.कर्मचारियों का कहना है कि जो काम पिछले तीन साल में नहीं हो पाये थे, वह जीएम इंस्पेशन के बहाने पिछले दो महीनों में हो गये. परंतु ट्रेक के किनारे एस एंड टी, टेलीफोन और बिजली के केबल डालने वाले कांट्रेक्टरों को देखने वाला कोई नहीं है. ये कांट्रेक्टर एस एंड टी, टेलीफोन एवं बिजली के केबल टेंडर शर्तों के अनुरूप 5 फुट गहरी नाली खोदकर डालने के बजाय बमुश्किल एकाध फुट गहरी नाली में ही केबल डालकर तोप देते हैं, जिससे ट्रेक के किनारे की फालतू मिट्टी हटाने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है. कर्मचारियों का कहना है कि यदि ऐसे डाले गये सभी केबलों का निरीक्षण किया जाये, जो कि वास्तव में महाप्रबंधक को करना चाहिए, तो इसकी सच्चाई तुरंत सामने आ जायेगी. मिट्टïी हटाने में यदि केबल कट जाते हैं तो एसएंडटी और इलेक्ट्रकल के लोग सारा दोष इंजीनियरिंग विभाग पर मढ़ते हैं, परिणामस्वरूप संबंधित इंचार्ज/कर्मचारी को चार्जशीट थमा दी जाती है.कर्मचारियों का कहना है कि यदि हेड मास्टर (महाप्रबंधक) ठीक है तो सब कुछ ठीक हो सकता है उनका कहना है कि काम खूब हो रहा है. पैसा भी पर्याप्त रूप से खर्च किया जा रहा है, मगर इस सबका जो अपेक्षित परिणाम सामने आना चाहिए, वह नहीं आ रहा है. क्योंकि विभागवाद और भारी भ्रष्टाचार के चलते यह संभव नहीं है.

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