राकेश चोपड़ा की फाइल हो गई क्लीयर, बने गए नए एमई
महाप्रबंधकों की नियुक्ति चुनावों के बाद ही होने की संभावनानये
नई दिल्ली : नये मेंबर इंजीनियरिंग (एमई) के तौर पर श्री राकेश चोपड़ा के आदेश 31 मार्च को नहीं हो पाए थे. सूत्रों का कहना है कि पीएमओ से उनकी फाइल ही क्लीयर होकर नहीं आ पाई थी, जबकि पहले चर्चा यह थी कि श्री चोपड़ा की फाइल क्लीयर होकर आ गई है और कभी भी उनके ऑर्डर जारी हो सकते हैं. वरना 31 मार्च को तो निश्चित तौर पर जारी हो जाएंगे. परंतु वास्तव में पीएमओ से फाइल आई ही नहीं थी. इसी वजह से तीन महाप्रबंधकों के पोस्टिंग ऑर्डर भी अटक गये हैं. बताते हैं कि उनकी फाइल भी पीएमओ में ही पड़ी है.
उधर, 31 मार्च को श्री एस. के. विज मेंबर इंजीनियरिंग के पद से सेवानिवृत्त् हो गए और उनका लुक ऑफ्टर चार्ज एमएल श्री सुखबीर सिंह को सौंप दिया गया था. बोर्ड में यह भी चर्चा सुनने को मिली कि श्री चोपड़ा की नियुक्ति के लिए विदेश गए प्रधानमंत्री की संस्तुति लेने हेतु फैक्स किया गया है. परंतु इस बात में ज्यादा दम इसलिए नजर नहीं आ रहा था क्योंकि 4-5 दिन के लिए एक महत्वपूर्ण बैठक में शामिल होने लंदन गए प्रधानमंत्री को एक सामान्य नियुक्ति के लिए फैक्स करने की बेवकूफी या जल्दबाजी पीएमओ के नौकरशाह नहीं दिखाना चाहेंगे. परंतु 1 अप्रैल की देर शाम को करीब 8.15 बजे पीएमओ से श्री चोपड़ा की फाइल रेलवे बोर्ड में पहुंची. तब तक बोर्ड के बाकी लोग वहीं बैठे थे. परंतु जब सवा आठ बजे फाइल आ गई तो घर चले गए ईडी को बुलाया गया और रात करीब 10.30 बजे नए मेंबर इंजीनियरिंग श्री चोपड़ा के आर्डर जारी किए गए. श्री चोपड़ा को तत्काल ज्वाइन करा दिया गया. श्री चोपड़ा भी पूरे समय बोर्ड में ही उपस्थित थे. इस आर्डर/नियुक्ति का उन्हें पहले से ही पूरा भरोसा था, क्योंकि द.रे. में उन्होंने पहले ही अपनी विदाई करा ली थी. उधर, महाप्रबंधक/निर्माण/एनएफआर गुवाहाटी श्री शिवकुमार ने ओपन लाइन में पोस्टिंग किए जाने को लेकर कैट में मामला दायर किया था. उनका तर्क यह था कि उनका रिकार्ड कहीं खराब नहीं है, तो उन्हें एक तो ओपन लाइन जीएम में पदस्थ किया जाए और उनके बतौर जीएम कार्यकाल को उस दिन से ओपन लाइन जीएम में गिना जाए जिस दिन से उनके जूनियर ने ओपन लाइन में ज्वाइन किया था. इसी आधार पर उन्हें मेंबर इंजीनियरिंग के लिए भी कंसीडर किया जाना चाहिए. बोर्ड सूत्रों का कहना है कि श्री शिवकुमार के तर्कों में काफी दम था और इसीलिए गुवाहाटी कैट ने उनके पक्ष में निर्णय देते हुए रेलवे बोर्ड (रेल मंत्रालय) को उनके कंडीडेचर को दोनों स्तर पर कंसीडर करने का अंतरिम आदेश जारी किया है. यह सच्चाई है कि गत वर्ष कुछ इस प्रकार जीएम पोस्टिंग की प्लानिंग की गई थी कि जिससे श्री शिवकुमार को साइड लाइन किया जा सके. इसीलिए श्री शिवकुमार को जीएम/सी गुवाहाटी बनाया गया था. वर्तमान स्थिति इस पूर्व साजिश और ब्यूरोक्रेटिक तिकड़म की पुष्टि करती है. तथापि डीओपीटी ने श्री शिवकुमार के तमाम तर्कों और संदर्भों को नकार दिया और श्री चोपड़ा की फाइल 1 अप्रैल की सुबह पीएमओ को भेज दी थी. 'रेलवे समाचार' बार-बार यह लिखता रहा है कि रेलवे बोर्ड में अधिकारियों की शक्ल देखकर नियम बनाये और बिगाड़े जाते हैं अथवा ऐसा उनके लिए किया जाता है जो मंत्री अथवा सीआरबी को मोटी थैली भेंट चढ़ाने की हैसियत रखते हैं या चढ़ाते हैं? इस प्रवृत्ति या लोगों में फैली धारणा को बदलना आवश्यक है. यदि इन बातों में जरा भी सच्चाई है तो बोर्ड को चाहिए कि वह अपनी छवि में सुधार करे और ऐसी किसी गलत धारणा को पुष्ट न होने दे. यह सही है कि अक्सर काबिल अफसरों को शीर्ष पर न पहुंचने देने के लिए बोर्ड स्तर पर कई तिकड़में भिड़ाई जाती हैं, जिससे नाकाबिल अफसरों के लिए शीर्ष पर पहुंचने का रास्ता आसान हो जाता है, जो कि वहां पहुंचकर सिस्टम को और ज्यादा बिगाड़ते एवं भ्रष्ट करते हैं. इसके अलावा काबिल अफसर मेंबर या सीआरबी न बन पाए, इसके लिए उसे पहले तो सीआर खराब करके अथवा विजिलेंस मामलों में उलझाकर अटकाया जाता है, परंतु जब वह इससे भी बच निकलता है तो उसे साइड लाइन करने के लिए जीएम/कंस्ट्रक्शन अथवा जीएम/प्रोडक्शन यूनिट बनाकर भेज दिया जाता है. इसी ब्यूरोक्रेटिक तिकड़म के शिकार वर्तमान में श्री शिवकुमार हैं, जबकि उनसे पहले श्री गिरीश भटनागर इसका शिकार हो चुके हैं. श्री भटनागर जब अपने बल पर ब्यूरोक्रेटिक लड़ाई लड़कर आरडब्ल्यूएफ से पू.म.रे. ओपन लाइन में आने में कामयाब हो गए तो वह ब्यूरोक्रेसी के दुश्मन बन गए. इसी ब्यूरोक्रेटिक दुश्मनी के कारण पहले उन्हें एमएस नहीं बनाया गया और उनके जूनियर श्री एस. एस. खुराना को एमएस बनाकर उन्हें बेइज्जत किया गया. दूसरी बार उनसे जूनियर श्री प्रवीण कुमार को एमएम बनाकर उन्हें पुन: बेइज्जत किया गया. यहां तक कि न सिर्फ उन्हें कंसीडर करने के कैट के आदेश को धता बतायी गयी बल्कि कैट के सदस्यों पर दबाव बनाकर उनके केस को उनके खिलाफ भी करवाया गया. वरना आज श्री एस. एस. खुराना की जगह श्री भटनानगर सीआरबी बने बैठे होते. इसी ब्यूरोक्रेटिक तिकड़म का शिकार श्री ए. के. वोहरा को बनाकर उन्हें डीजी/आरएससी बना दिया गया है और अब भी उन्हें ओपन लाइन देने में जान-बूझकर देरी की जा रही है क्योंकि वह भी सीआरबी पद के अगले मजबूत दावेदार हैं. इसी तिकड़म का शिकार श्री ए. के. गोयल को भी बनाने की पुरजोर कोशिश की गई थी, जो फिलहाल 'रेलवे समाचार' के हस्तक्षेप और श्री गोयल की व्यक्तिगत कोशिशों के चलते सफल नहीं हो पाई और वह एमएस बनने में कामयाब हुए हैं. इसी तिकड़म का शिकार श्री वी. एन. त्रिपाठी भी हुए हैं, जिन्हें जीएम/मेट्रो बनकर जाना पड़ा है. अब आगे इसी तिकड़म का शिकार जीएम पैनलिस्ट श्री के. के. सक्सेना, सीओएम/उ.म.रे., होने जा रहे हैं. क्योंकि उन्हें श्री ए. के. वोहरा की जगह डीजी/आरएससी और श्री वोहरा को महाप्रबंधक/पू.त.रे. बनाने का प्रस्ताव तैयार किया गया है. इस प्रस्ताव में श्री सक्सेना से जूनियर जीएम पैनलिस्ट श्री सी.पी. वर्मा को द.रे. में श्री राकेश चोपड़ा की जगह भेजने की तिकड़म करके पूर्व में की गई गलतियों को दोहराए जाने का प्रयास किया जा रहा है, जबकि नियमानुसार श्री सक्सेना को द.रे. और उनके नीचे एवं जूनियर श्री वर्मा को आरएससी में भेजा जाना ही जस्टीफाई होगा. बोर्ड में यह ब्यूरोक्रेटिक तिकड़म इसलिए की जा रही है क्योंकि श्री सक्सेना यदि अभी ओपन लाइन में महाप्रबंधक बन जाते हैं तो वह एमटी के लिए अगले दावेदार होंगे, क्योंकि तब श्री कुलदीप चतुर्वेदी के मई में सीआरबी बनने के पूरे आसार हैं. श्री सक्सेना की पोस्टिंग ओपन लाइन में मई तक न होने देने से सीधे-सीधे श्री विवेक सहाय को फायदा पहुंचाने वाला है क्योंकि तब उनका कार्यकाल 12-13 महीने बचा होगा और वह एमटी के लिए अपनी दावेदारी फिर पेश करने से कतई नहीं चूकेंगे. यदि श्री सक्सेना की मई से पहले ओपन लाइन में पोस्टिंग हो जाती है तो वह आगे एमटी बन जाएंगे तब जो ससेना श्री विवेक सहाय के मातहत बतौर सीओएम काम कर चुके हैं, वही आगे एमटी बनकर श्री सहाय के बॉस बन सकते हैं. इसलिए यह तिकड़म की जा रही है कि एक तो श्री सक्सेना की पोस्टिंग ओपन लाइन में न होने पाए और दूसरे यदि ओपन लाइन में हो भी तो मई से पहले न होने पाए. इसीलिए यह चर्चा है कि इन तीन महाप्रबंधकों की पोस्टिंग अब आम चुनावों के बाद ही की जाएगी. अत: आज जरूरत इस बात की है कि बोर्ड में बैठकर की जाने वाली इस ब्यूरोक्रेटिक तिकड़म को जड़ से खत्म किया जाए और उच्च स्तरीय पोस्टों पर पोस्टग की स्थिति अन्य मंत्रालयों की तरह एक दो महीने पहले एडवांस में स्पष्ट की जाए तथा इनकी समस्त प्रक्रिया को पहले से पूरा करके ज्वाइनिंग डेट से कम से कम 15 दिन पहले इनके ऑर्डर निकाल दिए जाने चाहिए. इसके अलावा इस समस्त प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी बनाए जाने की भी अत्यंत आवश्यकता है.
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